मरीज कथाए या क्लिनिकल टेल्स, साहित्य की एक विशिष्ठ विधा है । जिसमें एक या अधिक रोगों के साथ जिंदगी गुजारने वालों की दास्ता बयां होती है । यूँ तो पुरे विश्व साहित्य में किसी न किसी पात्र में, कहानी के किसी न किसी दौर में, कोई न कोई बिमारी का उल्लेख आ सकता है । ये रोग गंभीर, जानलेवा, पीडा दायक और विकलांगताकारी हो सकते है ।
ये अव्स्थाऐं लम्बे समय तक या जीवन पर्यंत चल सकती है । उस चरित्र तथा उसके परिवार की जिंदगी पर इन रोगों का गहरा असर पड़ता है । स्वास्थ्य की चुनौतियों और दुविधाओ का सामना लोग अपने अपने प्रकार से करते है ।
Clinical Tales में पात्रो के अनुभव, दु:ख दर्द, संघर्ष, जय-पराजय, तपिश, सहनशीलता, दार्शनिकता, नियति की स्विकार्यता और उस के अनुरुप स्वयं को ढालने के हालातों का वर्णन होता है । अनेक रोग इंसान के चरित्र व पह्चान (Identity) को बदल देते है । जानने वाले कह्ते है “ अब वह, पहले वाला वह नही है।“
कहते हैं – कला कला के लिए, साहित्य साहित्य के लिए । परंतु मरीज साहित्य की दुसरी उपयोगिताऐं भी है । डॉक्टर्स को शिक्षा मिलती है । उनकी सोच में मानवियता का पुट थोड़ा बढ़ जाता है । इसलिये दुनिया के अनेक मेडिकल कॉलेजो में (पर दुर्भाग्य से भारत मे कम) चिकित्सा शिक्षा में नरेटिव मेडिसिन (कथात्मक चिकित्सा) की ट्रेनिंग दी जाती है । उन्हे इस प्रकार के साहित्य को पढ्ने, उस पर चर्चा करने तथा वैसा हि कुछ लिखने के लिए प्रेरित किया जाता है, वर्ना मेडिकल जर्नल्स मे छपने वाली केस रेपोर्ट्स बहुत शुष्क और बोर होती है । नरेटिव की शैली मे कथाए पढ्ते और लिखने से मेडिकल छात्रों में विभिन्न रोगो के मानवीय और वैज्ञानिक दोनों पहलुओ के बारे में रुचिकर शैली में सुगम्य ज्ञान मिलता है ।
अनेक डॉक्टर्स अच्छे लेखक रहे है । रुसी लेखक एंटन चेखव की कालजयी कहाँनियो में से अनेक किसी रोग, डॉक्टर या अस्प्ताल पर केंद्रित रही है । डॉ. आलिवर सेक्स (न्युयार्क), एलेक्सांद्र लुरिया (मास्को), हेराल्ड क्लावन्स (शिकागो), डेनियल आफिरी(न्युयार्क), वी. एस. रामचंद्रन (सान दियागो), डॉ. भवात महाजन (औरंगाबाद), डॉ. शरद ठाकोर (अहमदाबाद), श्री गोपाल काबरा आदि मेरे प्रिय चिकित्सक लेखक है ।
मरीज खुद, उसके घरवाले या मित्र भी क्लिनिकल टेल्स बखुबी लिखते हैं । श्री हरिवंशराय बच्चन की आत्मकथा के प्रथम खण्ड ‘क्या भुलु क्या याद करूँ’ में उनकी पहली पत्नी श्यामा की बीमारी का विस्तृत वर्णन है । एक डॉक्टर उसे पढ्कर अनुमान लगा सकता है कि उन्हे काक्स एब्डामेन (पेट की Tii.Bii.) रही होगी । धर्मवीर भारती द्वारा पुष्पाजी को लिखे कुछ पत्रों में सियेटिका (पांव का दर्द) विस्तार से वर्णित है । रविंद्र कालिया द्वारा शराब छोड़ पाने की जद्दोजहद (लत-मुक्ति) की सटीक बानगी है । सुश्री दियान एकरमेन एक विज्ञान लेखिका हैं । उनके साहित्यकार पति पॉल को पक्षाघात हुआ और वाणी जाती रही । दो-तिन साल में सघन अभ्यासो की मद्द से धिरे धिरे अच्छा सुधार हुआ । उस संघर्ष को दियान ने ‘प्यार के 100 naam’ शीर्षक पुस्तक मे साहित्यिक सौंदर्य के साथ उकेरा है । विश्व साहित्य मे अनेक मरीजों ने, जो पहले कभी लेखक नही रहे, स्वयं की आप बीती विस्तृत, रुचिकर और भावप्रवण रुप मे लिखी है ।
