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मानसिक दुर्बलता (Mental Retardation)


बुद्धि और वाणी मनुष्य को अन्य प्राणियों से भिन्न करते हैं। इन क्षमताओं का विकास एक जटिल प्रक्रिया है। यह सहज संभव है कि कुछ मामलों में यह विकास सामान्य राह पर सामान्य गति से न चल पाए। दुनिया में हर तरह के लोग मिलते हैं। भिन्नता प्रकृति का नियम है। अधिकांश लोग बुद्धि में औसत के आसपास होते हैं।

कुछ सदस्य औसत से ऊँची बुद्धि क्षमता के होते हैं तो कुछ कम। बहुत थोड़े से (कुल जनसंख्या का 3%) मनुष्य अत्यंत तीव्र प्रज्ञा रखते हैं। इन्हें जीनियस कहा जा सकता है। यहाँ तक तो ठीक है। मुश्किल उन तीन प्रतिशत के साथ आती है जो औसत से काफी कम बुद्धि रखते हैं। यहाँ यूँ न सोचिए कि यह तमाम वर्ग एक दूसरे से आसानी से पृथक किए जा सकते हैं। ये सब एक दूसरे से मिले-जुले निरंतर हैं। कोई लक्ष्मण रेखा नहीं होती।

क्या उनका दिमाग कुछ अलग होता हैं

अल्बर्ट आइंस्टाइन के मस्तिष्क की रचना का खूब गहराई से अध्ययन किया गया है। कोई खास बात नजर नहीं आती। जीनियस मस्तिष्क दिखने में अलग नहीं होता। इसी तरह मंद बुद्धि व्यक्तियों के मस्तिष्क को काटकर देखने से कोई कमी प्रतीत नहीं होती। पता नहीं क्या-क्या कारक हैं जो बौद्धिक क्षमताओं में इतनी ऊँच-नीच पैदा कर देते हैं। यह तो तय है कि बुद्धि का निवास अंग मस्तिष्क है। शायद हमारी आँखे व हमारे सूक्ष्मदर्शी यंत्र अभी इतने सक्षम नहीं हुए कि वे किन्ही गूढ़ विकृतियों को चीन्ह पाये। कहते हैं कि आपकी आँखे वही देख सकती है जो आपका मन मस्तिष्क जानता है। बिना जाने क्या देखें? और बिना देखे क्या जाने?  कल्पना ही सहारा है (याने मन की आँखे) और सच मानिए, वैज्ञानिकों ने अपनी मौलिक सूझबूझ से अब कुछ नयी विधियों द्वारा मस्तिष्क में विशिष्ट जटिल विकृतियाँ ढूँढ़ने का सिलसिला शुरू कर दिया है। मंदबुद्धि और जीनियस दोनों प्रकार के व्यक्तियों के मस्तिष्क में तंत्रिकाओं व तंतु जाल के सर्किट में औसत से परे बेतरतीबियाँ पाई गई है। है न मजेदार बात की जीनियस का मस्तिष्क भी विकृति विज्ञान की दृष्टि से असामान्य ही है।

फिर अन्तर क्या हैं ?

क्या है यह खामियाँ ? मस्तिष्क के कुछ खास हिस्सों में तंत्रिका कोशिकाओं की संख्या कम हो सकती है। तंत्रिकाओं के आपसी संपर्क तंतुओं व संपर्क बिंदुओं की संख्या भी कम पाई गई है। मंदबुद्धि वर्ग की सबसे निचली पायदान पर कोई 10 परसेंट ऐसे अभागे होते हैं जिन्हें जड़ बुद्धि कहा जाता है। इनके मस्तिष्क का आकार व वजन में छोटे होते हैं और उनकी रचना प्रत्यक्षतः गड़बड़। जड़बुद्धि, बुद्धिमान व अन्य मंदबुद्धि वर्ग की सीमा रेखा धुंधली है। फिर भी दोनों वर्गों में अंतरों को समझ लेना उपयोगी होगा।

