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जब हम मरीज से चर्चा करते हैं, उसका परीक्षण करते हैं तो दो प्रमुख अवस्थाएं होती है। पहली अवस्था होती है मरीज से बातचीत, जिसको हिस्ट्री कहते हैं और हिस्ट्री के अंदर हम मरीज से सिम्टम्स के बारे में सुनते हैं। सिम्टम्स यानि लक्षण, मरीज को क्या लक्षण थे और दूसरी अवस्था होती है, जिसमें हम मरीज के शरीर को छूकर, टटोलकर जांच करते हैं और उसमें से जो खराबिया निकलती है तो उसे चिन्ह या ‘sign’ साइन कहते हैं। सिम्टम्स वह है जो मरीज अपने लक्षण डॉक्टर को इतिहास के रूप में बताएं और चिन्ह वह होता है जब डॉक्टर मरीज के शरीर को छूकर टटोलकर परीक्षण करके पता लगाता है ।
विषय सूचि
शारीरिक जांच क्यों जरूरी है?
हमेशा तो नहीं, लेकिन कई बार ऐसा होता है कि केवल मरीज के बात सुनकर, केवल इतिहास सुनकर, केवल मरीज के लक्षण सुनकर, बिना हाथ लगाए, बिना परीक्षण करें, एक डॉक्टर फैसला कर लेता है कि मेरे मरीज को क्या रोग है। ऐसा कई बार साइकेट्रिक विभाग/मनोरोग विभाग में होता है। मरीज के रिश्तेदार व मरीज आते हैं और अपने मनोरोग विशेषज्ञ को बताते हैं कि मुझे यह हो रहा है, वह हो रहा है मुझको ऐसे विचार आ रहे हैं, ऐसे ख्याल आ रहे हैं, ऐसा स्वभाव हो गया है और यह सारे वर्णन सुनकर मनोरोग विशेषज्ञ बीमारी का डायग्नोसिस बना लेता है कि इस व्यक्ति को डिप्रेशन है या मानसिक विक्षिप्तता है और फिर जरूरत नहीं होती कि वे मरीज को बोले कि चलो तुम वहां लेटो, मैं तुम्हारी जांच करुगा। जांच करते हैं, लेकिन उसकी बहुत ज्यादा जरूरत नहीं होती।
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कई बार ऐसा होता है कि शारीरिक जांच की जरूरत होती है। यह सही है कि न्यूरोलॉजी में मरीज की हिस्ट्री सुनकर जो डायग्नोसिस बन गया, वो प्राय: लगभग 90% मामलों में सही होता है, लेकिन फिर भी 10% मामले ऐसे होते हैं कि शारीरिक जांच करने के बाद डॉक्टर कहते हैं कि, अरे! हिस्ट्री सुनकर तो मैंने सोचा था कि यह बीमारी होनी चाहिए लेकिन जब मैंने मरीज को लिटाकर जांच की तो पता चला कि मरीज को तो यह बीमारी नहीं बल्कि कोई दूसरी बीमारी है। कभी-कभी डायग्नोसिस बदल जाता है, इसलिये शारीरिक जांच जरूरी है। कभी-कभी शारीरिक जांच इसलिए भी जरूरी होती है कि आपने हिस्ट्री सुनकर जो डायग्नोसिस बनाया था वह शारीरिक जांच करने के बाद भी अपनी जगह सही निकला, परंतु शारीरिक जांच करने में कुछ चीजें अतिरिक्त मालूम पड़ गई, अरे! यह तो मैंने सोचा ही नहीं था। इसे तो खून की भी कमी है। अरे इसका तो ब्लड प्रेशर भी बढ़ा हुआ है। तो यह सारी चीजें हम केवल हिस्ट्री सुनकर पता नहीं लगा सकते इसके लिए हमें शरीर को देखना ही पड़ेगा, छूना ही होगा, टटोलना ही पड़ेगा।
तीसरा कारण होता है शारीरिक जांच करने का और वह है मरीज के साथ भावनात्मक संबंध। मरीज को संतोष नहीं होता, डॉक्टर साहब ने तो छुआ भी नहीं। यह छूना एक रिश्ता बनाता है, इसलिए मरीज के संतोष के लिए यह शारीरिक जांच जरूरी होती है और डॉक्टर और मरीज के बीच में तालमेल बैठाने के लिए भी। इससे दोनों पक्षों को मानसिक संतोष भी मिलता है।
