सभी प्रकार के रोगों के निदान (डायग्नोसिस) में निम्न पायदान होती है
(i) हिस्ट्री History (इतिवृत्त) |
---|
मरीज और उनके घरवालों से कहा जाता है कि वे अपनी बीमारी की कहानी विस्तार से सुनाएँ। डाक्टर्स को चाहिये कि वे धैर्यपूर्वक पूरी बात ध्यान से सुनें। कुछ बाते अधुरी या अस्पष्ट लगें तो डॉक्टर द्वारा प्रश्न पूछे जाते हैं। चिकित्सा विज्ञान की दूसरी शाखाओं की तुलना में न्यूरोलोजी में इतिवृत्त का महत्व अधिक है। इस चर्चा के दौरान दोनों पक्ष (मरीज+घरवाले तथा डाक्टर्स) के बीच पहचान का एक खास पवित्र विश्वास का रिश्ता बनता है। विस्तार में पढ़ने के लिये क्लिक करें |
(ii) शारीरिक परीक्षण (फिजिकल एक्जामिनेशन) (Physical Examination) |
---|
डाक्टर द्वारा मरीज के शरीर के विभिन्न भागों को ध्यान से देखा जाता है। (अवलोकन, Inspection, इन्सपेक्शन) फिर हाथ से छूना, टटोलना, दबाना, हिलाना, डुलाना करते हैं। (स्पर्श, पाल्पेशन, Palpation) स्टेसोस्कोप (आला) छाती पर लगा कर हृदय और फेफड़ों की आवाजें सुनते हैं। न्यूरोलॉजिकल परीक्षण में अनेक मांसपेशियों की ताकत को तौलते हैं, इन्द्रिय जनित संवेदनाएं परखते हैं, एक छोटी हथौड़ी से रिफ्लेक्स जाँचते हैं। विस्तार में पढ़ने के लिये क्लिक करें |
(iii) प्रयोगशाला जाँचें |
---|
इतिवृत्त और शारीरिक जाँच करते-करते चिकित्सक को अनुमान होने लगता है कि मरीज को कौन-कौन सी बीमारियों में से कोई एक हो सकती है। इस चयन हेतु अनेक प्रकार की चुनिंदा जाचें करवाना पड़ती है। सी.टी. स्कैन, एम.आर.आई., खून की जाँचे आदि। विस्तार में पढ़ने के लिये क्लिक करें |
(iv) समय के साथ अनुगमन (फालोअप Follow-up) |
---|
पहली बार में निदान न बन पाये तो समय का सहारा लेना पड़ता है। जरूरी हो तो इमर्जेन्सी उपचार व लक्षणिक उपचार (Sqmptorratic Trealment) शुरु कर देते हैं। वक्त के साथ मरीज की स्थिति में परिवर्तन आते हैं जो डायग्नोसिस की तरफ इशारा करते हैं। |