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जानूँ कि न जानूँ


62 बरस की जानकी बाई घूंघट में अपने साथ में पति, जेठ और सास के साथ आई थी। जेठ ने बात शुरू की ।
सर! ये दिमाग का एम.आर.आई. कराया है इसे देखो|”

इसे मैं पांच मिनिट बाद देखूंगा। क्या तकलीफ है जानकी देवी। ये घूंघट हटा लीजिए।

जेठ और पति को पीछे हटना पड़ा। बड़ी मुश्किल से आधा घूंघट हटाया। मैंने फिर कहा पूरा हटाने को। सास बोली ये फाईल देखों कितना इलाज करा लिया फायदा नहीं है।

यह फाइल भी मैं देखूंगा। पहले अपनी परेशानी बताइये।

पति ने कहा – सर पता नहीं मन में क्या क्या टेंशन भरे रखती है, सोचती रहती है। शक करती है। भूलती है।
मैंने टोका जो मैं आमतौर पर मरीज के साथ नहीं करता हूं। यदि वह स्वयं होकर अच्छे से बता रही हो।
जानकी बाई को बोलने दो।

यूँ तो मेरे मन में निदान की झलक उभरने लगी थी। जिसे हम स्पाट डायग्नोसिस (आशुनिदान) कहते हैं। कुछ बीमारियों के चिन्ह इतने विशेष होते हैं कि एक नजर में ही लगभग सही अनुमान लग जाता है। लेकिन डाक्टर्स को चाहिए कि वे जल्दबाजी न करें। सिलसिले वार तरीके से पूरी हिस्ट्री व शारीरिक परीक्षण करें। कभी-कभी अनुभवी चिकित्सकों को भी पहला इम्प्रेशन गलत हो सकता है। घूंघट हटवाना जरूरी है। महिलाओं के मामलों में बीमारी पहचानने में चूक होने का एक कारण शिष्टाचार व संकोच भी है। महिला रिश्तेदार या नर्स की उपस्थिति में पर्दे के पीछे पूरा अवलोकन जरूरी है। पेपर्स व जाँचों को शुरू में दिखवाने का उतावलापन  परिजनों के मन में रहता है। विनम्रतापूर्वक उसे रोकना चाहिए। पहले बातचीत शरीरिक परीक्षण फिर पेपर्स। अन्यथा कई बार डाक्टर्स पूर्वाग्रह ग्रस्त हो जाते हैं। रिपोर्ट के आधार मन बना लेते हैं। कोरी स्लेट में शुरूआत नहीं होती।

मुझे स्पष्ट नजर आया था किस जानकी देवी जब अंदर आ रही थीं तो उनकी चाल बेढंगी थीं, असंतुलन या पाँव इधर उधर पड़ रहे थे। कुर्सी पर सीधी नहीं बैठ पा रही थी। बदन हिल रहा था । कभी एक कंधा उचकता फिर दूसरे हाथ की मुट्ठी बंधती, एक पंजा बाहर की तरफ मुड़ता, बायीं कोहनी भेली सिकुड़ हो जाती, दायीं कलाई ऊँची उठ जाती। ये गतियाँ असामान्य थीं। लगातार हो रही थीं। जैसे एक तितली फुदक-फुदक कर, एक फूल से दूसरे तक जाती हैं, वैसे ही कोई अदृष्य जाव की घड़ी उनके शरीर के विभिन्न भागों को बेतरतीब क्रम से छूता और वह अंग हिल जाता, उचकता, मुड़ता, सीधा होता, ऐंठता। केवल एक दो सेकंड के लिए। मानो मायकल जेक्सन का ब्रेक डांस चल रहा हो या फिर ढेर सारे मच्छर जगह-जगह काट रहे हों और उन्हें हटाने के लिए यहाँ मार, वहाँ हिला, की हरकतें जारी हों। घूँघट हटाया तो वह हाल होंठ, चेहरा और जीभ के थे, जो कभी बाहर आती, अन्दर जाती, भीतर गोल घूमती या टेढ़ी हो जाती मुँह खुलता, बंद होता, बिचकता। जब बोलना शुरू किया तो आवाज कभी धीमी, कभी तेज, कभी अस्पष्ट।

क्या है कोरिया?

