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लड़की आँख मारे


प्रथम वर्ष की छात्रा विभा की ख्याति, कालेज में जल्दी फैल गई थी। बेहद सुन्दर थी, अमीर घराने की थी, एक से एक उम्दा कपड़े पहनती, ड्रेसिंग सेन्स गजब का था। मोटर सायकल पर आती थी। अंग्रेजी पर गजब का अधिकार था।
प्रोफेसर साहब से उन्हीं के बौद्धिक स्तर पर चर्चा करती थी। डिबेट में फर्राटेदार इंग्लिश बोलती जो आधों के सिर के ऊपर से जाती।
लेकिन सबको एक चीज अखरती थी। विभा फ्रेन्डली नहीं थी। कुछ लड़कियों से उसकी ठीक ठाक मित्रता थी। लड़कों को भाव नहीं देती थी। न देखती, न नजरें मिलाती, जरूरतपूर्ति काम से काम बात करती, मुस्कुराना तो भूल जाओ। सब कहते घमण्ड है – रूप, धन और बुद्धि का । अंगूर खट्टे हैं के अन्दाज में कुछ स्वयं को सांत्वना देते –‘खिसकी हुई है, किसी के साथ इसकी कभी न निभेगी | शायद लेस्बियन है ?’


विभा कुछ दिनों से नोटिस करने लगी कि कभी कभी उसकी दायीं आँख फड़कती है । आँख का फड़कना सब को होता है। सामान्य बात है। एक दो पल रहता है। गाहे बगाहे लम्बे अन्तराल, आप फिर हो सकता है। यदि ज्यादा फड़कने लगे तो ध्यान जाता है। पता नहीं क्या कारण है ? कोई बीमारी तो नहीं । डाक्टर के पास जाने का सोचे सोचे उस बीच में बन्द हो जाता है। डाक्टर कहते हैं इसके लिए पास आने की जरूरत नहीं थी। यूं तो आम बोलचाल में और साहित्य में भी आँख और बाँह फड़कने को लेकर शुभ-अशुभ शगुन वाले विश्वास प्रचलित हैं। हम जानते हैं कि इन बातों का वैज्ञानिक आधार नहीं है। आनन्द व साहित्य की दृष्टि से चर्चा करें तो कोई बात नहीं | विभा और उसके माता-पिता पक्के तर्कवादी थे । उन्होंने इस दिशा में कभी नहीं सोचा। परन्तु दायीं आँख की फड़कन बढ़ती जा रही थी। रोज होती । जल्दी जल्दी आती। देर तक बनी रहती । बीच बीच में कुछ घन्टों के लिये बन्द हो जाती है। कुछ समझ में नहीं आता था कि किन कारणों से बढ़ती थी या कम होती थी। उसकी मनमर्जी थी। नींद का पता नहीं । माँ ने तब बताया कि नींद में भी होता है पर कम तीव्रता और आवृत्ति से। आमतौर पर फड़कन एक सेकण्ड से भी कम समय रहती है। विभा की पलक अब अनेक सेकण्ड्स तक संकुचित रहती, आँख छोटी हो जाती, फिर धीरे से खुलती । जोर की फड़कन में पलक पूरी बन्द होकर, कस कर भिंच जाती ।कुछ घरेलू उपाय किए । तेल की मालिश की। भाप में गरम किए तौलिये से दिन में अनेक बार, चेहरे का सेंक दिया। बर्फीले ठण्डे आईस पेक से चेहरे को दबाकर रखा। फेमिली डाक्टर ने कुछ विटामिन्स की गोलियाँ और आई ड्राप्स दिए। कोई लाभ नहीं हुआ। मेकअप करते समय विभा का ध्यान गया कि आँख फड़कने के साथ अब चेहरे का दायाँ कोना थोड़ा खिंच जाता है! दायें गाल पर खिंचाव महसूस होता है।


