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मोटर न्यूरॉन रोग



मोटर न्यूरॉन रोग एक प्रोग्रेसिव (बढ़ने वाला) घातक नाड़ियों से संबंधित रोग है। यह स्वैच्छिक मांसपेशियों को नियंत्रित करने वाली केंद्रीय स्नायुप्रणाली (सेंट्रल नर्वस्‌ सिस्टम) की तंत्र कोशिकाओं के गतिजनक न्यूरॉन के हास (खराबी) के कारण होता है।
इस रोग में मांसपेशियाँ तेजी से कमजोर होती जाती हैं , पतली होती जाती हैं, मांसपेशियों में फड़कन होने लगती है। मांसपेशियों में तनाव की अधिकता होने लगती है। बोलने में दिक्कत होती है, जिसे डिसआर्श्रिया कहते हैं। निगलने की समस्या उत्पन्न होती है, जिसे डिस्फेजिया कहते हैं और सांस लेने की समस्या भी सामने आती है जिसे डिसप्निया कहते हैं।


संकेत एवं लक्षण –
इस विकार के कारण ऊपरी और निचले गतिजनक न्यूरॉन के हास के कारण पूरे शरीर की मांसपेशियाँ कमजोर हो जाती हैं। कमजोर मांसपेशियाँ कार्य करने में असमर्थ हो जाती हैं और उनका अपक्षय (एट्रोपी) होने लगता है। प्रभावित व्यक्ति अंततः स्वैच्छिक गतिविधियों को प्रवर्तित और नियंत्रित करने की क्षमता खो बैठता है। हालांकि मूत्राशय तथा आंत व गुदा संकुचने की पेशियाँ तथा आंख के संचालन के लिये उत्तरदायी मांसपेशियाँ इस प्रभाव से बच जाती हैं, लेकिन हमेशा नहीं। अधिकांश रोगियों में संज्ञानात्मक कार्य (काम्निटिव फंक्शन) आम तौर पर प्रभावित नहीं होते। संवेदी तंत्रिकाएँ (सेंसरी नर्व) और स्वायत्त तंत्रिका तंत्र (ऑटोनामिक नर्वस सिस्टम) जो कि पसीने का आना जैसी गतिविधियों को नियंत्रित करता है, आमतौर पर अप्रभावित रहता है लेकिन कुछ रोगियों में इसके लक्षण भी देखे जाते हैं।


प्रारंभिक लक्षण
मोटर न्यूरॉन रोग के प्रारंभिक लक्षणों में साफ तौर पर स्पष्ट कमजोरी और मांसपेशियों का अपक्षय (एट्रोपी) होता है। अन्य प्रस्तुत लक्षणों में शामिल हैं।
मांसपेशियों का फड़कना (फेसिकुलेशन), ऐंठन (क्रेम्पिंग), प्रभावित मांसपेशियों की जकड़न (स्पास्टिसिटी), हाथ एवं पैर की मांसपेशियों की कमजोरी से प्रभावित होना और अस्पष्ट उच्चारण और नाक से बोलना आदि।शेग के प्रारंभिक लक्षणों से शरीर के कौन से अंग प्रभावित होंगे यह इस बात पर निर्भर करता है कि शरीर के कौन से मोटर न्यूरॉन पहले क्षतिग्रस्त हो रहे है। इस रोग के ग्रस्त लगभग 75% लोग अंग शुरूआत अनुभव करते हैं अर्थात्‌ पहले बाजुओं या पैरों में लक्षण महसूस हो सकता है या उन्हें लगता है कि वे लड़खड़ा रहे है या ठोकर खा रहे हों। अक्सर लटकते पैरों के साथ, जो जमीन पर घसीटता हुआ चलता है। हाथ से शुरूआत होने वाले रोगियों को हाथ से किये जाने वाले चुस्ती और कुशलता वाले कार्यों में कठिनाई महसूस होती है, जैसे कि कमीज की बटन लगाना, लिखना, ताले में चाबी घुमाना आदि। कभी-कभी लक्षण काफी लम्बे समय तक या रोग की पूरी अवधि के दौरान एक ही अंग तक सीमित रहते हैं, यह एक अंगीय पेशी शोष (मोनोमिटरिक एमायोट्राफी) के रूप में जाना जाता है। लगभग 25% मामले केंद्रीय शुरूआत के होते हैं। इन रोगियां को पहले स्पष्ट रूप से बोलने या निगलने में कठिनाई होती है। बातचीत अस्पष्ट हो जाती है। अन्य लक्षणों में शामिल हैं – निगलने में कठिनाई और जीभ की गतिशीलता का बंद होना। अपेक्षाकृत कम मरीज श्वसन से प्रारंभ होने वाला अनुभव करते हैं, जिसमें सांस लेने में सहायक पसलियों के बीच मांसपेशियाँ पहले प्रभावित होती हैं।