मैं एक न्यूरोलॉजिस्ट के रूप में नर्वस सिस्टम की शारीरिक जांच करता हूं, तंत्रिका तंत्र की जांच करता हूं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं मरीज के अन्य सिस्टम की उपेक्षा करूं। मुझे अन्य तंत्रों की भी जांच करनी पड़ती है। इसलिए मैं सबसे पहले सामान्य जांच करता हूं। जैसे मरीज आता है, हमारा शारीरिक परीक्षण तो वहीं से चालू हो जाता है। जब से जब वह दरवाजे से प्रवेश करता है, हम उसका चेहरा देखते हैं, उसकी चाल ढाल देखते हैं, उसके कद-काठी देखते हैं, उसके शरीर का बलिष्ठपन, कमजोरी, दुबलापन देखते हैं, उसका शरीर कैसा है। मरीज जब हमसे बात करता है तो उसकी आवाज कैसी है, उसकी ध्वनि कैसी है, उसका टोन कैसा है, हमारी शारीरिक जाँच चालू हो जाती है। न्यूरोलॉजी में मजाक में कहते हैं कि जांच तो मरीज को दरवाजे में प्रवेश के पहले ही हो जाती हैं। हमारे कुछ न्यूरोलॉजी के मरीज लंगड़ा कर चलते हैं. लड़खड़ा कर चलते हैं. तो हमें उनके कदमों की आहट से ही पता लग जाता है कि उन्हें क्या बीमारी होगी तो अंदर आने से पहले ही जाँच चालू हो जाती हैं |
सामान्य परिक्षण
मरीज जब हमारे पास आता है तो हम उसे बैठाते हैं, उसका एक जनरल परीक्षण करते हैं, जिसमें आंखों को, पलकों को देखते हैं, उसके चेहरे को देखते हैं। जीभ, गर्दन, लिंफ नोड, नाखून और नाड़ी को देखते हैं। गाड़ी के अंदर हम हृदय की गति, नाड़ी की लय और नाड़ी की दीवार का तनाव कैसा है, आदि देखते है। ब्लड प्रेशर नापते हैं, पूरे शरीर की चमड़ी को देखते हैं। कपड़े को हटाकर देखते हैं, पैरों को देखते हैं, पैरों की सूजन को देखते हैं। इन सब को जनरल परीक्षण कहते हैं और यह जनरल परीक्षण प्रत्येक मरीज पर किया जाता है।
Carnial Nerves
कार्निअल नर्वस का मतलब होता है दिमाग से निकलने वाली नाडीया। दाएं और बाएं दोनों तरफ 1-1 Carnial Nerves होती है। हमारे चेहरे के ऊपर, हमारे सिर के ऊपर, हमारे दिमाग से निकलने वाली जो नाडीया होती है ,उसके 12 जोड़े होते हैं, जिनका परीक्षण किया जाता है। पहला जोड़ा, सुनने की शक्ति से संबंधित होता है। दूसरे जोड़े का संबंध है दृष्टि से। तीन, चार एवं 6 नंबर के जोड़े आंख की पुतली को विभिन्न दिशा में दाएं, बाएं ऊपर एवं नीचे घुमाने का कार्य करता है। पांचवा जोड़ा चेहरे से होकर जाता है और चेहरे से तमाम संवेदनाएं ग्रहण करके दिमाग तक ले जाता है और हमारे जबड़ों की मांसपेशियां जो खाना चबाने का कार्य करती है, का संचालन करता है।
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सातवा जोड़ा जो दिमाग से निकलता है, चेहरे की मांसपेशियों को नियंत्रित करता है। हम अपने चेहरे पर जो हरकते करते हैं, या अनजाने में जो भाव आते हैं या जो अभीनय के दौरान लोग अपने चेहरे पर जो भाव लाते हैं हंसने का, रोने का, दुख का, वह जो स्वयं ही निकलते हैं, चेहरे की मांसपेशियों से नियंत्रित होते हैं। नाड़ियों का आठवां जोड़ा कान तक जाता है और जितना भी सुनने का कार्य है, उसके नर्व के द्वारा ब्रेन तक पहुंचता है। आठवां जोड़ा सुनने के साथ-साथ शरीर का संतुलन बनाए रखने का कार्य भी करता है। इसका भी हम परीक्षण करते हैं।9,10 एवं 11वीं नाड़ियों के जोड़े हमारे गले के लिए कार्य करते हैं। हमारा स्वरयंत्र(Larynx), हमारा भोजन तंत्र जो हम निगलने का कार्य करते हैं, जिसे हिंदी में ग्रसिका एवं अंग्रेजी में (Pharynx)बोलते हैं, इन सब का नियंत्रण करने वाली नाडिया है 9, 10 और 11 क्रेनियल नर्व, जो हमारे ब्रेन के पिछले हिस्से से निकलकर गले तक आती है, और हम इसका परीक्षण करते हैं।