उपसांस्कृतिक दुर्बलता

ये तमाम मंदबुद्धि वर्ग का 90% बनाते हैं। ये अपेक्षा रूप से कम दुर्बल होते हैं। ये सामान्य जनसंख्या के उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं जो जीनियस का विलोम है। इनमें से अधिकांश समाज में, घरों में रहते हैं। अनेक आत्मनिर्भर होते हैं। सरल-सा धंधा सीख लेते हैं। बुद्धि की कमी के अलावा इनकी न्यूरोलॉजिकल जाँच में कोई अन्य कमी देखने में नहीं आती। शारीरिक विकास ठीक ठाक होता है। सामान्य कदकाठी। सामान्य चेहरा मोहरा। सामान्य प्रजनन क्षमता। इनके माता-पिता व अन्य रिश्तेदारों में से अनेक इसी प्रकार की मानसिक दुर्बलता से ग्रस्त होते हैं।

क्लिनिकल लक्षण

जन्म के समय शिशु सामान्य हो सकता है। फिर हर कदम देरी से उठता है। मील के पत्थर देर से प्राप्त होते हैं। शिशु खूब सोता है। रोता कम है। दूध कम माँगता है। दूध धीरे चूसता है। कम हिलता-डुलता है। हाथ पैर ढीले-ढाले रहते हैं। माता-पिता सोचते हैं सीधा सरल बच्चा है। करवट बदलना, गर्दन संभालना, बैठना, खड़े होना, चलना, बोलना सब काम देर से सीखे जाते हैं। कोई लकवा, पेरेलिसिस, कम्पन आदि नहीं होते। ये बच्चे कम मुस्कुराते हैं। माँ और घर के अन्य सदस्यों को देर से पहचानते हैं। आसपास के वातावरण की ध्वनियों और वस्तुओं के प्रति आकर्षित नहीं होते। कुछ शिशु सुलभ हरकतें जो 6 से 12 माह के उम्र के बाद समाप्त हो जाना चाहिए बनी रहती है — उदाहरण हाथों को ताकते रहना, हर अखाद्य चीज मुँह में रखकर चूसना आदि। इन बच्चों की आवाजें कमजोर ही निकलती है और कम प्रकार की निकलती है।

इसके विपरीत, उप सांस्कृतिक मानसिक दुर्बलता के इसी वर्ग में कुछ अन्य बच्चे होते हैं जिनमें, उपरोक्त में से अनेक कार्य सामान्य समय पर सीख लिए जाते हैं। फिर भी इनकी ध्यान क्षमता सीमित होती है और ये धीरे सीखते हैं। मानो किसी तरह से मोटर विकास अवरुद्ध होने से छूट निकलना। बेमतलब के हलचल होती रहती है —- हाथ पांव फेंकना, दाँत पीसना, आवाजें निकालना। बुद्धि सूचकांक (आईक्यू) 3 वर्ष की उम्र तक ठीक-ठाक रहने के बाद घटने लगता है। ऐसा किसी बढ़ने वाली बीमारी के कारण नहीं होता। 3 वर्ष की उम्र के पहले बुद्धि सूचकांक मापने की विधियाँ मोटर/प्रेरक कृतियों पर आधारित है जबकि बाद के टेस्ट स्मृति परिकल्पना आदि को परखते हैं। असली पोल तब देर से खुलती है। निष्कर्ष यह कि ढुल-मुल, ढीले-ढाले और चंचल-चीखु दोनों तरह के बच्चे मंदबुद्धि से पीड़ित हो सकते हैं। असलियत की पहचान के लिए कभी-कभी धैर्य पूर्वक प्रतीक्षा करना पड़ती है।

वाणी में अवरोध या लंबित विकास, मानसिक दुर्बलता के प्रथम चिन्हों में से हो सकता है। अन्य लक्षण बाद में धीरे-धीरे प्रकट होंगे। इसके विपरीत कुछ दूसरे बच्चों में बुद्धि सामान्य होने के बावजूद बोली देर से फूटती है। बाद में सब ठीक रहता है। आइनस्टाइन ने 4 साल की उम्र तक बोलना नहीं सीखा था। मलमूत्र पर नियंत्रण देर से आना, मानसिक दुर्बलता के अलावा सामान्य बच्चों में भी अनेक बार देखने को मिलता है।

एक जैसे बुद्धि सूचकांक वाले व्यक्तियों के तमाम लक्षण एक जैसे नहीं होते। हर दूसरा मरीज पहले वाले से भिन्न हो सकता है। कोई मंदबुद्धि, खुशनुमा और मित्रवत होगा तो कोई एक खोल में बंद, आत्मलीन,  सामाजिक संबंधों से परे। कोई शांत, सुस्त, चुप होगा तो कोई चंचल, अधीर, हिलायमान और विध्वंसक।

