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सिर की चोट (Head Injury)


सिर की चोट एक घातक, गम्भीर और बहुव्याप्त समस्या है। सड़क दुर्घटनाओं व अन्य हादसों में प्रतिवर्ष लाखों लोग इसका शिकार होते हैं, मर जाते हैं या लम्बी अवधि के लिये विकलांग हो जाते हैं | युवा पुरूषों में इसके मामले अधिक हो ते हैं क्योंकि उनकी सक्रियता ज्यादा होती है ।


सिर की चोट/हेड इन्ज्युरी के बारे में सुनने या सोचते ही मन में डर लगता हैं है, सिहरन सी होती है । सिर या खोपड़ी की हड्डी के भीतर शरीर का सबसे महत्वपूर्ण पर नाजुक अंग मस्तिष्क विद्यमान रहता है जो हमारी (होश), पहचान, स्मृति, बुद्धि, संवेदनाएं और परिचालन को नियंत्रित करता है। हेड-इन्ज्युरी के कुछ मरीजों में गर्दन की रीढ़ की हड्डी (सर्वाइकल स्पाईन) पर भी चोट आने की आशंका रहती है, जो स्पानइल कार्ड (मेरु तंत्रिका) को नुकसान पहुंचा कर चारों हाथ पैरों में लकवे/निशक्तता का कारण बन सकती है।
मस्तिष्क (दिमाग) की नाजुकता और महत्व के कारण प्रकृति ने उसकी सुरक्षा के खास उपाय किये हैं। खोपड़ी की हड्डियाँ मजबूत और मोटी हैं, दिमाग के चारों तरफ झिल्लीयों की तीन परत हैं और दिमाग के भीतर व बाहर पानी भरा होता है, जो छोटे मोटे धक्कों को सहन करने का, शॉक एब्ज़ार्बर का काम करता है। इस सबके बावजूद जोर की दुर्घटना में ये समस्त दीवारें दरक जाती हैं | सांघातिक चोट पैदा हो सकती है | तेज गति से वाहन में चलते समय जब दुर्घटना के कारण अचानक कुछ पलों में गति एकदम से कम हो जाती है, उन क्षणों में, मस्तिष्क अन्दर ही अन्दर, झटका खाता है, हिल जाता है, रगड़ जाता है, मसल जाता है, घिस जाता है, झनझना जाता है। दिमाग के रेशे टूटते हैं। खून की महीन नलिकाएं फटती हैं । सूजन आती है । मस्तिष्क के विद्युतीय परिपथ थम जाते हैं।

विषय सूचि

प्राथमिक चिकित्सा

अस्पताल में इलाज

हेड इन्जुरी की तीव्रता के पैमाने

ऑपरेशन की जरुरत

मरीज़ ठीक कैसे होता हैं ?

हेड इन्जुरी के बाद दीर्घकालिक समस्याएँ

सिर की चोट की रोकथाम

प्राथमिक चिकित्सा

चोट के तत्काल बाद आरम्भिक कुछ मिनिट व घन्टे बहुमूल्य होते हैं। प्राथमिक चिकित्सा मिल जावे तथा एक घण्टे में मरीज किसी अच्छे अस्पताल में पहुंच जाये जहां न्यूरोसर्जन/न्यूरोफिज़िशियन की, गहन चिकित्सा इकाई (आई.सी.यू.) की सुविधाएं मौजूद हों तो बहुत से मरीजों को मरने से और विकलांग होने से बचाया जा सकता है।
घटना स्थल पर मौजूद व्यक्तियों को हिम्मत और सहज बुद्धि से काम लेना चाहिये। मरीज की हालत पर गौर करें| क्या श्वास चल रही है? हृदय की धड़कन या नाड़ी को महसूस किया जा सकता है? हाथ पांव ठण्डे तो नहीं हो गये हैं? मुंह से मुंह लगाकर कृत्रिम श्वास देने की जरूरत पड सकती है। छाती पर प्रति मिनट 70 बार दबाकर हृदय की मालिश की जा सकती है | बहुत थोड़े से ही इतने ज्यादा गम्भीर होते हैं | ज्यादातर की हालत बेहतर होती है। पता लगाने की कोशिश करें कि मरीज होश में है या नहीं ? उससे बात करने की कोशिश करें। उसका नाम पूछें | सिर या हाथ पांव पर हल्के नाखुन चुभा कर दर्द का अहसास पता करने की कोशिश करें। शरीर के किसी भी भाग से खून बह रहा हो तो रूमाल या टावेल से उस स्थान को जोर से देर तक दबा कर रखें | मरीज के मुंह से कुछ भी खाने या पीने को न दें। जमीन से उठाते व स्थानांतरित करते समय चार लोग मिलकर, पूरे शरीर एक सीधे से ऐसे उठाएं कि गर्दन की रीढ़ की हड्डी पर मुचकान न आने पावे।
यदि मरीज पूर्ण होश में हो तो उसे आराम करने दें | उसका नाम-पता फोन नम्बर आदि नोट करें। कुछ मरीज सिरदर्द, चक्कर व उल्टियों की शिकायत कर सकते हैं | ऐसी स्थिति में घबराने की बात नहीं है। सिर से, नाक से, कान से, मुंह से खून आ सकता है | चेहरे व आंखों के चारों ओर चमड़ी में खून जम सकता है, सूजन आती है। ये समस्याएं आम हैं और प्राय: अपने आप दो-चार सप्ताह में ठीक हो जाती हैं। थोड़े से मरीजों को मिर्गी नुमा दौरे आ सकते हैं |

