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पैसा पैसा पैसा


श्रीचंद्रजी अग्रवाल की माणकचौक में मिठाई की पुरातन दुकान थी। उनकी बड़ी साख थी। ऊंची दुकान, ऊंचा पकवान | दाम एक दम सही| माल पूरा शुद्ध । सबको मिठाई खिलाते थे / स्वयं नहीं खाते थे। नियम संयम से रहने वाले | कोई लत या एब नहीं । रोज एक घंटा तेज गति से चलने और आधा घण्टा योग | संगीत का शौक था। हर हफ्ते कीर्तन में गाते थे। दान धर्म करने में उनका मन था और ख्याति भी। वे कहते थे सब कुछ अच्छा करो फिर भी बुरा हो जाये तो, इसका मतलब यह नहीं कि अच्छा करना छोड़ दो । उन्हे लकवे का अटैक आया। हाथ पांव पर कोई असर नहीं केवल वाणी पर। आवाज नहीं निकल रही थी। सुनना, समझना,पढ़ना ठीक ठाक था, परन्तु बोल नहीं फूटे | पहला महीना पूरी तरह गुमसुम बीता। टुकुर टुकुर देखते रहते, पता नहीं क्या गुजरता होगा मन में| फिर धीरे धीरे कुछ हरकतें शुरू हुई। मुंह से अस्फुट सी ध्वनियाँ निकलने लगीं।
अटैक के तीन महीने बाद मेरे पास पहली बार लाये गये।
डाक्टर – श्रीचंदजी नमस्कार, कैसे हैं।
श्रीचन्द्र – (मुण्डी हिलाई), हूँ।
डाक्टर – आप कहाँ रहते हैं ?
श्रीचन्द्र – (एक दिशा में इशारा करते हुए कि वहां ) पैसा.. पैसा (धीमी आवाज)
डाक्टर – कहाँ ?
श्रीचन्द्र – (वहीं इशारा)
डाक्टर – आप को क्या तकलीफ है ?
श्रीचन्द्र -(मुंह खोल कर जीभ थोड़ी से बाहर करी, उस पर ऊंगली रखी) पैसा… (रूआंसे अन्दाज़ में)
डाक्टर – बोल नहीं पाते क्या ?
श्रीचन्द्र – (जोर से गर्दन हिलाकर हाँ. हाँ का इशारा किया) ‘पैसा, पैसा.. पैसा… (निराशा व गुस्से से)
डाक्टर – आपके कितने बेटे और बेटियाँ हैं ?
श्रीचन्द्र – (हाथ की ऊंगलियों से पहले दो बताया, फिर एक)
डाक्टर – बड़े बेटे का नाम क्या है ?
श्रीचन्द्र – पैसा ! पैसा ! (फिर झुंझला कर इशारा किया, ललाट पर ऊंगली रखी, बताने के लिये कि यहां दिमाग में सब मालूम है फिर जीभ पर ऊंगली रखी कि बोल नहीं पा रहा)
डाक्टर – क्या आपके बेटे का नाम नवीन है ? (मुझे मालूम था कि बेटे का नाम आकाश है।)
पैसा… पैसा… (जोर से नहीं नहीं के लिये सिर हिलाया)
क्या आपके बेटे का नाम आकाश है ?
पैसा.. .. है. है… (हंस इशारा किया हाँ यही है)
कौन से हाथ से लिखते व खाते हैं ? 

उन्होंने बायाँ हाथ ऊपर उठाया | वे लेफ्ट हेण्डर थे ।
 
पत्नी रेवा बाई बोली – ‘लोगों के बीच में हमें बहुत शर्म आती है जब ये केवल पैसा, पैसा बोलते है। डाक्टर साहब क्या बताऊं इनके जैसी पुण्यात्माएँ बहुत कम होंगे। पैसा का लालच कभी रहा नहीं | रिश्तेदारों, दोस्तों और समाज के लिये लुटाते रहें। वरना आज हम लोग इससे चार गुनी बड़ी कोठी में रह रहे होते, बड़ी बड़ी कारें होते | भगवान ने ऐसा फल क्यों दिया इन्हें ?’
