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भूत पांव


सुदर्शन, 66 वर्ष ने जब मेरे चैम्बर में प्रवेश करा तो उसकी चाल में थोड़ी सी लचक थी । मैंने उसे अपनी कहानी सुनाने को कहा।
‘सर मेरे बाये पांव में दर्द है। घुटने के नीचे।” ड़ अप; को कहा ।‘
‘पूरी बात बताओ’

सुदर्शन ये रिहर्सल कई बार कर चुका था| उसने बिना मेरे प्रश्नों के द्वारा टोके जा कर, स्वयं कहना शुरू किया, हालांकि एक खास बात जानबूझ कर छिपा दी जो मुझे कुछ देर बाद मालूम पड़ी।
‘डाक्टर साहब यह दर्द एक साल से है। गरीब मजदूर हूँ। गांव से आया हूँ। मिया बीबी, दो बच्चे, एक छोटी सी खोली में जैसे तैसे समाये हुए हैं। पांव का दर्द दिन रात रहता है। कभी घटता बढ़ता है। वहीं रहता है। कहीं से आता या जाता नहीं । कमर में दर्द नहीं है। दर्द का टाईप आप लोग पुंछते है। कैसे बताऊँ टाईप? बदलता रह्ता है। गहरी शूल सी उठती हैं, या चूभन जैसा। कभी सडपता है, तो कभी एठता है। जब कम होता है तो वहां खुजली चलती है, उसे झटकने का मन होता है, दबवाने का मन होता है पर फायदा नही, गरम और ठंडे का सेंक करने से कोई असर नही होता। रात में इस दर्द के कारण कभी कभी नींद खुल जाती है। एक दिन ऐसा लगा की वहा खूब पसीना आ रहा है पर देखा तो कुछ नहीं। महँगा प्राईवेट इलाज करवा नही सकता। सरकारी अस्पतालों की जांचे और परचे है।  । मैंने आपकी तारीफ में सुना है आप पुराने पर्चे और जांचें बाद में देखते हो, पहले मरीज को सुनते हो और शरीर को देखकर छूकर, ठोक बजाकर, अपने आले से सुनकर परखते हो। ‘
मैं सोचता रहा कौन सा पाईंट रह गया जो पूछूं।
‘क्या कोई भारी वजन उठाने से हुआ था ?’
‘नहीं?’
“कोई लम्बा बुखार आया ?!
‘नही’
‘क्या कोई चोट लगी थी? ‘
सुदर्शन दो सेकण्ड चुप रहा, मुस्कुराया और बोला – ‘नहीं लगी थी’।
मैं एक मिनिट के लिये बाथरुम गया, इस बीच में सुदर्शन टेबल पर लेट चुका था।
मैंने उसे पेंट उतारने को कहा।
आश्चर्य से मेरी आंखें फटी की फटी रह गई।
जिस बाये पांव में दर्द की बात चल रही थी वह पांव था ही नहीं।


हाँ, सच में वह पांव नहीं था। घुटने के ऊपर से काटा जा चुका था। उसकी जगह कृत्रिम पांव ‘जयपुर फुट’ लगा था।मुझे तुरन्त समझ आ गया। यह भूत पांव (Phantom Limb) का केस है। पांव या हाथ कटे, अनेक मरीज मैंने देखें होंगे। दूसरी किसी न्यूरोलॉजिकल समस्या के लिये आये थे। एम्पुटेशन और कृत्रिम अंग के लिये वे हड्डी रोग विशेषज्ञ , ऑक्यूपेशन थेरापिस्ट, कृत्रिम अंग विभाग आदि की सेवाएं ले रहे होते थे। सुदर्शन का पांव काटना पड़ा था गेंग्रीन रोग के कारण , जो खूब ज्यादा बीड़ी पीने  के कारण हुआ था। मुझे यह भी पता था कि एम्प्यूटी (जिनका कोई अंग काटा जा चुका हो) लोगों को प्राय: अहसास होता रहता है कि उनका खोया हुआ पांव या हाथ, एक भूत के रूप में अभी भी मौजूद है। मैंने विदेशों के मरीज कथा साहित्य में ऐसे लोगों के किस्से और डायरियाँ पढ़ी थीं। न जाने क्यों , मेरे द्वारा बार-बार आग्रह करने और याद दिलाने के बाद भी, अपने यहाँ मरीज , उनके घरवाले और उनके डाक्टर्स – कभी ऐसी कथाएं नहीं नोट करते।

