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न्यूरोलॉजिकल बीमारियों का सामुदायिक बोझ


[दीर्घकालिक + लघुकालिक] [संक्रामक + असंक्रामक]

[रोके जा सकते वाले] [उपचार – योग्य]

27 फरवरी को यूरोपियन संसद में एक विरला व्याख्यान चल रहा था। न्यूरोलॉजिकल डिसआर्डर्स “पब्लिक हेल्‍थ चेलेन्जेस” इस रिपोर्ट के अनावरण के अवसर पर यूरोपियन सांसद, जोहन आर्ली, अध्यक्ष, विश्व तांत्रिका विज्ञान संध एवं विश्व स्वास्थ्य संगठनके प्रतिनिधियों को सम्बोधित कर रहे थे। इस रिपोर्ट में विश्व में व्याप्त बीमारियों से संबंधित शोध के ऑकडों को बताया गया था। इस रिपोर्ट के आधार पर मस्तिक संबंधी बीमारियों को जन साधारण के स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा माना गया है। न्यूरोलॉजिकल बीमारियों से होने वाली मृत्यु के आधार पर न्यूरोलॉजिकल बीमारियों का प्रभाव का आकलन ठीक नहीं किया जाता है और यह बात स्मृतिहास से पूर्णतः सिद्ध हो जाती है। यद्यपि स्मृतिहास से होने वाली मृत्यु दर एक प्रतिशत से भी कम है किंतु अक्षमता युक्त जीवन के आधार पर यह स्पष्ट है कि स्मृतिहास का प्रभाव किसी अन्य बीमारी से कही अधिक विश्व में विकराल है। अपवादस्वरुप कैंसर व मेरुरज्जु संबंधी बीमारियां। दुनिया में बीमारी का बोझ (ग्लोबल बर्डन आफ डिजीज)अध्ययन केवल मृत्युदर को ही विश्लेषित नही करता अपितु यह बीमारी की व्यापकताएवं अक्षमतायुक्त जीवन को भी बताता है। WHO की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में तंत्रिकीय बीमारियों से 12 प्रतिशत मृत्यु होती है। अल्प एवं मध्यम आय वाले देश जैसे चीन एवं रुस में यह प्रतिशत 47 है।

सन्‌ 2005 में 92 लाख वर्षो से भी अधिक जीवन इस तांत्रिकीय बीमारियों में खो चुके है और इसमें लगभग आधा हिस्सा लकवा नामक बीमारी का है। 11 लाख से ज्यादा अक्षमतायुक्त जीवन अल्झीमर और अन्य स्मृतिहास बीमारियों में विलीन हो चुके है। करीब 15 लाख अक्षमतायुक्त जीवन मिर्गी और माइग्रेन की बलि चढ गए है। यद्यपि यह कल्पना की गई है कि वर्ष 2030 में छुआछूत की बीमारियों से होने वाली तंत्रिकीय बीमारियों में 57 प्रतिशत कमी आएगी किंतु जब तक यह परिवर्तन होगा तब तक 103 लाख वर्षो से अधिक स्वास्थ्य जीवन खो चुके होगे।

आपेक्षित जीवन में कमी एवं आकडों में कमी के कारण तंत्रिकीय संबंधी बीमारियों के प्रभाव, कम आय वाले देशों में कम दिखाई देता है (सन्‌ 2005 में अधिक आय वाले देशों में प्रतिशत तथा कम आय वाले देशों में 4.5 प्रतिशत है)। यद्यपि यह दर्शाया गया है कि इस दिशा में परिवर्तन हुआ है। कम आय वाले देशों में बच्चे इस बीमारियों से सरलता से प्रभावित हो जाते है, जहॉ केवल कुपोषण से होने वाले मस्तिष्कि आघात को बचाया जा सकता है। निर्धन देशों में कई तंत्रिकीय बीमारियों को सामाजिक कलंक के रुप में देखा जाता है | 50 लाख मिर्गी के मरीजों में से 85 प्रतिशत लोग विकासशील देशों में निवास करते है ।

