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माइग्रेन क्या हैं एवं क्या उपचार हैं ?


अनेक सिरदर्द ऐसे होते हैं जिनमें सिर का दर्द की एक मात्र लक्षण होता है। अन्य लक्षण गौण होते हैं और इन बीमारियों में सिरदर्द का कोई अन्य कारण नहीं होता बिना कारण के अपनेआप प्राथमिक रूप से प्रायमरी रुप से सिरदर्द के लक्षण पैदा होते हैं। और ये प्रायः क्रोनिक होते हैं। दीर्चअवधि के होते हैं। लम्बे समय तक चलते हैं, इन्हें प्रायमरी हेडएक, प्राथमिक सिरदर्द कहते हैं।

प्रायमरी हेडऐक्स में सबसे प्रमुख उदाहरण है माइग्रेन। और आज हम मुख्यतया माइग्रेन की ही चर्चा करेंगे। और उसके बाद कुछ अन्य प्रकार के प्राथमिक सिरदर्द की भी चर्चा करेंगे। माइग्रेन का नाम बहुत लोगों ने सुना होगा। माइग्रेन के लिए लोकल आम बोलचाल की भाषा में आधा शीशी का दर्द भी कहते हैं। क्यों कि इसमें प्रायः सिर का आधा भाग दुखता है। आधा शीशी का सिरदर्द, माइग्रेन। माइग्रेन बहुत कॉमन है। हजारों लाखों लोगों को होता है। और लगभग १५ से २० प्रतिशत महिलाओं में रिप्रोडक्टिय एज में होता है। रिप्रोडक्टिव एज का मतलब जब महिलाएं गर्भवती हो सकती है। अर्थात् उनके रजस्वला होने से लेकर रजोनिवृत्ति तक अर्थात् १५ वर्ष से लेकर ४५ या ५० वर्ष की उम्र तक महिलाओं में इस प्रकार का माइग्रेन हेडएक लगभग २०, २५ प्रतिशत महिलाओं में होता है। पुरुषों में ये प्रतिशत कम होता है। और युवावस्था के पहले जो बचपन आता है उसमें भी ये प्रतिशत कम होता है। और जब रजोनिवृत्ति हो जाती है ५०, ५५ की उम्र के बाद उसके बाद भी ये माइग्रेन का प्रतिशत थोड़ा कम हो जाता है। माइग्रेन की बीमारी का कारण अज्ञात है। ये अपने आप पैदा होती है। इसमें आनुवांशिकता का थोड़ा योगदान है। यदि आपके माता-पिता में से किसी को सिरदर्द है तो उनके बच्चों में इसके होने की आशंका लगभग ५० प्रतिशत होती है। ये जरूरी नहीं की बच्चों में या माता-पिता में सिरदर्द उतनी ही जोर का हो उतनी ही तीव्रता का हो। हो सकता है किसी