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मिर्गी सामान्य जानकारी


सब लोगों को मिर्गी के बारे में खास-खास और सच्ची बातें जानना चाहिये । क्‍योंकि यब बीमारी बहुत से लोगों को होती है किसी को भी हो सकती है तथा इसका इलाज हो सकता है । मिर्गी के बारे में सही जानकारी हासिल करके हम मरीजों का भला कर सकते हैं | सुनी सुनाई अधकचरी, पुराने जमाने की बातों पर भरोसा मत करिये । मिर्गी उस अवस्था का नाम है जिसमें व्यक्ति को कभी-कभी दौरे आ सकते हैं |

बाकी समय वह ठीक रहता है | इन दौरों में तरह-तरह के लक्षण होते हैं, जैसे कि बेहोशी आना, गिर पडना, हाथ-पांव में झटके आना । मिर्गी किसी एक बीमारी का नाम नहीं है | अनेक बीमारियों में मिर्गी जैसे दौरे आ सकते हैं | मिर्गी के सभी मरीज एक जैसे नहीं होते | किसी की बीमारी मद्धिम होते है, किसी की तेज ।

मिर्गी एक परिचय

मिर्गी एक आम बीमारी है | लगभग सौ लोगों में से एक को होती है | इनमें से आधों के दौरे रूके होते हैं | बाकी आधों में दौरे आते हैं, इलाज जारी रहता है । मिर्गी किसी को भी हो सकती है | बच्चा, बडा, बूढा, औरत, आदमी, स़ब को | दिमाग पर जोर पडने से मिर्गी नहीं होती | कई लोग खूब दिमागी काम करते हैं परन्तु स्वस्थ रहते हैं | मानसिक तनाव या टेंशन से मिर्गी नहीं होती है | अच्छे भले, हंसते-गाते, खुश मिजाज इंसान को भी मिर्ग हो सकती है | मेहनत करने और थकने से मिर्गी नहीं होती | आराम करने वाले को भी हो सकती है | कमजोरी या दुबलेपन से मिर्गी नहीं होती | खाते पीते पहलवान को भी हो सकती है | मांस-मछली-अण्डा खाने से मिर्गी नहीं होती । शाकाहारी लोगों को भी उतनी ही मिर्गी होती है ।
मिर्गी एक शारीरिक रोग है | यह ऊपरी हवा का असर नहीं है । मिर्गी का कारण है दिमाग में कोई खराबी आ जाना | दिमाग में खराबी आने से बहुत से कारण होते हैं | इनमें से कोई भी कारण मिर्गी पैदा कर सकता है | दिमाग में आने वाली गडबडी को इलाज द्वारा ठीक किया जा सकता है | यदि वह गडबडी पूरी तरह न मिटे तो भी इलाज द्वारा दौरे रोके जा सकते हैं | दिमाग में खराबी आने का मतलब पागलपन नहीं है | मिर्गी और पागलपन का आपस में कोई रिश्ता नहीं है ।
दौरे का हाल सुनकर या देखकर मिर्गी होने का पता लगाया जा सकता है । देखने वाले को चाहिये कि वह घटना का हूबहू बयान करे | ठीक-ठीक बताए कि मरीज की क्‍या हालत थी | क्‍या वह गिर पडा था ? बेहोश हो गया था ? हाथ-पैर, मुंह, जीभ, दांत, आंख आदि की क्‍या अवस्था थी ? दौरा कितनी देर चला था ? बाद में मरीज को कैसा लग रहा था ? सही-सही वर्णन सुनकर डॉक्टर फैसला कर सकता है कि मिर्गी है या नहीं। और कोई तरीका नहीं है। मशीनों की जांच से कभी-कभी मदद मिलती है। पर अंतिम फैसला मशीन का नहीं होता ।
यदि दौरे का वर्णन ठीक से न मिल्रे तो सही डायग्नोसिस (निदान) नहीं हो पाता | यदि दौरे का जोर कम हो तो सारे लक्षण मौजूद नहीं रहते | पहचान मैं भूल हो सकती है । मिर्गी के कुछ खास प्रकार के दौरे के ल्स्‍क्षण अजीब होते हैं । बहुत से डाक्टर नहीं जानते कि ऐसी भी मिर्गी हो सकती है | दूसरी अनेक अवस्थाएं हैं जो ऊपरी तौर पर मिर्गी से मिलती हैं | पर वे मिर्गी से अलग हैं | जैसे गश, मूर्च्छ, चक्कर, लकवा, मानसिक तनाव के दौरे | मिर्गी सिफ एक प्रकार की नहीं होती, उसके बहुत सारे रूप होते हैं । अधिकतर लोग जिस रूप को जानते हैं उसे बडा दौरा कहते हैं | बडे दौरे में मरीज गिर सकता है, चीख निकलती है, बेहोशी आती है, आंखे ऊपर की ओर मुड जाती है, दांत चिपक जाते हैं, मुंह से फेस या झाग आता है | जीभ कट सकती है, हाथ पैर अकड जाते हैं व झटके आते हैं, पेशाब छूट सकती है | होश आने के बाद थोडी देर थकान, दर्द व सुस्ती रहती है | मिर्गी के छोटे दौरे के बारे में लोग कम’ जानते हैं | इनके अनेक प्रकार होते हैं | बेहोशी आती है | हाथ पैर में जकडन व झटके नहीं आते | जैसे ही मिर्गी का शक हो, तुरन्त डाक्टर के पास जाएं | यदि डाक्टर को लगे की मिर्गी हो सकती है तो बेहतर होगा कि जल्दी इलाज शुरू कर दें । बाद में मालूम पडे कि मिर्गी नहीं थी तो डाक्टर की सलाह से इलाज बंद कर सकते हैं । मिर्गी रोकने की गोलियाँ खाने में शर्म की क्या बात ? मिर्गी रोकने की गोलियाँ खाने में दुःख की क्‍या बात ? दौरे जितनी जल्दी रुक जाएं, उतना अच्छा । ज्यादा दौरे आने से आगे चलकर और ज्यादा दौरे आते हैं | ज्यादा दौरे आने के बाद गोलियों का असर कम पड जाता है ।