धीरे-धीरे ज्यादा लोगों का ध्यान विभा के चेहरे पर जाने लगा। यूँ भी, पहले ही कौन कम ध्यान जाता था। संकोची विभा का संकोच दुगुना हो गया। लोगों के बीच बैठना, जाना कम कर दिया।

एक दिन एक सहेली ने अलग से ले जा कर फुसफुसाकर पूछा, “क्यों विभा! मैंने सुना कि शंकर गदगद हैं कि तूने उसकी तरफ देख कर मुस्कुराई और आँख मारी| मुझे नहीं लगता कि तेरे को शंकर में कोई इंटरेस्ट है | वह लम्बू बहुत बोर है|” विभा बोली- “मै और आँख मारूं और वह भी शंकर को कभी नहीं |” तभी सहेली बोली – “तेरे चहरे पर जो हो रहा है, शायद तू जानबूझ नहीं कर रही पर देखने में बिलकुल ऐसा ही लगता है कि तूने आँख मारी|”


एक शमा के अनेक दीवाने हो सकते हैं। अगले एक सप्ताह में, अपने आप को स्मार्ट व हीरो समझने वाले तीन छोकरों ने अपनी  प्रतिभा व हुनर के साथ विभा को इम्प्रेस करने की और फ्लर्ट करने की कोशिश की | तीनों ने जमकर दुत्कार पाई| वे परेशान थे, इशारा करती है पर झिड़कती क्यों है ? विभा ने राहत की सांस ली कि वार्षिक परीक्षा की तैयारी की एक माह की छुट्टियाँ शुरू हो गई। माता पिता के साथ न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. राजेश संचेती को दिखाने पहुँची। डाक्टर के लिए डायग्रोसिस, आसान था। बीमारी का नाम बताया ‘हेमिफेशियल स्पाज़्म’

स्पाज़्म का अर्थ है – माँसपेशियों में अचानक स्वत: (अनैच्छिक) संकुचन| हिंदी पर्यायवाची हुए – ऐंठन, मरोड़, संकुचन, फड़कन। ‘आधे चेहरे की ऐंठन!
“ यह गम्भीर रोग नहीं है। कोई खतरा नहीं है।’
विभा की माँ ने आपत्ति ली –“ कैसे कह सकते हो कि गम्भीर रोग नहीं, डाक्टर साहब!  मेरी बेटी का घर से निकलना बंद हो गया। दिन रात चेहरे को दबाकर, छिपा कर बैठी रहती है या काँच में देखकर रोती रहती है। दुनिया भर में हँसी उड़ रही है, मजनू टाईप के लड़के गलत अर्थ लगा रहे हैं।”
डाक्टर राजेश ने माना कि समस्या विकट है। गम्भीर रोग न होने का अर्थ केवल इतना है कि शेष शारीरिक स्वास्थ्य या जीवन पर कोई खतरा नहीं है।
डाक्टर संचेती ने अगले दो सप्ताह लिए कुछ दवाइयाँ लिखी जिनसे नर्व /नाड़ी तथा मस्तिष्क के कुछ भागों की द्दीपन्नशीलता (एक्साइटेबिलिटी) कम करी जाती है। कोई लाभ नहीं हुआ।
अन्तत: बोटोक्स इन्जेक्शन लगाये गये, जिसके बारे में डाक्टर साहब पहली बार में ही कह चुके थे | परन्तु जैसा कि प्राय: होता है , घरवालों ने अनुरोध किया कि इतने बड़े निर्णय पर पहुँचने के पहले क्‍यों न थोड़े दिन दवाइयाँ लेकर देखा जाए | इस बीच ब्रेन के एम. आर. आई. स्कैन में कोई खास खराबी नहीं नजर आई थी । डाक्टर राजेश ने समझाया कि फेशियल मसल्स को कंट्रोल करने वाली सातवीं क्रेनियल नर्व के तंतुओं(एक्सान) में कहीं कोई सूक्ष्म पेथालॉजी (विकृति) है जो नजर नहीं आती पर नर्व में अति उद्दीपनशीलता पैदा कर रही है।