भले ही रोग द्वारा पहले प्रभावित शरीर का कोई भी अंग हो, रोग के बढ़ने के साथ पेशियों की कमजोरी और संकुचन अन्य अंगों तक भी फैलने लगता है। मरीज चलने फिरने, निगलने और बोलने या शब्द गढ़ने में बहुत कठिनाई अनुभव करता है। ऊपरी गतिजनक न्यूरॉन (अपर मोटर न्यूरॉन) के खराबी के लक्षणों में शामिल हैं , मांसपेशियों की स्पास्टिसिटी और अतिप्रतिवर्तता (हाईपररिफ्लेक्सिया) एक असामान्य प्रतिवर्ती क्रिया भी जिसे आम तौर पर बाबिन्की चिन्ह , जिसमें पांव के पीछे को स्क्रेच करने पर अंगुठा ऊपर की ओर बढ़ जाता है और बाकी ऊंगलियाँ बाहर की ओर फैल जाती है, कहा जाता है।


यह भी ऊपरी मोटर न्यूरॉन की क्षति का संकेत देती हैं, निचले गतिजनक न्यूरॉन के क्षतिग्रस्त होने के लक्षणों मे शामिल हैं – मांसपेशियों की कमजोरी और शोष (एट्रॉपी), मांसपेशियों में क्षणिक फड़कन (फेसीकुलेशन) जिसे त्वचा के नीचे नंगी आंखों से देखा जा सकता है। लगभग 5-45% मरीज कूट कंदीय प्रभाव (सूडोबल्बल इफेक्ट) अनुभव करते हैं, जिसे भावनात्मक असंतुलन के रूप में भी जाना जाता है। जिसमें अनियंत्रित रूप से हंसना, रोना, या मुस्कराना शामिल है।
अत: मोटर न्यूरॉन रोग निदान किये गये रोगियों में ऊपरी और निचले गतिजनक न्यूरॉन क्षति, होने के संकेत और लक्षण होने चाहिये, जिसके और कोई कारण नहीं हो सकते हैं। न्यूरॉन क्षति होने के संकेत और लक्षण होने चाहिये, जिसके और कोई कारण नहीं हो सकते हैं।


रोग प्रगति –
हालांकि इस रोग के लक्षणों के उभरने और रोग की प्रगति के दर का अनुग्रम दर व्यक्ति में भिन्न होता है। अंतत: अधिकांश रोगी ना खड़े रह पाते हैं, न चल फिर पाते हैं, न अपने आप बिस्तर से उठ या लेट पाते हैं, या अपने हाथ और भुजाओं का इस्तेमाल कर पाते हैं । चबाने और निगलने की समस्या मरीज की सामान्य रूप से खाने की क्षमता को क्षीण कर देती है और लगे में अटक जाने का जोखिम बढ़ जाता है। ऐसे में वजन बनाए रखना एक समस्या बन सकती है, चूंकि इस रोग में सामान्यतः बौद्धिक क्षमताऐँ प्रभावित नहीं होती, ऐसे में रोगियों को अपने काम करे में होने वाली प्रगतिशील हानि के बारे में पता रहता है तथा वे चितित और उदास हो सकते हैं एवं अंतत: अवसाद (डिप्रेशन) में आ सकते हैं। डायफ्राम और पसलियों के बीच की मांसपेशियों के कमजोर पड़ने से सबल प्राणाधार क्षमता (फोर्स वाईटल केपेसिटी) और प्रभावशील दबाव (इंस्पीरेटरी प्रेशर) कम होने लगता है। ऐसे में श्वास के लिये बाहरी मशीन (जैसे इत्ठझअझ) की जरूरत होने लगती है। मुख्यत: रात में सोते समय, या कभी-कभी दिन में भी | समस्या अधिक बढ़ने से ट्रेकियोस्टोमी (गले में छेद कर सांस देने की प्रक्रिया) का सहारा लेना पड़ सकता है। मोटर न्यूरॉन से पीड़ित अधिकतर लोग प्राय: श्वसन विफलता या निमोनिया के कारण मर जाते हैं। आमतौर पर निदान के दो से पांच साल के अंदर मौत हो जाती है। हालांकि रोग किसी भी उम्र में हो सकता है, अधिकतर लोगों की उम्र 40 से 70 वर्ष के बीच होती है। महिलाओं की अपेक्षा पुरूष इस रोग के अधिक शिकार होते हैं।