पीढ़ी में ज्यादा हो, किसी पीढ़ी में कम हो मगर होता जरूर है। आनुवांशिक रूप से कुछ जीन्स होती है और जो पहवान ली गई हैं जो माता-पिताओं से बच्चों को मिलती है, और बच्चों में भी माइग्रेन जैसा सिरदर्द की प्रवृत्ति पैदा हो जाती है। ये जीन्स अनेक स्तरों पर काम करती है। कोई एक जीन जिसे कि हम चिन्हित करके कह सके की आनुवांशिक संरचना में खराबी होने से यह सिरदर्द बच्चों में आता है। हम यह भी नहीं जानते की वो जीन जिसमें खराबी आयी है वह खराबी कैसे सिरदर्द को पैदा करती है। हालाँकि इस दिशा में बहुत शोध हो रहा है। और इन शोधों से ये ज्ञात हुआ है कि वे जो जीन्स हैं अल्टीमेटली तमाम जीन्स हमारे शरीर में विभिन्न प्रोटीन अणुओं की संवरचनाओं का निर्दिशित करती है। और कुछ प्रोटीन ऐसे होते हैं जो हमारे मस्तिष्क के भीतर भी कार्यरत रहते हैं, हमारी न्यूरान कोशिकाओं में उनके बीच में बहने वाली जो विद्युत तरंगें विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थों के माध्यम से संवाद करती है न्यूरोट्रांसमीटर्स के रुप में और विभिन्न न्यूरान कोशिकाओं के बीच में जो संपर्क बिंदु होते हैं वहाँ पर तरह-तरह के चेनल्स होते हैं आय.एन. चेनल्सा तो सोडियम, पोटेशियम, कैल्शियम अनेक प्रकार के जो विद्युतीय आयन्स होते हैं वो जब एक कोशिका से दूसरी कोशिका में प्रवेश करते तो कोशिकाओं की झिल्ली में बारीक-बारीक छिद्र होते हैं उनको चैनल बोलते हैं। उस चैनल से ये आयन घुसते हैं और ये जो चैनल्स हैं ये प्रोटीन के बने होते हैं और इन प्रोटीन की संवरचना का निर्माण जीन्स के द्वारा निर्देशित होता है। तो यदि कोई जीन आपको अपने माता-पिता से ऐसी मिली जिसने इन आयन चैनल्स या इन मेम्बरेंस या उनके रिसेप्टर्स की रचना में थोड़ी सी खराबी पैदा कर दी वह सिरदर्द का कारण बनता है। कैसे बनता है यह एक जटिल विषय है। इस पर बहुत शोध हो रहा है। और ऐसी उम्मीद है कि इस शोध की वजह से इन बीमारियों का, माइग्रेन की बीमारी का बेहतर इलाज निकालने में मदद  लेगी।