मिर्गी की इलाज में चार या पांच खास दवाईयाँ हैं | सभी अच्छी हैं | कोई एक दवा चुनते समय डाक्टर इस बात पर ध्यान देते हैं कि कौन से प्रकार का दौरा आता है । एक समय में एक ही किस्म की औषधि का उपयोग करना चाहिये | दवाई का पूरा असर आने में कई दिन लग सकते हैं | इस बीच यदि दौरे आ जायें तो धीरज रखें ।


इस बीच यदि दौरे आ जाएं तो भी डाक्टर पर भरोसा बनाए रखें | दवाईयों द्वारा ज्यादातर मरीजों के दौरे रुक जाते हैं | परन्‍्त दवाई रोज लेना जरूरी है । एक भी दिन की चूक नहीं होना चाहिये । जैसे रोज रोटी खाते हैं, वैसे रोज गोली लें | इल्राज लम्बा चलता है । दो साल, चार साल, पांच साल या और भी अधिक । पहले से नहीं बता सकते कि कितले साल चलेगा | कम से कम तीन, चार साल तक दौरे रूक जाना चाहिये | उसके बाद दवाई छूट सकती है । यदि बीच-बीच में दौरे आते रहें तो गोली नहीं छूट सकती । दौरे रुकना जरूरी हैं | जो मरीज नियम से बिना नागा गोली लेते हैं उनमें से ज्यादातर के दौरे रूक जाते हैं और बाद में गोली छूट जाती हैं । मिर्गी क्रे इल्राज में शार्ट-कट नहीं है | इलाज लम्बा है | धीरज रखना पडता है | ऐसी दवा नहीं बनी जो थोडे से दिन में बीमारी को जड से मिटा दे | सारी दवाईयाँ बिमारी को दबा कर रखती हैं | मिटा नहीं पाती ।

