अनेक न्यूरोलॉजिकल बीमारियों में या तो पेशाब रूक जाता है या पूरी तरह खाली नहीं हो पाता और पेशाब की थैली में भरा रह जाता है , या लगातार टपकता ही रहता है | ऐसे मरीजों में बहुत दिनों तक केथेटर (पेशाब की नली) लगाये रखने के बजाय दिन में कई बार सफाई के साथ स्वयं नली डाल कर मूत्र निकालना सीख लेना चाहिये ।
विषय सूचि
- मूत्राशय खाली न होने के नुकसान
- मूत्राशय के कमजोर होने पर क्या करें
- पुरुषों में नली डालने की विधि
- महिलाओं में नली डालने की विधि
- सावधानियां
आदमी और औरत, दोनों में गुर्दों की सहायता से रक्त साफ़ किया जाता हैं। साफ़ किया गया रक्त वापस शरीर
द्वारा उपयोग में लिया जाता हैं। गुर्दे से मूत्र, मुत्रवाहिनी द्वारा मूत्राशय में इकठ्ठा होता हैं जो पेढू में स्थित होता हैं। मूत्राशय एक फ़ुटबाल जैसी थेली होती हैं, जिसमे प्रति मिनिट पेशाब जमा होती रहती हैं परहमें इसका एहसास तभी होता है जब इसमें 300 से 500 मि.ली. मूत्र इकठ्ठा हो जाता हैं। मूत्र की इच्छा का संकेत मस्तिष्क को जाता हैं व स्पाइनल कार्ड के माध्यम से मूत्राशय जोर लगाता हैं । तब मूत्रनली के वोल्व खुल जाते हैं व मूत्र बाहर निकालता हैं। मूत्र पूरा विसर्जित होने पर मूत्राशय खाली हो जाता हैं (रिलेक्स हो जाता हैं) व मूत्रनली के वोल्व बंद हो जाते हैं। ये प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है । मूत्र त्यागने का
सिलसिला जब बिगड़ जाता है तो हमें गड़बड़ मालूम होती है |
ऊपर के संक्षिप्त विवरण से हम अन्दाज लगा सकते हैं कि कौन-कौन सी बीमारी में हमें मूत्र विसर्जित करने में दिक्कत हो सकती है –
1. मूत्रनली में रूकावट जैसे स्ट्रीक्चर, प्रोस्टेट ।
2. मूत्रनली के वाल्वों का आसानी से ना खुलना – स्फिंक्टर डिसनर्जिया ।
3. मूत्राशय में कमजोरी
– मस्तिष्क या स्नायुतंत्र में या उसके बाहर नर्व्स में विकार या चोट ।
– पेशाब के लिये जोर लगाते-लगाते मूत्राशय का कमजोर हो जाना ।
यदि मूत्राशय हमेशा भरा रहे व पूरा नहीं निकले तो क्या हो ?
ऐसी स्थिति में –
– संक्रमण हो सकता है या पस पड़ जाता है ।
– पथरी बन जाने की सम्भावना हो जाती है।
– धीरे-धीरे गुर्दे खराब हो जाते हैं ।
इसके लिये क्या करना चाहिये ?
इलाज निर्भर रहता है उसके कारण पर ।
प्रोस्टेट के लिये दवाईयाँ या ऑपरेशन,
इस्ट्रीक्चर के लिये सलाई या ऑपरेशन ।
पर कभी-कभी ऑपरेशन भी पूर्ण रूप से मदद नहीं कर सकता ।
मूत्राशय के कमजोर हो जाने पर क्या करना चाहिये ?
हमारा उद्देश्य रहता है कि मूत्राशय खाली रहे । इसके लिये उसमें पेशाब के रास्ते या नाभि के नीचे से एक नली डाल दी जाती है, जिससे मूत्राशय हमेशा खाली रहता है पर पेशाब के रास्ते नली अधिक समय रखने का मतलब अन्य समसस््याऐँ उत्पन्न करना जैसे इन्फेक्शन,
इस्ट्रीक्चर इत्यादि | अत: ऊपर (नाभि के बीच वाले भाग) से नली लगाना उससे बेहतर है पर अगर शरीर में हमेशा नली रहेगी तो पस या पथरी बनने के अवसर हमेशा रहते हैं व साथ में हमेशा पेशाब इकट्ठा करने वाला बेग (थैली) रखना पड़ता है व महीने-दो
महीने में नली बदलवाना पड़ती है |
इसका कोई दूसरा उपाय क्या है ?