आनुवांशिकता के अलावा हम नहीं जानते और क्या कारण होते हैं। हाँ, कुछ वातावरण के कारण और होते  । उदाहरण के लिये- यदि किसी व्यक्ति को वो खराब जीन्स तो मिली कि आपको हेडएक होगा। लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि आपको प्रतिदिन चौबीसों घंटे, लगातार सिरदर्द होता ही रहेगा। माइग्रेन के बारे में खासियत ये है कि ये यदा-कदा होता है। कभी जल्दी, कभी देर से, कुछ दिनों के अंतराल पर, कुछ सप्ताह के अंतराल पर, कुछ महीनों के अंतराल पर, कभी कुछ ही घंटों में ठीक हो जाता है। कभी दो, चार दिन लंबा चल जाता है। तो ये अलग-अलग अवधि में जो माइग्रेन के, हेडएक के दौरे आते हैं ये कुछ हद तक तो आपकी जो आनुवांशिक थाती है जो माता-पिता से प्राप्त हुई है उसके द्वारा निर्देशित है। और कुछ हद तक जो वातावरणीय कारण हैं, एनवायरोनमेंटल कारण हैं उनसे, तो दोनों का मेल हुआ जेनेटिक्स का और एनवायरोनमेंटल का। आनुवांशिकता का और वातारण का जब मेल होता है तो किसी व्यक्ति को हेडएक का अटैक आता है किसी दिन। अब ये वातावरण के कारण भी अनेक होते हैं। किसी भी प्रकार की थकान, मेहनत का काम, एक्जरशन, चाहे वो शारीरिक हो या चाहे या बौद्धिक हो। खूब काम है, खूब मेहनत है,  किये हुए हैं, और जब वो कई दिनों की चकान इकट्ठा होती है, तो कुछ दिनों के अंतराल पर माइग्रेन का दौरा आ ता है। जरुरी नहीं की उसी दिन आये। आपके मानसिक तनाव की स्थिति पर निर्भर करता है। कितने दिनों से आप वो तनाव भोग रहे हैं, और फिर कुछ दिनों के बाद वो हेडएक एक लिबरेटर के रुप में केथार्सिस के रुप में आता है और आपको रेस्ट लेना पड़ता है मजबूरी में मानों कि प्रकृति ने कुछ प्रयास कर रखा है कि जो आपको फोर्स करती है आराम करने के लिये जब आपको जोर का माइग्रेन का हेडएक का अटैक आता है तो। तो शारीरिक थकान और काम, मानसिक थकान और तनाव कुछ खान-पान। खाने-पीने में कुछ ट्रिगर होते हैं, कुछ पदार्थ होते हैं जिनसे सब लोगों तो नहीं लेकिन कुछ लोगों में सिरदर्द का अटैक जल्दी आ जाता है। कुछ लोगों को दही से, छाछ, पनीर, चिज, वाईन, रेड वाईन, चॉकलेट, चाइनीज फूड जिसमें मोनोसोडियम ग्लूटामेट अर्थात् अजीनोमोटो डाला जाता है। ऐसे अनेक पदार्थ होते हैं लेकिन सब को नहीं जिसको नहीं होता वो खा सकता है। जिसको पता है कि मुझे ये खाने से होता है उसी को परहेज की जरुरत है बाकि को परहेज की जरूरत नहीं है तो कुछ खाद्य पदार्थ हो गए। फिर महिलाओं में मासिक धर्म, महावारी आने वाली है, नहीं आने वाली है, आ गई है, निकल गई है, तो जो ३० दिन की सायकल होती है उसमे कुछ खास दिन होते हैं उनको पता है महिलाओं को कि जब ये पीरियड आयेगा हमारे को हेडएक हो सकता है। नींद पूरी नहीं हुई, बहुत शोरगुल था, शादी ब्याह गये, बैंड बाजा था, डिस्को था, सिरदर्द हो गया। बहुत तेज लाईट थी, चूप गये, शापिंग में गये, गर्मी थी, थक गये थे, शोरगुल थी, कीर्तन था, रतजगा था, जागरण था देवी माता का, इन तमाम कारणों से लोगों का तात्कालिक रुप से प्रेसिपिटेट होता है, बशर्ते कि आपमें उस हेडएक को होने की जेनेटिक प्रवृत्ति पहले से मौजूद थी। तो आप इस प्रकार के तमाम तात्कालिक एनवायरोनमेंटल, वातावरण वाले कारणों के प्रति ज्यादा ससेष्टिबल हो जायेंगे, ज्यादा संवेदनशील हो जायेंगे। हो सकता है किसी दिन इन कारणों के बावजूद भी हेडएक न हो, और ये भी संभव है कि किसी दिन इनमें से एक भी कारण नहीं था फिर भी हेडएक हो जाये। दोनों तरह की बात रहती है। लेकिन जब दोनों की युती होती है तो सिरदर्द का अटैक आने कि माइग्रेन में आशंका बढ़ जाती है।