एक अजीब सी निडरता, दर्द संवेदना, हीनता और स्व-पीड़ाजनक व्यवहार भी देखने को मिलते हैं। बेमतलब की लयपूर्ण क्रियाएं जैसे  ठुमकना, थपकना, झूमना, झूलना, नाचना, मटकना, सिर फोड़ना देखने को मिलती है। घंटों चलती रह सकती है। तरह-तरह की आवाजें निकाली जाती हैं।

उपसांस्कृतिक मानसिक दुर्बलता से पीड़ित बच्चों में विकृत व्यवहार (बाल-उपचार) बहुतायत से देखने को मिलता है। सामान्य जनसंख्या में बाल उपचार की दर है 6.6%, मानसिक दुर्बल में 28% और मिर्गी ग्रस्त दुर्बल में 58% विकृत व्यवहार या बाल उपचार के अनेक रूप हो सकते हैं। आक्रामकता सबसे अधिक देखने को मिलती है। खासतौर से टेम्पोरल खंड की मिर्गी वालों में। अन्य रूप है क्रोध, उच्छ्रंखला, नकलचीपन, यौन कृत्य |

जड़ बुद्धि मरीजों के लक्षण

बुद्धि बालक संभव है कभी बैठना, चलना, बोलना सीख ही न पाए। यदि सीखे भी तो बहुत देर से आंशिक रूप से ।
भाषा शून्य  या गिने-चुने शब्दों तक सीमित रहती है। बच्चा निढाल सुस्त पड़ा रहता है, दीन दुनिया से बेखबर। भूख-प्यास, मल-मूत्र का ध्यान नहीं होता। सिर्फ आदिम संवेदनाएँ व भावनाएँ व्यक्त की जा सकती है, पशु के समान। पोषण कमजोर होता है। शरीर ठिंगना, नाटा, विरूप। सिर की गोलाई लघुतम, ललाट क्षुद्र सा। बुद्धि सूचकांक 20 से 45 (मूढ़ इम्बेसाइल) या 20 से कम (इडियट) की सीमाओं में होता है व्यवहार में, बुद्धि सूचकांक के परीक्षणों को लागू करना ही संभव नहीं हो पाता। निदान यूँ ही स्पष्ट होता हैं।

कुल मंदबुद्धि जनसंख्या के यह लोग 10% बनाते हैं। इन्हें सतत सुश्रुषा चाहिए। विकसित देशों में यह सब के सब विशेष संस्थाओं में भर्ती मिलेंगे। इनमें पुरुष लिंग की प्रधानता अधिक होती है। न्यूरोलॉजिकल जाँच में प्रायः अन्य अनेक खामियाँ मौजूद होती हैं – उदाहरण लकवा, पेरेलेसिस, अंधापन, बहरापन, मिर्गी। बच्चे पैदा करने (प्रजनन) की अवस्था तक ये लोग नहीं पहुंच पाते। इनके माता-पिता तुलनात्मक रूप से सामान्य होते हैं।

मंद बुद्धि के प्रकार

अधिकांश मरीज प्रथम वर्ग के उदाहरण होते हैं

1.       केवल मंदबुद्धि: साथ में कोई अन्य विकार नहीं। उप सांस्कृतिक मंदबुद्धि इसी वर्ग में आती है। कुछ मरीजों में मिर्गी भी हो सकती है।

2.       मंदबुद्धि के साथ-साथ मस्तिष्क विकृति के अन्य चिन्ह मौजूद — न्यूरोलॉजिकल जाँच के दौरान। पक्षाघात, दुहरा पक्षाघात, कंपन, अंधत्व, सेरेब्रल पाल्सी |

3.       मंदबुद्धि के साथ-साथ शरीर के अन्य अंगों की विकृतियाँ । हड्डियों की विकृतियाँ। लघु शीर्ष, दीर्घ शीर्ष, गुणसूत्रों की बीमारियाँ:  मंगोलीज्म, जींस की बीमारियाँ