भूत पाव के अनेक नखरे होते है। एम्प्युटेशन (अंग काटने का ऑपरेशन – अंग विक्षेप) के तुरंत बाद प्रगट हो जाता है या लम्बे अन्तराल के बाद आता है | दिन रात में कुछ घण्टे रहता या सतत्‌ बना रहता है। है तो है , क्या फरक पड़ता है से लेकर, ये जाता क्यों नही, मै परेशान हू, सारे समय इस पर ध्यान जाता है, काम में मन लगता नहीं, चिढ़ छूटती है, गुस्सा आता है, मन उदास रहता है,’ जैसी प्रतिक्रियाऐं सुनने को मिलती हैं।
सुदर्शन के भूत पाँव ने अपनी उपस्थिति का प्रथम अहसास खुजली के रूपमें कराया था। अनुपस्थित पांव के अंगूठे पर रह-रह कर खुजाल चलती| समझ में नहीं आता क्या करे। क्या वहां हवा में अंगुलियाँ फेरूं ? या कटी हुई जांघ के दूंठ पर रगड़ूं ? कुछ महीनों बाद भूत पांव हिलने लगा । जैसे हरकत साबुत दायें पांव में होती वैसी ही नकल गायब पांव करने लगा । बाद के वर्षों में भूत पांव ने हिलना डुलना बंद कर दिया। अभी तक तो ठीक था। इसके बारे में मैं किसी से बात करने में शरमाता था। अब क्या बताऊं , कैसे बताऊं । मेरी पत्नी हंसती , कहती पागलपन की बातें मत किया करो ।

तुम्हारा दिल इस बात को स्वीकार नहीं कर पाया है कि पांव जा चुका है, इसलिये मन में हूक उठती होगी, याद आती होगी, कल्पना जाग उठती होगी। वो पांव अब फिर आने से तो रहा ! जो है उसी को मंजूर करो। मैं तुम्हारे साथ हूँ न ! नकली पांव कितनी अच्छी क्वालिटी का मिला है। इसके बाद मैंने उस बारे में बोलना बन्द कर दिया। पर बह तो रोज मेरे से बातें करता था। गरम होता, ठण्डा होता, सूजता, सिकुड़ता, रोएं खड़े करता, मुड़ जाता, नरम रहता, कड़क हो जाता, बांयठें आते, सड़पन उठती।

जबसे भूत पांव ने हिलना डुलना बन्द किया वह सदैव एक ही पोजीशन में ऐंठा पड़ा रहता है। बड़ा अंगूठा ऊपर की ओर उठा हुआ, बाकी ऊंगलियाँ नीचे की तरफ, टखने पर से पंजा बाहर की तरफ घूमा हुआ। देखो डाक्टर साहब, मैंने उसका डायग्राम बनाया है। सुदर्शन की ड्राईंग सच में बहुत अच्छी व सटीक थी। एनाटॉमिकल अनुपात उचित रूप से दर्शाये थे। सुदर्शन कहता गया – डाक्टर साहब इस हवा हवाई दर्द के लिये मैं बहुत भटका । रात में नींद उड़ जाती है दिन में मजदूरी करते-करते अपने दोनों हाथों से उस भूत को कस कर दबा कर बैठ जाता हूँ। ठेकेदार डांटता है – काम चालू रखो । हड्डी वाले डाक्टर साहब, जिन्होंने पांव काटने का ऑपरेशन किया था, उनके पास बहुत बार गुहार लगाई, गोलियाँ बदल-बदल कर लिखते हैं, हाईडोज बढ़ाते जाते हैं,

गोलियाँ पेट में गरमी करती हैं, क्या कहते हैं उसे – एसिडिटी हो जाती है। जब वो हार गये तो उनके डिपार्टमेंट के बड़े हेडसाब को दिखलाया। पता नहीं अंग्रेजी में क्या गिटर-पिटर करते रहे । फिर मेरे को आधी हिन्दी आधी इंगलिश में समझाने की कोशिश करी | बता रहे थे कटे हुए पांव के ढूंठ के सिरे पर जहाँ टाँके लगे हैं, वहाँ की नसों में कोई बारीक-बारीक गांठें बन गई हैं, न्यू… न्यू. . ओमा.. जैसा कुछ बोल रहे थे।

