कविराज और नाट्य लेखक अभिमन्यु ‘अकेला’ की पत्नी योशा अनिंदय सुंदरी व रंगमंच अभिनेत्री हैं। अपनी नायिका के सौंदर्य की तारीफ में चन्द्रमा की उपमा का बहुतायत साईं उपयोग होना स्वाभाविक है। योशा को तीन दिन से बांयी तरफ कान के पीछे सिर में दर्द हो रहा था। क्रोसीन खा-खा कर रिहर्सल जारी थी। चौथे दिन सुबह उठी तो कुल्ला करते समय पानी होठों के बाये किनारे से ढुलक रहा था। चेहरे के बायें भाग पर हल्का भारीपन महसूस हो रहा था। पलटकर बेडरूम में आई और पतिदेव को देखकर मुस्कुराई, पर अभिमन्यु ने मुस्कुरा कर जवाब नही दिया – उनके चेहरे पर विस्मय और भय का भाव था।
“योशा तुम्हारे चेहरे को क्या हो गया है ?”
“हाँ, मुझे भी कुछ लग तो रहा है ।”
काँच में देखा। बायीं आँख ज्यादा खुली थी, बड़ी लग रही थी। नाक के दोनों साईंड पर गाल के फोल्ड असमान थे। बायाँ फोल्ड कम गहरा और चपटा था। कान के पीछे दर्द जारी था। इतनी सुबह डॉक्टर नहीं मिलेंगे सोचकर पहले चाय नाश्ता किया। पराठा चबाते समय मुँह का ग्रास बार-बार बेकेन कक गाल के कोटर में फंसा रह जाता था। कोशिश करके उसी जीभ या अंगुली से मुँह बीच लाना पड़ता था। जैसे तैसे केक वक्त से चबाकर नाश्ता पूरा किया। चाय पीते समय बार-बार ध्यान रखना पड़ रहा था कि मुँह के बायें कोने से बाहरन निकल जाए। दोनों फटाफट नहा कर तैयार हुए। साधारण से मेकअप में साड़ी पहले योशा को देखकर रोज की भाँति कवि अकेला बोले “बहुत सुन्दर लग रही हो। लेकिन योशा की मुस्कान रोज की तरह नहीं थी। दोनों गाल पर बनने वाले हसीन गड्डों में से एक, बायां वाला अनुपस्थित था। मुस्कान की चमक आँखों सें भी बयां होती है, वह भी कुछ फीकी थी। शायद बीमारी की चिन्ता थी। न जाने क्या होगा ? शायद लकवा का अटैक है।
“मैं जो यहाँ दबा रहा हूँ तो ?”
“उफ, ज्यादा दुख रहा है।“
“दूसरी तरफ, दायीं तरफ ?”
“नहीं”
न्यूरोलॉजिस्ट अमिताभ शाह, अभिमन्यु के मित्र व थिएटर के प्रेमी थे। आज उनकी व्यस्तताएँ अधिक थी। फोन पर हिस्ट्री सुनकर उन्होंने अनुमान लगा लिया कि “बेल्स पाल्सी’ रोग है। अभिमन्यु को समझाने लगे – “घबराने की कोई बात नहीं है , सिर्फ चेहरे का लकवा है। गम्भीर रोग नहीं है। खतरा नहीं है। जल्दी ही ठीक हो जाएगा। मुझे आज सुबह समय नहीं है। शाम को आ जाना | कोई फर्क नहीं पड़ेगा । घर पर आराम करने दें । एक गोली क्रोसीन की ले लेवे।”
अभिमन्यु आग्रह करता रहा । डॉक्टर ने फिर समझाया – पूरे आधे शरीर पर जब लक्षण आते हैं या जब ब्रेन अटैक के चेतावनी चिन्ह नज़र आते हैं तो मैं स्वयं या मेरा फिजिशियन असिस्टेंट मरीज को तत्काल बुलाकर भर्ती करते हैं, सी.टी. स्कैन करवाते हैं। अन्तत: मित्र के लगातार आग्रह को मंजूर करना पड़ा। डॉ. शाह अपने रेसीडेन्ट्स के साथ भीड़ भरी ओ.पी.डी. में व्यस्त थे। योशा को वी.आय.पी. प्रवेश मिला। अनुभवी निपुण आँखों ने चेहरे को देखा, मरीज की बातें सुनी।
“और कुछ बताना है ?”
