सिरदर्द के बहुत से कारण होते हैं। और उसमें से कुछ प्रकार के हेडएक प्रायमरी हेडेक(प्राथमिक सिरदर्द) कहलाते हैं। जिनमें अंदर ब्रेन में कोई खराबी नजर नहीं आती फिर भी अंदर से बार-बार सिरदर्द उठता है। इसमें से जो दो प्रमुख दो प्राथमिक प्रकार के सिरदर्द थे माइग्रेन और टेंशन टाइप हेडएक उनकी चर्चा हमने अन्य लेख में की हैं | विभिन्न प्रकारों के प्राथमिक सिरदर्द निम्न हैं –
विषय सूचि
आइस्क्रीम हेडएक’ या ‘स्टेविंग हेडएक
क्लस्टर हेडेक
आज हम कुछ कम बहुतायत से पाए जाने वाले प्राथमिक सिरदों की चर्चा करेंगे। उनमें से पहला है- क्लस्टर हेडेक । क्लस्टर हेडेक बहुत कम मिलता है पर बड़े अजीब से लक्षण होते हैं। जो आसानी से पहचान में आ जाते हैं। क्लस्टर हेडेक जपरी तीर पर कभी-कभी माइग्रेन से मिलता-जुलता लगता है। क्योंकि इसमें एक ही हिस्से में सिरदर्द होता है। माइग्रेन तो फिर भी कभी-कभी फैल जाता है दूसरी तरफ। क्लस्टर हेडएक कभी नहीं फैलता एक ही तरफ होता है। माइग्रेन तो आगे से लेकर पीछे तक होता है। क्लस्टर हेडएक केवल आगे के हिस्से में ये जो फ्रंट बोन में जो आँख का कोटर है आँख है यहाँ तक होता है। क्लस्टर हेडएक लघु अवधि का होता है। माइग्रेन तो अनेक घंटों तक चलता है, एक दो दिन तक चलता है। क्लस्टर हेडएक आधा घंटा, एक घंटा चलता है। माइग्रेन में उल्टीयां होती है। क्लस्टर हेडएक में उल्टीयां नहीं होती। माइग्रेन में ऐसा लगता है लाइट बंद कर दो, आवाज बंद कर दो। क्लस्टर हेडएक में ऐसा नहीं होता। क्लस्टर हेडएक आधे घंटे का, एक घंटे का, एक ही तरफ होने वाला, बहुत तीव्रता का, अत्यंत तीव्र दर्द होता है। और इसमें ये जो आँख है जिस साइड का सिर दुख रहा है उथर की आँख लाल हो जाती है। उस आँख पर कभी-कभी हल्की सी सूजन आ सकती है। और उस आँख से कभी-कभी पानी पड़ने लगता है, और उचर की नाक से कभी-कभी पानी पड़ सकता है। और आधा घंटा, एक घंटे में ये सिरदर्द मिट जाता है। बाकी २३ घंटे, साढे २३ घंटे इंसान नॉर्मल रहता है। और फिर अगले दिन लगभग उसी समय पर प्रायः वैसा ही सिरदर्द इंसान को फिर होता है। और फिर तीसरे दिन, और फिर चौथे दिन, और फिर पांचवे दिन और ऐसा चलता है दस दिन, पंद्रह दिन, बीस दिन। और फिर उसके बाद ये गायब हो जाता है। और गायब रहता है ११ महीने तक। और अगले साल उसी मौसम में ग्यारवां महीने के बाद वो फिर आता है। और फिर मेहमान बनकर घर में घुस के बैठता है १५ दिन, २० दिन, २५ दिन, ३० दिन उसी तरफ, साइड चेंज नहीं करता। और फिर उन ३० दिनों तक वो रोज घंटी बजायेगा। और रहेगा केवल आधा घंटा, एक घंटा और एक महीने के बाद वो विदा हो जायेगा, चला जायेगा। ये हेडएक क्लस्टर हेडएक कहलाता है। क्लस्टर हेडएक माइग्रेन से थोड़ा बहुत मिलता-जुलता है। लेकिन जैसा कि आपने अनुभव किया होगा। दोनों के लक्षणों में बहुत सारे अंतर भी है। क्लस्टर हेडएक में जब बहुत तीखा दर्द होता है उस दौरान में मरीज की अगर हम जाँच करें तो पायेंगे कि आँख लाल है, आँख पर सूजन है, आँख की पुतली उस साइड पर जिधर दर्द हो रहा है छोटी हो गई है, उघर से पानी गिर रहा है। उधर की नाक बंद हो गई है, नाक से पानी गिर रहा है। इसके अलावा मरीज की शारीरिक जाँच में, न्यूरोलॉजिकल जाँच में कोई खराबी नहीं मिलती। और माइग्रेन के समान क्लस्टर हेडएक में भी यदि हेडएक के दौरान और हेडएक के बाद में दिमाग का सी.