कुछ मरीजों के मुंह व गले में थूक व खून जमा हो जाता है। उन्हें, श्वास लेने में गड़गड़ाहट होती है। थूक, खून, उल्टी आदि श्वास नली में घुस कर, फेफड़ों में पहुंच कर न्यूमोनिया पैदा करते हैं जो गम्भीर समस्या है । मौके पर मौजूद व्यक्तियों को चाहिये कि नरम रुमाल से मुंह और गले को साफ कर दें तथा मरीज को पतले तकिये के साथ करवट से लिटा दें ताकि गले में जमा गन्दगी खुद बह कर बाहर आती जावे।

अस्पताल में इलाज
अच्छे अस्पताल में चिकित्सक मरीज की क्लीनिकल हालत का मुआयना करते हैं। आरम्भिक इमर्जेन्सी उपचार शुरू करते हैं। एक्स-रे व सी.टी. स्केन द्वारा फ्रेक्चर तथा मस्तिष्क की अन्दरूनी हालत का पता लगाते हैं | खून की कुछ जांचें होती हैं। सी.टी. स्केन या एम.आर.आई बार-बार करवाना पढ़ें सकता है क्योंकि गुजरते घण्टों और दिनों के साथ, मस्तिष्क की अन्दरूनी विकृतियाँ जैसे कि सूजन, रक्तस्त्राव आदि कम-ज्यादा हो सकते है |

अधिकांश मरीजों का उपचार बिना आपरेशन के , औषधियों की मदद से करते हैं। पल-पल सतत निगरानी रखना जरूरी होता है। सब मरीजों में नहीं, केवल उनमें जिन्हें बेहोशी के कारण गहन चिकित्सा इकाई में रखा गया हो| गम्भीर रूप से बीमार बेहोश मरीजों के उपचार में दिमाग की सूजन कम करने वाली, मिर्गी दौरे रोकने वाली तथा इन्फेक्शन को नियंत्रित करने वाली एन्टीबायोटिक औषधियों का उपयोग करते हैं|
पूर्ण होश में आने वाले चंगे मरीजों को लगभग 48 घण्टे अस्पताल में निगरानी में रहने की सलाह दी जाती है।


इन मरीजों में हेड इन्ज्यूरी की तीव्रता के पैमाने हैं –
1. आरम्भिक बेहोशी की अवधि-कुछ मिनिट्स से कम हो तो अच्छा
2. दुर्घटना के पहले व बाद के अनेक मिनिट्स या घण्टों की अवधि की
स्मृति – यदि सब कुछ भली भांति याद रहा हो तो इसका मतलब कि
चोट गम्भीर नहीं है।
3. सिरकी हड्डी में फ्रेक्चर तथा सिर-नाक-कान गला से खून का बहना
4. बाहरी वस्तु का सिर के भीतर धंसा होना – जैसे कि बन्दूक की गोली,
पत्थर, तीर कमान आदि।
5. मिर्गीनुमा दौरे आना।

यदि उपरोक्त में से कोई भी समस्या न हो तो प्राय: माना जाता है कि सिर की चोट अधिक गम्भीर नहीं है ।


आपरेशन की जरूरत

खोपड़ी व मस्तिष्क के भीतर खून तीन जगह जमा होता हैं
1. एपिड्यूरल – खोपड़ी की हड्डी व दिमाग की बाहरी झिल्ली के बीच । इमर्जेन्सी आपरेशन प्राय: जरूरी, सफल व जान बचाऊ होता है।
2. सबड्यूरल – दिमाग और उसकी बाहरी झिल्ली के बीच – सब मरीजों में नहीं लेकिन अनेक में आपरेशन से लाभ होता है ।
3. इन्ट्रासेरीब्रल – दिमाग के भीतर – कुछ मरीजों में आपरेशन से आंशिक लाभ होता है।

इसके अलावा यदि दिमाग में ज्यादा सूजन आने व खून जमा होने से, खोपड़ी की हड्डी की सख्त | (टाइट) बन्द कोठरी में जगह कम पड़ने लगे व भीतरी दबाव बढ़ने लगे तो आपरेशन द्वारा एक बड़ी खिड़की बना देते हैं ताकि फूलते हुए दिमाग को फैलने की ज्यादा जगह मिल जावे ।

अनेक आपरेशन्स तथा गहन उपचार द्वारा मरीज की जान तो बच जाती है परन्तु इस बात की कोई ग्यारन्टी नहीं होती कि होश कब आयेगा, बोलना-समझना कब शुरू होगा, याद्दाश्त कब आयेगी और कितनी आयेगी ? शारीरिक क्षमता कैसी रहेगी? यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि मस्तिष्क की आन्तरिक संरचना और कार्यप्रणालियों में कितना नुकसान पहुंचा है ।



मरीज ठीक कैसे होता है ?