“कल हम दोनों मोटर बाईक पर नदी किराने घूमने चले गए थे। शायद ठण्डी हवा लग गई थी। वायु रोग या वात रोग कहते हैं ना इसे ।”
“हवा लगने से नहीं हुआ है। और कुछ ?”
“नहीं, बस मैं तो डर गई हूँ ”
“डरने की बात नहीं है।”
फिर रेसीडेन्ट्स से कहा – न्यूरोलॉजिकल डायग्नोंसिस की दृष्टि से यह शायद सामान्य व आसान केस है, फिर भी हमारी हिस्ट्री व परीक्षण पूरा होना चाहिए । आपको बताना है कि मैंने कोई प्रश्न पूछा तो क्यों पूछा? चेहरे की जाँच में कोई चीज देखी तो क्यों देखी ? मैं आपको पहले भी बता चुका हूँ कि न्यूरोलॉजिकल निदान में हम सदैव एनाटॉमी जानना चाहते हैं एनाटॉमी अर्थात् शरीर रचना विज्ञान ।
“क्या आपको कान के पीछे बांयी ओर दर्द हुआ ?”
“हाँ, हुआ।”
(रेसीडेन्ट्स से ) “स्टायलो – मेस्टाईड नामक एक छोटा-सा छेद यहाँ होता है जिसमें से सातवें नम्बर की क्रेनियल नाड़ी बाहर निकलती है, वहाँ इन्फेक्शन के कारण सूजन आती है, नर्व या नाड़ी दबती है, उस में विद्युत संचार रुक जाता है, अत: उस फेशियल नर्व द्वारा संचालित की जाने वाली माँसपेशियाँ काम करना बन्द कर देती हैं।”
(योशा ने पूछा) “फिर ठीक कैसे होती हैं ?”
डॉक्टर – एक दो सप्ताह में इन्फेक्शन अपने आप ठीक होता है, कभी-कभी वायरस के खिलाफ काम करने वाली एंटीबॉयोटिक तथा इन्फेक्शन की सूजन उतारने वाली स्टीराईड औषधियाँ-2 सप्ताह के लिए देते हैं। हम नहीं जानते कि कितना फायदा होता है । बहुत से मरीज अपने आप ठीक हो जाते हैं।
डॉक्टर शाह ने और भी कुछ सवाल पूछे।
“आँखों से कैसा दिख रहा है? वस्तुएं एक की दो तो नहीं दिख रही हैं ? चेहरे पर झुनझुनी, सुन्नपना या दर्द हो रहा है क्या ? कान से कैसा सुनाई पड़ रहा है, कम, ज्यादा या सामान्य। कान के अन्दर से दुख रहा है क्या ? कान में पस तो नहीं आया। “आँख से पानी ज्यादा आ रहा है क्या ? मुँह के स्वाद में कोई परिवर्तन है क्या ?”
रेसीडेन्ट्स से उक्त प्रश्न पूछे जाने के कारण पूछे गए व बताये गए । फिर संक्षिप्त शारीरिक परीक्षण किया।
डॉक्टर शाह – एनॉटामी याद करो सातवें नम्बर की नाड़ी (फेशियल नर्व) मस्तिष्क के पान्स नामक भाग से निकल कर खोपड़ी की टेम्पोरल हड्डी के अन्दर एक संकरे घुमावदार बोगदे नुमा मार्ग से गुजर कर बाहर आती है मध्य कर्ण से गुजरती है। इस पूरे मार्ग में किसी भी बिन्दु पर खराबी हो तो नाड़ी का काम बिगड़ जाएगा । डॉक्टर को एक जासूस की तरह क्राइम का सीन ढूँढना पड़ता है।
इसमें एनाटॉमी का ज्ञान काम आता है। नाना प्रकार के वायरस इन्फेक्शन और उन्हें कंट्रोल करने के लिए रक्त मे पैदा होती एंटीबाडी हमारे शरीर मे हर समय बनती रहती है। यह संयोग की बात है कि किसी इंसान मे कौन-सी वायरस या एंटीबाडी शरीर के किस कोने में इन्फेक्शन व सूजन पैदा करेगी। अभिमन्यु ने कहा– “डॉक्टर बन्धु ! इलाज में कोई कसर न छोड़ना। पैसों की चिन्ता न करना। सारी जाँच करवा लो सिर का स्कैन जरूर करवाओ।”