थोडे से मरीजों में भरपूर इलाज के बाद भी दौरे नहीं रूकते | इन मरीजों में बीमारी का जोर शायद अधिक होता है | इनकी दवाईयाँ नहीं छूट पाती | अनेक साल खाना पड़ती हैं | कोई सीमा नहीं है | कोई लिमिट नहीं है । शायद जिन्दगी भर खाना पडती हैं | इसी बात में संतोष करो कि इलाज के कारण दौरे कम हो गये, वरना और ज्यादा हो जाते |
सभी दवाईयों के थोडे बहुत बुरे असर हो सकते हैं | किसी मरीज में ये बुरे असर कम होते हैं तो किसी में ज्यादा | पहले से नही बता सकते कि किस मरीज में क्या बुरे असर होंगे | ज्यादातर मरीजों में कोई बुरा असर नहीं होता । थोडे से मरीजों में मामूली किस्म के बुरे असर होते हैं | अधिकांश मरीज इन्हें सह लेते हैं। दवाईयों से फायदा अधिक है और नुकसान कम |
मरीज को दौरा आने की दशा में क्‍या करें ?
मरीज दौरे में बेहोश पडा हो, झटके आ रहे हों तो उसे साफ, नरम जगह पर करवट से लेटाएं सिर के नीचे कपडा या तकिया लगा दें तंग कपडे ढीले कर दें मुंह में जमा लार या थूक को साफ रुमात्र से पोंछ दें | इस बात पर गौर करें कि मरीज को चोट तो नहीं लगी | अपनी घडी से समय नोट करें कि दौरा ठीक-ठीक कितनी देर तक चला। हिम्मत बनाए रखें | ये दौरे दिखने में भयानक, पर वास्तव में खतरनाक नहीं होते | दौरे के समय अधिक कछ करने को नहीं होता | वह अपने आप कुछ मिनटों में समाप्त हो जाता है | उसे जितना समय लगना है, लगेगा | हमें कछ नहीं करना चाहिये ।
जूते नहीं सुंघाना, प्याज नहीं संघाना | ये गन्दे अंधविश्वास हैं | बदबू व किटाणू फैलाते हैं | हाथ पांव नहीं दबाना । हथेल्ली व पंजे की मालिश नहीं करना | दबाने से दौरा नहीं रुकता | चोट व रगड लगने का डर रहता है । मंह में कुछ नहीं फंसाना ।
न कपडा, न चम्मच जीभ यदि दांतों के बीच फंसी हो तो उसे अंगली से अंदर कर दें | मुह पर पानी के छींटे न डालें | चिल्लाएं नहीं | घबराएं नहीं ।
सामान्य खाना खा सकते हैं | भोजन का परहेज नहीं रखना चाहिये | व्रत, उपवास, रोजे रखने से कुछ मरीजों में दौरे बढ जाते हैं | इनसे बचना चाहिये | अन्न न लेना हो तो दूध या फलाहार द्वारा पेट भरा रखना चाहिये । मिर्गी से पीडत व्यत्ति की शादी हो सकती है । वे बच्चे पैदा कर सकते हैं | बच्चे स्वस्थ होंगे या उन्हें मिर्गी होने का ज्यादा डर नहीं | गर्भवती महित्रा को दौरे रोकने की गोलियाँ खाते रहना चाहिये | इन गोलियों से ज्यादातर मामलों में बुरा असर नहीं पडता | गोलियाँ खाने वाली महिला बच्चे को दूध पिला सकती है | शादी करने से मिर्गी की बीमारी ठीक नहीं होती | उसके लिये गोलियाँ खाना जरूरी है | मिर्गी खानदानी बीमारी नहीं है बहत थोडे से मामलों में इसका खानदानी असर देखा जाता है | यह असर १०० प्रतिशत नहीं होता अधूरा होता है | डाक्टरी ज्ञान के द्वारा पहचान सकते हैं कि किस मरीज में थोडा बहत खानदानी असर हो सकता है | ९० प्रतिशत मामलों में खानदानी असर नहीं होता |इस बारे में नहीं सोचना चाहिये, चिन्ता नहीं करना चाहिये ।

मिर्गी के अधिकांश मरीजों का दिमाग अच्छा होता है | अनेक मरीज बद्धिमान व चतुर होते हैं । लगभग सभी मरीज सयाने व समझदार होते हैं | पागलपन व दिमागी गडबडयां बहुत थोडे मरीजों में देखी जाती हैं । मिर्गी वाले ज्यादातर बच्चे आम स्कूलों में भलीभाँती पढते हैं | बहत थोडे से मरीजों में दिमाग कमजोर हो सकता है | स्वभाव गडबड हो सकता है खासतौर से उनमें जिनके दौरे न रूके हों |