मंदबुद्धि के कारण

प्रसव पूर्व अवस्था

जेनेटिक कारण  –  गुणसूत्रों में व्युत्क्रम

                      चयापचय में खराबी

                      मस्तिष्क का विकृत विकास

                      अनेक पारिवारिक सिंड्रोम लक्षण समूह

जेनेटिक कारण  –  माता में संक्रामक रोग – रूबेला, क्रिस

                      गर्भवती माता को रक्तस्त्राव

                      गर्भवती माता द्वारा ली गई औषधि, धूम्रपान, शराब

                      माता में अन्य रोग – थाइराइड

प्रसव अवस्था    –   प्रसूति में व्यवधान, शिशु के सिर पर चोट

                      नवजात शिशु को श्वांस/ऑक्सीजन की कमी

                      नवजात शिशु को संक्रमण (इन्फेक्शन)

                      नवजात शिशु को चयापचय की समस्या

                      समय से पूर्व प्रसव

प्रसवोत्तर अवस्था –  शिशु को संक्रामक रोग, चोट, टॉक्सिक पदार्थों का सामना, मिर्गी, थायराइड, सीसा

उप सांस्कृतिक मंदबुद्धि के कारण

यकायक किसी मंदबुद्धि बच्चे को देख कर उसकी बीमारी के कारण पर उंगली रख पाना संभव नहीं होता। यदि मस्तिष्क या अन्य अंगों की विकृतियों के चिन्ह मौजूद हों या जाने-माने कारणों में से एक या अधिक के होने का इतिहास उपलब्ध हो, तब बात आसान होती है। प्रायः ऐसानहीं होता। अधिकांश बच्चों की जाँच में बुद्धि की कमी के अतिरिक्त अन्य खराबी नहीं नजर आती। परिजनों से पूछने पर किसी ज्ञात कारण का होना नहीं पाया जाता। यह बच्चे ‘उप सांस्कृतिक मंद बुद्धि वर्ग’ के सदस्य होते हैं। यहाँ आकर कारण की खोज अंधेरे में तीर चलाने के समान हो जाती है। एक अंतहीन बहस इस बात पर चलती रही है कि उप सांस्कृतिक मानसिक दुर्बलता के कारण अनुवांशिक (जेनेटिक है) या वातावरणीय। क्या इन माता-पिता के अंडकोष व शुक्राणु में कमजोर बच्चे पैदा करना पहले से नियत था? गुणसूत्र, जींस क्यों खराब हुए? गरीबी कारण है या परिणाम। ये और इनके माता-पिता मंदबुद्धि को अभिशप्त थे (नियति?)  इसलिए गरीबी में जकड़े रहे?  या सामाजिक अन्याय के चलते, गरीबी के कारण इन्हें इतना निम्न कोटि का वातावरण मिला कि मस्तिष्क की समस्त संभावनाओं को खेलने का अवसर नहीं मिला। वे माता-पिता स्थिर घर नहीं बना पाते। काम नहीं ढूँढ पाते। इन घरों में बच्चों की उपेक्षा व मारपीट होती है। सीखने सिखाने का माहौल नहीं होता। सामाजिक भेदभाव, शिक्षा और मनोरंजन की कमी, कुपोषण,  संक्रामक बीमारियाँ इलाज कराने की असमर्थता आदि निश्चय ही मस्तिष्क पर गहन प्रभाव डालते हैं। दोनों कारक अपना-अपना महत्व रखते हैं। कौन अधिक जिम्मेदार है। इसे मापना आसान नहीं।

कुपोषण का प्रभाव

कुपोषण पर पिछले वर्षों में अधिक ध्यान दिया गया है। प्राणियों पर प्रयोगों में पता लगा कि गर्भस्थ शिशु के विकास के खास सोपानों के समय कुपोषण से मस्तिष्क में रासायनिक, रचनात्मक व व्यवहारात्मक परिवर्तन आ जाते हैं। जीवन के प्रथम 8 माह में प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण से मानसिक विकास में मंदी आती है। परंतु यह तथ्य भी अत्यंत राजनीतिक महत्व का है कि पोषक तत्वों की कमी का सामना करने में मस्तिष्क अन्य अंगों से अधिक सामर्थ्यवान है। पोषण पुनर्वास के बाद मानसिक क्षमताएँ तेजी से बढ़ कर अपनी कमी पूरी कर लेती है। कुपोषित बच्चे जो अंततः मंदबुद्धि बनते हैं,  संभवत एकाधिक मार से पीड़ित रहे होंगे —- गरीबी-अभिशाप, अशिक्षा, रोग, चिकित्सा का अभाव।

