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माँ यह हंसने का समय नहीं है


“है भगवान, मैंने पहले ही कहा था, वही हुआ, माँ को नहीं लाना चाहिए था, वो हंस रही है, मैं उनका हाथ दबाकर, कान में फुसफुसाकर कहे जा रही हू, माँ यह हँसने का समय नहीं है, उसे रोको”

लेकिन माँ की हंसी ‘कुछ क्षण रुक कर बार बार आने लगी। बहु सुनीता ने गायत्री देवी का हाथ पकड़ कर खींच कर उन्हें खड़ा कर दिया और सब लोगों से बोली कि मैं इन्हें बाथरूम ले जा रही हूँ।

बाथरूम से लगे बेडरूम में उन्हें लेटा दिया और कहा माँ अभी कुछ देर यहीं रहना। बाहर आकर सुनीता शोक सभा में फिर बैठी और धीरे-धीरे आसपास की महिलाओं को बताया कि मेरी सास ऐसा क्‍यों कर रही है और मैं उनकी तरफ से माफी मांगती हूँ।

गायत्री देवी की जिद थीं कि बहु सुनीता के दादाजी स्वर्ग सिधर गये हैं तो ऐसा कैसे हो सकता है कि मैं बैठने न जाऊं।

वे क्‍यों हंस रही थीं ? मूर्ख नहीं थीं। पागल नहीं थीं। दार्शनिक नहीं थीं जो कहना चाह रही हो कि मृत्यु तो मुक्ति का मार्ग है जिस पर आनंदित होना चाहिये। पिछले पांच वर्षों से उन्हें लकवा पक्षाघात के तीन अटैक आये थे। एक बार दायीं तरफ, दूसरी बार बायीं तरफ और तीसरा अभी छः: महीने पहले जिसमें आवाज तुतला गई थीं, चाल असन्तुलित हो गयी थीं और थोड़ा भूलने लगी थीं। शुरू के दो ब्रेन अटैक में धीरे-धीरे लगभग पूरा सुधार आ गया था। तीसरे स्ट्रोक के बाद नयी समसस्‍्याऐँ बढ़ गई थीं। फिर भी अपना दैनिक कार्य स्वयं कर लेती थीं, चल फिर लेती थीं। प्रत्येक अटैक के बाद ब्रेन की एम.आर.आई. रिपोर्ट में आता कि छोटे छोटे ढेर सारे इन्फार्कशन (मस्तिष्क की लघु धमनियों द्वारा रक्‍त प्रवाह में रूकावट के अनेक बिन्दु और उसके कारण ब्रेन के गूदे में मृत उत्तक के छोटे-छोटे क्षेत्र) भरे हुए हैं, उनकी संख्या बढ़ती जा रही है, पूरे मस्तिष्क में स्वस्थ टिशु का आकार घट रहा है, उस खाली स्थान की पूर्ति के लिये पानी (सी.एस.एफ.) से भरे पोखरों की संख्या व आयतन ज्यादा हो रहा है। इसे लेक्यूनर अवस्था कहते हैं। लेक्यून अर्थात छिद्र | मरणोपरान्त मस्तिष्क का विच्छेदन करने पर ऐसे दिखते हैं कि मानों ज्यादा पके हुए फल को काटने पर उसमें सड़ने वाले अनेक दाग जगह जगह बन गये हों।

वे क्‍यों हंस रही थीं ?

इस बहुरोधगलन अवस्था (मल्टी इन्फार्क्ट स्टेट) के कारण गायत्री देवी को स्यूडो बल्बर पाल्सी नामक रोग हो गया था। जिसके लक्षण हैं – भावनाओं की अभिव्यक्ति पर नियंत्रण खत्म हो जाना, अचानक बिना कारण या छुद्र कारण में हंसना और रोना, बोलचाल में आवाज का उच्चारण खराब होना (डिस आर्थिया) (कुच्चारण), भोजन पानी निगलने में दिक्कत होना (डिस्फेजिया, कुगुटकन) ।

गायत्री देवी खुद शर्मिन्दा महसूस करती थीं। रूलाई और हंसी रूकने के बाद वे कहती- मैं क्या करूं, जरा-जरा सी बात पर मेरे साथ ऐसा हो जाता है। मैं जान बूझ कर ऐसा नहीं करती। चाहूं तो भी रोक नहीं पाती।