कैसे करते हैं? इसके विस्तार में मुझे जाने की आवश्यकता नहीं है। यह सब मेडिकल के स्टूडेंट्स, डॉक्टर्स को पढ़ाते हैं लेकिन आम जनता को पता होना चाहिए कि न्यूरोलॉजिकल बीमारी से ग्रस्त मरीज का शारीरिक परीक्षण करते समय एक डॉक्टर को कितने डिटेल्स में जाना पड़ सकता है। कितने सारे पहलू है हमारे नर्वस सिस्टम के, हमारे तंत्रिका तंत्र के, जिनकी जांच डॉक्टर को करना पड़ सकती है। और फिर आखरी जोड़ा है 12 वें नंबर का, उसका संबंध है हमारी जिह्वा से। हमारी जीभ की गतिविधियों को यह जोड़ा कंट्रोल करता है, अगर वह नाड़ी क्षतिग्रस्त अथवा डैमेज हो जाए तो हमारे…………
मोटर सिस्टम
हमारी तमाम मांसपेशियों को चलायमान करते हैं। हमारी तमाम मांसपेशियों को, संवेदनाओं को, स्पर्श की इंद्री, ठंडे-गर्म का मालूम पड़ना, यह तमाम जानकारियां नाडिया लेकर आती है। एक ऑफिस में क्लर्क होते हैं, जैसे आवक क्लर्क और जावक क्लर्क, इनपुट और आउटपुट। इसी प्रकार से हमारे नर्वस सिस्टम में भी होता है, आवक और जावक। जो जावक काम है, वह मोटर है। यह जो तीसरा भाग बता रहा हूं, नर्वस सिस्टम की शारीरिक जांच का ये हमारा जावक तंत्र है। जब हमारी मांसपेशिया काम करती है तो उसको हम जांच करते हैं, उसमें सारी मांसपेशियों का बलिष्ठपन देखते हैं। किसी एक हिस्से में पतली तो नहीं हो गई है, कमजोर तो नहीं हो गई है। हम उनका टोन देखते हैं अर्थात तनाव देखते हैं। हिला-हिला कर देखते हैं कि उसमें कड़कपन है। फिर हम उनकी शक्ति देखते हैं, ताकत देखते हैं। विभिन्न मांसपेशियों में कितनी शक्ति है, और फिर उसका कोऑर्डिनेशन देखते हैं वह जब नाक को छूता है तो वह ठीक से करता है कि नहीं या डगमग तरीके से होता है। संतुलन की तरह गौर करते हैं, और फिर यह भी देखते हैं कि उन मोटर सिस्टम में अनावश्यक अपने आप से कोई हरकतें तो नहीं हो रही है। कुछ बीमारियां होती है, जिसमें मोटरसिस्टम में व्यक्ति को कंपन होता रहता है वह हाथ पांव हिलाता रहता है, इसको involuntary movements बोलते हैं, अनियंत्रित या अनैच्छिक गतिविधियां, तो यह सब मोटर सिस्टम का भाग हो गया।
Reflexes
Reflexes का मतलब होता है प्रतिवर्ती क्रियाए। आपने देखा होगा कि न्यूरोलॉजी के डॉक्टरों के हाथ में हथौड़ी रहती हैं और वे ठोक-ठोक कर देखते रहते हैं। इसके अलावा हम कभी पेट की चमड़ी पर चाभी चला कर देखते हैं, कभी पांव के तलवे में कुछ गड़ा कर देखते हैं कि अंगूठे ऊपर नीचे जा रहे हैं या नहीं, यह सब रिफ्लेक्सेस कहलाते हैं। इसे हिंदी में प्रतिवर्ती क्रियाए कहते है।
Sensory System:
संवेदी तंत्र। यदि मोटर सिस्टम जावक था तो सैंसरी सिस्टम आवक है, इनपुट है। सेंसरी सिस्टम में हम स्पर्श, ठंडा, गर्म और वाइब्रेशन को नाना प्रकार से छूकर चुभाकर देखते हैं कि कहीं किसी एक हिस्से में संवेदनाएं कम तो नहीं हो गई है और ज्यादा तो नहीं हो गई है, यह सेंसरी सिस्टम कहलाता है संवेदी तंत्र कहलाता है ।
विविधता