एक्स क्रोमोसोम पर अवस्थित विकृतियों पर पिछले वर्षों में अधिक ध्यान दिया गया है। तीव्र मंदबुद्धि व जड़ बुद्धि रोग पुरुष लिंग में अधिक होते हैं। नारी मुक्ति आंदोलन के प्रवक्ताओं द्वारा इन तथ्यों का उपयोग प्रोपेगेंडा में किया गया है यह कह कर कि स्त्री सामान्य के नजदीक होती है तथा पुरुष चरम सीमाओं के नजदीक होता है —-  या तो जीनियस या जड़ बुद्धि।

उप सांस्कृतिक मानसिक दुर्बलता को ‘पारिवारिक मानसिक दुर्बलता’भी कहा जाता है।

क्रोमोसोम व जींस की रचना अनुवांशिक का अर्थ क्या ग्रहण किया जाता है?

मानसिक दुर्बलता की पहचान/निदान/डायग्नोसिस

मंदबुद्धि की पहचान कैसे हो? सबसे पहले आशंका वाले शिशुओं की ओर ध्यान देना होगा याने जन्म से पहले

       – परिवार में पहले से कोई बच्चा मानसिक दुर्बल हो।

       – शिशु का अनुमानित आकार/ वजन, गर्भ आयु के सापेक्ष कम

       – समय पूर्व प्रसव होने से शिशु कमजोर पैदा हो

       – गर्भावस्था के आरंभिक माहों में संक्रमण, ज्वर, दवाई

       – गर्भावस्था के साथ अन्य रोग, मिर्गी, टॉक्सेमिया

नवजात शिशु  १. जन्म के समय निम्न एप्गार स्कोर २. ढीले शिथिल हाथ,पाँव ३. निष्क्रियता ४. न्यूरोलॉजिकल जाँच में खराबी

प्रथम द्वितीय वर्ष विशेष स्कोर प्रणाली – विकास सूचकांक या विकास लब्धि। यह बुद्धि सूचकांक (IQ)  से भिन्न है। जड़ बुद्धि या तीव्र मंदबुद्धि होने पर ही विकास सूचकांक में कमी आती है। अन्यथा यह बुद्धि के आकलन के लिए संवेदनशील परीक्षण नहीं है। ऐसा हो पाना संभव भी नहीं है। विकास सूचकांक (डी.क्यू.) मापने में बच्चे की हरकतों का विस्तार से लेखा-जोखा करते हैं। ध्यान देते हैं इन बातों पर –  चिड़चिड़ापन, कंपन, मिर्गी, रोने की ध्वनि, स्वास्थ्य की लय।

स्कूल पूर्व व स्कूल के वर्ष आइक्यू (इंटेलिजेंस क्वोशेंट) या बुद्धि सूचकांक या बुद्धि लब्धि। बुद्धि सूचकांक की परिकल्पना व उसे मापने की अनेक विधियों की खूब आलोचना होती रही है इन आलोचनाओं में थोड़ा सार हैं। सांस्कृतिक पैमानों में भिन्नता के कारण समाज के उपेक्षित तबकों के सदस्य इन परीक्षणों में असहाय सा महसूस करते हैं। ग्रामीण गरीब अशिक्षित परिवेश का व्यक्ति सामान्य बुद्धि का होते हुए भी अपनी प्रतिभा का परिचय नहीं दे पाता कहा जाता है कि यह परीक्षण बच्चे की उपलब्धियों को मापते हैं न कि उसकी संभाव्य क्षमताओं को। उपलब्धियाँ, अवसरों पर निर्भर करती हैं। इन परीक्षणों में भाषिक व तार्किक क्षमताओं को परखने पर अधिक जोर है। निष्पादन (परफॉर्मेंस) टेस्ट पर कम ध्यान है। जड़ बुद्धि बच्चों में भाषा व तर्क का अभाव होने से यह टेस्ट प्रयुक्त नहीं किए जा सकते। इन सबके बावजूद इनके अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं है। समय और आलोचना की मार के बावजूद इनकी व्यावहारिकता उपयोगिता स्वयं सिद्ध है। इनका उपयोग मरीज के बुद्धि के स्तर के आकलन, निदान, पूर्वानुमान(प्रोग्नोसिस), फॉलोअप, इत्यादि अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। एक-सी पृष्ठभूमि से आने वाले बच्चों के आईक्यू वर्षों तक संभावित सीमा में पाए गए हैं। सामाजिक सफलता के अन्य मापदंडों से बुद्धि सूचकांक का समायोजन ठीक-ठाक बैठता है।