मेरा शेष परीक्षण जारी रहा । पैसा, पैसा’ के अलावा एकाध बार ‘हूँ’, हूं’, ‘आ’ की ध्वनियाँ निकली | सुई चुभोने पर ओह’ बोला, मजेदार बात पर हंसी फूटी और जब उदास हुए तो सुबकने की आवाज आई। सुनकर सारी बात समझे, प्रश्नों के उत्तर इशारों से या चित्रित व लिखित विकल्पों में से उचित पर ऊंगली रख कर दिये । दायां या बायें किसी भी हाथ से लिखते नहीं बना। आकाश ने बताया कि पिताजी पैसा.. पैसा..’ शब्द को इतने उतार चढ़ाव, स्वर, अंदाज के के साथ बोलते है कि उसके भिन्न भिन्न अर्थों का अनुमान हम घर वाले लगा लेते हैं। पिछले आधे घण्टे में मैंने भी यही देखा व सुना था कि श्री चंद्र की आवाज में टोन, लय संगीतात्मकता भरीपूरी थी और तन-भाषा (चेहरा, हाथ-पांव, शरीर की मुद्राएँ) की मदद अच्छी मिलती थी।
रेवाबाई ने अपने झोले में से एक कापी निकाली और मुझे दिखाते हुए बोली – ये आईडिया इनके पोते पंकज का है। दसवीं पढ़ता है।  कम्प्युंडर जैसा दिमाग है। जब उसने देखा कि जो जरूरत की चीजें कहना चाहें, बताना चाहें, मांगना चाहें तो अट्क जाते थे। हम पूछते रहते क्या यह, क्या वह ? बहुत देर की उलझन के बाद समझ आता कि ‘अरेयह’। इस कारण से गुस्सा हो जाते थे । पंकज ने उन सब वस्तुओं और जरूरतों की लिस्ट बनाई और उनके फोटो इस कापी में चिपकाए और उनका नाम भी बड़े-मोटे अक्षरों में लिखा।
अब हमारी जिन्दगी थोड़ी आसान हुई है।
मैंने कापी को पलटा। आश्चर्य कि बात थी कि सौ से भी ज्यादा चित्र व शब्द, वर्गीक्रत तरीके से चिपकाए गये थे। खाद्य व पेय पदार्थ, वस्त्र, वाहन, परिजन, मित्र, रिश्तेदार, घर के कमरे, दैनिक नित्य कर्म, शारीरिक पीड़ाएँ,, हाँ-नहीं, कम-ज्यादा, अच्छा -बुरा।
मैंनें पंगजे की पीठ थपथपाई और कहा कि बेटा तुमने वह काम कर दिखाया है जिस पर हमारे कई स्पीच थेरापिस्ट व डाक्टर्स ध्यान  नही देते, ज़बकि यह उनका कर्तव्य है। मेरे आश्चर्य में एक और इजाफा होना बाकी था। डाक्टर अंकल, पापा से मैं बहुत दिनों से जिद कर रहा,था कि मुझे आई-पेड का नया वाला माडल दिलवा दो जिस पर डिजिटल पेन्सिल से लिख सकते हैं, रंगीन चित्र बना सकते हैं। अब॒ मान गये हैं, जब मैंने उनको मेरी योजना बतायी कि इस कापी के चित्रों व शब्दों को मैं आई पेड से भर दूंगा, जिसमें नयी एण्ट्री जोड़ने, हटाने एडिट करने, टेग करने, छांटने, ढूंढने के काम आसानी से हो जायेंगे।
मैं पिछले अनेक वर्षों से कहता फिरता रहा हूँ कि हम भारत वाले अपने आप को कम्प्यूटर्स, साफ्ट वेयर तथा सूचना टेक्नालॉजी में अग्रणी मानते हैं, पर पता नहीं क्यों हमारे वाणी चिकित्सक और कम्प्यूटर इंजीनियर्स आपस मैं मिल बैठ कर इससे भी और अच्छे मोबाईल एप्लीकेशन तैयार नहीं करते ?