तो कुल मिलाकर हमने यह जाना कि माइग्रेन के जो कारण हैं वो कुछ हद तक आनुवांशिक है, कुछ हद तक वातावरण पर डिपेंड करते हैं, आपके लाइफ एक्सपीरियंस पर डिपेंड करते हैं। आपके तनाव पर, आपके काम के ऊपर भी निर्भर करते हैं, माइग्रेन एक प्रकार का प्रायमरी हेडएक है, यह अपने आप होता है और इस बीमारी के अंदर यदि खोपड़ी को खोल के देखा जाय, खैर खोल के देखना तो जिंदा इंसान में संभव नहीं है।

लेकिन आजकल सी.टी. स्केन और एम आर.आई की जाँचें आ गई है जिसमें मशीन के अंदर मरीज को घुसा देते हैं, और उसकी खोपड़ी नानाचित्र प्राप्त करते हैं, माइग्रेन के मरीजों में सी.टी. स्केन में, एम.आर.आई. में ब्रेन के चित्रों में कोई खराबी नहीं पाई जाती। और बायचांस यदि माइग्रेन के किसी मरीज की किसी अन्य एक्सीडेंट में मृत्यु हो जाये और उसका पोस्टमार्टम हो रहा हो उसकी ब्रेन में भी कोई खराबी देखने को नहीं मिलती। इसका मतलब कि माइग्रेन का जो हेडएक ब्रेन में से उठता है, उठता तो ब्रेन में से ही है। कहीं बाहर से नहीं आता। जो ब्रेन में से माइग्रेन का हेडएक हर समय नहीं जब भी बारी-बारी से उठता है। उस समय मस्तिष्क की रचना में कोई खराबी नहीं होती। लेकिन कार्यविधि में, फंक्शन में, फिजियोलॉजी में खराबी आती है। और ये खराबी अत्यंत सूक्ष्म स्तर पर होती है, माइक्रोस्कोपिक लेवल पर होती है कोशिकाओं के लेवल पर होती है। केमिकल्स के लेवल पर होती है। इलेक्ट्रिकल एक्टीविटी के लेवल पर होती है और जितनी भी सी.टी. स्केन और एम.आर.आई हैं वो केवल ब्रेन की रचना को देखते हैं लेकिन ये जो फंक्शनल चेंजेस हैं इनको नहीं पकड़ पाते सी.टी. स्केन और एम.आर.आई. वो खराबी रहती है लेकिन सी.टी. स्केन और एम.आर.आई उनको सिर के ऊपर कया करना या बांधना अच्छा नहीं लगता। कोई सार्थ सिर के मर अच्छा नहीं लगता प्रकार की जो संवेदनाए जिसको हम बोलते ना इन्द्रियों, संशय, गरी आर्गना खो दी इन्द्री, शान पाली ग्वाद की इन्द्री, कुछ खाने की इच्छा नहीं होती, उल्टी होने लग जाती है, नाकों की इन्द्री, कोई गथ अच्छी नहीं मानी स्पर्श की इन्द्री, कोई रहना अच्छा नहीं लगता। टब करना अच्छा नहीं लगता, दबवाना अच्छा नहीं लगता। ती मायन तमाम इन्द्रियां अतिसंवेदनशील (ओवरसिटीव) हो जाती है। और फिर उल्टी होना। माइग्रेन के हेडएक कदीरान बाते मरीज को उल्टी होती है या उनकी उल्टी औरत कि मिथलाता है और वो कुछ खाना नहीं खा पाते। और फिर एक और शर्त ये जो सारा वर्णन मैंने गिनाया माइग्रेन के सिरदर्द का अनेक घटी तक रहना चाहिये, प्रायः आये भाग में होना चाहिये। बहुत ज्यादा तीव्रता का होना चाहिये। अपक-अपक (पल्सेटिंग) होना चाहिये। लाईट पसंद नही होना, भोरगुल पसंद नहीं होना, उल्टी जैसा लगना। ये जो सारे गुण मैंने गिनाये ये गुण एक बार होना पर्याप्त नहीं है, दी बार होना पर्याप्त नहीं है, तीन बार होना पर्याप्त नहीं है, ऐसे अनेक-अनेक-अनेक अटैक आपको पिछले कई महीनों से आना चाहिये तब जाके हम बालेंगे कि तेरे को माइग्रेन है। इक्का-दुक्का बार हो जाये किसी इंसान को चाहे मारे गुण मिलते हो। नहीं भई तेरा सिरदर्द लगता तो है माइग्रेन जैसा पर अभी अपने को वेट करना पड़ेगा। देखते है। भविष्य में होता है कि नहीं। यदि बार-बार, बार बार, अनेक बार, अनेक महीनों तक होने लगे तब बोलेंग हाँ ये माइग्रेन है।

तो माइग्रेन की परिभाषा में उसका क्रोनिक होना जरूरी है, क्रोनिक मतलब दीर्घ अवधि का। और माइग्रेन की परिभाषा में उस सिरदर्द का बार-बार, बार-बार होना जरुरी है। एक या दो बार के हेडएक को माइग्रेन नहीं बोलते। कई लोग होते है जिनको जिंदगी में एक आध बार ही हेडएक हुआ था, कोई ५ साल पहले एक बार हुआ था, कोई १० साल पहले एक बार हुआ था, उसको माइग्रेन नहीं बोलेंगे। बार-बार होना चाहिये। और फिर बार-बार तो उसकी आवृत्ति बढ़ती चली जाती है।