कुछ तंत्रिकीय संबंधी बीमारियों को जन स्वास्थ्य रुपरेखा बनाकर बचाया जा सकता है (जैसे तंत्रिकीय संकमण से बचाव के लिए टीकाकरण, यातायात संबंधित सुरक्षा उपाय जिससे दुघटना से होने वाले मस्तिष्क चोट से बचा सकता है)। किंतु वर्तमान ज्ञान इन बचाव के उपायों के लिए अभी अपर्याप्त है। न केवल संशाधन अपितु तांत्रकीय विशेषज्ञ भी असमान रुप से वितरित है। यूरोप में 20,000 की जनसंख्या पर एक विशेषज्ञ उपलब्ध है जबकि आफीका में तीस लाख पर एक विशेषज्ञ । लेकिन क्या किया जा सकता है ? इस रिपोर्ट में यह अनुमोदन किया गया है, इस स्थिति का निपटारा इसके लाइलाज होने से पहले होना चाहिए। इसके लिए निर्णायकों का दृढ़निश्चय जिससे जन स्वास्थ्य प्रयास, शासन, अर्तराष्ट्रीय संस्थाएं एवं गैर शासकीय संस्थाओं का समन्‍्यय हो सके, आवश्यक है। विश्वीय एवं स्थानीय जागरुकता अभियान शुरु होना चाहिए जिससे लोगों में बीमारियों के प्रति जागरुकता बढे एवं समाज में व्याप्त कलंक रुपी बीमारियों से निजात मिले ।

विश्व स्वास्थ्य संबठन की एक नई रिपोर्ट के अनुसार तंत्रिकीय व्याधियों ने, मिर्गी से अन्झीमर तक लकवा से सिरदर्द तक विश्व की लगभग दस करोड आबादी को ग्रसित किया है। तंत्रिकीय बीमारियों के अंतर्गत मस्तिष्काघात, मस्तिष्कज्वर, मल्टीपल स्केलरोसिस एवं पार्किनसन्स बीमारियां भी आती है।

लगभग पाच करोड लोग मिरगी से तथा ढ़ाई करोड़ व्यक्ति अल्झीमर एवं अन्य स्मृतिहास से पीडित है । तंत्रिकीय व्याधियों ने विश्व में सभी को प्रभावित किया है चाहे कोई व्यक्ति किसी भी उम्र, लिंग या बोद्विकस्तर या आय वर्ग का हो।

लगभग 68 लाख व्यक्ति प्रतिवर्ष तंत्रिकीय व्यधियों से मृत्यु की गोद में समा जाते है। यूरोप में सन्‌ 2004 में लगभग 439 करोड़ यूरो खर्च किया गया । वे व्यक्ति जो किसी भी तंत्रिकीय व्याधि से ग्रसित है उनके परिवार तथा सेवादायक को उचित जानकारी मिलना भी बहुत कठिन है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक वकतव्य के अनुसार न्यूरोलाजिकल केयर को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा के साथ जोड़ा जाना चाहिए। और इसके लिए सामाजिक पुर्नवास एक सुविकल्प है। मिर्गी के उपचार हेतु ज्यादा असरकारक एवं अल्प कीमत के उपचार उपलब्ध है, इस तथ्य के बावजूद अफ्रीका में 40 में से 9 व्यक्तियों को उपचार नहीं मिल पाता है।

प्रो. जोहन अर्ली एवं विश्व न्‍्यूरोलॉजिकल संघ के अन्य सदस्यों ने एक रिपोर्ट में लिखा है कि तंत्रिकीय रोगों के भार को कम करने के लिए कुछ नए आयाम दूढने पड़ेंगे जिनमें मजबूत साझेदारी होनी चाहिए।

मोटर साइकिल चालक द्वारा शिरकवच एवं चार पहिया वाहन चालक द्वारा रक्षापेटी के उपयोग से दुर्घटना से होने वाले मस्तिष्काघात को रोका जा सकता है। मस्तिष्कज्वर के लिए टीकाकरण और मेलेरिया की प्रारंभिक जांच एवं इलाज, कुछ अन्य उदाहरण है जिनसे तंत्रिकीय बीमारियों के प्रभाव को कम किया जा सकता है।