टी. स्केन कराओ, एम.आर.आई. करवाओ कोई खराबी नहीं मिलती क्योंकि यह भी प्रायमरी हेडएक है। प्राथमिक सिरदर्द है। अपने आप भीतर से, ब्रेन में से पैदा होता है अत्यंत सूक्ष्म स्तर पर मालीक्यूल के लेवल पर कोशिकाओं के लेवल पर, न्यूरोट्रांसमीटर्स के लेवल पर, रासायनिक पदार्थों के स्तर पर कोई ना कोई खराबी आती है जो एक अटैक के रुप में आती है बाकि समय इंसान नॉर्मल रहता है। और ये क्लस्टर हेडएक होता है। इसके इलाज में तात्कालिक उपचार के लिये एक तो ऑक्सीजन सुंघाने से लाभ होता है। बड़े आश्चर्य की बात है। यदि किसी तरह से आपके घर के पास में काई अस्पताल है या आपके घर में ऑक्सीजन है और आप तुरंत जैसे ही हेडएक चालू हुआ मरीज ऑक्सीजन सूंघने लगे तो कुछ ही मिनटों में उसका हेडएक ठीक हो जाता है। या उसको हम ट्रिप्टॉन नाम की औषधि का इंजैक्शन दे दें या उसको नाक से स्प्रे के रुप में दवा दे दें तो भी हेडएक जल्दी ठीक हो जाता है।
इसके अलावा बाकि जो दवाईयाँ है टेबलेट खाना यो कोई काम की नहीं। क्योंकि एक घंटे में तो वैसे ही ठीक हो जायेगा अगर आप कोई गोली मुँह से खाओगे भी तो वो पेट में जायेगी, एब्सार्य होगी, उसका असर ही आधे एक घंटे बाद आता है। तो क्लस्टर हेडएक चूंकि आधे एक घंटे में ठीक हो जाता है। इसलिये तात्कालिक रूप से उसको आराम देने के लिये मुंह से लेने वाली टेबलेट की उपयोगिता सीमित है। ऑक्सीजन सूंघने से या कुछ खास प्रकार के इंजैक्शन लगाने से या कुछ खास औषधि को नाक से स्प्रे के रुप में सूंघने से जरूर जल्दी आराम मिलता है।
इसके बाद मरीज कहता है वो तो ठीक है मैंने आराम कर लिया लेकिन मैं नहीं चाहता कि ये जो मेहमान महीने भर के लिये आ गया है ये महीने भर तक रहे। मेरे को मालूम है पिछले दो साल से ऐसा ही हो रहा है। मैं चाहता हूँ ये जल्दी विदा हो जाए। उसके लिये भी कुछ इलाज है और उसमें कुछ औषधियाँ है जिसे प्रेडनीसेलोन जिन्हें स्टेराइड्स कहते हैं, या फिर टोपाइरामेट या वेरापामिल या लीथियम कार्बोनेट इस प्रकार की कुछ औषधियाँ हैं जो डॉक्टर शुरु करते हैं और उनको कुछ की दिनों में लेने से जो हेडएक अदरवाइस १५ दिन तक रहता, महीने भर तक रहता वो जल्दी ही पांच या सात दिन में गायब हो जाता है। इसके बाद मरीज पूछता है यहाँ तक तो ठीक है। अब अगले साल ११ महीने बाद मेरे को या ६ महीने बाद मेरे को ये हेडएक नहीं चाहिये। डॉक्टर कहते हैं सॉरी इसका अभी हमारे पास कोई इलाज नहीं हैं। अगले साल अगर फिर ये आयेगा, या ६ महीने बाद आयेगा, या ८ महीने बाद आयेगा या जल्दी आयेगा तब आना हमारे पास हम फिर से यही इलाज करेंगे लेकिन यह भविष्य में न आए क्लस्टर हेडएक इसका कोई इलाज अभी नहीं निकला है। कुछ मरीजों में क्लस्टर हेडएक इस तमाम इलाज के बाद भी ठीक नहीं होता। बार-बार, बार-बार दिन में एक बार नहीं, दिन में दो बार, तीन बार होता है, बहुत देर तक बना रहता है। महीने भर बाद भी गायब नहीं होता। या गायब भी हो गया तो एक महीने में ही आ जाता है, पन्द्रह दिन में फिर आ जाता है। ये बड़े कठिन मरीज होते हैं। थोड़ा सा प्रतिशत होता है इनका। इन लोगों में कुछ नया इलाज निकला