जैसे-जैसे माइग्रेन की अवधि बढ़ती चली जाती है, पुराना होता चला जाता है। लोगों को जल्दी-जल्दी करें माइग्रेन के मरीज है जो आके बोलते हैं, कि साहब हमको पहले महीने में एक बार होता था, २ महीने में एक बार होता था। फिर जैसे-जैसे समय गुजरता गया जल्दी-जल्दी होने लगा। १५ दिन में होने लगा, हफ्ते में होने लगा, और आजकल तो ये हाल है कि कोई एक दो दिन ही अच्छे निकलते हैं, हफ्ते में २ दिन होने लगता है, हप्ते में 2 दिन होने लगता है। तो जब ये सारी हिस्ट्री, ये सारा वर्णन हम मरीज से पूछते हैं तो हम माइग्रेन का डायग्नोसिस बनाते हैं। कई मरीज हैं जो खुद होके ये सारा वर्णन बिना पूछे हमको बता देते हैं। क्या तकलीफ है? सिरदर्द होता है। बहुत सालों से हो रहा है। कभी इथर होता है। कभी इथर होता है। अचानक होता है, किसी भी समय हो जाला है। पर मैंने पायाकि जिस दिन में खाना नहीं खाउं, भूखा रहूँ, और जागरण हो जाए उस दिन होता है। और जिस दिन जोर का  दर्द होता है उस दिन तो मैं कोई काम नहीं कर सकता। कोई इपोटेंट पार्टी हो, पिकनिक हो, फंक्शन हो, मेरे को सबछोड़ना पड़ता है। और ऐसी इच्छा होती है सारा वर्णन उसने कर दिया खुद होके बिना पूछे। लेकिन सारे मरीज ऐसे नहीं होते। सब लोग अपनी स्टोरी इतने अच्छे से नहीं सुनाते। आकर बोलेंगे साहब बहुत जोर से सिर दुखता है, और जाके दूसरी-दूसरी बातें करने लग जायेंगे। मैंने फलाने डॉक्टर को दिखाया, उसने सी.टी. स्केन करवाया, ये दवाई ली, कोई फायदा नहीं हुआ। हम बोलते हैं रुको। पहले सिरदर्द का वर्णन तो करो। अगर वो नहीं वर्णन कर पाते हैं तो फिर ये तमाम सवाल जो मैंने अभी पाइंट गिनाये हमको खुद होकर पूछना पड़ते हैं। और उस तरह से हम डायग्नोसिस बनाते हैं। बहुत कम मरीजों में हमें कोई जांच कराने की आवश्यकता पड़ती है। हाँ, इसके बाद हम शारीरिक परीक्षण भी करते हैं जिसको हम न्यूरोलॉजिकल एक्जामिनेशन बोलते हैं। उसमें नाड़ी देखते हैं, ब्लड प्रेशर नापते हैं, आँख देखते हैं, आँख का पर्दा देखते हैं फंडस के द्वारा। और एक सामान्य न्यूरोलॉजिकल जाँच करते हैं। माइग्रेन के मरीजों में शारीरिक जाँच और जो न्यूरोलॉजिकल जाँच जो ठोंक बजाके और स्टेथोस्कोप लगाकर करते हैं। उसमें कोई खराबी नहीं मिलती। अर्थात् यदि मरीज (१७:५२) ​में पकड़ में नहीं आती है। इसीलिये माइग्रेन को प्रायमरी हेडएक बोला। और कोई लक्षण नहीं है, और कोई बीमारी नहीं हैं, बस अंदर से ब्रेन में से कुछ रासायनिक और केमिकल और इलैक्ट्रिकल परिवर्तनों की वजह से जो यदा-कदा आते हैं, कुछ-कुछ समय पर आते हैं, और जब उनका घड़ा भर जाता है तब आते हैं। और ये माइग्रेन का प्राथमिक कारण बनता है।

माइग्रेन का निदान, डायग्नोसिस हम डॉक्टर्स कैसे करते हैं। हमें कैसे मालूम पड़ा कि फलां व्यक्ति को माइग्रेन है या नहीं है। कोई मरीज अगर ये ​​सोचता है कि मेरा सी.टी. स्केन कराके पता लगा लो कि माइग्रेन है कि नहीं मेरा ई.ई.जी. करा के पता लगा लो कि माइग्रेन है कि नहीं, मेरा ब्लड टेस्ट करा के पता लगा लो कि मेरे को हेडएक काय कि वजह से हो रहा है। ऐसा कोई लेबोरेटरी टेस्ट नहीं होता। माइग्रेन है या नहीं है इसका फैसला केवल बातचीत, हिस्ट्री। मरीज के लक्षणों को हम सुनते हैं, सनते हैं, और बस फैसला हो जाता है कि तुम्हारा हेडएक माइग्रेन की वजह से है या किसी अन्य वजह से है।