रोग निदान –
कोई परीक्षण मोटर न्यूरॉन रोग का निश्चित निदान नहीं प्रदान करता है, हालांकि एक ही अंग में ऊपरी और निचले गतिजनक न्यूरॉन की मौजूदगी इसका प्रबल संकेत हो सकता है। मोटर न्यूरॉन का निदान मुख्य रूप से चिकित्सक द्वारा रोगी में देखे गये लक्षण और चिह्नों पर आधारित है। चिकित्सकों द्वारा अन्य रोगों की आशंका को दूर करने के लिये कई परीक्षण किये जाते हैं। चिकित्सक मरीज की सम्पूर्ण चिकित्सा इतिहास प्राप्त करते हैं और आम तौर पर नियकित अंतराल में स्नायवीय परीक्षण (न्यूरोलॉजीकल एक्ज़ामिनेशन) करते हैं ताकि मांसपेशियों की कमजोरी, संकुचन, अतिप्रतिवर्तन (हायपर रिफ्लेक्सिया) और कठोरता जैसे लक्षणों के उत्तरोत्तर क्षिी का आंकलन कर सके।


क्योंकि मोटर न्यूरॉन रोग के लक्षण विस्तृत विविधता लिये अन्य अनेक उपचार्य रोगों से मिलते जुलते हैं अत: उन रोगों की सम्भावनाओं को शामिल न करने के लिये उपयुक्त परीक्षण करना जरूरी है। इन परीक्षणों में एक है – इलेक्ट्रोमायोग्राफी (ईएमजी ) , एंक विशेष रिकार्डिंग तकनीक, जो मांसपेशियों में विद्युतीय गतिविधि को मापती है, ईएमजी निष्कर्ष मोटर न्यूरॉन रोग के निदान का समर्थन करते हैं। नर्व कण्डक्शन वेलोसिटी (एनसीवी) की जांच के द्वारा मोटर न्यूरॉन रोग को न्यूरोपेथी एवं मायोपेथी से अलग किया जा सकता है। एम.आर.आई. की जांच के द्वारा मस्तिष्क एवं स्पाईनल कार्ड में स्थित रोगकारक की जानकारी ली जाती है, जिनके लक्षण मोटर न्यूरॉन रोग से मिलते जुलते हो सकते हैं।
रोगी के लक्षणों और परिक्षणों के निष्कर्ष के आधार पर तथा इन परिक्षणों से चिकित्सक अन्य रोगों की आशंका को दूर करने के लिये रक्त, मूत्र एवं अन्य विशेष परीक्षण भी करवा सकते हैं। जैसे अगर चिकित्सक को संदेह है कि मरीज मोटर न्यूरॉन रोग के बजाय मायोपेथी से पीड़ित है तो मांसपेशियों की बायोप्सी करवा सकते हैं।
 