है, जिसमें की ब्रेन के बाहर यहाँ पीछे की तरफ या ब्रेन के भीतर कुछ विद्युतोद डालते हैं, इलैक्ट्रोड डालते हैं, बिजली के वायर डालते हैं। बैटरी लगाते हैं, पेसमेकर लगाते हैं, करंट डालते हैं और उनसे ये हेडएक कंट्रोल में आता है ये नया इलाज पेसमेकर के द्वारा, इलैक्ट्रिकल करंट के द्वारा केवल उन थोड़े से क्लस्टर हेडएक के मरीजों के लिये जिनमें जो आम तौर पर दिया जाने वाला उपचार है वह असफल हो जाये, फैल हो जाये तो देते हैं। आज हम कुछ ऐसे प्रायमरी हेडएक की चर्चा कर रहे हैं, जो तुलनात्मक रुप से कम पाये जाते हैं, अनकॉमन हैं, रेयर हैं, दुर्लभ हैं। उनमें से पहला हमने चर्चा करी क्लस्टर हेडएक की।
पेरोक्सिसमल हेमी क्रेनिया
अब मै कुछ दो तीन और लद्यु वर्णन कुछ और प्रायमरी हेडएक के संक्षेप में बताऊंगा। संक्षेप में इसलिये भी की ये बहुत कम पाये जाते हैं। उनमें से एक प्रकार का हेडएक है उसको बोलते हैं ‘पेरोक्सिसमल हेमी क्रेनिया’। ‘पेरोक्सिसमल हेमी क्रेनिया’। हेमी क्रेनिया मतलब आधा सिर। हेमी यानि आधा, क्रेनिया यानि सिर। और पैराक्सिसमल मतलब कोई चीज जो प्रतिदिन नहीं होती है। अभी, अभी, रुक-रुक के अलग-अलग अंतराल पर होती है, उसके लिये अंग्रेजी भाषा में एक विशेषण है ‘पैराक्सिसमल’। एडजेक्टिव है पैरोक्सिसमल जो चीज रुक-रुक के होती है। तो पैराक्सिसमल हेमीक्रेनिया। प्रायः महिलाओं में होता है। अधेड़ उम्र की महिलाओं में होता है। बहुत कम पाया जाता है, बहुत रेयर है, बहुत दुर्लभ है। और इसमें अचानक तीखा दर्द होता है। सिर के आधे भाग में प्रायः पीछे की तरफ। आगे की तरफ नहीं। क्लस्टर हेडएक में आगे होता है। पैराक्सिसमल हैमी क्रेन में पीछे होता है और कुछ ही मिनट रहता है, दो मिनिट, तीन मिनिट, चार मिनिट, पांच मिनिट बहुत तीखा, बहुत तेज दर्द। कभी-कभी आँख लाल हो सकती है। कभी-कभी पानी पड़ सकता है। कभी-कभी उसी साइड पर माथे पर पसीना आ सकता है। और दिन में कई-कई, कई-कई बार, पांच बार, दस बार, पन्द्रह बार दिन में आयेगा। अच्छे भले काम कर रहे हैं, किचन में काम कर रहे हैं, आहहहहह… सिर पकड़ के बैठ जायेगी महिला। बहुत तीखा दर्द है। थोड़ी देर आँख बंद करेगी, पांच मिनिट में चला जायेगा। और उसको पता है एक घंटे बाद फिर आ सकता है। दो घंटे बाद फिर आ सकता है। जब भी आयेगा इधर ही आयेगा। बहुत तीखा होगा। लेकिन दो-चार मिनिट रहेगा। और चला जायेगा। ‘पैराक्सिसमल हैमी क्रनिया’ यह एक प्रायमरी हेडएक है। खोपड़ी की जांच करालो अंदर से कोई खराबी नहीं निकलती। बहुत कम पाया जाता है। और इसके इलाज में इंडोमिथासिन नाम की औषधि होती है टेबलेट के रुप में आती है, केप्सूल के रुप में आती है वो देने से बड़ा अच्छा रिजल्ट मिलता है। बीमारी जड़ से तो नहीं जाती लेकिन टेंपररी आराम मिल जाता है और कई लोगों में एक बार टेम्पररी आराम मिल जाये तो एक दो सप्ताह, तीन सप्ताह गोली खाई फिर वो बीमारी दब जाती है। हो सकता हैं भविष्य में आ जाये। लेकिन एटलिस्ट तात्कालिक आराम अच्छा मिलता है ‘पैरोक्सिसमल हेमी प्रेनिया’ नामक प्राथमिक सिरदर्द में इंडोमिचासिन नाम की औषधि देने से।