‘श्रीचन्द्र के वाचाघात को ब्रोका अफेजिया कहते हैं। वर्ष 86 | में पेरिस मे पिथरे पॉल ब्रोका नामके फिजिशियन ने पहली बार एक ऐसे ही मरीज की क्लीनिकल अवस्था का वर्णन किया था | सिर मैं चोट के बाद उसकी बोलने की क्षमता एक ही शब्द या सही कहें तो अनशब्द पर सिमट कर रह गई थी। कुछ भी कहना,हो तों वह ताँ, ताँ करता था, हालांकि उतार चढ़ांव के  साथ । लोगों ने उसका नाम मिस्टर ताँ’ रख दिया था। मृत्यु के बाद श॒व परीक्षण में मस्तिष्क के बायें गोलार्ध के अग्रभाग में स्थिंत फ्रांट्टल खण्ड में नीचे की तरफ एक गहरा घाव था। पॉल ब्रोका ने सोचा और सही सोचा जरूर ही दिमाग के इसी कोने में वाणी पैदा होती है। उस भागको ‘ब्रोका एरिया’ नाम दिया गया। चिकित्सा विज्ञान की प्रंगति के इतिहास में शव परीक्षण का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यूरोप  तथा कुछ हद तक उत्तरी अमेरिका में मृत शरीर के प्रति भावनात्मक, धार्मिक व वैज्ञानीक नजरिया हमारी तुलना में भिन्न रहा है। हमारे यहाँ शव का दाह संस्कार जल्दी से जल्दी किया जाता है। पोस्ट्मार्ट्म कानूनी कारणों से करना एक मजबुरी है, परंतु बीमारी  का कारण जानने या शोध के लिये उसकी अनुमति उसके घर वाले कभी नही देते।
पॉल ब्रोका के बाद अनेक न्युरोलोजिस्ट ने वाचाघात के समस्त पहलुओं और प्रकारो के विस्तृत वर्णन किये, लेकिन ब्रोका का ज्यादा प्रसिद्ध और अमर हो गया। पेरिस के मानव संग्रहालय में जब मैंने मिस्टर   ताँ…. ताँ…. का मस्तिष्क फार्मेलीन से भरे जार में देखा तो मुझे रोमांच हो आया था। विज्ञान की यात्रा में अनेक खास पड़ाव आते हैं। इस बात की समझ कि हमारे दिमाग में शरीर के अलग अलग कार्यो को नियंत्रित करने के लिये अलग अलग क्षेत्र निर्धारित है, पहली बार प्रस्फुटीत हुई थी।
जब मैंने गूगल स्कॉलर और पब मेड में खोज करी तो श्री चन्द्र अग्रवाल और मिस्टर तां तां जैसे सैकड़ों मरीजों के अध्ययनों का हवाला मिला । बार-बार वही वही,एक जैसी ध्वनि, अक्षर, सिलेबल, शब्द, अनशब्द, वाक्यांश, लघुवाक्य की मजेदार सूची तैयार हुई जिसमें मैंने अपने मरीजों के उद्ारों को भी शामिल किया । इन्हें कहते हैं – सी.वी. अटरेंस(C.V. Utterance)  कान्सोनेन्ट वावेल उद्गार – व्यंजन और स्वरों के लघु युग्म। ये अर्थवान हो सकते हैं तथा अर्थहीन भी । अर्थवान उद़ारों के बारे अनेक मीमांसाएँ, करी गई – मरीज का व्यक्तित्व कैसा था, अटैक के समय वह क्या सोच रहा था, क्या कहना चाह रहा था। मनुष्य का स्वभाव है जहा वैज्ञानिक दृष्टि से कोई सम्बन्ध न हो वहां भी उसकी कल्पना करना और थोपता | अर्थवान और अर्थहीन दोनों प्रकार के लघु उदाहरणो की सूची में मरीज की मूल भाषा के ध्वनि स्वरूप (फोनोलॉजी) के नियमों का पालन होता है। इंग्लैण्ड से प्रकाशित एक शोधपत्र में मुझे उद्वारों की सूची में मनी (Money) शब्द मिला मैंने कहा कि श्रीचन्द्रजी इस जमात में अकेले नहीं है।