हम डॉक्टर वैसे ही बदनाम है कि हम स्वार्थ के खातिर अनावश्यक जाँचें करवाते हैं। ऐसा नहीं है। भाभीजी को सी.टी. या एम.आर.आई. जाँच में कोई खराबी नहीं आएगी। अनेक बीमारियों मे रोग विकृत (पेथालॉजी) इतनी सूक्ष्म होती है कि जाँच में कुछ नहीं आता। हमें कोई आश्चर्य नहीं होता। कभी-कभी, यदि हमें शक हो कि कहीं कोई अन्य रोग या अन्य कारण तो नहीं तभी अतिरिक्त जाँचे करवाते हैं। करें तो बुरे, न करें तो बुरे।
सप्ताह के बाद सप्ताह गुजरने लगे। औषधियाँ 15 दिन मे बंद हो गई। अभिमन्यु बार-बार कहता- “डॉक्टर कोई और दवाई दो। इंजेक्शन लगवाओ। मालिश का बढ़िया तेल बताओ।” डॉक्टर सोचते कि ऐसा क्यों है कि नुस्खे में जब तक कोई औषधि, खासकर के विटामीन या ताकत की दवाई न लिखो, मरीजों को सन्तोष क्यों नहीं होता ? डॉक्टर ने दवाई नही लिखी इसका मतलब यह नहीं कि आपका साथ-सम्बन्ध समाप्त हो गया और आप नये डॉक्टर की शॉपिंग शुरू कर दो। डॉक्टर को टॉनिक लिखने में कितने सेकण्ड लगते हैं। दसियों मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव, सैकड़ों प्रकार की दवाइयाँ लिखवाने के लिए डॉक्टर के पीछे लुभावने लालच लेकर लगे रहते हैं, पाँच सेकण्ड में दवा लिखने के बजाय ।5 मिनिट यह समझाने में लगाता है कि रोग कैसे हुआ ? कैसे ठीक होगा ? अपने आप होगा। फिजियोथेरापी का कितना महत्व है, समय क्यों लगता है, क्यों कुछ लोग देर से व कम ठीक होते हैं ? तो भी मरीज एप्रीशिएट नहीं करते (वश)न 80 प्रतिशत मरीजों में नहीं थी जो लगभग 2 माह में लगभग पूरी तरह ठीक हो जाते हैं और मामूली सी-कमी रह जाती है। उन्हें हम कहते हैं कि रोज काँच में चेहरा देखते समय थोड़ी सी असमानता पर ध्यान न दो । वह या तो धीरे-धीरे कम होगी या ऐसी ही रहेगी। इस अवस्था को स्वीकारो । स्थाई कमी रह जाए तो उसे स्वीकार करते हुए जिन्दगी को संशोधित रूप में स्वीकारो, लेकिन बड़ा मुश्किल होता है कुछ मरीजों के लिए।
योशा की बायीं आँख अब ठीक ठाक बन्द होने लग गई थी । दोनों आँखों के आकार का फर्क कम हो गया था। बायीं आँख से आंसू गिरते थे, विशेषकर खुली तेज हवा में या धूल, धुएं के वातावरण में । ऐसा इसलिए कि बायीं आँख कम झपकती थी, ज्यादा खुली थी। आँख की आंसू ग्रन्थि से बनने वाला पानी एक पतली नली के माध्यम से नाक के अंदर बुहारने का काम शिथिल था। प्रत्येक झपकन एक पोंछे का या एक वाईप का काम करती है। पति पर गुस्से में बनने वाली भृकुटी पूरे स्वरूप में आ गई थी मुस्कान के समय यदि चेहरे के केवल ऊपरी आधे भाग पर गौर करें तो, आँख के चारों ओर सिकुड़ने वाली माँसपेशी के चलायमान हो जाने से, मुस्कान की चमक वापस आ गई थी।
शुरू के दिनों में आवाज-उच्चारण में हल्का सा तुतलापन था। होठों की गति से उच्चारित होने वाली ध्वनियां प,फ, ब, भ, म सफाई से नहीं निकलती थीं। डायलॉग डिलीवरी अभी भी परफेक्ट नहीं हुई थी। और हँसने-रोने का क्या करें ? एक अभिनेत्री का काम कैसे लेगा ? हँसू या रोऊँ ?