ये लक्षण ‘कोरिया‘ नामक बीमारी के हैं । कोरिया का अर्थ डान्स होता है। नाचने की बीमारी। छः माह पहले धीरे-धीरे शुरू हुई थी और बढ़ती जा रही थी। बदले-बदले से व्यवहार के बारे में पति की बात को मैंने उस समय रोक जरूर दिया, लेकिन अब पुनः विस्तार से जाना चूंकि जानकी देवी अधिक टेंशन लेती व सोचती हैं इसलिए उसे हटिंगटन रोग हुआ हो, ऐसा नहीं है। सत्य इसके विपरीत है। चूंकि हटिंगटन रोग में सोच बदल जाती है इसलिए उनका व्यवहार भी बदल गया था। कोरिया रोग के दो प्रमुख कारण होते हैं। एक बच्चों में किशोरावस्था में जो अचानक शुरू होता है और कुछ महीनों में ठीक हो जाता है। इसे ह्यूमेटिक कोरिया कहते हैं। दूसरा हटिंगटन कोरिया जो 40-50 की उम्र में हौले से शुरू होता है बढ़ता जाता है। कोई इलाज नहीं है। नाचने वाली हरकतें असन्तुलन कमजोरी के साथ मन बुद्धि और व्यवहार पर भी असर पड़ता है। हटिंगटन नाम पड़ा अमेरिका के एक छोटे कस्बे में 19वीं शताब्दी में एक ही खानदान की तीन पीढ़ियों के मरीजों का वर्णन करने से । यह सोचना और कहना गलत हैं कि चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में ऊँचा नाम पाने के लिए बड़े शहर के बड़े अस्पताल में बड़ा डॉक्टर होना चाहिए। किस्मत अपनी जगह है। उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है शांतिपूर्वक सुनने वाले कान, पैनी नज़रों से अवलोकन, काम को तफसील से विस्तार से करना, अच्छे नोट्स लिखना, लम्बा व पूरा फॉलोअप करना, उस बारे में पढ़ना और उसे एक व्यवस्थित आलेख के रूप् में लिखकर सही जगह प्रकाशन हेतु भेजना।

मैंने जानकी बाई से पूछा –“ऐसा रोग आपके परिवार में और किसी को है” वे बोलीं “किसी को नहीं| मेरे परिवार में सास ससुर, जेठ, देवर, ननंद, सब चंगे हैं।” एक भारतीय पत्नी के लिए घर याने ससुराल। सम्भावित आनुवांशिक या जिनेटिक बीमारियों के सन्दर्भ में हम डाक्टर्स का ध्यान स्त्री के मायके की तरफ रहता है। वहाँ भी भरापूरा परिवार है। पिताजी को हार्टअटैक आया था। नानाजी को लकवा था। एक भाई को शुगर है। मेरे  जैसी बीमारी किसी को नहीं।

मुझे लग रहा था कि यह रोग होगा तो जरूर किन्हीं किन्हीं को। होते हुए भी यही हिस्ट्री न मिलने के कुछ कारण होते हैं । मैने एक कागज पर जानकी देवी की वंशावली का चित्र बनाना शुरू किया, मानों उनके पिताजी के खानदान का गंगा पंडित हूँ, जो पुरखों की जानकारी बहीखातों जैसी पोथियों में पीढ़ी दर पीढ़ी लिखकर रखते आ रहे हैं। उनका रेकार्ड प्रायः अधूरा गलत व पितृसत्तात्मक होता है। जिनेटिक्स विज्ञान में गजब की प्रगति हुई है। मोलीलिक्यूलर स्तर पर डी.एन.ए. जैसे सूक्ष्म अणु की जटिल रासायनिक रचना का विस्तृत खाका खींचा जा सकता है। फिर भी एक पुरानी विधि है जिसका महत्व कभी कम न होगा।