मैंने वाणी चिकित्सक सोनल को स्पीच लेंग्वेज थेरापी की जिम्मेदारी सौंपते हुआ बताया कि श्रीचन्द्र अग्रवाल जी खब्बू (लेफ्ट हेंडर) है और उन्हें क्रास्ड अफेजिया है। एम.आर. आई. में इन्फार्कशन मस्तिष्क के दायें गोलार्ध में जबकि ब्रोका अफेज़िया के 98% मामलों में विक्रृति बायें गोलार्ध में होती हैं। सोनल उत्साहित थी। सर मुझे उम्मीद है कि अग्रवाल साहब की रिकवरी बेहतर होगी क्योंकि बायें हाथ का ज्यादा उपयोग करने वाले लोगों में वाणी सम्बन्धी कार्य महज किसी एक गोलार्ध्ध में केंद्रित होने के बजाय दोनों गोलार्धों मे फैले रहते हैं। संगीत की पकड़ तथा एक भाषी होने के बजाय बहुभाषी होना भी सुधार में मदद करता है। श्रीचन्द्र का हिन्दी व गजराती पर समान अधिकार था, पुराने अंग्रेजों के जमाने के मेट्रिक थी और इंग्लिश भी ठीक ठाक आती थी। कहते हैं मुसीबतें जब आती हैं तो एक साथ आती हैं। भगवान छप्पर फाड़ कर क्या देता हैं ? सौगातें भी गर्दिश भी ।
पन्द्रह दिन बाद उन्हें भीषण हार्ट अटैक आया। हृदयगति एक मिनिट के लिये रुक गई थी। ब्लडप्रेशर डूब गया था। नाड़ी नहीं मिल रही थी | जैसे तैसे जान बची | हार्ट की पम्पिंग क्षमता घट कर 5% रह गई थी। दिल की गति अनियमित थी | हृदय के दोनों चेम्बर्स में पेस मेकर लगाये गये। उठने बैठने में सांस भरती थी | बिस्तर पर पड़ गये
सेठ जी को समझ आ गया – अपना अन्त समय आ गया है। बहुत दिनों से टल रहा था अपनी वसीयत लिखना। आधी राशि से एक चेरिटेबल ट्रस्ट बताया – वाचाघात से पीड़ित मरीजों को वाणी चिकित्सा के खर्चों में मदद करने के लिये। शेष आधी राशि पत्नी, दो बेटों और एक बेटी में समान रूप सं बांट दी। अन्तिम पेराग्राफ में लिखवाया कि मृत्यु के बाद मस्तिष्क निकाल कर मेडिकल कालेज को दान कर दिया जावे |
वैसे तो श्रीचन्द्रजी के पुण्य प्रताप से परिवार में कोई मन मुटाव न था फिर भी एहतियात के रूप में वसीयत के साथ मैंने एक न्यूरालॉजिस्ट के रूप में तथा सोनल ने स्पीच थेरापिस्ट की हैसियत से प्रमाण पत्र दिया कि अग्रवाल साहब ने वाचाघात के बावजूद जो कुछ लिखवाया है वह पूरी चेतना और समझ के साथ सही सही लिखवाया है। देहदान की बात से ताऊजी और छोटी बुआ परेशान थे। वे कहने लगे अपने धर्म में मिट्टी से छेड़छाड़ करना मना है।’ रेवा देवी ने स्पष्ट बता दिया न्यूरोलॉजिकल बीमारियों में सिर्फ मस्तिष्क चाहिये। खोपड़ी की हड्डी में ऊपर का आधा कटोरा काट कर थोड़ी देर पास में रखते हैं, सफाई के साथ पूरा दिमाग आहिस्ता से निकालते हैं, आधा कटोरा फिर फिक्स कर देते हैं। ऊपर से कुछ मालूम नहीं पड़ता।
अग्रवाल साहब की रिकवरी बेहतर होगी क्योंकि बायें हाथ का ज्यादा उपयोग करने वाले लोगों में वाणी सम्बन्धी कार्य महज किसी एक गोलार्ध्ध में केंद्रित होने के बजाय दोनों गोलार्धों मे फैले रहते हैं। संगीत की पकड़ तथा एक भाषी होने के बजाय बहुभाषी होना भी सुधार में मदद करता है।

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