कुछ और प्रायमरी हेडएक होते है वो भी प्रायः एक भाग में होते हैं। और उनमें भी प्रायः या तो आँख लाल होती है, या पानी निकलता है, या पसीना आता है। और उनमें से कुछ की अवधि तो और कम होती है। ‘पैरोयिससमल हेमी क्रेनिया’ तो दो-चार मिनिट चलता था। क्लस्टर हेडएक एक घंटा चलता था। माइग्रेन चार से छः, बारह घंटे, अड़तालीस घंटे चलता था। कुछ और हेडएक होते हैं प्रायमरी टाइप के जो कुछ सेकंड, चलते हैं और बार-बार, बार-बार आते हैं। इनमें इंडोमिवासिन देते हैं। लेकिन इनमें प्रायः इलाज में अच्छी सफलता नहीं मिलती।
सौभाग्य से ये सिरदर्द जो कि प्रायमरी टाइप के हैं बहुत कम पाये जाते हैं। और इनका संबंध ट्रायजेमिनल नर्व से जोड़ा जाता है। ट्रायजेमिनल नाम की एक केनियल नर्व होती है, ट्रायजेमिनल नर्व। जैसा कि मैंने कहा था हमारे खोपड़ी से अंदर जो ब्रेन है, ब्रेन से निकलने वाली बहुत सारी नाड़ियां होती है, उनको क्रेनियल नर्स बोलते हैं। और बारह जोड़े होते हैं। उसमें से पांचवे नम्बर का जोड़ा होता है, उसको ट्रायजेमिनल नर्व बोलते हैं। और जब उसके अंदर कोई प्रायमरी हेडएक की बीमारी आती है, तो इस प्रकार के दर्द लघु अवधि के होने लगते हैं। ये भी प्रायमरी हेडएक होते हैं।
प्रायमरी एक्सरसाइज हेडएक
प्रायमरी एक्सरसाइज हेडएक
कुछ लोगों को एक और प्रायमरी हेडएक होता है जो एक्सरसाइज से होता है। उन्हें पता है कि अगर वो रनिंग करेंगे, एक्सरसाइज करेंगे, जिम जायेंगे, उनको हेडएक होगा इसको हम ‘प्रायमरी एक्सरसाइज हेडएक’ बोलते हैं।
आइस्क्रीम हेडएक’ या ‘स्टेविंग हेडएक
कुछ लोगों को आइस्क्रीम खाने से होता है, जैसे ही उन्होंने कोई ठंडी चीज रखी उनको एकदम तीखा चुभता लगता है कुछ सेकंड के लिये। और फिर निकल जाता है। इसको ‘आइस्क्रीम हेडएक’ या ‘स्टेविंग हेडएक’ बोलते हैं। ये भी बहुत कम देखने को मिलता है। ये भी एक प्रकार का प्रायमरी हेडएक है। और कुछ लोगों में यौन गतिविधि से सेक्स या संभोग करने के दौरान या संभोग के उपरांत। सेक्स के दौरान या सेक्स के उपरांत लोगों को, पुरुष को या महिला को बहुत तीखा सिरदर्द होता है। और वो वैचारे डरते हैं करने से क्योंकि उन्हें पता है कि भयंकर सिरदर्द होगा। यह भी एक प्रकार का प्रायमरी हेडएक है। प्राथमिक हेडएक है। और ये जितने में मैंने बताये कि ठंडी चीज खाने से, या यौन गतिविधी से, या एक्सरसाइज करने से जो प्रायमरी हेडएक्स होते हैं ये बहुत कम होते हैं। बहुत दुर्लभ होते हैं। बहुत थोड़े से लोगों में होते हैं। पर हैं प्रायमरी हेडएक, प्राथमिक हेडएक, ब्रेन में और कोई खराबी नहीं हैं। और इन हेडएक्स में भी इंडोमिथासिन औषधि लेने से फायदा होता है। और यदि आपको मालूम है कि फलां-फलां गतिविधियों से हेडएक होता है तो आप एक घंटा पहले वो टेबलेट ले लें। तो इस प्रकार के प्रायमरी हेडएक्स को रोका जा सकता है।
हिपनिक हेडएक
एक और प्रायमरी हेडएक होता है। उसे ‘हिपनिक हेडएक’ बोलते हैं। ये भी बहुत रेयर है। बहुत दुर्लभ है। बहुत कम पाया जाता है। अनकॉमन है। ‘हिपनिक’ का मतलब है नींद। और ये प्रायः ओल्ड एज में वृद्धावस्था में होता है। और ये अचानक ये लोग रात को नींद में से उठते हैं, ओल्ड पीपुल और उनको तीखा सिरदर्द रहता है जो आधा घंटा, एक घंटा रहता है। नींद में ही उठता है। और इन लोगों को लिये भी लिथियम या कुछ अन्य औषधियां होती हैं। जिन्हें देने से इन्हें आराम मिलता है।