प्रयोगशाला परीक्षणों की उपयोगिता सीमित है, क्योंकि ऐसी बीमारियां जिनका निश्चित निदान किसी खास टेस्ट द्वारा होता होगा, विरले ही मंदबुद्धि का कारण होती हैं। पहले ही कहा गया है इस समाज में सबसे प्रमुख कारण है – उप सांस्कृतिक मानसिक दुर्बलता। इस वर्ग की पहचान करा सकने वाले किसी प्रयोगशाला टेस्ट की इजाद अभी तक नहीं हुई है। अपने प्रदेश में वैसे भी लेबोरेटरी साधनों की गरीबी है। इनसे लाभ होने की संभावना तभी होती है जब इनका उपयोग सूझबूझ के साथ, ख़ास उद्देश्य से किया जाए। हर मरीज में बिना सोचे विचारे, ढेर सारी जाँच करवाना समय, बुद्धि, ऊर्जा व पैसों का अपव्यय है। लेकिन अपने यहाँ इनकी अनुपलब्धि अनेक बार तृष्णा का कारण बनती है और मन में भावना रह जाती है कि शायद हम कोई ऐसी बीमारी को पहचानने में चूक कर रहे हों जिसका इलाज संभव हो। वह बीमारी बिरली क्यों ना हो, उस से पीड़ित मरीज व परिवार के लिए तो वह जीवन भर का सवाल है। यदि किन्हीं बीमारियों का इलाज आज उपलब्ध न हो तो भी सटीक निदान का अपना वैज्ञानिक महत्व हो सकता है। निकट भविष्य में इलाज निकलते चले आएँ। जिन परीक्षणों की कभी-कभी आवश्यकता महसूस होती है वे हैं——

              —-रक्त में रासायनिक परीक्षण ताकि चयापचय की सजन्म बीमारियों व अंतः स्रावी ग्रंथियों की बीमारी की पहचान हो सके।

              —-रक्त में इम्यूनोलॉजी परीक्षण ताकि अनेक संक्रामक रोगों का निदान हो सके।

              —-ई.ई.जी. मस्तिष्क की विद्युत सक्रियता का आरेख –  मस्तिष्क की परिपक्वता, असमानता को मिर्गी के आकलन में

              —-केट स्कैन मस्तिष्क व कपाल की विकृतियों को पहचानने में

              —-गुणसूत्र वजन का अध्ययन

निदान में गलतियाँ

यदि बच्चे का मोटर विकास (प्रेरक विकास) सामान्य हो तो कुछ वर्षों तक मानसिक दुर्बलता की पहचान में देर हो सकती है। इसके विपरीत सामान्य बच्चे में गलती से मानसिक दुर्बलता का लेबल लगाया जा सकता है। बहरापन, गूँगापन, शारीरिक विकलांगता आदि की वजह से बच्चा मंदबुद्धि प्रतीत हो सकता है। वातावरणीय व सांस्कृतिक कारणों से सामान्य बच्चा कमजोर लग सकता है। कुपोषण, अभाव, गंभीर बीमारी व मानसिक रोग का भेद करने में भूल हो सकती है। मस्तिष्क की स्वतः क्षय करने वाली कुछ बिरली (डिजनरेटिव) बीमारियों में बच्चा आरंभिक वर्षों में सामान्य रहता है, बाद में पतन शुरू होता है। माता-पिता से पूछताछ के दौरान यह सुनिश्चित करना कि उनका बच्चा आरंभिक वर्षों में सामान्य था या नहीं, कई बार असंभव होता है। वे बेचारे इतने भोले, सरल, अज्ञानी या शायद स्वयं मंदबुद्धि होते हैं कि उन्हें बच्चे द्वारा बैठने, चलने, बोलने आदि उपलब्धियों की उम्र व उसकी सामान्य सीमाएँ ज्ञात नहीं होती। माता-पिता अपने बच्चे की बुद्धि क्षमता का बढ़ा-चढ़ाकर बखान करते हैं वे नहीं जानते कि 6 माह का बच्चा बैठना चाहिए या कि 2 वर्ष के बच्चे द्वारा छोटे वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए।