योशा चेहरे का निचला आधा भाग टस से मस नहीं हो रहा था । होठों के बायें कोने से दाना पानी टपक पड़ते हैं। बेटे के पहले जन्मदिन की पार्टी में मोमबत्ती बुझाने के लिये फूंकते नहीं बना, सारी हवा पहले ही बायीं तरफ से बाहर निकल गई। कुल्ला करते समय पानी की पिचकारी फुस्स हो जाती है और तिरछी दिशा में जाती है। आदत हो गई है, हमेशा दायें साईड से भोजन चबाने की / क्यों कि बायें गाल में रोटी का कौल यापानका बीड़ा चला जाए तो वहीं रह जाता है।
योशा जब मुस्कुराती या क्रोध का भाव लाती तो होठों के दोनों किनारों में से एक ऊपर उठ जाता तो दूसरा नीचे खिंच जाता।
अभिमन्यु के विरोध के बाद भी योशा ने रिहर्सल्स के लिए जाना शुरू कर दिया, ठण्डी हवा के थपेड़ों में, मोटरबाईक पर बिना मफलर या स्कार्फ के।
डॉक्टर घोष की बात पर भरोसा था – वायु रोग कुछ नहीं होता।
स्टेज पर परेशानियाँ थी। अभिनय की अनेक मुद्राएँ जो योशा पात्र के व्यक्तित्व व कहानी में डूब कर आसानी से अभिव्यक्त कर लेती थी, अब नहीं हो पा रही थीं। अनेक दृश्यों के लिए क्लोजअप के बजाय लांग शॉट से काम चलाया गया। गर्दन झुकाकर, चेहरा झुकाकर, मुस्कुराहटें दी गई ताकि चेहरे का तिरछा भाग थोड़ा दब जाए तथा समरूपी ऊपरी चेहरा अधिक उभरे। अनेक दृश्यों में पार्श्व (साईड पोज़) का सहारा लिया गया – दायां हिस्सा दर्शकों की तरफ हो या बायां हिस्सा किसी अन्य पात्र द्वारा बगल में खड़े होकर छिपा दिया गया हो। दीपिका पादुकोन (छपाक), जीनत अमान (सत्यम्, शिवम, सुन्दरम्) ने चेहरे के आधे भाग को छिपाने के लिए जो जतन किए वे भी आजमाए गए।
लेकिन दुनिया के बड़े रंगमंच पर क्या करें ? मुस्कान और हँसी तथा अन्य भावभंगिमाऐँ हमारे दैनिक संवाद का अभिन्न अंग हैं। आपसी परिचय, गर्मजोशी, स्वीकार्यता,नकारना, सहकार, आनन्द – सब के लिये चेहरा बोलता है। जो योशा को लम्बे समय से जानते हैं और बेल्स पाल्सी के बाद अनेक वर्षों में मिलते रहे हैं, उनके साथ तो ठीक हैं, पर नये लोगों, अजनबियों का सामना मुश्किल होता है। मन में कॉम्प्लेक्स रहता है, झेंप रहती है। कितनी ही फिलासफी झाड़ लो, असहजता बनी रहती है।
बोलते समय आवाज की मौलिकता व स्पष्टता बनाए रखने के लिए योशा तरकीब से होठों के बांयें शिथिल किनारे के नीचे अपनी अँगुली या हथेली टिका लेती मानों यह उसकी खास अदा हो। अनजान लोगों के बीच योशा ने सीख लिया था, चेहरे के भावों को जानबूझ कर दबा कर रखना, मौका मिलने पर ढील देना, छूट देना या छिपा लेना। अनेक वर्षों बाद एक राष्ट्रीय नाट्य समारोह में योशा और अभिमन्यु का मिलना हुआ एक पुराने कुशल अभिनेता से जिन्हें एक्टिंग छोड़कर स्क्रिप्ट राईटिंग का काम अपना लिया था। उसे चेहरे का लकवा एक तरफ नहीं, दोनों तरफ हुआ था, और ठीक नहीं हुआ था। ऐसा बिरले ही होता है। उस मित्र ने बताया किस नाट्यशास्त्र के अनुसार रसों की निष्पत्ति भले ही मन से शुरू होकर चेहरे तक आती हो परन्तु यह ट्राफिक एक मार्गी नहीं है। चेहरे की माँसपेशियों पर यदि गति न हो रही हो तो मस्तिष्क तक फीडबैक नहीं पहुँचता और रस उत्पत्ति और अनुभूति में कमी रह जाती है। योशा अवाक् थी। वह खुद कभी-कभी ऐसा महसूस करती थी पर संकोच और संशय से कभी कह न पाई। उसने प्रकृति को धन्यवाद दिया कि सपाट चाँद से टेढ़ा चाँद बेहतर है।