ये जो अनकॉमन वैरायटी के प्रायमरी हेडएक हैं। ये तुलनात्मक रुप से बिनाईन हैं। बिनाईन का मतलब ज्यादा नुकसानदायक नहीं है। खतरनाक नहीं है। इनमें इंसान की जिंदगी को खतरा नहीं रहता। उसकी सेहत को भी खतरा नहीं रहता। पीड़ा जरूर रहती है। दुःख जरुर भोगना पड़ता है। लेकिन ये तमाम प्रायमरी हेडएक जो कि दुर्लभ है। प्रायः बिनाईन है, ज्यादा नुकसानप्रद नहीं हैं। ज्यादा डेंजरस नहीं हैं। और अंत में इन्हीं प्रायमरी हेडएक्स के साथ एक और दर्द की चर्चा मैं करूंगा जो कि सिरदर्द की श्रेणी से थोड़ा अलग है। लेकिन कुछ हद तक मिलता-जुलता है। और उस बीमारी का नाम है, ट्रायजेमिनल न्यूरेल्जिया।
ट्रायजेमिनल न्यूरेल्जिया
ट्रायजेमिनल न्यूरेल्जिया। अभी एक मिनिट पहले मैंने कहा था कि पांचवे नम्बर की क्रेनियल नर्व जो ब्रेन से निकलती है, उसका नाम ट्रायजेमिनल है। जैसे त्रिशूल में तीन शूल होते हैं। उसी प्रकार ये जो पांचवे नम्बर की नाड़ी जब ब्रेन से निकलती है | ( ट्रायजेमिनल न्यूरेल्जिया के बारे में एक अन्य लेख पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें |)
उसमें त्रिशूल के माफिक तीन शाखाए होती हैं। इसीलिए उसका नाम पड़ा ट्रायजेमिनला ‘ट्राय’ मतलब तीन और ‘जेमिनल’ मतलब जिसकी तीन उगम है। तो ये नाडी जब ब्रेन से निकलती है। तो एक सिंगल नर्व के रूप में निकलती है। मगर निकलने के पहले दो तीन भागों में विभाजित होती है दोनों तरफ। और खोपड़ी की तीन अलग-अलग छेदों में बाहर आती है। जो पहला भाग है दो इचर ऊपर के हिस्से को सप्लाई करता है। यहाँ कि संवेदनाओं को ग्रहण करके बेन तक ले जाता है। जो दूसरा भाग है वो गाल गाल के इतने हिस्से की संवेदनाओं को ओर अंदर के ब्रेन तक ले जाता है। और जो तीसरा भाग है वो जबड़े की हिस्से की संवेदनओं को ग्रहण करके भीतर नेन तक ले जाता है। अब कल्पना कीजिये कि ये जो नर्व है इसके तीनों हिस्सों में से किसी एक भाग पर कोई डेमेज आ गया प्रायमरी। कोई कारण नहीं: कभी कभी कारण हो सकता है। मगर बहुत से लोगों में एम आर. आई करने पर कोई कारण नहीं मिलता। अचानक से इन लोगों को चेहरे पर दर्द होता है। और चेहरे के तीन भाग गये। पहला भाग, दूसरा भाग और तीसरा भाग। इन तीनों में से किसी एक भाग में यह दर्द उठता है। ये दर्द उस क्रेनियल नर्व के भीतरी भाग से उठता है। अर्थात् यहाँ कोई रोग नहीं है। यहाँ कोई रोग नहीं है, यहाँ कोई रोग नहीं है मगर चेहरे पर तीखा दर्द हो रहा है। और ये दर्द क्यों हो रहा है। कि चेहरे से दर्द की और पर्श की तमाम संवेदनाओं को ग्रहण करके ब्रेन तक ले जाने वाली ये जो ट्रायजेमिनल नवं है, भीतर ही भीतर, अंदर ही अंदर खोपड़ी के अंदर उसमें कहीं कोई खराबी आ गई है जो इतनी सूक्ष्म है कि एम.आर आई. में नहीं दिखती। लेकिन उस खराबी की वजह से उस नर्व में बीच-बीच में करंट पैदा होती है। असामान्य विद्युत गतिविधि। और यो असामान्य विद्युत गतिविधि जब ब्रेन तक पहुंचती है। तो ब्रेन को ऐसा लगता है कि चेहरे पर से दर्द आ रहा है। क्योंकि वो तो बाहर से ही संवेदनाएं लेकर आती है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को चेहरे पर तीखा दर्द होता है। या तो इस भाग में या इस भाग में या इस भाग में। और इस