सीमित मानसिक दुर्बलताए

सामाजिक सफलता बुद्धि सूचकांक के अतिरिक्त सीमित मानसिक दुर्बलताओं पर निर्भर करती है। इन बीमारियों में बुद्धि के समस्त पहलुओं की कमी नहीं होती। बुद्धि के किसी एक विशिष्ट पक्ष में कमी होती है। उदाहरणार्थ कुछ बच्चों की वाणी का विकास अवरुद्ध हो जाता है। अन्य मामलों में वे सामान्य होते हैं। यदि बुद्धि का आकलन सिर्फ भाषिक,तार्किक क्षमता से करें तो वह दुर्बल कहलाएँगे। निष्पादन (परफॉर्मेंस) परीक्षणों में यह सामान्य होते हैं। बुद्धि ठीक होने के बावजूद इनकी उपलब्धियाँ कम रहती हैं।

वाणी की दुर्बलता संदेश के संप्रेषण (कथन लिखना) में या संदेश के ग्रहण (सुनना-पढ़ना) में हो सकती है। पढ़ने व गणित की अक्षमता के कारण अनेक बच्चे पिछलग्गू करार दे दियें जाते हैं। उनकी बुद्धि अन्य क्षेत्रों में कमाल की हो सकती है। मुंशी प्रेमचंद गणित में शून्य थे। सीमित मानसिक दुर्बलता की समय रहते पहचान होने से गलत लेबलिंग से बचा जा सकता है। बच्चे की शिक्षा के लिए वैकल्पिक विधियों का प्रारंभ से उपयोग किया जा सकता है। अलेक्सिया या पठन दोष बहुतायत से देखने को मिलते हैं। इनकी शिक्षा में श्रव्य व चित्र माध्यमों की प्रधानता होना चाहिए। ऑटिज्म बालपन का अजीब सा गंभीर मानसिक रोग है जिसमें ठीक-ठाक बुद्धि के बावजूद बच्चा नितांत आत्मलीन व सामाजिकता से परे होता है।

जन्म के समय या आसपास मस्तिष्का पर पहुँचने वाले अनेक घातक प्रभाव यदि मध्यम स्तर के रहे तो मानसिक दुर्बलता का एक सीमांत (बॉर्डर लाइन) स्वरूप देखने को मिलता है। इसे “न्यूनतम मस्तिष्क दोष” कहते हैं। आइक्यू 70 के आस पास होता है। बच्चा अनावश्यक रूप से चंचल होता है। उसकी चित्र प्रवृत्ति स्थिर नहीं रहती। शिक्षण-अक्षमता, मूत्र-नियंत्रण दोष, अपराध प्रवृति, आदि अवस्थाएं बौद्धिक उपलब्धियों को सीमित करती हैं। मिर्गी रोग की दर मंदबुद्धि मरीजों में अधिक होती है। मिर्गी स्वयं मंदबुद्धि का उदाहरण नहीं है। मिर्गी मानसिक रोग नहीं है। इसके उपचार से आत्मविश्वास बढ़ता है। उपचार न करने से बुद्धि में ह्रास हो सकता है।

उपचार

मंदबुद्धि की देखभाल उपचार के लिए टीम प्रयत्नों की जरूरत होती है। इस टीम में शिशु रोग विशेषज्ञ, न्यूरोलॉजिस्ट, मनोवैज्ञानिक, मनोरोग विशेषज्ञ, वॉक श्रवण विशेषज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता व शिक्षाविद होना चाहिए। यह आदर्श स्थिति कभी प्राप्त होती नहीं।

मानसिक दुर्बल व्यक्ति क्या कर सकता है, इस बात पर अधिक जोर दिया जाना चाहिए, ना कि इस बात पर कि वह क्या नहीं कर सकता।उसकी बची-कुची क्षमता के द्वीपों को पहचान कर उन क्षेत्रों में मेहनत करनी चाहिए। बच्चे पर मंदबुद्धि का लेबल माता-पिता के लिए आरंभ में सदमे के समान होता है। इस निदान की घोषणा, भली-भाँती सुनिश्चित कर लेने के बाद, आहिस्ता-आहिस्ता, सहानुभूति पूर्वक की जानी चाहिए। सब कुछ निराशावादी नहीं होना चाहिए। सुधार की संभावनाओं के बारे में कहना चाहिए। साथ ही साथ झूठी आशाओं से बचें।

