>>घबराएँ नहीं, हिम्मत बनाए रखें, मदद के लिये पुकारें परन्तु बदहवास से चीखें, चिल्लाएँ नहीं | ये दौरे दिखने में भयानक, पर वास्तव में होते नहीं ।
>>व्यक्ति को सुरक्षित, साफ-सुथरी जगह पर लेटाएँ । आस-पास गिरने, अड़ने, चुभने, चोट लगने जैसी वस्तुओं को हटा दें | सिर व गर्दन के नीचे कोई कपड़ा, तौलिया तहकर के लगा दें ।
व्यक्तिको करवट से लिटा दें ।
>>तंगकपड़ों को ढीला करदें ।जूते- मौजे खोल दें ।
>>मुँह में लार या थूक जमा हो तो साफ रूमाल या कपड़े से पोंछ दें ।
>>मुँह में या दाँतों के बीच कुछ न फंसाएँ। न चम्मच, न कपड़ा, न स्केल (वस्तु फंसाने से जीभ कटने से नहीं रोकी जा सकती) भिंचे हुए दाँतों के मध्य, ताकत लगाकर कोई चीज डालने से दाँत टूट सकते हैं, ओंठ व जीभ छिल जाती है । दाँतों के भिंचने से यदि जीभ कटना हो तो वह पहले ही कट चुकी होती है । आप के पहुँचने पर यदि जीभ, दाँतों के मध्य फंसी पाई जाए, तो जबड़ों को थोड़ा सा खोल कर, जीभ को उंगली द्वारा अन्दर धकेल दीजिये । बहुत से चिकित्सकों को भय रहता है कि बेहोशी की दशा में, बिना सहारे के जीभ भीतर पलट कर श्वास नली के मुख को अवरुद्ध कर देगी । यह डर गलत है । जीभ इतनी पीछे कभी नहीं मुड़ सकती कि गला बन्द हो जाए ।
>>गौर करें कि श्वास भली भांति लिया जा रहा है या नहीं । यदि गले में खड़-खड़ की आवाज़ आ रही हो तो सम्भव है कि अन्दर कोई खाद्य कण या पानी या लार (जिसे लोग गलती से कफ कहते हैं ) जमा हो। जबड़ों को खोल कर, साफ कपड़े को उंगली पर ले कर गले को भीतर तक पोंछ दें | करवट पर लिटाक॑र रखने से भी गले में जमा लार अपने आप बहकर बाहर आ जाती है ।
>>मुँह में पीने के लिये कुछ न डालें, यह खतरनाक है । बेहोश मरीज के गले में वस्तुएँ जमा हो जाती हैं, भोजन नली से होकर पेट तक नहीं उतरती, बल्कि श्वास नली में भर जाती हैं। श्वास रूक सकती है। फेफड़ों में इन्फेक्शन (प्यूमोनिया) हो सकता है । जरूरत है मुँह व गले को साफ तथा खाली रखने की, न कि उसमें डालने की ।
>>मुँह पर पानी के छींटे न डालें ।
>>हाथ, पैरों, हथेलियों, पंजों की मालिश करने से कोई लाभ नहीं ।
>>ऐंठन व झटकों से भरे शरीर को दबाने की कोशिश न करें | झटकों को आने दें । वे हमारे रोकने से रूकेंगे नहीं । उन्हें जितनी देर चलना हैं, चलेंगे । हाथ पैरों को ताकत से दबा कर रखने से दौरे की तीव्रता कम नहीं होती । ‘
>>दौरे के समय या तत्काल बाद में भी, कोई औषधि मुँह से देने का प्रयत्न न करें |यह न केवल व्यर्थ है बल्कि खतरनाक भी ।
>>जूता न सुंघाएँ, प्याज न सुंघाएँ, अमोनिया न सुंघाएँ । ये गन्दे अन्धविश्वास हैं । इनसे कोई लाभ नहीं । मिर्गी का दौरा स्वत: कुछ मिनटों में समाप्त हो जाता है । लोग गलती से ऐसा सोच बैठते हैं कि जूता सुंघाने से जल्दी ठीक हुआ | न सुंघाते तो भी उतना ही समय लगता है | दुर्गन्ध, गन्दगी व संक्रमण (इन्फेक्शन) फैलाने का काम क्यों किया जाए।
>>पानी में तैरते समय दौरा आया हो तो डूबने से, फेफड़े में पानी भरे होने का अंदेशा रहता है । कृत्रिम श्वास देने की आवश्यकता पड़ सकती है । पैर ऊंचे, सिर नीचे वछाती दबाकर, पानी बाहर निकालते हैं । मुँह से मुँह लगाकर श्वास देते हैं । छाती को दबाकर हृदय की मालिश करना पड़ सकती है |
>>दौरे के समय गिरने से या अन्य खतरनाक परिस्थिति में होने से, चोट लग सकती है | गौर करें कि चोट कहाँ लगी है । खून तो नहीं बह रहा है । सदमा यां शॉक की स्थिति तो नहीं है जिसमें हाथ-पाँव ठंडे व स्याह-सफेद पड़ जाते हैं, रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) कम हो जाता है । तब चिकित्सक को बुलाना जरूरी होता है ।