घनश्याम दूध वाले का धंधा अच्छा चलता था। मदनपुर के अनेक मोहल्लों और आसपास के गांव का चप्पा चप्पा मोटर बाइक पर घूमना और दूध बांटना था। गोरा चिट्टा गोल चेहरा, घुंघराले बाल, चमकीली आंखें, घनी मूँछे, गठीला कसरती बदन, मुख पर सदा मुस्कान रहती थी। उसके ग्राहक, ग्राहक कम दोस्त ज्यादा थे। खूब हंसी मजाक करता था। 20 वर्ष की उम्र से पिताजी का व्यवसाय संभाल रहा था, क्योंकि रीड की हड्डी की चोट के कारण उसके पिताजी का चलना फिरना बंद हो गया था। दुकान बड़ी कर ली थी। डेयरी के सब पदार्थ उच्च क्वालिटी के रखता था।3 लोडिंग रिक्शा चलते थे जो कुछ दूर के गांव में थोक सप्लाई करते थे। लेकिन अपनी बाइक से रोज सुबह 5:00 से 8:00 बजे फेरी लगाना उसने ना छोड़ा था। अपने साथ किसी को ना रखता था। ज़िद थी अकेले जाने की। ज्यादा पढ़ा लिखा ना था पर सब ग्राहकों के नाम व घर के रास्ते दिमाग में याद थे, किसी कॉपी में लिखे न ।
फरवरी 2013 में मस्तिष्क ज्वर हुआ। हर्पीस सिंपलेक्स नामक एक वायरस ने दिमाग में इंफेक्शन करा। बुखार, सिरदर्द, उल्टियां, फिर सन्निपात [डिलिरियम], मिर्गी जैसे लगातार दौरे, गहरी बेहोशी।
दो सप्ताह आईसीयू में रहा। धीरे-धीरे होश आ गया। शुरू में बातचीत, उल्टी पुल्टी बहकी बहकी सी थी। किसी को पहचानना, किसी को नहीं। एक माह बाद सब कुछ ठीक-ठाक लगने लगा था। घरवाले खुश और कृतज्ञ थे। डॉक्टर साहब ने हमारे घनश्याम की जान बचा ली। परिजनों, पड़ोसियों और मित्रों को पहचानता था, कुछ अटक अटक कर बात कर लेता था। लेकिन सब कुछ ठीक-ठाक नहीं था। शुरू के उत्साह में ध्यान नहीं गया था, परंतु दिमाग में गोबर गड़बड़ी थी।
घर पर आने के बाद पहली रात, को मां माधुरी ने एक नन्हा शिशु घनश्याम की गोद में रखा और चहक कर बोली “लो जी, लाड़ कर लो, ये अपना गुड्डू आया है। आप जब आईसीयू में थे, उन्हीं दिनों डिलीवरी हुई। एक साथ सब हो गया। नॉर्मल हुआ। 3 किलो का था। सब कहते हैं मेरे ऊपर गया है”। घनश्याम ने बच्चे को गोद में लिया मुस्कुराया सिर पर हाथ फेरा, बोला “बहुत प्यारा है, किसका है”? माधुरी किसका क्या, अपना है। आप बीमार पड़े जब मेरे को नवा महीना पूरा होने वाला था। घनश्याम – “तुम प्रेग्नेंट कब हुई, कैसे हो गई? तुमने तो copper-t लगवा रखी थी ना? अपनी साक्षी के बाद से? माधुरी – “क्या हो गया है, आपको? कैसी बातें कर रहे हो? पिछले साल साक्षी के पांचवे जन्मदिन के बाद अपने सोचा था कि अब दूसरा बच्चा प्लान कर लेते हैं।
घनश्याम भ्रमित और चुप था। माधुरी सिर पकड़े बैठी थी । बच्चा रोने लगा था। माधुरी ने उसे दूध से लगा लिया और सोचने लगी शायद कमजोरी बहुत आ गई है या दिमाग में टेंशन ज्यादा ले लिया है। फिर बोली बच्चा रात में बार-बार उठता है, इसलिए मैं उसे लेकर दूसरे कमरे में सोती हूं। आपको आराम की जरूरत है । लो यह दूध पी लो। घनश्याम को नींद नहीं आ रही थी। जोर की आवाज के साथ बड़े हॉल में टीवी देख रहा था।
“माधुरी ने पूछा – “दूध पी लिया” ।
“घनश्याम “कौन सा दूध? कब दिया?”