फॅमिली हिस्ट्री । पारिवारिक इतिहास । इसके लिए कोण सी लेब और मशीने ? केवल कागज और पेंसिल ।

वंशावली का ट्री-डायग्राम बनाने के आसान नियम है। पुरुष का चिन्ह वर्ग, स्त्री का वृत्त। यदि दोनों को एक आड़ी लकीर से जोड़ दें तो वे पति पत्नी । उस आड़ी लकीर के बीच से नीचे की दिशा मे एक छोटी खड़ी लकीर जिस पर पुत्र व पुत्रियों के चिन्ह लटके हुए । जिनका निधन हो गया है, उनके चिन्ह पर एक तिर्यक रेखा से कटे हुए । जो सदस्य प्रासंगिक रोग (इस परिवार मे हंटिंगटंग कोरिया ) से प्रभावित हैं उनके वृत्त और वर्ग को पेंसिल से भरकर काला कर दिया जाता है।

जानकी देवी की याददाश्त पर ज़ोर डाला गया। उनके एक बूढ़े काका से फोन पर बात करी । पता चला की दादा जी व उनके दो भाइयों को रोग था। पुरानी बात थी। दूर देहात मे रहते थे। कभी ईलाज कराया नहीं। सुनते थे की बुढ़ापे मे शराबियों जैसा हाल था। एक को पागल खाने मे भर्ती किया था । जानकी देवी के पिताजी का यह रोग होता था लेकिन 45 वर्ष की उम्र मे उन्होने आत्महत्या कर ली थी। इस रोग के लक्षण प्रायः 40 के बाद प्रगट होते हैं। पाँच छ्ह रिशतेदारों के इंटरव्यू और लिए । अब जो चित्र बना उसमे अनेक वृत्त और वर्ग पेंसिल से काले काले अलग ही नजर आ रहे थे । एक पैटर्न उभर रहा था। आनुवंशिकी विशेषज्ञों की अनुभवी नजर इस चित्रकारी के संदेशों को एक पल मे भाँप लेती है। अब अच्छे साफ्टवेयर भी उपलब्ध हैं।

हटींगटन रोग की जीन

स्पष्ट था की इस परिवार मे एक पीड़ी से दूसरी पीड़ी तक हटींगटन रोग की जीन ‘आटोसोमल डामिनेन्ट’ मोड से जा रही थी। अर्थात पिता या माता में से किसी एक को यह रोग है। तो सन्ताओं में से इसे होने की आशंका 50:50 होगी, चाहे  लड़का हो या लड़की। इस रोग के लक्षण जल्दी प्रकट नहीं होते। 30-40-50 वर्ष की उम्र के बाद शुरू होते हैं। पहली के बाद दूसरी और फिर तीसरी पीढ़ी से 10-10 वर्ष जल्दी नजर आने लगते है।

जानकी देवी की सामान्य जाचों में सभी ठीक थी। ब्रेन के एम आर आई स्कैन में मस्तिष्क के गूदे के कुछ भागों मे टिशू या ऊतक का गलना, सूखना, क्षय होना नजर आ रहा था । रक्त की विशेष जांच के लिये सेम्पल मुम्बई भेजा गया जिसमे डी. ए. ए. टेस्ट द्वारा हटींगटन रोग की पुष्टि हुई ।

हेलोपेरिडाल व ट्राय हेक्सिफेनिडिल औषधियों से मामूली सुधार हुआ । हिलला डुलना कुछ कम हुआ । मन की बेचैनी कुछ कम हुई । मैंने बताया की ये आंशिक लाभ टेम्पेरेरी है। आगामी कुछ वर्षों मे रोग के लक्षण बढ़ेंगे । कमजोरी आएगी, अपना दैनिक काम स्वयं न कर पाने से हर दम एक सहायक की जरूरत होगी , आवाज धीमी व असपष्ट होती जाएगी बुद्धि व स्मृति घटेगी, सोच व्यवहार मे गड़बड़ियाँ प्रकट होंगी । बीमारी को आगे बढ्ने से रोकने की दवा अभी नहीं बनी है। आयु कम हो जाती है।