बोटोक्स नाम का इन्जेक्शन एक खास तरह के बेक्टीरिया से प्राप्त होता है। क्लॉस्ट्रिडियम बोढुलिनियम बेक्टीरिया आक्सीजन विहीन वातावरण में पनपता है। आक्सीजन की मौजूदगी में मर जाता है। इन्हें एनएरोबिक कहते हैं। इनसे निकलने वाला जहर बहुत घातक व मारक होता है। कुछ ही मिलीग्राम की मात्रा व्यक्ति का जीवन खत्म कर सकती है।
डब्बा बंद नानवेज भोजन (जैसे टूना मछली) जिनका चलन हमारे देश में अधिक नहीं है,  कभी कभी दूषित हो जाते हैं और खतरनाक फूड पाईज़निंग का कारण बनते हैं। क्लॉस्ट्रिडियम बोटुलिनियम बेक्टीरिया को प्रयोगशाला में विशेष रूप निर्मित आक्सीजन विहीन वातावरण में रखकर पैदा करते हैं और उससे प्राप्त टॉक्सिन को बोटोक्स इन्जेक्शन के रूप में काम में लाते हैं।
विभा के चेहरे के दायें भाग में कुछ माँसपेशियों को चुना गया जिनके बारे में साफ नजर आ रहा था कि उन्हीं के द्वारा उचक उचक कर बिना कारण संकुचन हो रहे थे व चेहरे पर ऐंठन पैदा कर रहे थे| बोटोक्स इंजेक्शन लगाने वाले डॉक्टर्स को अपना एनाटामी (शरीर रचना विज्ञान) का पाठ जो एम.बी.बी.एस. के प्रथम वर्ष के बाद प्रायः भूल जाते हैं, फिर से रिवाइज करना पड़ता है |
बोटोक्स इंजेक्शन की सूक्ष्म मात्रा एक महीन सिरिंज (जैसे कि डाइबीटीज में इन्सुलिन के लिए ) भरते हैं, अत्यंत बारीक और छोटी- सी नीडल (सुई) द्वारा सटीक रूप से चुनी गई माँसपेशी के अन्दर लगाते हैं। बोटुलिनियम विष उस मासपेशी के हजारों तन्तुओं (मसल फाइबर्स) और उन्हें संचालित करने वाली नर्व(नाड़ी) की शाखाओं को पेरेलाईज़ कर देता है| पूरा पेरेलिसिस नहीं, आंशिक /काम चलाने पूर्ति ताकत बनी रहती है। जो एक्स्ट्रा हरकतें हो रही थी वे दब जाती हैं। पूरी तरह से नहीं, आंशिक रूप हमेशा के लिए नहीं, कुछ सप्ताहों के लिए (लगभग तीन माह)
विभा को अच्छा फायदा हुआ। कुछ साइड इफेक्ट हो सकते हैं। दर्द, एलर्जी दो चार दिन में ठीक हो जाते हैं। कभी-कभी इंजेक्शन लगने वाली माँसपेशी जरा ज्यादा ही पेरेलाइज हो जाती हैं।


चेहरे पर आँख ठीक से बन्द नहीं हो पाती, आंख से पानी गिरना आदि। थोड़े दिन में ठीक हो जाता है। तीन चार महीने बाद बोटोक्स का असर कम होने लगता है। ऐंठन फिर लौटने लगती है। मरीज पूछते हैं – स्थाई इलाज नहीं है?
डाक्टर – नहीं है ।
मरीज – क्या बार बार इन्जेक्शन लगाना पड़ेगा ? क्या उसकी आदत नहीं पड़ जाएगी। क्या उसी पर डिपेन्ड नहीं हो जाएँगे ? लोगों में समय के साथ पहले जैसा फायदा नहीं होता । इसे आदत पड़ना या डिपेन्ड होना नहीं कहते । यह जरूरत है। डायबिटीज़ के मरीज को रोज इन्सुलिन इन्जेक्शन लगाना पड़ता है क्या यह लत या आदत है कि रोज रोटी खाना ।यदि बाद में बोटोक्स इन्जेक्शन पुन: नहीं लगवाएँ तो रोग जैसा था। उतना ही रहेगा, बढ़ेगा नहीं।