मनोरोग विशेषज्ञ (सायकिएट्रिस्ट) ने मरीज व घरवालों से देर तक पूछताछ करी। मानसिक स्वास्थ अच्छा है। मन में अवसाद, उदासी या डिप्रेशन नहीं है। जब रोती है तो उन क्षणों में ऐसा नहीं कि अन्दर से सच में मूड खराब हो गया है। मन की अवस्था (खुशी या दुःख) और चेहरे पर उसकी अभिव्यक्ति का आपस में कोई तालमेल नहीं होता।

मन और मूड के उतार-चढाव हम सब में उमड़ घुमड़ कर आते रहते हैं, कभी धीमे, कभी तेज, कभी वाजिब, कभी गैर वाजिब। जरूरत पड़े तो हम उन्हें कभी कभी रोक पाते हैं, आंसू पी जाते हैं, लब सी लेते हैं। रूंधा गला छिपा लेते हैं, मुस्कान दबा लेते हैं, और कभी ये भावभिव्यक्तियां रुक नहीं सकती, सैलाब बह निकलता है। बांध फूट जाता है।

ब्रेन के दोनों गोलार्धों की अन्दरूनी मीडियन सतह पर अनेक रचनाएँ एक सर्पिलाकार रूप में जमी रहती हैं जिन्हें लिम्बिक तंत्र कहते हैं। लिम्बस अर्थात वृत्ताकार। इसके अन्तर्गत आते हैं- हायपोथेलेमस, मेमिलरी बॉडी, सिंग्यूलेट गायरस, फार्निक्स, इन्सुला, एमिग्डेला, हिप्पोकेम्पस व अन्य | हायपोथेलेमस प्रमुख है। दिमाग की पेंदी में मध्यरेखा के अधबीच, इस रचना द्वारा अनेक गतिविधियां नियंत्रित होती हैं- भूख, प्यास, नींद, यौन इच्छा, शरीर का तापमान, वजन और इमोश्न्स |

फ्रान्टल खण्ड ऊपर है। लिम्बिक तंत्र नीचे। दोनों फ्रान्टल खण्ड से, दायें और बायें तन्तुओं के अनेक बण्डल निकल कर नीचे की ओर जाते हैं तथा सिर-चेहरा-भुजाऐं, पैर – पूरे शरीर की मांसपेशियों का प्रेरक (मोटर) नियंत्रण करते हैं। उन्हीं में से कुछ तन्तु लिम्बिक सिस्टम पर ब्रेक का काम करते हैं। धीर गम्भीर स्थिप्रज्ञ व्यक्तित्व के धनी लोगों के मस्तिष्क के दोनों फ्रान्टल खण्ड की गतिविधि मजबूत होती है जो हमारे दिमाग के तुलनात्मक रूप से आदिम भाग लिम्बिक सिस्टम पर लगाम कसी रहती है।

ब्रेन मे पक्षाघात के अनेक घावों के सम्मिलित प्रभाव के अतिरिक्त कुछ दूसरी बीमारियों में भी स्यूडोबल्बर अफेक्ट होता है। तरीका वही है – फ्रान्टल खण्ड से निकलने वाले ब्रेक फाइबर्स का टूटना। मोटर न्यूरॉन रोग, मल्टीपल स्क्‍्लीरोसिस, पार्किन्सोनिज़्म एल्जीमर डिमेन्शिया आदि में भी ऐसे लक्षण पाये जाते हैं।

इसके अतिरिक्त मिर्गी का रोग यदि किसी ऐसी पेथालॉजी के कारण है जिसमें हायपोथेलेमस में ट्यूमर या गांठ हो तो अचानक हर कभी हंसी का विस्फोट आता है, कुछ मिनट रहता है, जिसके साथ मिर्गी के अन्य लक्षण कभी-कभी हो सकते हैं। रोने का ऑटोमेटिज्म (स्वचलन) वाले मिर्गी के केस दुर्लभ रूप् में देखे जाते हैं

गायत्री देवी के मस्तिष्क में ढेर सारे लेक्यूनर रोधगलन छिद्रों के कारण अधोगामी तन्तु बन्डल कमजोर पड़ गये हैं और उनका लिम्बिक सिस्टम गाहे-बगाहे बेलगाम हो जाता है। आवाज और निगलने की तकलीफें भी इसी वजह से हैं। दिमाग में जो नाड़ियां दूट गई हैं उन्हें जोड़ने की कोई दवाई नहीं होती। अपने आप, धीरे-धीरे थोड़ी बहुत जुड़ जायें तो जुड़ जायें।