“माधुरी – “अपने हाथों से तुम्हें पकड़ा कर आई थी।“ झुंझला के अंदर गई। दूध का गिलास खाली था। बुद्बुदाती रही “पीं तो लिया है पर बनते हैं।“
“इतने में माँ आई।“
“घनश्याम को गले लगाया और बलैन्या लेते हुए बोली – “देखो मेरे पोते को, कितना सुंदर बेटा जना है हमारी बहू ने। इधर तेरा अस्पताल जाना हुआ उधर यह नए मेहमान आ टपके।“
“घनश्याम – “कौन सा पौता? कौन सा बेटा? हमारी साक्षी अभी 3 साल की है। माधुरी ने copper-t लगा रखी है। हमारी प्लानिंग नहीं है अभी।
“मां – “ हाय दैया ! शुभ शुभ बोल। बड़ी मन्नतो के बाद पूरे खानदान में बैटा हुआ है, क्यों बहू तुमने गुड्डू इस की गोद में नहीं दिया क्या?
“माधुरी – “माजी, दिया था लेकिन इन्हें कुछ याद नहीं। उस बच्चे को मानते ही नहीं।
“घनश्याम -“ कौन सा बच्चा, तुमने मेरी गोद में दिया? कब दिया?”
ऐसे अनेक वाक्य अगले दिन, हर पल होने लगे। सबका माथा ठनका। यह तो ठीक नहीं है। अनेक अजीब बातें हो रही थी। स्मृति थी और नहीं थी। पज़ल के कुछ पीस थे कुछ नहीं थे। उसी दिन शाम को वॉलीबॉल टीम की टोलि आ धमकी। पिछले 10 वर्षों से रोज शाम को 2 घंटे मैच चलता था। घनियारी थी। सब को पहचाना, पुरानी यादें ताजा करी। उनमें से 2 नए मेंबर जो साल भर पहले जुड़े थे और जिनके साथ खूब जमती थी, उन्हें नहीं पहचाना । यह भी याद नहीं था कि 6 माह पहले उनकी टीम डिस्ट्रिक्ट टूर्नामेंट में फाइनल में हार गई थी। दो साल के पहले तक का लगभग सब कुछ ठीक-ठाक याद था। थोड़ी बहुत चुंक तो उसमें भी थी पर यूं शायद किसी का ध्यान न जावे। यहां तक तो सहन हो सकता था। 2 साल का गुड्डू है तो है, काम धक जाएगा। अधिक विकराल समस्या दो थी ।
1. पुरानी यादों में भी एक खास चीज पर चुन चुन कर पोछा फिर गया था। भूगोल की यादें। दुनिया जहान का कॉपी-किताब, नक्शेवाला भूगोल नहीं। खुद की कोठी, गांव और मुहल्लो का भूगोल। बाथरूम की जगह चौके में पहुंच जाना। अगवाडे की जगह पिछवाड़ा। पिताजी ने बुलाया है तो सोचता रहता. किधर जाऊं, कैसे जाऊं, कोई इशारा ना करें तो भटकता रहता था। मोहल्ले का मंदिर, अली की दरगाह, संस्कृत पाठशाला, पुरानी बावडी, बनिये की दुकान , मोटर मैकेनिक का गैरेज,. सब के बारे में बातें खूब याद थी लेकिन वहां जाऊं तो जाऊं कैसे? कोई ले जाने वाला लगता।
मॉर्निंग वॉक शुरू करी थी – बिटिया साक्षी, माधुरी और भतीजा पिंटू के साथ। रोज एक घंटा। अनेक महीनों के बाद भी, कभी बीच रास्ते में रुक कर पूछते कि अब किधर मुड़ना है, नही तो वही भटकना।