दिमाग की मूल चोट अपने आप धीरे-धीरे ठीक होती है । प्रकृति में नुकसान की भरपाई की बहुत क्षमता है लेकिन समय बहुत लगता है – कुछ सप्ताह कुछ माह या कुछ वर्ष । सुधार की इस प्रक्रिया को छ: माह के बजाय एक माह में पूरा करा दें ऐसी कोई दवा नहीं होती | जो सुधार अन्तत: केवल 50% हुआ है उसे 00 प्रतिशत करा दें ऐसी भी कोई दवा, टानिक, जड़ी बूटी, जादू टोना आदि नहीं होते | जो कुछ होता है अपने आप होता है | परिजनों व चिकित्सकों के हाथ में क्या है? – मरीज की सेवा, नर्सिंग केयर, साफ सफाई (हाइजीन), पोषण-खान पान (न्यूट्रीशन), व्यायाम चिकित्सा (फिज़ियोथेरापी), बौद्धिक अभ्यास (बातचीत पढ़ना-लिखना, घूमना फिरना, काम करना, मनोरंजन, संगीत) ।


हेड इन्ज्यूरी के बाद दीर्घकालिक समस्याएं |

आरम्भिक गम्भीर अवस्था से उबरने के बाद और कभी-कभी मामूली अगम्भीर चोट के बाद भी, अनेक मरीजों में ढेर सारी तकलीफें रह जाती हैं, या नई पैदा होती हैं। सिरदर्द, चक्कर, उदासी, कमजोरी, थकान, काम में मनन लगना, एकाग्रता में कमी , चिड़चिड़ापन आदि । ये लक्षण भी धीरे- धीरे कम होते हैं पर कुछ में बने रहते हैं या बढ़ जाते हैं।
कई बार डाक्टर्स को ऐसा लगता है कि यह मरीज अनावश्यक रूप से उदास है, अपने आपको हादसे के सदमें से उबारने के लिये पर्याप्त प्रयास नहीं कर रहा है । बिना कारण खुद को बीमार समझता है | शायद कुछ मरीज ऐसे हों । उन्हें मनोरोग विशेषज्ञ के पास परामर्श व उपचार के लिये भेजते हैं। यदि दुर्घटना के बाद कोर्ट में मुआवजे का दावा व केस चल रहा हो तो इन लक्षणों की तीव्रता व अवधि बढ़ जाती है जब तक कि अदालत का फैसला मरीज के हक में न आ जावे | अधिकांश मरीज सायकोलाजिकल नहीं होते | उनकी है समस्याएं असली हैं, वास्तविक हैं । उनके साथ सहानुभूति व प्रोत्साहन के साथ पेश आना चाहिये।


सिर की चोट की रोकथाम

यातायात के नियमों कापालन हो | सड़कें अच्छी हों (फुटपाथ हो) | चार पहिया वाहन, दो पहिया वाहन, साईकिल व पैदल चलने वालों के लिये अलग-अलग गलियारे (लेन) हो । मोटर बाईक चलाने वाला व पीछे बैठने वाला दोनों (स्त्री-पुरूष या सिक्ख-सभी) सिर पर अच्छी क्लालिटी का हेलमेट लगाएं | ये तर्क झूठे और अवैज्ञानिक हैं कि धीमी गति के ट्रैफिक में हेलमेट की जरूरत नहीं होती या कि हेलमेट से गर्दन की रीढ़ की हड्डी पर बोझा पड़ने से सर्वाइकल स्पान्डिलोसिस होता है। कार में सवार समस्त व्यक्तियों को, अगली व पिछली दोनों सीट्स पर, बेल्ट. लगाना चाहिये। ट्रैफिक रूल्स तोड़ने वालों को नियमित रूप से प्रतिदिन सख्त सजा मिलनी चाहिये न कि केवल कभी कभी नाम मात्र की खाना पूर्ति हेतु | ट्राफिक लाइसेन्स मिलने की प्रक्रिया में ढील नहीं होना चाहिये। बार-बार नियम तोड़ने वालों का लाइसेंस निलम्बित या रद्द होना चाहिये। उनका वाहन बीमा ऊंची प्रीमियम पर होना चाहिये ।

आम लोगों को यातायात व प्राथमिक चिकित्सा की मूलभूत जानकारियों की व्यापक सतत्‌ शिक्षा की मुहिम सदैव चलती रहना चाहिये | समस्त जिला अस्पतालों व राजमार्गों पर पूर्ण सुविधा युक्त ट्रामा सेंटर (दुर्घटना-उपचार केन्द्र) विकसित होना चाहिये। एम्बुलेन्स व्यवस्था सजग, तीव्र व पुख्ता होना चाहिये ।

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