उपचार
खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) ने रोग के इलाज के लिये सिर्फ एक ही दवा रिलुजोल को मंजूरी दी है। माना जाता है कि रिलुजोल, ग्लूटामेट संवाहकों को सक्रियण द्वारा ग्लूटामेट के निर्गमन को कम करते हुए गतिजनक न्यूरॉन को पहुंचाने वाली क्षति को कम करता है। मोटर न्यूरॉन रोग से पीड़ितों पर किये गये परीक्षणों ने दर्शाया है कि रिलुजोल जीवन काल के कई महीने आगे बढ़ाता है।
हालांकि यह सिर्फ एक मामूली कदम है लेकिन रिलुजोल आशा प्रदान करता है कि मोट न्यूरॉन रोग की प्रगति एक दिन नई दवाओं के संयोजन से धीमी हो सकती है।
अन्य औषधियाँ उपचार के तहत चिकित्सक थकान कम करने, मांसपेशियों की ऐँठन कम करने, संस्तम्भता कम करने और अधिक कफ तथा लार कम करने के लिये सहायक दवाओं को देते है। मरीजों को दर्द,अवसाद, अशांत निद्रा और कब्ज में मदद के लिये दवाईयाँ दी जा सकती हैं।
शारीरिक चिकित्सा (फिजिकल थेरेपी) और व्यावसायिक चिकित्सा (ऑक्यूपेशन थेरेपी) द्वारा पूरे मोटर न्यूरॉन रोग की अवधि के दौरान मरीज की आजादी और सुरक्षा को बढ़ा सकते हैं। सरल,कम प्रभाव वाले एरोबिक व्यायाम जैसे चलना,तैसकी, स्थिर साईकल चलाना आदि अप्रभावित मांसपेशियों को मजबूती दे सकते हैं। हृदय तथा रक्तवाहिनियों संबंधी स्वास्थ्य में सुधार और मरीजों को थकान और अवसाद से जूझने में मदद कर सकते हैं। गति और खींचाव से जुड़े विविध व्यायाम मांसपेशियों के संकुचन को रोक सकते हैं। शारीरिक चिकित्सक मरीजों को,गतिशील रखने में मददगार रैम्प, ब्रेस, वॉकर और व्हीलचेयर जैसे उपकरणों को सुझा सकते हैं। जहां तक सम्भव हो अपने दैनिक जीवन के कार्य स्वतंत्र रूप से करने में इन लोगों की क्षमता को बनाए रखने के लिये व्यावसायिक चिकित्सक उपकरणों और रूपांतरणों को प्रदान या उनकी सिफारिश कर सकते हैं। बोलने में कठिनाई होने पर वाणि चिकित्सक के साथ काम करते हुए लाभ उठा सकते हैं। ये चिकित्सक मरीजों को जोर से और अधिक स्पष्ट रूप से बोलने में मददगार तकनीकों की ट्रेनिंग देते हैं। परेशानी अधिक बढ़ने पर इनके द्वारा वाईस एम्प्लीफायर, स्पीच जरनेटिंग डिवाईस आदि की सिफारिश कर सकते हैं। बिल्कुल नहीं बोल पाने की स्थिति में वर्णमाला बोर्ड या हाँ/ना संकेत जैसे कम प्रौद्योगिकी संचार तकनीक प्रदान करते हैं।


सर्जरी एवं आपात चिकित्सा
खाना निगलने में होने वाली अत्यधिक कठिनाई एवं खाते समय होने वाली खांसी के कारण मरीज पर्याप्त से अत्यन्त कम आहार ले पाता है एवं धीरे-धीरे कमजोर होने लगता है। पुन: खाते समय होने वाली खांसी के कारण एस्पीरेशनल न्यूमोनिया का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे समय चिकित्सक पेट में आहार पहुंचाने वाली नली का उपयोग करते हैं। सामान्य सर्जरी की मदद से ट्यूब को पेट में लगा देते हैं। इस में किसी प्रकार का दर्द नहीं होता, और यदि मरीज मुंह से खाना चाहे तो उसे खाने में कोई परेशानी भी नहीं होती।
जब सांस लेने में सहायक मांसपेशियाँ कमजोर हो जाती हैं, तो सांस लेने में मदद के लिये संवातक सहायता (Ventilatory Support) जैसे Intermittent Positive Pressure Ventilation (IBPV), Bilevel Positive Airway Pressure (BiPAP) या Biphasic Cuirass Ventilation (BCV) का उपयोग किया जा सकता है। ऐसे उपकरण कृत्रिम रूप से विभिन्न बाहस स्रोतों से रोगी के फेफड़ों में हवा भरते हैं, दीर्घधकालिक उपयोग के लिये ट्रेकियोस्टॉमी जैसे आपरेशन की सलाह दी जाती है।


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