घनश्याम अब रोज ज़िद करने लगा कि मुझे सुबह दूध बांटने जाना है और सब ने समझाया तुम्हें रास्ते याद नहीं है। गली के पहले ही मोड पर भ्रमित हो गया। इधर उधर बाइक घुमाता रहा। कहीं कहीं रुक कर पूछता पर समझ नहीं आता। माधुरी ने पीछे से भतीजे को साइकिल पर भेज दिया कहा कि दूर से नजर रखना। वापस घर चलने को कहा तो मानने को तैयार नहीं। “मुझे याद आ जाएगा, थोड़ी कोशिश करने दो”। अगली सुबह फिर वही उपक्रम। मोटर बाइक पर दूध की टंकीया टाँग कर निकलने की तैयारी। क्या-क्या नाटक किए थे – याद नहीं। तीन-चार दिन बाद, बाइक और दूध की कोठियां पड़ोस में ताऊ जी के घर रखवाना पड़ी। प्रतिदिन घनश्याम रात को कह कर सोता – “माधुरी! सुबह दूध बांटने जाऊंगा सब तैयारी करके रखना।“
2. दूसरा भूगोल भुलने से भी विकराल एक और समस्या थी। बीती नहीं बिसारदें तो ठीक है पर आगे की सुधि कैसे लें? घनश्याम को नया, जो कुछ घटित हो रहा है, ऐसे मिट जाता था जैसे कि कोई छात्र ने एक वाक्य लिखा, रबड़ से मिटा दिया, फिर कुछ और लिखा, फिर मिटा दिया। लिखा, मिटाया, लिखा मिटाया। कोई कुम्हार ने गढ़ा घड़ा, और तोड़ दिया। गढ़ा और तोड़ दिया। रेत पर कुछ निशान बने, लहर बहाकर ले गई। नई यादों के नाम पर एक गहरा कुआं, एक ब्लैक होल जिसकी कोई थाह नहीं। डालोगे कभी नहीं मिलेगा। याद कर और दरिया में डाल।
आखिर क्या हुआ घनश्याम को?
बीमारी के 6 महीने बाद, घनश्याम मेरे पास उपचार के लिए लाया गया था। पूरा परिवार आया था। पिताजी व्हीलचेयर पर आए थे। उसके सोहने चेहरे पर हल्की मुस्कान के बावजूद एक उदासी थी। डॉक्टरों के पास समय की कमी रहती है लेकिन मेरा प्रयास रहता है कि कुछ ऐसी बातें करूं कि व्यक्ति से आत्मिय परिचय बने। केवल बीमारी की कहानी नहीं, जीवन और व्यक्तित्व के बारे में जानना पड़ता है। यु तो यह काम अनंत है। थोड़े से सैंपल के रूप में, हाँडी मे से चावल के दानों के रूप में, यहां-वहां की रैंडम बातें करने से रेपो बनता है।
“नमस्ते डॉक्टर साहब। मै कौनसी कुर्सी पर बैठु? ये मेरे पिताजी हैं और यह मां और वाइफ। हमारी एक बेटी है साक्षी 3 साल की उस को घर छोड़कर आए हैं।“ घनश्याम ने अपने बारे में विस्तार से बताया, सही सही बताया। असली परीक्षा अब शुरू होनी थी। “आज कौन सी तारीख है? क्या वार है? महीना कौन सा चल रहा है? वर्ष क्या है?” सब गलत था नहीं पता। इस बीच मुझे एक सीरियस मरीज देखने पास के कमरे में जाना पड़ा। 5 मिनट बाद मै वापस लौटा और पूछा
“घनश्याम नमस्ते! क्या हम पहले कभी मिले?”
“नहीं मुझे तो ध्यान नहीं आता। डॉक्टर साहब।”
“मुझे डॉक्टर क्यों कह रहे हो?”
“आपने सफेद कोट पहना है आपके हाव-भाव डॉक्टर जैसे हैं।“
“बताओ अभी तुम कहां हो?”
“चारों ओर देखते हुए, लगता तो कोई अस्पताल है। हम सब यहां क्यों आए हैं? माधुरी मां, पिताजी आप सब यहां क्यों आए हो?”