जिनके बीमारी का जोर ज्यादा हो । जिनहें ज्यादा गोलियाँ रोज खाना पडती हों | जिनके मस्तिष्क की जांच में खराबियाँ पाई गई हों । जिन्हें लम्बे समय से , कम उम्र से दौरे आते हों ।
कमजोर दिमाग वाले बच्चों के त्रिये चाहिये स्पेश्यल टीचर व स्कूल । अपने देश में कम मिलते हैं | मिर्गी की बीमारी के कारण दिमाग कमजोर नहीं होता । दौरे रोकने की गोलियों के कारण दिमाग कमजोर नहीं होता | दिमाग कमजोर हो सकता है उसमें पहले से मौजूद बीमारी के कारण | वह बीमारी जिसने मिर्मी रोग को जन्म दिया, वही बीमारी दिमाग को भी कमजोर बना सकती है ।
मिर्गी के मरीजों का दिल दुःखाने वाली बातें कौन सी होती है ? लोगों की बेरूखी, बदली हुई नजरें ल्रांछन अकेलापन, दोस्ती की कमी बेमतलब की रोकटोक, जरूरत से ज्यादा सम्हालना, शादी में अठडचन व नौकरी छूट जाना । बच्चों में पढाई छूट जाना | छुआ छूत का बरताव |
ये सारा माहौल गलत है | बदलना चाहिये | इसी माहौल के कारण मरीज के मन में उदासी, सुस्ती, हीन भावना, डर, चिड-चिडापन आदि पैदा हो जाते हैं | बीमारी का क्या हश्न होगा ? कब ठीक होगी ? ठीक होगी या नहीं ? कितने प्रतिशत ठीक होगी ? क्या करने से ठीक होगी ? कौन सी औषधि बेहतर सिद्ध होगी ? मिर्गी के अलावा शेष स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ेगा ? पढ़ाई-लिखाई कितनी कर पाएगा ? काम-धंधा कर पायेगा या नहीं ? बच्चे कैसे होंगे ? गर्भावस्‍था में स्वास्थ्य कैसा रहेगा ? जिसे सिर्फ एक दौरा आया है वह उपचार आरम्भ करे या नहीं ? दूसरा दौरा आने की सम्भावना कितनी ? कब तक आयेगा ? चार-पांच साल अच्छे निकल जाने के बाद दुबारा बीमारी शुरू होने की कितनी सम्भावना ? क्या मिर्गी मरीजों में मृत्यु की आशंका बढ़ जाती है ?
प्रश्नों की सुची लम्बी है। उत्तर आसान नहीं हैं। सिर्फ अनुमान लगा सकते हैं। मरीजों की बड़ी संख्या का वर्षों तक अनुगमन (फालोअप) करते हैं। आंकड़े इकट्ठा करते हैं। किस के साथ क्या-क्या घटा, नोट करते जाते हैं। आंकड़ों से मिलते हैं औसत व प्रतिशत। मरीज को सुनाओ तो कहता है। मुझे संख्या से क्या लेना देना । मुझे तो मेरी बताओ। परंतु और कोई रास्ता भी नहीं। मरीज, बुद्धिमान व पढ़ालिखा हुआ तो समझने की कोशिश करता है। वह जानता है कि डाक्टर त्रिकालदर्शी नहीं है। कोई भी नहीं हो सकता है। भविष्य का आकलन करने वाले विज्ञान के अपने नियम हैं। आंकड़े, प्रतिशत और औसत सभी मरीजों का एक साथ निकालने के बजाय, अलग-अलग समूहों, वर्गों का निकालना दौरे के प्रकार के आधार पर । मिर्गी पैदा करने वाली मूल बीमारी के आधार पर । मिर्गी के साथ-साथ मस्तिष्क में और क्या कमियाँ हैं, इस आधार पर। इन्हें कहते हैं प्रॉमोसिस पर असर डालने वाले कारक। प्रत्येक कारक की अपनी अलग भूमिका होती है। किसी का प्रभाव कम तो, किसी का अधिक। एक से अधिक कारक मौजूद हों तो सम्मिलित प्रभाव बहुगुणित हो जाते हैं।उदाहरण – मिर्गी के साथ मंदबुद्धिता हो तो दौरों पर नियंत्रण की सम्भावना तुलनात्मक रूप से कम होती है। मिर्गी के साथ सेरीब्रल पाल्सी, स्पास्टिसिटी, (जन्मजात लकवा) हो तो दौरों पर नियंत्रण की सम्भावना तुलनात्मक रूप से कम होती है। मिर्गी के साथ उपरोक्त दोनों अवस्थाएँ मौजूद हों तो दौरों पर नियंत्रण की सम्भावना कई गुना कम हो जाती है।

बहुत से मरीज इस बात को भूल जाते हैं कि मिर्गी का हर मरीज समान नहीं होता व प्रत्येक मरीज की अपनी कुछ खासियतें होती हैं। मरीज सोचते हैं, फलां मरीज ठीक हो गया, परंतु मैं क्यों नहीं हो पा रहा हूँ ? या यह भी कि फलां मरीज कभी ठीक न हो पाया अत: मैं भी न हो पाऊंगा ?

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