मैंने समझाया – नसें मतलब नाड़ियाँ या नर्वूस | जो हमारे शरीर की चमड़ी और चमड़ी के अन्दर भी जो कुछ हो रहा है उसके पल-पल की जानकारी लम्बे-लम्बे तार / वायर के माध्यम से दिमाग तक पहुंचाती हैं। अंग विच्छेदन के बाद उसके सिरे पर वहाँ की नर्वूस के कटे हुए सिरे रह जाते हैं जो उस साबुत पाव॑ से पहले संवेदनाएँ ले जाया करते थे। अब वह अंग रहा नहीं पर वे नाड़ियां अभी भी अपनी आदत से मजबूरी में पुराने टाइप की सूचनाएं भेजती रहती हैं और दिमाग को लगता है कि खबर उसी पांव से आ रही है। नाड़ियों के कटे सिरों पर छोटी-छोटी गांठें बनती हैं जिन्हें न्यूरोमा’ कहते हैं। ऐसा सोचते थे कि भूत पांव का दर्द वहाँ पैदा होता है।

सुदर्शन बोला – ‘हाँ, यही समझाया था।” और बोला कि एक और ऑपरेशन करेंगे। इस दूंठ को फिर से दो इंच काट कर छोटा कर देंगे ताकि ये न्यूरोमा वाली गांठे निकल जाये।

मेरा मन तो हाँ नहीं कह रहा था। मेरी पत्नी भी बोली कि ऐसी गांठें तो फिर से नये दूंठ पर बन जायेंगी । फिर भी चांस लिया। जांघ और छोटी हो गई। नकली पांव की लम्बाई फिर से एड्जस्ट करवाना पड़ी । दर्द में कोई लाभ नहीं हुआ | दर्द इसलिये ज्यादा लगता है कि पांव टेड़ी-मेड़ी पोजीसन में जकड़ा हुआ है। मुझे लगता है कि किसी तरह वह हिलने लग जाये, उसकी ऐंठन बन्द हो जाये तो शायद दर्द चला जावेगा।

एक न्यूरोलॉजिस्ट के रूप में कुछ दवाईयाँ बदल कर दीं। मामूली सुधार हुआ, पर्याप्त नहीं। रेसीडेन्ट्स के साथ बेड साईड क्लीनिक में मै सुदर्शन जी का केस डिस्कस कर रहा था| मेरा शुरू से मानना रहा है – मरीज शिक्षा (उसकी बीमारी के बारे में, उसकी सरल भाषा में) और मेडिकल एजुकेशन ( डाक्टर्स के लिये, तकनीकी अंग्रेजी में ) के बीच अपने देश में एक बड़ी खाई है| जो नही होना चाहिए| विशेष रूप से डॉक्टर्स को इस बात की ट्रेनिंग और अभ्यास की बहुत जरुरत है कि मरीज को शिक्षा कैसे दी जावे| मेरी क्लासेस में मै दोनों साथ में देता हू |

चित्र : सान डियागो यूनिवर्सिटी, केलिफोर्निया में विश्वप्रसिद्ध न्यूरोलोजिस्ट डॉ. वी.एस. रामचंद्रन

सुदर्शन और उसकी पत्नी की ओर मुखातिब होते हुए मैंने कहना शुरू किया – सान डियागो यूनिवर्सिटी, केलिफोर्निया में विश्वप्रसिद्ध न्यूरोलोजिस्ट डॉ. वी.एस. रामचंद्रन ने भुतपाँव जैसे मरीजो पर मौलिक शोध प्रबंध प्रसारित किये है तथा उस ज्ञान को आम लोगो तक सरल अंग्रेजी में पहुचाने के लिए किताब लिखी है – फेंटम इन द ब्रेन, दिमाग के भीतर के बेताल| वे हवाला देते है हमारे शरीर के चप्पे चप्पे के नक़्शे, की बिसात मस्तिष्क में छपी होती है| पूरे बदन के दो डायग्राम की दो कॉपी ब्रेन में दोनों गोलार्ध में बिछी होती है| देखिये इस चित्र की तरफ| यदि मै आपकी हथेली पर रुई लगाऊ या पिन चुभाऊ तो मस्तिष्क के इस बिंदु पर मालुम पड़ेगा | पाँव के अंगूठे के लिए यह जगह नियत है| एक छात्र बोला – हमारी एनाटोमी कक्षा में पढाया गया था | तब से मै विस्मय करता था की यह चित्र बेतरतीब है| होठो, उंगलियों और यौन अंगो के लिए इतना सारा इलाका दिया गया है| जबकि इतने बड़े धड के लिए इतना सा | सुदर्शन की पत्नी भी रूचि ले रही थी| सर इस फोटो में इलाके जम्प मार रहे है| होठ व् कान पास-पास है| पाँव का पंजा और सुसु वाला हिस्सा चिपके हुए है।