“पिताजी बोले – “बेटा ! ये न्युरालॉजिस्ट है। दिमाग के डॉक्टर है। तुम्हे जांच कराने लाये है।“
“दिमाग के डॉक्टर? मेरा दिमाग ठीक है। मैं अच्छा हूं।“
“आप भूल जाते हैं, आपको याद नहीं रहता इसलिए लाए है।“ माधुरी बोली ।
“याद नहीं रहता? शायद हो सकता है।“
घनश्याम की शॉर्ट टर्म मेमोरी और नई चीजों को याद रखने की क्षमता के अलावा बुद्धि के अन्य पहलू अच्छे थे। मैंने स्टॉपवॉच द्वारा उस अवधि को नापा जहां तक की बाते वह कुछ याद रख पाता है। टेबल पर 5 आयटम रखें मेरे हाथ घड़ी, पेन, चश्मा, रुमाल और पर्स्। घनश्याम से पांचो नाम तिन बार गिनवाएं और कागज पर लिखवाया। फिर एक टॉवल से टेबल को ढक दिया। 5 मिनट कुछ और बातें करी फिल्म, राजनीति, क्रिकेट। तब पूछा इस टॉवेल के नीचे क्या क्या रखा है? कुछ याद नहीं यह भी याद नहीं की टेबल पर कुछ रखा भी था और याद करवाया था। यह भी नहीं कि उसने कागज पर कुछ लिखा था। आइटम बदले। टाइम घटाया। फिर फेल। आइटम बदले टाइम घटाया 60 सेकंड। 1 मिनट। बस इतनी देर तक की स्मृति है। उसके बाद जो बात गई सो बीत गई।
टिक टेक टो का गेम उसने अच्छे से खेला। लेकिन 2 मिनट बाद उसे सिर्फ धुंधली सी याद थी कि किसी डॉक्टर ने कभी उसके साथ यह खेल खेला था। कौन सा डॉक्टर, कब था वह कभी, कुछ पता नहीं। पूछे जाने पर कि आजकल मौसम कौन सा है रितु कौन सी है, उसने आसपास नजरें फिरा कर कैलेंडर ढूंढा और फिर खिड़की के बाहर आकाश देखने लगा। जब मैंने कहा कि मैंने ही वह गेम खेला था तो उसके चेहरे पर विस्मय का क्षणिक भाव आया. तुरंत तिरोहित होकर वही स्थाई निसंगता। कोउ स्मृति हो न हो, हमें का हानी। घनश्याम के लिए कल, आज और कल में से सिर्फ आज रह गया था। न जाने वाला कल था, ना आने वाला कल आएगा। साहिर लुधियानवी के शब्दों में “आगे भी जाने न तू, पीछे भी जाने न तू, जो भी है बस यही एक पल है, कर ले तू आरजू। “
घनश्याम आरजू भी ठीक से नहीं कर पाता था। सिर्फ तीन चार चीजों को छोड़कर माधुरी से प्यार, सुबह दूध बांटने जाना, शाम को वॉलीबॉल खेलना, और मंगलवार को हनुमान मंदिर के कीर्तन में गाना।
‘द लास्ट मेंराइनर’ – {आलिवर सेक्स की कहानी}
मुझे डॉक्टर आलिवर सेक्स की कहानी ‘द लास्ट मेंराइनर’ याद आई। भटका हुआ नौसैनिक जिसमें जिम्मी का वर्णन है। उसकी यादों की रिकॉर्डिंग बचपन से लेकर 19 वर्ष की उम्र तक पर्फेक्ट थी। सन 1945 तक, जब अमेरिका और मित्र राष्ट्रों ने द्वितीय विश्वयुद्ध लगभग जीत लिया था। उन्हीं दिनों एक बम विस्फोट में उसकी स्मृति जाती रही। जिम्मी के लिए वक्त 1945 में और स्वयं की उम्र 19 वर्ष पर ठहर गई थी। पुराने क्षणों को याद करते-करते वह उनमें इतना डूब जाता था कि मानो उन्हें पुनः जी रहा हो। भूत, वर्तमान बन जाता था। वाक्यों में पास्ट टेंस की बजाय प्रजेंट टेंस का उपयोग करता था। उसकी देखभाल करने वाले आसपास आईना नहीं रखते थे। स्वयं को बूढ़ा देखकर 19 वर्ष का वह युवक परेशान हो जाता था। घनश्याम की स्थिति बेहतर थी। जिम्मी, ब्रह्म आश्रम में था, घनश्याम भरे पूरे परिवार में। डॉक्टर आलिवर सेक्स ने प्रश्न उठाया “बिना स्मृति