मैंने फैमिली ट्री डायग्राम का गौर से अवलोकन किया इस रेखाचित्र के ऊपरी भाग में कम सदस्य अंकित होते हैं पर दादा पर दादी पर नाना पर नई जैसे-जैसे बाद की पीडिया के व्रत और वर्गों की और नीचे की दिशा में बढ़ते हैं चित्र चौड़ा होता जाता है पोते और पड़-पौधों की युवा पीढ़ी का यहां प्रतिनिधित्व रहता है।

इस वंशावली में कल 8 खान वृत्त धन वर्ग भरे हुए थे अर्थात उन्हें हटिंगटन रोग था। इनमें से कुछ की मृत्यु हो चुकी थी इन सभी के बेटे बेटियों नाती पौधों की संख्या गिनी तो 43 निकले उनकी बेटे बेटियों की उम्र 16 से 42 वर्ष के बीच थी और नाती पौधों एक माह से लेकर 20 वर्ष की उम्र के थे इनमें से  आधो को यह रोग होने की आशंका थी आशंका थी जानकी देवी का बड़ा बेटा बंसी 42 वर्ष का था उसे और उसकी पीढ़ी के सदस्यों के दिमाग में जब रोग होने की 50% आशंका का सच समझ में आया तो उनका दिल धक से बैठ गया हमारा क्या होगा सर पर एक तलवार लटकती नजर आने लगी थी .

एक तारीख समय नियत करके मैं पूरे खानदान के सभी वयस्क सदस्यों की एक मीटिंग आयोजित करी संगठन रोग की प्रकृति और अनुवांशिकता के संक्षिप्त भूमिका के बाद मैं सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न उन सबके सम्मुख खड़ा कर दिया।

क्या क्या आप अपना डीएनए टेस्ट करवाना चाहेंगे अभी तो आप ठीक है पर क्या आप जानना चाहेंगे कि 50 50 चांस वाली खराब जिन आपको अपनी मां से प्राप्त हुई है या नहीं यदि नहीं तो आप खुश नसीब है आपको हंटिंगटन रोग नहीं होगा और यदि हां तो आने वाले वर्षों में 60 या 50 या 40 या किसी किसी में उससे भी पहले इस बीमारी के लक्षण प्रकट होंगे इस जांच के आपका खून का थोड़ा सा सैंपल केवल 5 मिली निकल जाएगा और मुंबई की एक बड़ी और विश्वसनीय प्रयोगशाला में भेजा जाएगा एक सहमति पत्र की प्रशन में आप लोगों में बांट रहा हूं इसे ध्यान से पढ़िए कुछ शंका या सवाल हो तो पूछिए परीक्षण करवाना या ना करवाना आपका अपना निर्णय है लेबोरेटरी के टेक्नीशियन तैयार है हमने क्लिनिकल साइकोलॉजी परामर्शदाता काउंसलर को भी बुलाया है जो आपको इस निर्णय से जुड़ी हुई दुविधाएं और डंडों के बारे में सोचने पर निर्णय लेने में मदद करेंगे।

उस घूँघट वाली महिला का राज

कुछ देर तक सभा में सन्नाटा रहा फिर आपस में खुसर कुसूर शुरू हुई छोटे-छोटे ग्रुप में लोग बात करने लगे 15 मिनट बाद सब सदस्य फिर बैठे बंसी ने कहना शुरू किया डॉक्टर साहब हमें राजस्थान में एक कहावत है जी ढाणी जाना नहीं उसका रास्ता ही क्यों पूछना मैं नहीं जानना चाहता कि मेरे को यह बीमारी कभी गिरेगी कि नहीं इलाज तो है नहीं जान के भी कई कर लेगा हमने बिगड़ जाने ही अच्छे अभिषेक क्यों मन खराब करें जो होगी वह होगी तब की तब देखेंगे