मैंने डॉ. रामचन्द्रन की खोजों की चर्चा जारी रखी | उन्होंने अपना नया सिद्धांत गढ़ा और प्रयोग द्वार पुष्टि करी। अंग विच्छेदन के बाद दिमाग की वे कोशिकाऐं जो वहां से सूचना प्राप्त कर रही थीं, अब बेरोजगार हो गई हैं। वे खाली नहीं बैठती । नये कनेक्शन बनाती हैं। शरीर के दूसरे सलामत भागों से आने वाली जानकारी को समेटने का डबल काम करने लगती हैं।
हाथ कटे अनेक मरीजों में डॉ. रामचन्द्रन ने पाया कि गाल पर रुई फेरने से उन्हें लगाता या भूत हाथ पर रई फेरी गई है। चेहरे पर बिन्दु बिन्दु नया नक्शा बन गया है। जहां पूरा हाथ बिम्बित है। दिमाग के नर्व कोशिकाओं के तन्तु मार्ग बदल नये ठिने बनाने में निष्णात होते हैं| इसे नर्वस सिस्टम की प्लास्टिसिटी (ढलनशीलता या सुनम्यता) कहते हैं। इसी के चलते न्यूरोलॉजिकल बीमारियों के मरीज टीक होते हैं।

भूत पांव का नया ठिया शायद उसके दर्द और अन्य अनुभूतियों का उदगम बनता है | डॉ. रामचंद्रन ने अत्यंत दर्द भरे जकडे हुए भूतपांव को ठीक करने का जो अनुठा प्रयोग किया उसे हमने सुदर्शन के लिये दोहराया। एक मिरर बाक्स बनाया। दायीं और बायीं दोनों तरफ दो समानान्तर दर्पणों के बीच सुदर्शन को बैठाया | दाया पांव और बायीं जांघ का ढूंठ टेबल पर लम्बे रखवाये। साबुत पांव को ऐसे एड्जस्ट किया कि उसकी छवि बायें पांव की खाली जगह को भर दे | सुदर्शन को कहा कि अपनी नज़र बायी तरफ रखो । उसे अच्छा लग रहा था। उसे अच्छा लग रहा था कि बायां पांव पूरा नज़र आ रहा है, हालांकि मालूम था कि यह माया है, दायें पांव की झलक मात्र है। फिर उसे दायें पांव को हिलाने को कहा गया | उठाओ, रखो, सरकाओ, मोड़ो, सीधा करो, पंजा हिलाओ, अंगूठा और ऊंगलियाँ हिलाओ । सुदर्शन देख रहा था। उसकी दिमाग की कोशिकाओं को उल्लू बनाया जा रहा था कि जकड़ा हुआ भूत पांव हिला रहा है। जादू सा असर हुआ | भूतपांव की जकड़न कम हुई, दर्द कम हुआ। कांच का डब्बा सुदर्शन के घर रखवा दिया।
दिन में बार-बार यह खेल करवाया गया | उसका भूतपांव पूरी तरह से नहीं गया पर अब वह हिलता था, जकड़न और दर्द गायब थे। सुदर्शन और पत्नी एक दिन मिठाई का डिब्बा लेकर आये | मेरे कक्ष में कोई नहीं था । पत्नी ने सकुचाते हुए कहा, सर एक मजेदार बात बताती हूँ। आपने उस दिन दिमाग के फोटो में बताया था कि शरीर पर जो हिस्से दूर है वो इस नक्शे में पास-पास है। अब समझ में आया कि … जब.. .हम रात को साथ में होते है और मेरे पांव का अंगूठा चूसते हैं तो मैं अंदर से गीली हो जाती हूँ और ये मेरे को कहते हैं कि मैं उनके कानों को धीरे से का्टू तो इनको अच्छा लगता है। अब सुदर्शन की बारी थी सर जब मेरा वीर्य निकलने वाला होता है तो क्या कहते है  उसको… ‘आर्गज़्म’ की फीलिंग मेरे भूत पांव के अंगूठे में होती है।

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