कई उदाहरण एक आह्वान
मरीज कथा साहित्य के माध्यम से लोगो को अनेक फायदे है – 1. विज्ञान शिक्षा मिलती है । 2. रोगो के बारे मे जागरुकता बढती है । 3. उन रोगो से पीड़ित व्यक्तियों के संघ बनाने तथा उनके हितो की पैरवी करने का माहौल बनता है । अनेक बीमारियों के बारे मे व्याप्त अंध विश्वासो, मिथ्या धारणाओ और पुर्वागृहो को कम करने में मदद मिलती है ।
हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं मे आयुष से जुड़ी कहानीयो की कमी है । न डॉक्टर, न मरीज, न रिश्तेदार कोइ पहल नही करता । ऐसा तो नही है कि इतने बड़े देश मे लाखो डॉक्टर और करोड़ों मरीजों में से दस-बीस लोग भी न मिले तो साहित्यिक शैली क्लिनिकल टेल्स न लिख पाये ।
उन्ही की खोज है, उन्ही का आह्वान है ।
यहां मेरी अनेक मरीज कथाऐं दी गई हैं । मेरी बहन डॉ. किसलय पंचोली (प्रोफेसर वनस्पतिशास्त्र) की कुछ रचनाये है । और भी स्त्रोत हैं । कुछ अनुवाद प्रस्तुत करने की योजना हैं । पाठ्को से अनुरोध है कि वे अपने अनुभव लिखें और भेजे । अच्छी कहाँनियो को यहाँ प्रकाशित किया जावेगा ।
मरीज़ कथा संग्रह (डॉ. अपूर्व पौराणिक)
अंधा क्या माँगें? दो आंखें! सच में
अंधे की नजर
आगे की सुधि कैसे लू?
आहिस्ता आहिस्ता चुपके से
इलाज करु या न करु? [2]
उसे सुइ चुभो तो हँसता है
कुम्भकर्ण
खराब मिक्सी का इलाज़
चमकने की बीमारी
जाने क्या तुने कही
ज़ेबरा रिट्रीट
टीचर मैडम की तीन डांट
डरावना सपना जो याद रहता है
तोरा मन दर्पण कहलाये
नाम ये गुम जायेगा
नींद में बोलने/चलने की बिमारी
सत्य के चेहरे (बताऐं कि न बताऐं?) – एकांकी
बात कुछ बन ही गई
बैचैन पांव
मुझे घर जाना है
मौत के दरवाजे के द्र्श्य
यही तो होने वाला हैं
ये माँ नही , कोई बेहरुपिया है
रोके नही रुकती
लिलिपुट के देश मे
हमने देखी है इन आँखों की महकती ख़ुशबू
हे देवी, सेवा कम करो
डॉक्टर-मरीज़ संवाद और रोग की कहानी जानने की कला (Patient-Doctor and the art of History taking)
अंदीन का श्राप
अंधी उंगलियाँ
आगे भी जाने न तू, पीछे भी जाने न तू
इलाज करु या न करु? [1]
उफ़! मै कहाँ आ गया
ईलाज करूं या न करूं? कथा – एक लक्ष्मी
कान का कीड़ा
कुरु कुरु स्वाहा
गूँगे हाथ
चमड़ी की भाषा
जाने क्या मैंने सुनी
झिलमिलाती रौशनी की डिजाइने
डरावना सपना जो याद नही रहता है
तेरी बानो अंग्रेजी जैसी
नक्कारखाने में तुती
निंद मे उथलपुथल
बहरी आंखें
बेहोशी जो गुजर गई
ब्रह्मनाद
मगरमच्छ के आंसू
मिर्गी को बहाना चाहियें
मै नशे में नही हूँ
यह कौन सी भाषा हैं
ये कौन आया, कौन बोला, किसने छुआ?
रातभर पांव मारती है
हम उनके कदमो की आहट दूर से जान लेते है
हिचकी
पार्किन्सनिस्म – एक सफ़र (Suffer)
डिस्क्लेमर
इन कथाओं एवं लेखों में दिए गए मरीजों और डॉक्टर्स के नाम, स्थान, और परिस्थितियां बदल दिए गए हैं, ताकि उनकी पहचान उजागर न हो ।इन कथाओं और लेखों के आधार पर कृपया इलाज़ सम्बन्धी कोई निर्णय न लेवे । अपने डॉक्टर की सलाह जरुर लेवें ।
इन कथाओं का उद्देश्य किसी भी डॉक्टर की गलतिया बताना कतई नहीं हैं। चिकित्सा विज्ञान, गणित या भौतिक शास्त्र जैसा नहीं हैं। जहाँ 2 +2 =४ होता है । किसी भी परिस्थिति में डॉक्टर्स के मध्य राय भिन्न भिन्न हो सकती हैं।