Books, Mentions and Reviews
पढ़ना और पढ़ाना मेरे प्रिय शगल हैं। पढ़ते-पढ़ते मैं उनमें डूब जाता हूँ और नैसर्गिक आत्मिक आनन्द की अनुभूति होती है। मैं खूब पढ़ता हूँ। एक भूखे (Gourmet) की तरह मैं किताबों, पत्रिकाओं, अखबारों और अब डिजिटल कन्टेन्ट पर टूट पड़ता हूँ। पढ़ने के विषयों में मेरी रुचियाँ विविध और विस्तृत है।
किशोरावस्था व युवावस्था में गल्प (Fiction) बहुत पढ़ा था। अब नान-फिक्शन पर ज्यादा जोर रहता है। राजनीति, इतिहास, समाजशास्त्र, भूगोल, जीव विज्ञान, दर्शन शास्त्र सभी विषय प्रिय है।
पढ़ना मुझे क्या देता है? ज्ञान, बुद्धि, विवेक, समझ आदि शायद बढ़ जाते हैं? दुनिया घूम लेता हूँ। अगणित लोगों से मिल लेता हूँ। मेरे अन्दर एक बेहतर अध्यापक और लेखक पोषित होता है।
कभी-कभी कहा जाता है – बहुत पढ़ लिया। अब कम करो और लिखों ज्यादा। शायद सही है। अब लिखने पर समय अधिक दे रहा हूँ।
कभी-कभी कहा जाता है – इतना सारा इधर-उधर पढ़ने से क्या फायदा। फोकस करो। सीमित विषय रखो। शायद सही है। पर मैं ये कोशिश करके भी नहीं कर पाया।
ये सब पढ़ने से, जानने से क्या फायदा? फायदे तो अनेक है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है मन की खुशी। न्यूरोज्ञान बेबसाइट के इस खण्ड में मेरे द्वारा पढ़ी गई पुस्तकों की सूची है। अनेकों को पूरा पढ़ा है या एक से अधिक बार पढ़ा है। कुछ को आंशिक पढ़ा है। इस सूची में वे टाईटल भी है जो मेरे निजी लाइब्रेरी में है और फिलहाल विश-लिस्ट में हैं। इच्छा सूची में और भी ढेर सारे लेखक और रचनाएं हैं। मेरा बस चले तो सबको खरीद लूँ।
लेकिन जिन्दगी छोटी है। समय कम है। दूसरे काम भी है। एक सन्तुलन बैठाने की कोशिश करता हॅूँ।
किसी इन्सान को क्या हम उसकी प्रिय पुस्तकों और प्रिय लेखकों से जान सकते है? शायद एक हद तक। सुधी पाठक जो मुझे व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते, मेरे बारे में जरुर अनुमान लगाएं और मुझे लिखें। एक मजेदार स्टडी होगी।
किन्डल और आइपेड ने पढ़ने की सुविधा को बढ़ा दिया है। मैं नये माध्यमों को पसंद करता हॅूं और उन्हें खूब वापरता हॅूं। लेकिन मैं अभी भी पुरानी पीढ़ी का हूँ। हाथ में किताब को थामना, पन्ने उलटना, पलटना, हाशिये पर नोट्स लिखना, अंडरलाइन करना, हायलाईट करना, बुकमार्क रखना, किताब की खुशबू सूंघना और सिर के नीचे या छाती पर या बगल में दबा कर सो जाना – इस सबकी बात ही अलग है।