के कैसा जीवन? कैसी दुनिया, कैसा व्यक्तित्व। जड़ विहीन वृक्ष। लंगर विहीन जहाज। क्या जिम्मी की आत्मा का भी क्षरण हो गया था। शायद कुछ बची थी। प्रति रविवार गिरजाघर में प्रार्थना के समय जब उसकी एकाग्रता, तल्लीनता, शांति, संतोष और आनंद चेहरे पर परछाइयां डालते थे। पूजा अर्चना श्रद्धा आदि के कर्मकांड का अपना एक सौंदर्य और आकर्षण होता है। मास्को के मूर्धन्य न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट डॉक्टर एलेक्सांद्र ल्युरिया के अनुसार मनुष्य सिर्फ स्मृति मात्र नहीं है। यादों के परे भी इंसान की अर्थवान दुनिया होती है। उसकी इमोशंस, फिलिंग्स, संवेदनाएं, चाहते और आध्यात्मिकता। कला, संगीत, नृत्य, प्रकृति, हास्य आदि विधाएं स्मृति विहीन व्यक्ति को भी उतनी ही शिद्दत से सरोबोर कर सकती है जितनी किसी यादवान को। विस्मृति के सागर में स्मृति के छोटे-छोटे बच्चे रह जाते हैं। कभी-कभी नए द्वीप उभरते हैं।
बिना स्मृति के कैसा जीवन? कैसी दुनिया, कैसा व्यक्तित्व।
प्रकाश प्रदूषण से परे की विरान धरती पर, अमावस की घोर काली रात में तारे अधिक चमकिले दिखते है। ऐसे ही कुछ तारों की रोशनी हमें घनश्याम की जिंदगी में नजर आई। माधुरी ने पिंटू भतीजे के साथ मोहल्ला मोहल्ला घूमकर पुराने ग्राहकों को ढूंढा। घनश्याम के मोबाइल में सब के नंबर थे। एक नक्शा और एक टाइम टेबल बनाया। मोटर बाइक पर पिंटू पीछे बैठता। कभी रास्ता बताता। कभी परीक्षा लेता। सभी ग्राहक अपने समय के अनुसार ओटले पर, दरवाजे पर, खिड़की में खड़े रहते, आवाज लगाते, घंटी, या ताली बजाते, मोबाइल की लाइट चमकाते, मोबाइल पर पूछते अभी कहां हो, आसपास क्या दिख रहा है, ठीक है, अब आगे से बाईं तरफ मुड़ो। पिंटू रोज नक्शे का रिवीजन करवाता। पुराने ग्राहकों से हंसी मजाक कर के घनश्याम का मन खिल उठता था। उसे रास्ते कभी इतनी अच्छी तरह याद नहीं हुए कि अकेला जाने दे। बाद में पिंटू एक दूसरी बाइक पर पीछे पीछे चलता था और जरूरत पड़ने पर मदद करता था। घर में साक्षी ने जगह-जगह माय तीर के लेबल चिपका दिए थे बैडरूम, ड्राइंग रूम , दालान आंगन, सिढिया, दादा जी का कमरा, बाथरूम आदि। हनुमान मंदिर में नए पंडित जी आ गए थे। उन्होंने कुछ नए भजन सिखाना शुरू कर दिए थे। बजरंगबली की भक्ति के जोश में और नया याद हो ना हो, ये भजन थोड़ा थोड़ा दिमाग में घुसने लग गए थे। वॉलीबॉल टूर्नामेंट के लिए घनश्याम की टीम के नए कोच ने खेलने की जो नई तरकीबें बताई, वे उसने तुलनात्मक रूप से जल्दी सीख ली।
दुर्घटना के 1 वर्ष बाद घनश्याम अपनी गोद में गुड्डू को लेकर आया। माधुरी ने बताया कि अब वह गुड्डू को अपने बेटे के रूप में मानने और जानने लगा है। बड़े उत्साह से घनश्याम ने मुझसे कहा –
“आप डॉक्टर है न”? हा तो मैं बताऊं मेरा गुड्डू पाव पाव चलने लगा है”।
“कब”?
“शायद… शायद कल से, और हम इसका मुंडन करवाएंगे।
“कब?”
“कल।”
“रात का आकाश अभी भी वैसा ही काला था लेकिन इसमें दो चमकीले तारे उग आए थे “आज” के साथ “कल” और “कल” भी जुड़ गए थे।”
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