चटखारे / (स्वचलन /ऑटोमेटिज्म)
छुट्टी के दिन माँ के बनाए पकौड़ों की खुशबू से घर महक उठा था। सब छक कर खा रहे थे। अँगुलियाँ चाट रहे थे। विनय माँ का खास लाड़ला था। सातवी की परीक्षा में कक्षा में प्रथम आया था। स्कूल की कबड्डी टीम का कप्तान था।
सप्ताह के शेष दिनों में विनय स्कूल से 4 बजे दोपहर में लौटता और माँ उसके लिए कुछ गरमागरम नाश्ता बना देती। इस बार प्याज व गिलकी के पकौड़े बने थे। विनय ने पहला कौल मुँह में लिया था। उसके मुँह से चटखारे की आवाज आ रही थी। माँ के चेहरे पर खुशी से मुस्कान तिर उठी।
माँ– विनय बेटा, पकौड़े अच्छे बने हैं न?
विनय- हूँ।
“और दूँ क्या? अगला घान कनकौवे के पत्तों का निकाल रही हूँ।“
विनय चट चट करता रहा। कुछ बोला नहीं।
माँ पुनः गैस चूल्हे की ओर मुड़ कर तलने लगी।
विनय माँ के हाथ के खाने का दीवाना था।
इतने में साधना दीदी आयी और माँ से पकौड़े लेकर खाने लगी।
“अरे माँ! आज आप नमक डालना भूल गईं, और मिर्ची बहुत ज्यादा है। शायद नमक की जगह मिर्च दो बार डाल दी है।“
माँ ने चखा तो माना कि साधना सही कह रही है। पर विनय ने क्यों नहीं बताया। बड़े चाव से खा रहा था।
माँ– ने पूछा “क्यों विनय! तुझे पकौड़ों में कोई कमी नहीं लगी?”
विनय चुप बैठा था। थोड़ा उनींदा-सा।
साधना ने बताया कि विनय का पिछला हफ्ता बहुत व्यस्त रहा है। कबड्डी का टूर्नमेन्ट था, खूब कठोर कोचिंग चल रही थी। अर्ध्दवार्षिक परीक्षा 5 दिन बाद थी। रात को देर तक पढ़ना जारी रहता था।
माँ और बेटी ने सोचा कि बच्चू थक गया है।
“चलो बेटा! उठो, बिस्तर पर सो जाओ।”
हाथ पकड़ कर दीदी उसे बिस्तर पर लेटा आई।
अगले दिन स्कूल में दोपहर बारह बजे गणित की क्लास में पुरोहित सर के सवालों के जवाब विनय फुर्ती से सही-सही बता रहा था। अगले प्रश्न का उत्तर एक अन्य छात्र गलत-सलत दे रहा था, तभी (च…..च…-च….चप…..चप…..चप…) की आवाज आने लगी।
सभी अवाक होकर विनय को देखने लगे। उसके होंठ, चेहरा व जीभ अचानक अपने आप चल रहे थे। चटखारों की आवाज आ रही थी। पुरोहित सर ने डाटा- “कितनी बार कहा है विनय तुम्हें !कि च्विंगम खाना कोई अच्छी बात नहीं है। कक्षा के अनुशासन का उल्लघंन है। तुम मेधावी छात्र हो। इस बार छोड़ देता हूँ। आगे से कभी न करना।” विनय चुप रहा। न क्षमा माँगी न सफाई दी। उसके परम मित्र सुदेश की नजरों ने कुछ बातों पर गौर किया। इन कुछ आधा मिनिटों में विनय खोया-खोया सा था। मानों उसे आसपास का कोई अहसास न हो। उसकी आँखें शून्य में ताक रही थीं। किसी व्यक्ति या वस्तु पर टिकी नहीं थीं। न बोल रहा था, न इशारा कर रहा था, न सुन रहा था। चटखारें 40-45 सेकण्ड चले होंगे। मुँह के एक किनारे से थोड़ी-सी लार बाहर आ गई थी। जल्दी ही चेतना वापस आ गई। एक मित्र ने पूछा क्यों विनय आज कैंटीन की कचौरी का स्वाद याद कर रहा था? रमन ने कहा कि पुरोहित सर के सरल से प्रश्न का इतना गलत उत्तर सुन कर विनय च…च… कह कर तिरस्कार कर रहा था।
सुदेश ने कहा “मुझे तो कुछ गड़बड़ लगता है।”
“क्यों विनय क्या हो गया था तुझे?”