बीमारी को कहते हैं ट्रायजेमिनल न्यूरेल्जिया। ट्रायजेमिनल न्यूरेल्जिया का दर्द बहुत ज्यादा तीव्र होता है। असहनीय होता है। सबसे तीव्रतम दर्दी में से एक है द्रायजेमिनल न्यूरेल्जिया का दर्द। जब उठता है इंसान तड़प उठता है, जो काम कर रहा हो यो छोड़ना पड़ता है। वो सिर दबाकर यू बैठ जाता है। चेहरा उसका विकृत हो जाता है दर्द के मारे। और ये दर्द कुछ की सेकंड रहता है, आधा मिनिट रहता है, एक मिनिट रहता है, बंद हो जाता है, दिन में बार-बार होता है, अनेक बार होता है। पांच बार, दस बार. पन्द्रह बार, बीस बार। और कुछ करने से होता है, कभी-कभी अपने आप होता है। लेकिन क्या करने से होता है? छूने से। उस हिस्से को टच कर लिया, ब्रश करने लग गये, पानी पीने लग गये, खाना खाने लग गये, टॉवेल से मुंह पोछने लग गये, चुंबन करने लग गये। किसी भी तरह से यहाँ कोई स्पर्श हुआ, टच हुआ, कोई चीज लगी, हवा लगी, पानी लगा। ये मरीज डरे-डरे रहते हैं। आपके समाने बैठे बात कर रहे हैं और उनको डर लगेगा कोई मक्खी आकर न बैठ जाए, उन्हें लगेगा मुझे कोई छू ना दे मेरे चेहरे को, कुछ टच ना हो जाये। कहीं जोर से पंखे की हवा ना लग जाये। किसी भी प्रकार की संवेदना, स्पर्श की उनके चेहरे पर यदि पड़ती है तो ये दर्द पैदा होता है। कुछ सेकंड रहता है। बार-बार आता है, जितनी बार छूएंगे, उतनी बार होगा। इन लोगों का खाना पीना दुभर हो जाता है। डरते हैंभोजन देखकर की में खाउं कैसे? बड़ी मुश्किल से दूसरे गाल में भर कर खाते हैं कहीं इधर ना चला जाए भोजन यापानी। दाढी बनायेंगे तो एक तरफ की दाढ़ी नी बनाएंगे, एक तरफ की बनाएंगे इधर तो हम टच ही नहीं कर सकते।बाल बनायेंगे तो एक ही तरफ के बाल बनायेंगे। इधर तो हम टच ही नहीं कर सकते। ब्रश करेंगे तो इधर के दांत देरह जायें हम हिम्मत नहीं कर सकते इघर बनाने की। इस तरह के जो टच होते हैं. स्पर्श होते है उनके लिये हमारेमेडिकल में एक शब्द होता है ‘ट्रिगर’। जैसे बंदूक का ट्रिगर होता है ना, गोली का। वैसे ही ये जो टच है ये ट्रिगर है।जहाँ टच हुआ दर्द ट्रिगर हो जायेगा। गोली छूट जायेगी। गोली के माफिक दर्द उठता है। करंट के माफिक ददं चुभता है।ये बीमारी है ट्रायजेमिनल न्यूरेल्जिया। आम बोलचाल की भाषा में करें तो ‘चेहरे की नस का दर्द, चेहरे की नवं का दर्द, चेहरे की नाड़ी का दर्द। पांचवे नम्बर की नाड़ी का दर्द। ट्रायजेमिनल नाड़ी का दर्द। जो चेहरे के तीन भागों में किसी एक भाग में होता है। और बहुत तीखा होता है। और ट्रिगरिंग होता है। उसको कोई चीज ट्रिगर करती है। कोई भी स्पर्श उसे ट्रिगर करता है। चेहरे के उस भाग के अंदर। इन मरीजों में हम एम आर आई. कराते हैं। कुछ मरीजों ऐसा दिखता है कि अंदर ब्रेन के भीतर वो जो पाचवे नम्बर की नवं जो ब्रेन से निकल रही है, वहाँ पर कुछ चीज है जो उस नदं को दबा रही है, कोई खून की नली है, ऐसा कभी-कभी दिखाई पड़ जाता है। अधिकांश मरीजों में ट्रायजेमिनल न्यूरेल्जिया का उपचार कुछ औषधियां देकर करते हैं। और सबसे कारगर और सस्ती और सुरक्षित औषधि है, ‘कार्बामाजापिन’। ‘कार्बामाजापिन’ १०० मि.ग्रा. दिन में तीन बार से बढ़ाते-बढ़ाते २०० मि.ग्रा. तीन बार, ३०० मि. ग्रा., ४०० मि.