और तुम्हारे केस में हमको सी.टी. स्केन और एम.आर.आई. की जरुरत है या नहीं है। यदि हिस्ट्री के आधार पर मेरा फैसला है, मैं लगभग ६६ प्रतिशत श्योर हूँ कि तुमको माइग्रेन है तो तुम्हारे कहने के बाद भी मैं तुमको मना कर दूंगा कि तुमको सी.टी. स्केन की जरुरत नहीं है। क्यूं पैसे बिगाड़ते हो। तो ऐसे क्या लक्षण होते हैं? माइग्रेन के लक्षणों में चार या पांच चीजों पर हम जोर देंगे। नंबर एक – माइग्रेन का सिरदर्द प्रायः आधे भाग में होता है। और अगर पूरे सिर में भी हो गया है और अगर आप पूछोगे तो मरीज बतायेगा कि हाँ साहब शुरुआत एक साइड से हुई थी कभी ईधर से, कभी ईधर से और जब वो बड़ता चला जाता है, तेज हो जाता है तो पूरे सिर में होने लगता है। पर १०० प्रतिशत नहीं। अधिकांश लोगों में एक लोगों में एक साईड पर होता है मगर कुछ लोगों में दोनों तरफ हो सकता है। एक तो पहला लक्षण ये हुआ।


दसरा लक्षण हुआ, कि ये जो सिरदर्द है ये झपक-झपक वाला होता है। अंग्रेजी में उसके लिये दो शब्द हैं थ्राबिंग और पल्सेटिंग। थ्राबिंग हेडएक, पल्सेटिंग हेडएक। मैं हिन्दी में बोलूं झपक-झपक वाला दर्द होता है। कोई लोग बोलते हैं ऐसा लगता है साहब अन्दर पस पड़ गया हो, पस झपकता है ऐसा हो रहा है, खून की नलियां झपकती है तो ये दूसरा केरेक्टर माइग्रेन के हेडएक का हुआ।
तीसरा केरेक्टर- ये जो हेडएक  होता है अत्यन्त तीव्र होता है। अब अत्यन्त तीव्रता की क्या परिभाषा? अत्यन्त तीव्रता की परिभाषा है कि वो इंसान जब उसे जोर का सिरदर्द हो रहा है अपना दैनिक कामकाज नहीं कर सकता। उसे जो भी काम करना है प्रायः छोड़ना पड़ता है ये अलग बात है कि कुछ लोगों को अगर मजबूरी हो और कोई बहुत इमरजेंसी काम हो और समहाउ उनके दर्द को सहनशीलता की ताकत बहुत ज्यादा हो उनकी पर्सनालिटी बहुत स्ट्रोंग हो तो कुछ लोग माइग्रेन में भी काम कर सकते हैं लेकिन ज्यादातर लोग सो जाते हैं, आँख बंद कर लेते हैं, काम छोड़ना पड़ता है कुछ घंटों के लिये। असहनीय पीड़ा होती है। बहुत तेज दर्द होता है। काम जैसे तैसे कर तो लें लेकिन बहुत मुश्किल आती है। तो माइग्रेन का दर्द अत्यंत तीव्रता का होता है।

और चौथा उसका जो केरेक्टर कहलायेगा वो ये है कि उसकी अवधि अनेक घंटो की होती है। ऐसा नहीं कि ५, १० मिनट हुआ और चला गया। ऐसा नहीं कि १५ मिनट हुआ और चला गया। उसकी अवधि ४ घंटे, ६ घंटे से लेकर २४ घंटो, ७२ घंटो तक हो सकती है। तो लंबी अवधि का कुछ यानि कुछ घंटों से लेकर २, ३ दिन तक का वो हेडएक होता है माइग्रेन का।

इसके बाद एक दो गुण और है माइग्रेन के। जो उसकी पहचान में आते हैं। और वो हैं कि जब किसी इंसान सिरदर्द हो रहा हो अगर वो माइग्रेन की वजह से है तो उस दौरान में उसे लगता है कि ये जो लाइटे जल रही है ये बंद कर दो मेरे को डार्क रुम चाहिये कोई धूप का चश्मा दे दे, कोई पर्दे बंद कर दे, कोई कमरा डार्क रुम कर दे लाइट बंद कर दे और आवाजें तमाम बंद कर दो, शांत कमरा चाहिये, रेडियो बंद कर दो, टी.वी. बंद कर दो। फोन को पावर ऑफ कर दो। कोई बोलो मत, बात मत करो, चिल्लाओं मत, ये बच्चा क्यों रो रहा है। तो किसी भी  प्रकार का शोरगुल माइग्रेन के हेडएक के दौरान व्यक्ति को सहन नहीं होता। उन्हें किसी प्रकार की गंध अच्छी नहीं लगती।

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