विनय- क्या हो गया था? कुछ भी नहीं।
रमन- अरे तू मुँह चलाकर चटखारों की आवाज क्यों निकाल रहा था? तेरी जीभ होठों पर फेर रहा था।
विनय- नहीं, मुझे कुछ याद नहीं।
अगले एक माह में पाँच बार ऐसा हुआ, बार-बार, वही-वही प्रक्रिया एक जैसी, अचानक, हर कहीं, कर कभी, अकारण, लघु अवधि।
माँ को लगा किसी की नजर लग गई है, उपरी हवा है। नजर उतरवाई | कोई फर्क न पड़ा। एक दिन कबड्डी खेलते खेलते हो गया। अपनी टीम के लिए जीतता हुआ पॉइंट खो दिया। कभी साइकिल चलाते-चलाते गिरने लगा, दुर्घटना हो सकती थी। प्रत्येक घटना के बाद आधा घण्टे तक सुस्त, उनींदा व भ्रमित रहता था। इस अवधि की कोई स्मृति शेष नहीं रहती थी।
घर वाले चिन्तित होने लगी थे। पराकाष्ठा दीवाली वाले दिन हुई। लक्ष्मी जी की आरती गाते-गाते ज्यादा जोर से चटखारे शुरू हुए, ज्यादा देर तक रहें, फिर जमीन पर गिर पड़ा। हाथ-पाँव अकड़ गए, आँखे ऊपर की ओर फिर गईं। मुँह से झाग आने लगा। जीभ में कट लगने से झाग का रंग थोड़ा-सा लाल था। कपड़ों में पेशाब हो गई। मिर्गी जैसा दौरा 2 मिनिट तक चला। फ़िर 2 घण्टे सोता रहा। मानो बेहोश हो। उठने पर भी खोया-खोया सा था। सिर व पूरा शरीर दुख रहा था।
डॉक्टर ने ई.ई.जी. तथा दिमाग का एम.आर.आई. करवाया । उन्होंने बताया: एपिलेप्सी या मिर्गी रोग के कुछ मरीजों में बड़े दौरे के अलावा छोटे दौरे भी आते हैं जैसे कि विनय को आते रहे हैं।
मिर्गी के दौरों को ऑटोमेटिज्म (स्वचलन) कहते हैं। हमारे शरीर की तमाम हरकतें, व्यवहार, सब के सब मस्तिष्क से नियंत्रित होते हैं। प्रायः ऐसा प्रतीत होता है कि ये सब हमारी इच्छा से होता है। हम चाहते हैं, सोचते हैं, मन से निश्चय कर के अपने अंगों को आदेश देते हैं- तभी तो इस क्षण में जो लिख रहा हूँ वह मेरी स्वप्रेरित, ऐच्छिक गति है। शेष अवसरों पर हमारा अवचेतन मन ढेर सारी स्वचलित गतियाँ करवाता रहता है, जैसे कि इस क्षण मैंने अपने कपाल पर थोड़ा-सा खुजाला, या बाहर चिड़िया की चहचहाहट की तरफ मेरी नजरें चली गई। ये क्रियाएँ सामान्य और स्वस्थ हैं।
विनय के चटखारे असामान्य व अस्वस्थ थे। एक बारगी, ऊपर से देखने पर वे सामान्य नजर आते हैं। चटखारे लेना मनुष्य के स्वाभाविक व्यवहार में से एक है।
ऑटोमेटिज्म या स्वचलन प्रायः मस्तिष्क के दायें या बायें टेम्पोरल खण्ड में से उठते हैं।
वहाँ के एक छोटे से भाग में, हजारों न्यूरॉन कोशिकाओं और उन्हें गुंथने वाले स्नायु तन्तुओं का जाल, यकायक अनियंत्रित, बेतरतीब विद्युतीय विस्फोट करने लगता है। शार्ट सर्किट की तड़तड़ाहट कुछ सेकण्ड रहती है और शान्त हो जाती है। मस्तिष्क के उस हिस्से या अनेक बिन्दुओं को जोड़ने वाले परिपथ (सर्किट) में रोग विकृति किसी भी कारण से आ सकती है- जन्मजात, गर्भ में विकास के दौरान, आनुवांशिक, जिनेटिक, सिर की चोटें, मस्तिष्क के इन्फेक्शन, ब्रेन में ट्यूमर (गाँठ) आदि।
साधना दीदी और उनके पिताजी अध्ययनशील थे। उन्होंने डॉक्टरों से खूब पूछा | इन्टरनेट पर गोते लगाए। ऑटोमेटिज्म वाली मिर्गी से पीड़ित कुछ मरीजों को ढूंढा, उनसे बातें की।