ग्रा. तीन बार तक जाते हैं। और अधिकांश लोगों में इस गोली को लेने से ट्रायजेमिनल न्यूरेल्जिया का दर्द, चेहरे की नाड़ी का दर्द, पांचवे नंबर की नाही का दर्द जो स्ट्रिक्टली एक ही साइड होता है या तो राइट में या लेफ्ट में कभी साइड वेज नहीं करता। यो दर्द का माजापिन’ नामक औषधि को लेने से दब जाता है, मिट जाता है, कम हो जाता है, जड़ से नहीं जाता। जब तक गोली खाते रहेंगे, दर्द दबा रहेगा। कब तक खाएं? हमेशा खाओ। का तक? अनिश्चितकाल लक खाओ। हम नहीं जानते। और जब कुछ सप्ताह तक कुछ महीने तक लगातार औषधि लेने से वो दर्द दब जाता है। तब हमारी सलाह से और कई बार मरीज खुद ही धीरे-धीरे उस औषधि को कम करते हैं। और ये पाते हैं कि अरे गोली तो छुट गई। यो ग्यारन्टी हम नहीं लेते कि आपका दर्द पक्का मिट जायेगा। बहुत से लोगों मेंट्रायजेमिनल न्यूरेल्जिया की बीमारी में ऑटोमेटिक उतार-चढ़ाव कुछ महीनों के अंतराल में पर आते रहते हैं। और हो सकता है वो गोली छूट गई दो महीने लेने के बाद। लेकिन ये ग्यारन्टी नहीं कि दो महीने बाद फिर नहीं आयेगा। फिर वहीं गोली लो, फिर कुछ महीनों तक लो। और कुछ लोगों में तो नहीं छुटती। बरसों खाना पड़ती है। पर ठीक है क्या बुराई है? अत्यंत सुरक्षित गोली है। ज्यादा महंगी नहीं है। सेफ है। साइड इफेक्ट नहीं है। दुष्प्रभाव नहीं हैं। फायदा अच्छा है। तो ट्रायजेमिनल न्यूरेल्जिया के मरीज ‘कार्बामाजापिन’ नाम की औषधि अनेक वर्षों तक खाते हैं। अनेक वर्षों तक खाते हैं। जैसे कि मिर्गी के मरीज, ऐपिलेप्सी के मरीज भी इसी औषधि को लेते हैं और उनको भी अनेक वर्षों तक लेने के बाद भी कोई नुकसान नहीं होता। ट्रायजेमिनल न्यूरेल्जिया का उपचार औषधि द्वारा संभव है। कुछ मरीजों में यदि इस गोली से पर्याप्त लाभ नहीं होता तो उसके साथ जोड़ने के लिए कुछ औषधियां और हैं उदाहरण के लिए- गावापेंटीन, प्रिगाबालिन, लायोरिसाल या लायोफेन, एमिट्रिष्टीलिन, ऐसी कुछ दर्द निवारक औषधियां या नर्व की करंट सक्रियता हो कम करने वाली औषथियां हम देने से ट्रायजेमिनल न्यूरेल्जिया का अच्छा लाभ होता है। बहुत थोड़े से लोगों में जिनमें ये दवाईयां भी फैल हो जाती है, कुछ इंजेक्शन लगाते हैं चेहरे के ऊपर एक लम्बी सुई होती है। गहराई तक जाती है और जाके वो जो नर्व पांचवे नंबर की नई जिस छेद से बाहर आ रही थी वहाँ तक वो हमारी सुई पहुँचती है और जाके उस नर्व को सुन्न कर देती है। सुन्न करने से वो व्यक्तिा का चेहरा भी सुन्न होता है और उसका दर्द भी दब जाता है। उसको अच्छा तो नहीं लगता, बड़ा अजीब लगता है। ये चेहरा, अब ठीक है दर्द चला गया लेकिन चेहरा सुन्न हो जाता है। या फिर कुछ मरीजों में इंजैक्शन तो नहीं लगाते, कुछ तरेंगे आती है अल्ट्रासाउंड देव्स होती है, रेडियोफ्रीक्वेंसी तरंगें होती है। और उनको फोकस करके एसे लगाते हैं, कि वो इंजैक्शन जैसा ही काम करती हैं ये जितने भी इंजैक्शन वाले उपचार है इनका असर परमानेंट नहीं होता। कुछ महीनों के लिये रहता है, बाद में पुनः दर्द आ सकता है। पुनः ये इंजेक्शन या या अल्ट्रासाउण्ड या रेडियोफ्रीक्वेंसी की तरंगों का उपचार किया जा सकता है। और फिर इससे भी फायदा ना हो तो बहुत थोड़े से लोगों बड़ा ऑपरेशन करते हैं। खास तौर से उन मरीजों में जिनमें एम.आर.आई. जब जाँच कराई थी खोपड़ी की और अंदर पाया था कि वो पांचवे नंबर की नाड़ी के चारों तरफ कुछ दबाव पड़ रहा है, कोई खून की नली उससे चेंटी हुई है, चिपकी हुई है, छू रही है उसको खोलकर उस दबाव को दूर कर देते हैं। सौभाग्य से इस बड़े ऑपरेशन की आवश्यकता बहुत कम मरीजों में पड़ती है। अधिकांश लोग ‘कार्बामाजापिन’ नामक औषधि से ट्रायजेमिनल न्यूरेल्जिया बीमारी में लाभ पाते हैं।