इसका सबसे सरल, सस्ता व सर्वोत्तम उपाय है मरीज को स्वयं नली डालना सीखना व 3 से 4 घंटे में मूत्र निकाल लेना (Clean Self Intermittent Catheterization)
क्या बार-बार नली डालने से भीतर कोई जख्म या पस पड़ने के आसार नहीं हैं
अध्ययन से यह पता चलता है कि जख्म व पस पड़ने के चान्सेस दूसरे उपायों की तुलना में बहुत कम हैं व इस विधि में मनुष्य को अधिक स्वतंत्रता रहती है । कोई थैली (बेग) को हमेशा लटकाने की आवश्यकता नहीं ।
क्या इसका सीखना मुश्किल नहीं है –
बिलकुल मुश्किल नहीं है ।
आदमी व औरतें दोनों इसे बड़ी आसानी से इसे सीख सकते हैं ।
इसके लिये क्या सामान लाना होगा ?
1. एक नली जैसे ।(K-90 जो मेडिकल स्टोर पर मिलती है
2. जैली
3. पानी व साबुन धोने के लिये
4. पेशाब इकट्ठा करके फेंकने के लिये बर्तन या पास में बाथरूम होना चाहिये ।
5. स्वच्छ सूखा साधन, नली को दोबारा उपयोग के लिये रखने हेतु ।
6. महिलाओं के लिये शुरु में एक आईना, बाद में आदत हो जाने पर आईने की आवश्यकता नहीं पड़ती ।
शुरु करने से पहले क्या करें ?
>>अपने हाथ साबुन से धोएं ।
>>इसके बाद आदमी अपनी इन्द्री व आगे की चमड़ी भी साबुन पानी से धोये
>>महिलाएं भी पेशाब के आस-पास वाली जगह धोएं ।
>>अब आरामदायक हो जाएं चाहे खड़े हों अथवा बिस्तर के किनारे पर आ जाऐं या टायलेट सीट पर बैठ जाएं या बिस्तर में थोड़ा लेट जाएं ।
पुरूषों में नली डालने की विधि –
>>बांये हाथ से इन्द्री को पकड़ कर थोड़ा खींचें ताकि इंद्री पेट की तरफ रहे ।
>>नली के ऊपर थोड़ी सी जेली मलहम लगाकर बड़े धीरे-धीरे मूत्रनली में डालें । अगर रास्ते में रुकावट महसूस हो रही हो तो लंबी सांस लेकर फिर कोशिश करें ।
>>जब पेशाब होना चालू हो जाए तो नली को आगे खसकाना बंद कर दें व इन्द्री को ढीली छोड़ दें ।
>>पेशाब निकल जाने के बाद धीरे-धीरे नली बाहर निकालें ।
>>नली को पानी से धोकर सुखा लें व साफ-स्वच्छ जगह पुन: इस्तेमाल के लिये रख दें ।
एक नली को 1 माह तक इस्तेमाल कर सकते हैं ।
महिलाओं में नली डालने की विधि –
>>गुप्तांग को इस तरह उंगलियों से फैलाएं कि मूत्रनली का मुंह दिखाने लगे| इसको देखने के लिये सामने एक बड़ा आइना रखना होगा । (वेजाईना) में तीन उंगली से मूत्रनली को मालूम करें ।
>>नली को मूत्रनली में डालें । दिक्कत होने पर संयम रखें, दुबारा कोशिश करें व पेशाब के लिये जोर लगायें |
>>नली में जब पेशाब आने लगे तो नली ज्यादा अंदर नहीं डालें व पूरी पेशाब निकल जाने पर नली धीरे से निकाल लें ।
>>महिलाओं में मूत्र नली की सामान्य लम्बाई 4 से 5 सेंटीमीटर व पुरुषों में 25 सेंटीमीटर होती है ।
>>नली को धोकर सुखाएं व सुरक्षित स्वच्छ सूखे में रखें ।
नली कब तक डालना पड़ेगी ?
यह इस बात पर निर्भर करता है कि मूत्राशय में से पेशाब पूरा नहीं निकलने का क्या कारण है ।
कुछ दिन, कुछ सप्ताह, कुछ माह या हमेशा के लिये ।
डॉक्टर को अवश्य बताएं, अगर –
1. पेशाब कम या नहीं आए ।
2. लाल (खून वाली) पेशाब आए ।
3. पेशाब में बदबू आए |
4. पेशाब में गंदगी आने लगे ।
5. बीच-बीच में पेशाब छूटने लगे ।
6. पीठ में, पेढू में दर्द ।
7. नली डालने में दर्द हो या दिक्कत हो
8. बुखार आने लगे ।