मिर्गी में स्वचलन के दौरों की दुनिया अजीब है। सुशीला, 40 वर्ष, गृहिणी अचानक तालियाँ बजाती है और अस्फुट-अस्पष्ट बुदबुदाती हैं। मुजफ्फर 25 वर्ष, मेकेनिक, जोर से चिल्लाता है और कमरे में गोल-गोल घूमता है। उसे रोकने की कोशिश करो तो जोर से झटक कर धक्का देता है। सरदार वल्लभसिंह 65 वर्ष, व्यापारी, टेबल या आसपास पड़ी वस्तुओं को टटोलते हैं, उलटते-पलटते हैं, यहाँ-वहाँ रखते हैं, गिरा देते हैं। रशीदा 42 वर्ष घर वालों को शर्मिन्दगी का सामना कराते हुए अपने कपड़े उतारने लगती है, बालों को उलझाती है।
स्वचलन के उदाहरण भिन्न-भिन्न होते हैं, नाना प्रकार के होते हैं, कुछ खतरनाक होते हैं, दुर्लभ रूप से आक्रामकता व हिंसा हो सकती है, प्रायः शान्त व सुरक्षित होते हैं। ऑटोमेटिज्म की हरकतें लक्ष्यशीन और विचारविहीन होती है। उनके पीछे कोई मंशा या इरादा नहीं होता।
मेडिकल ज्यूरिस प्रडेंस में अनेक अवसरों पर बचाव पक्ष के वकीलों ने अपने मुवक्किल को अपराध की जिम्मेदारी से मुक्त कराने के लिए मानसिक रोगों और न्यूरोलॉजिकल रोगों (जैसे कि मिर्गी में स्वचलन) का हवाला दिया है। विशेषज्ञ डॉक्टर्स की राय रहती है कि बिरले ही कभी ऑटोमेटिज्म की लघु अवधि में कोई सयाना इन्सान खास लक्ष्य पर कोई अपराध कर सकता है।
मिर्गी के ऑटोमेटिज्म (स्वचलन) में चेतना सदैव नहीं खोती। कभी-कभी बनी रहती है। मरीज अचानक कोई एक वाक्य या कुछ शब्द बोल पड़ता है जो बदलते नहीं। उसे पता है पर रोक नहीं पाता।
विनय के दौरे औषधियों के सतत सेवन से कुछ कम हो गए फिर भी परेशानी तो थी। दिल्ली के बड़े अस्पताल में गहन जाँचों के बाद एक ऑपरेशन की सलाह दी गई। उसके बाद रोग पूरी तरह मिट गया।
आज 29 वर्ष की उम्र में विनय एक सॉफ्टवेयर कम्पनी अपनी पत्नी विद्या के साथ मिलकर चलाता है। साधना दीदी ने वर्षों पहले एक डायरी लिखी थी जिसमें विनय की स्वचलित हरकतों का लेखा-जोखा लिखा था- मय तारीख, समय और परिस्थितियों के। आज उस डायरी को पढ़कर विनय विस्मय करता है कि विज्ञान की प्रगति के कारण हम ‘मन’ (माइण्ड) गह गतिविधियों तथा मनुष्य के व्यवहार पर उसके नियंत्रण के बारे में कितना कुछ जानने लगे हैं। वरना अंधविश्वास, झाड़फूंक, नजर लगना, ऊपरी हवा, आत्मा, कर्मफल, देवी माता का प्रकोप आदि मिथ्या धारणाओं में डूबे रहते हैं। |
साधना दीदी और विनय उस डायरी को पढ़कर आज कल हँसते हैं। दीदी चिढ़ाती है “विनय तेरे अन्दर बार-बार एक चाबी भरा जाती थी और तू एक खिलौने के समान, वही-वही हरकत उतनी ही देर के लिए करता था।”
विनय कभी-कभी संजीदा हो कर कहता है- “दीदी! अपनी पूरी जिन्दगी एक खिलौने के समान है- जितनी चाबी भरी राम ने, उतना चले खिलौना। इस एक बड़ी चाबी के अलावा न जाने कैसे मेरे दिमाग एक अतिरिक्त छोटी चाबी फिट हो गई थी। भला हो मेडिकल साइन्स की जासूसी का कि वह चाबी ढूँढ कर निकाल बाहर कर दी गई।”