तो आज हमने चर्चा करी कुछ ऐसे प्रायमरी हेडएक, प्राथमिक सिरददों की जो तुलनात्मक रुप से कम पाये जाते है। दुर्लभ हैं। लेकिन हैं प्रायमरी हेडएका उनमें प्रायः जांच में कोई खराबी नहीं मिलती। और इनमें से अनेक का उपचार संभव है। कुछ का उपचार संभव नहीं हैं। और केवल सिम्टोमेटिक ट्रीटमेंट या लाक्षणिक इलाज देना पड़ना पड़ता है। और अंत में एक मिनिट ओर- किसी भी प्रकार के सिरदर्द के मरीज में, मैं ‘रेड फ्लेग्स’ की चर्चा करना चाहूँगा। ‘रेड फ्लेग’ का मतलब होता है, लाल झंडी, खतरे की झंडी। कोई भी मरीज जब सिरदर्द के लक्षण लेकर डॉक्टर के पास आता है तो डॉक्टर हमेशा इस बात को लेकर चौकन्ना रहता है इस मरीज को कोई रेड फ्लेग तो नहीं, लाल झंडी तो नहीं। लाल झंडी मतलब, क्या इसका हेडएक बिनाईन है, कम नुकसानदायक है, कम खतरे का है या खतरे का हो सकता है। ये फैसला करना हर मरीज के साथ, हर डॉक्टर के लिये एक चुनौती है जिसको उसे हर दिन झेलना है। कोई छुटकारा नहीं। और ऐसे रेड फ्लेग क्या होते हैं। जिनके उपर डॉक्टर और मरीज फैसला करते हैं। कोई भी हेडएक जो नया-नया शुरु हुआ है, सीरियस हो सकता है। कोई भी हेडएक जो नया-नया शुरु हुआ है, और आमतौर पर जो जल्दी से गायब हो जाना चाहिये, गायब नहीं है, बना हुआ है या बढ़ता चला जा रहा है। रेड फ्लेग, लाल झंडी। कोई भी हेडएक, कोई भी सिरदर्द जो असहनीय तीव्रता का है लाल झंडी, खतरे की झंडी। कोई भी सिरदर्द जिसके साथ इस तरह के लक्षण मिल रहे हैं जो इशारा करते हैं कि मस्तिष्क के भीतर दबाव बड़ गया है। और इसके लक्षण होते हैं उल्टीयां होना सिरदर्द के साथ बहुत ज्यादा, या आँखों की रोशनी कम होने लग जाना, या धुंधलापन लगातार बना रहना, या चक्कर आना, या दूसरी न्यूरोलॉजिकल जाँच में खराबी पाई जाना जो शरीर को ठोंक बजाकर देखते हैं उसमें कोई खराबी मिलना, या जब एक फंडस आँख की जाँच, पर्दे की झुककर करते हैं, आँख के पर्दे पर सूजन दिखाई पड़ना, ये सारी लाल झंडियां है रेड फ्लेग है जो इशारा करती हैं कि अंदर कोई गंभीर बीमारी हो सकती है, अंदर प्रेशर बढ़ा हुआ है। कोई ब्रेन हेम्ब्रेज हो सकता है। ब्रेन ट्यूमर हो सकता है।
अंदर इंफैक्शन हो सकता है, मस्तिष्क ज्वर हो सकता है। तो किसी भी मरीज में जब इस तरह के लक्षण होते हैं तो उसे हम गंभीरता के साथ लेते हैं और मरीज को जल्दी से किसी वरिष्ठ या विशेषज्ञ डॉक्टर के पास रेफर करते हैं। और प्रायः उनकी हम नाना प्रकार की शारीरिक जाँचें कराते हैं जिसमें सी.टी. स्केन, एम.आर.आई. कमर में सुई लगाकर पीठ का पानी निकालना तो ये एक चेतावनी और एक जिम्मेदारी हर डॉक्टर के साथ रहती है कि वो इन लाल झंडियों को पहचाने। ज्यादातर हेडएक ६५प्रतिशत हेडएक रेड फ्लेग वाले नहीं होते। बिनाईन होते हैं, माइल्ड होते हैं, लेकिन गंभीर को पहचानना पड़ता है।
धन्यवाद।