सुनीता ने डाक्टर्स से गुहार लगाई- सर कुछ कीजिये। ये हंसना रोना, सुनने में कुछ नहीं पर रोज की जिन्दगी दूभर हो गई । थक जाती हैं, शरीर से और मन से | जबड़े और गला दुखते रहते हैं। किसी भी अनजान व्यक्ति की मौत या बीमारी की खबर सुन लेंगी तो आधे घंटे तक रोती रहंगी। पोते के साथ कार्टून फिल्‍म देखने का शौक था। हम सोचते थे, अच्छा टाईमपास है। अब बंद करवा दिया। किन्‍्हीं-किन्हीं दृश्यों को याद कर दिनभर बार-बार हंसती रहेंगी। बाहर आना जाना मिलना जुलना बंद हो गया है, उसका रंज खूब करती हैं।

सायकोथेरपिस्ट ने छोटी मोटी अनेक टिप्स बताई जो कभी कभी काम कर जाती हैं। ऐसा दौरा आने पर वे खुद अपने कमरे में या बाथरूम में चली जाती हैं। हम उन्हें ढाढ़स बंधाते हैं। कहते हैं- कोई बात नहीं, धीरज रखो। अभी थोड़ी देर में रूक जावेगा। प्रायः मिलने वाले रिश्तेदार, मित्र, पड़ौसी जानते हैं कि ऐसे क्षणों में माँ की तरफ लगातार घूर कर नहीं देखना है, कोई रिएक्शन नहीं देना है, कमेन्ट नहीं करना है। घरवालों के साथ-साथ अब माँ भी बिना संकोच के अपनी अवस्था के बारे में बिना पूछे शुरू में ही सब कुछ बता देती हैं, वह भी बड़े विश्वास के साथ, वैज्ञानिक तरीके से।

‘मुझे यह है, आपको जो सोचना हो, सोचो, जो कहना हो कहो, मैं तो ऐसी ही हूँ।‘
‘मुझे मत बोलो कि मैं हंसना या रोना रोक दूँ- क्योंकि यह मैं नहीं कर सकती।‘
‘ये मत सोचो कि मैं ऐसा लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिये करती हूं। अकेले में भी उतनी ही बार होता है।

ये मत सोचना कि मुझे पागलपन का दौरा पड़ा है या कि मैंने शराब पी है या भांग खाई है।

मुझे अकेला छोड़ दो, मुझे सम्भालने की कोशिश न करो।

बहु सुनीता कहती है एक तरफ गायत्री देवी हैं जिनका अभिनय ऐच्छिक नहीं है, इच्छा शक्ति से नहीं होता। दूसरी तरफ अनेक महान अभिनेता हैं, जैसे कि दिलीप कुमार, जो कथानक और पात्र के चरित्र में गहरे डूब कर बिना ग्लीसरीन के सचमुच के आंसू बहा लेते हैं। उनके फ्रान्टल खण्ड में सिस्टम को कंट्रोल करने के लिये सिर्फ ब्रेक ही फिट नहीं है, बल्कि एक्सलरेटर भी फिट है जो बिरलों में ही होता है।

गायत्री देवी को अनेक दवाईयाँ भी दी गई। डिप्रेशन नहीं है फिर भी एन्टीडिप्रेसेन्ट (फ्लाक्सीटीन) से कुछ लाभ देखा गया । पिछले कुछ वर्षों से दो औषधियों के काम्बीनेशन के अच्छे परिणाम देखे गये हैं। डेक्स्ट्रोमेथॉफेन 30 मि.ग्रा. (पुरानी खांसी की दवा) और क्वीनिडीन 40 मि.ग्रा. (पुरानी मलेरिया के दवा) का संयुक्त रूप भारत में उपलब्ध नहीं है। विदेश से मंगवाई। गायत्री देवी की अवस्था में सुधार हुआ है। आज भी उन दिनों को याद कर वे कहती हैं- रोना और हंसना जब हद से गुजर जाते हैं तो उनमें फर्क नहीं रह जाता। आपस में मिल जाते हैं | बहुत अधिक खुशी में आंसुओं का अनुभव कामन है। बहुत दुःख में कभी-कभी अपने हालात पर हंसी आती है। तभी तो लोग कहते हैं- मुझे समझ में नहीं आता कि हँसू या रोऊं | मेरे साथ में रियल की एक्टिंग हो जाती थी | वह एक्टिंग मैं नहीं करती थी। जाने कौन सी ताकत है जो हम सबको कठपुतलियों के समान नचाती है।

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