मैंने टोका यह भी अच्छा विकल्प है कि आप टेस्ट आज करवा ले 15 दिन में सब रिश्तेदारों की रिपोर्ट मेरे पास सील बंद लिफाफे में आएगी मैं भी नहीं खोलूंगा आप लोगों में से जिस किसी का भी मन आज या कभी बाद में रिपोर्ट खुलवाने का हो मैं खोलूंगा यह मेरी जगह मेरे विभाग में जो भी जिम्मेदार डॉक्टर होंगे वह खोलेंगे लगभग सभी ने अपना सैंपल दिया और सहमति पत्र पर यह लिखा कि अभी हमें रिजल्ट ना बताया जाए।

मैंने यह भी बताया कि आने वाले वर्षों में कुछ दवाइयां ऐसी आ सकती है जिनके बारे में शोध करके जाना जाएगा कि आप लोगों में से जो लोग इस बीमारी के कैरियर या वॉक है उनमें रोगों को टालने मिटाने या उसका असर कम कर सकते में वह दवा काम की है या नहीं।

मीटिंग के बाद जानकी देवी मुझे पास के कमरे में रुकने को कहती है बंसी व उसकी बड़ी बहनों को भी वहां बुलाया एक युवक जो शुरू से मीटिंग में पीछे कोने में चुपचाप बैठा था उसे भी बुलाया।

कमरे का दरवाजा बंद करके उसे घूंघट वाली ग्रामीण महिला ने जो बोला उसे सुनकर हम सब है प्रभु रह गए डॉक्टर साहब बंसी बेटा और मेरी कोरियन आज मैं एक राज की बात बताने जा रही हूं जो अभी तक किसी को पता नहीं थी इस राज ही रखना आप लोग सो रहे होंगे यह माना कौन है जिसे हम नहीं जानते यह मेरा सगा बेटा मनोज मेरी शादी से पहले मेरे गांव में मला टोली में कुंदन होते थे गठीला बदन घुंघराले बाल सयानी बातें कम में तेज मेरे पीछे पड़ा रहता था मेरी भी कच्ची उम्र थी मां फिसल गया आपस में मिलाने लगे गांव में क्या सावधानी क्या साधन जब मुझे होश आया तो मालूम पड़ा की पांचवा महीना चढ़ा है मेरी भाभी बहुत अच्छी थी मेरी दादी दीदी जैसी हिम्मत करके उसने उसको बताया भैया भाभी ने थोड़ा सा डांटा जरूर पर प्यार से हमारी जात ऊंची थी ठाकुर कुंदन निकले समाज का गांव में बात फैल थी तो आग लग जाती भाभी के डर के रिश्ते की एक बहन दूर देश में बाई थी रेल से जाने में दो दिन दो रात लगे थे ताबड़तोड़ मुझे वहां भेजो ना जाने क्या-क्या बहाने बात कर इलाज होना है तीरथ करने गई है बहन जीजा जी को शादी के 15 साल में बच्चा नहीं था मनोज को वहीं छोड़ आई दिल पर पत्थर रखकर भाभी को फोन करके उसे बुलाया आज मुंह देख मैं चाहती थी कि यह जो जांच आप करवाने का पूछ रहे हो वह सब मनोज को भी मालूम पड़ जावे महाभारत में कुंती के बेटों में युद्ध था यहां ऐसा कुछ न था मनोज को सब ने गले लगाया मनोज के चेहरे पर मां की साफ-साफ-साफ थी उसके एक लड़का लड़की है उसने कहा डॉक्टर साहब मुझे इस टेस्ट के रिजल्ट तुरंत जितनी जल्दी हो मालूम करना है मैं घबराते नहीं अपनी जिंदगी को कैसे जीना है यह निर्णय में पूरे आत्मविश्वास से लेता हूं यदि मुझे मालूम पड़ जाए की 40 की उम्र में मुझे यह रोग होता और फिर शायद 10 साल में मेरी मौत हो जाएगी तो मैं अपनी प्लानिंग उसे तरह करूंगा मुझे कौन सी ढाणी जाना है मुझे आज मालूम करना है ताकि वहां का रास्ता मैं आज से बनाना शुरू कर दूं।

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