अक्ल की कोई दवा नहीं

औषधि का स्थान नहीं के बराबर है स्मृति या बुद्धि बढ़ाने वाली औषधि नहीं होती। इमर्क का एनसेफेबोल, सेंडोज का हाईडरजिन,  अन्य कंपनियों के ग्लुटामाल्ट, नत्रोपिल तथा दूसरे टॉनिक बाजार में महँगे भाव मिलते हैं। यह सब व्यर्थ हैं। इन पर खर्च किया गया पैसा, पौष्टिक भोजन, दूध, अंडा, सब्जी पर लगाया जाए तो बेहतर हो। बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा सिर्फ तीसरी दुनिया के देशों में बेची जाने वाले ये तथाकथित ‘टॉनिक’ देश की बहुमूल्य विदेशी मुद्रा को बाहर ले जाते हैं।

चिकित्सक की भूमिका में दवा नुस्खा लिखना हमेशा जरूरी नहीं होता। लोग उम्मीद करते हैं, या टॉनिक की मांग करते हैं इसके बावजूद जिम्मेदार डॉक्टर का कर्तव्य है कि वह इन दबावों का सामना करें और अपनी जन शिक्षक की भूमिका को ना भूलें।

मंदबुद्धि के इलाज में चिकित्सक का काम है मरीज की शिक्षा, ट्रेनिंग, पुनर्वास आदि की प्लानिंग में सलाह देना।

बुद्धि सूचकांक 60 से 70 के बीच वाले मरीज स्वतंत्र जीवन जीने के काबिल हो पाते हैं। उनके मस्तिष्क की पूरी क्षमता का विकास करने के लिए विशेष स्कूलों की जरूरत पड़ती है। सामाजिक कारक, यदि संभव हो तो दूर किए जाने चाहिए। आश्रित वर्कशॉप जिनमें मरीज द्वारा उत्पादक कार्य किया जा सके, जगह-जगह खुलना चाहिए।

बुद्धि सूचकांक 20 से नीचे (जड़ बुद्धि) मरीज स्वयं की देखभाल नहीं कर सकते। परिवार में उनका होना गंभीर बोझ होता है। विशेष संस्थाओं में उन्हें रखना जरूरी है। 20 से 60 बुद्धि सूचकांक वाले अनेक मरीजों को संस्था में दाखिल कराना जरूरी होगा। यह बहुत-सी बातों पर निर्भर करता है। पारिवारिक पृष्ठभूमि, अब तक का विकास, स्कूलों में सफलता, सामाजिक व्यवहार, व्यवहारिक ज्ञान, काम की क्षमता, नैतिक समझ आदि।

समस्या का आकार

जनसंख्या का 3% मानसिक दुर्बलता से ग्रस्त है। कल्पना कीजिए सरकार के आकार की समस्या के आकार की। भारत के 80 करोड़ के पीछे 2 करोड़ चालीस लाख। या इंदौर के दस लाख  में से तीस हज़ार। इनमें से जड़ बुद्धि होंगे लगभग 10% । याने भारत भर में 24 लाख या इंदौर में 3000। इन सबको भर्ती करने व विशेष शिक्षण करने के लिए जितने साधनों की आवश्यकता होगी उसका सिर्फ 0.2 प्रतिशत उपलब्ध है।

रोकथाम

रोकथाम इसलिए जरूरी है कि रोकथाम पर अधिक ध्यान दिया जाए। हिटलर का तरीका अमानवीय होगा कि सब की सफाई करा दी जाए या ‘बंध्याकरण’ करा दिया जावे ताकि ‘श्रेष्ठ जाति’ शुद्ध हो जाए कुछ उपाय सरल हैं और कुछ कठिन। गर्भवती महिला में संक्रामक रोगों की रोकथाम हेतु टीका (रूबेला के खिलाफ), गर्भवती महिला द्वारा अनावश्यक औषधि, एक्सरे से बचना। कुपोषण के विरुद्ध लड़ाई का अपना महत्व है। बेहतर मातृ शिशु स्वास्थ्य सेवाओं द्वारा प्रसव से जुड़े हुए कारकों में कमी होगी। संभावित असामान्य शिशु का प्रसव पूर्व निदान कर लेने से गर्भपात किया जा सकता है। रिश्तों में शादी से बचें। परिवार नियोजन व बच्चे ना पैदा करना कभी श्रेयस्कर हो सकता है।

भविष्य की सम्भावनाएँ

भविष्य की सम्भावनाएँ अभी दूर हैं जैसे जेनेटिक उपचार, मस्तिष्क उत्तक, प्रतिरूपण, असली मस्तिष्क टॉनिक आदि।

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