दो वर्ष बाद विभा की पढ़ाई पूरी हो गई थी। बोटोक्स के इन्जेक्शन का असर ठीक ठाक हुआ था। शादी के लिए बातचीत चल रही थी। सामने वाले पक्ष को चेहरे की ऐंठन के बारे में बताया गया। लड़के के बाप बिदक गए। लेकिन लड़के की माँ व लड़के को विभा और उसका घर बहुत मन भा गए थे। उन्होंने सोचा एक और डॉक्टर को दिखाते हैं।
नया एम.आर.आई. स्कैन बेहतर मशीन पर करवाया जिसका चुम्बक ज्यादा शक्तिशाली था – तीन टेस्ला शक्ति का।
पुराना स्कैन 0.5 टेसला चुम्बक वाला था।
रिपोर्ट में आया कि मस्तिष्क के भीतर दायीं तरफ की फेशियल नाड़ी के साथ एक बारीक-सी धमनी लिपटी हुई है। नाड़ियाँ (नर्वल) और धमनियाँ (आर्टरी) की अनेक शाखाएँ और उनके जाल पूरे शरीर में व्याप्त रहते हैं। उनका एक दूसरे को छूना या सटकर चिपक कर, लिपट कर कुछ दूर साथ-साथ रहना संयोग की बात है जिसके कि कोई दुष्परिणाम नहीं होते।
नर्वस सिस्टम की बात अलग है। वह ठहरा शरीर का सबसे नाजुक अंग। उसके अरबों तंतुओं में बिजली प्रवाह मान रहती है। बिजली के तार को सिर्फ हौले से छू कर उसे छेड़ो तो उसमें तड़तड़ी उठती है।
फेशियल नर्व से सटी हुई धमनी में हर सेकण्ड पल्स वेव (हृदय के धड़कने की तरंग) आती और नर्व के हजारों तंतुओं में से कुछ की उद्दीपनशीलता को बढ़ा देती है| सुलगते-सुलगते यह आग दूसरे तंतुओं में फैलती है और उनकी प्रवृत्ति को बदल देती है |
न्यूरोसर्जन द्वारा खोपड़ी खोल कर ऑपरेशन किया गया| नाड़ी(नर्व) और धमनी(आर्टरी) को अलग किया, बीच में नरम टिशु रख दिया और न्युरोवेस्क्युलर कोंफ्लिक्ट दूर कर दिया | हेमिफेशियल स्पाज्म क्योर हो गया |


शादी के एक साल बाद विभा अपने पति के साथ इन्टरनेशनल एयरपोर्ट के डिपार्चर लाऊंज में बैठी थी, सिडनी जाने के लिए तभी एक युगल पास आया। पुरुष बोला “मुझे पहचाना” | विभा शरमाई बोली, “अरे शंकर! तुम हो । कहाँ जा रहे हो ?” दोनों दम्पत्तियों में परिचय करवाया गया। शंकर ने कहा – “मैं सिएटल जा रहा हूँ। माइक्रोसाफ्ट के हेडक्वाटर्स में सीनियर एनालिस्ट का पद मिला है|” फिर धीरे से थोड़ा सा गम्भीर होकर विभा से बोला – “मैं वर्षों से माफी मांगने की सोचता रहा हूँ । उस समय मैंने जरा ज्यादा ही …”


विभा अब पहले जैसी न थी। शादी के बाद खुली खुली और बिंदास हो गई थी। लड़के सोचते हैं,  ऐसा पहले क्यों न था। विभा के चेहरे पर मस्ती भरी मुस्कान थी। उसके पति को शंकर वाली बात पता थी। फाईनल बोर्डिंग एनाउंसमेंट हो  चुका था। विभा ने शंकर की ओर देखकर हल्के से आँख मारी और डिपार्चर गेट की ओर बढ़ गई|

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