विविधता के अंतर्गत हम मरीज का सिर देखते हैं, रीड की हड्डी देखते हैं, उसकी गर्दन को देखते हैं, कहीं उसमें तनाव तो नहीं है, उसके हाथ या पाव की जो नाडिया है, उसे छूकर हम ‘पालपेट’ कर महसूस करते हैं, पता लगा सकते हैं कि जो नाडिया डोरी के समान होनी चाहिए, वो जा रही है कि नहीं और फिर हम मरीज को खड़ा करके, उनकी चाल को देखते हैं तो यह सब चीजें विविध के अंतर्गत आती है।
एक बार मैं पुनः दोहराउंगा कि जब नर्वस सिस्टम की तंत्रिका तंत्र से ग्रसित मरीज की शारीरिक जांच करते हैं तो इसमें डॉक्टर को बहुत समय देना पड़ता है, बहुत धैर्य से काम करना पड़ता है, उसके बाद जनरल फिजीशियन जांच करने के बाद नर्वस सिस्टम को 6 भागों में जांच करनी पड़ती है। सबसे पहला भाग उच्च मानसिक कार्य और दूसरा भाग क्रेनियल नर्व ब्रेन से निकलने वाली नाडिया । फिर था मोटर सिस्टम, जिसमें मांस पेशियों की गतिविधियों का काम था और फिर था Reflex, जिसमें ठोक-बजाकर देखते हैं प्रतिवर्ती क्रिया है और फिर था सैलरी सिस्टम तंत्र, जो आवक का काम करता है, इनपुट का काम करता है। और फिर था कुछ विविध।
इन सब चीजों को मिलाकर एक मरीज की न्यूरोलॉजिकल जांच होती है, जिसमें कि लगभग आधे घंटे का समय लग सकता है, कभी ज्यादा, कभी कम। कितना समय लगेगा, यह उस डॉक्टर के अनुभव पर निर्भर करता है। और जैसा अनुभव बढ़ता चला जाता है, वैसे उस काम को करने में हमें कम समय लगता है। यह ठीक वैसे ही है कि एक एथलीट 5000 मीटर दौड़, 1000 मीटर दौड़ करना चाहता है तो वह प्रतिदिन अभ्यास करता है, मिल्खा सिंह की तरह वह अपना टाइम सुधारना चाहता है। उसी तरह एक डॉक्टर जब किसी नर्वस सिस्टम की जांच करता है, तो शुरू में तो जिन चीजों की जांच करने में उसे आधे घंटे का समय लगता था, वह घटकर अब 20 मिनट हो गया यानी पहले से कम समय में जांच कर पाता है।
इसके अलावा प्रत्येक मरीज में यह सारी चीजों की जांच करें यह जरूरी नहीं है। उस मरीज की हिस्ट्री के आधार पर एक अनुभवी डॉक्टर यह फैसला कर लेता है कि उसकी सारी चीजें जो 6 हेडिंग है, उसे देखने की जरूरत नहीं है। कुछ गिनी चुनी चीजों को देखेगा, जिनके बारे में उन्हें अंदेशा है। उस जांच में खराबी मिल जाए, अगर उस डॉक्टर को अनुभव नहीं, है तो उसे नहीं पता है कि उसे क्या करना है। जैसा कि सभी डॉक्टरों के साथ अपने करियर की शुरुआत में होता है, कोई भी युवा, कोई भी……………………………………………..
पहले से तय कर लें कि मुझे तो केवल यह चीज देखना है। उसे तो हनुमान के समान होना पड़ता है, हनुमान जी जब लक्ष्मण के लिए जड़ी-बूटी लेने गए थे, उन्हें नहीं पता था कि कौन-सी जड़ी बूटी लेना है, तो वह पूरा पहाड़ ही उठा कर ले आए। उसी तरह युवा डॉक्टर अपना काम करते हैं, उन्हें पूरे पहाड़ ढोना पड़ता है। आधे घंटे बैठकर पूरी जांच करना पड़ती है। ‘करत करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान’ होता है और फिर वह चावल के दाने के समान हाँडी से एक दाने को निकाल कर बता देता है, कि दाना पका है या नहीं ।उसमें क्या खराबी है ?
इसी तरह से डॉक्टर अपने अनुभव से शारीरिक जांच, रियाज के द्वारा जिस प्रकार संगीतकार बार-बार उसी राग को गा-गाकर उस राग को परिष्कृत करता है, ठीक इसी प्रकार एक शारीरिक जांच भी परिष्कृत परिणीति की ओर प्राप्त होती है ।