मन एवं मस्तिष्क के बीच संबध, किसी भी विचारक वैज्ञानिक और चिकित्सक के द्वारा की जाने वाली गवेष्णा एवं अनुमानों से कहीं ज्यादा है। मन एवं मस्तिष्क की बीमारियों से ग्रसित व्यक्तियों के लिये यह और भी महत्वपूर्ण है, न सिर्फ इसलिये कि इन बीमारियों उपेक्षा की जाती रही है बल्कि इसलिये भी कि इन बीमारियों का डर समाज में गलतफहमी एवं लांछन पैदा करता है। इस साल बी.बी.सी पर प्रसारित “रीथ व्याख्यान” में विलमनूर रामचंद्रन ने मन एवं मस्तिष्क के बीच संबंध पर चर्चा की है। उन्होने विभिन्‍न मानसिक लक्षणों को मस्तिष्क विज्ञान के आधार पर व्याख्या की और यह माना कि मनोरोग विज्ञान की जड़े मस्तिष्क विज्ञान में निहित है। हॉलांकि इतिहास के आधार पर मस्तिष्क विज्ञान का प्रादुर्भाव मनोरोगों के अध्ययन से हुआ है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वर्ष 2001 में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार संपूर्ण विश्व में 45 करोड़ लोग मन एवं मस्तिष्क की बीमारियों से ग्रसित है। यह संपूर्ण विश्व में व्याप्त बीमारियों का 12.3 प्रतिशत हिस्सा है एवं वर्ष 2020 तक इसका हिस्सा 15 प्रतिशत तक हो जाने की आशंका है। इस रिपोर्ट का बारीकी से विश्लेषण करने पर पता चलता है कि मन एवं मस्तिष्क को धारणा और मनोरोग एवं मस्तिष्क रोग के वर्गीकरण को लेकर काफी हद तक अनिश्चतता एवं भ्रम की स्थिति बनी हुई है। ऊपरी तौर पर यह रिपोर्ट “मन एवं व्यवहार संबधित व्यधियों”, “मन एवं मस्तिष्क संबंधित व्याधियो” एवं मनोमस्तिष्कीय व्याधियों से सरोकार रखती है। इन सभी नामों अस्पष्ट रुप से आपस में बदला जा सकता है। हॉलांकि गहराई से देखने (विश्लेषण) करने पर पता चलता है कि यह रिपोर्ट मन एवं व्यवहार संबधी व्याध्यों से सबंधित है।

सबसे चौकाने वाली बात यह है कि मस्तिष्क संबधी आम बीमारियों का विश्लेषण एवं बकालत नहीं की गई है। जबकि इन बीमारियों के गंभीर मानसिक एवं सामाजिक परिणाम होते है।

यह रिपोर्ट बताती है कि वैज्ञानिक स्तर पर मस्तिष्क संबधी विकार समस्त मनोमस्तिष्कीय व्याधियों के पांचवे हिस्से को ही परिलक्षित करते है जबकि सच्चाई यह है कि मस्तिष्क संबंधी बीमारियों का प्राधान्य पहले से ही 13.1 प्रतिशत है जो कि मनोरोगों के प्रारंभ के साथ मिलाकर 23.2 प्रतिशत हो जाता हे।

मस्तिष्क संबंधी आम बीमारियों की उपेक्षा का अच्छा उदाहरण पक्षाघात है। जो कि वैज्ञानिक स्तर पर मृत्यु का तीसरा सबसे बड़ा कारण है। साथ ही विकासशील देशों में इस बीमारी का प्रभाव बढता जा रहा है। इस उपेक्षा का एक कारण यह भी है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पक्षाघात को मस्तिष्क विकारों में वर्गीकृत न करते हुये रक्‍त परिसंचरण संबंधी विकारों में रखा है।

मन एवं मस्तिष्क तो मिलकर काम करते है परंतु मस्तिष्क विज्ञानी एवं मनोरोग विज्ञानी नहीं | इसका एक दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम यह है कि मस्तिष्क रोग विशेषज्ञ मस्तिष्क रोगों को मनोरोगों से अलग कर इनके साथ जुडे सामाजिक लांछनो को मिटाने का प्रयास कर रहे है। मनोरोग विशषज्ञ भी सामाजिक लांछनों को मिटाने का प्रयास कर रहे है परंतु वे मस्तिष्क के बीमारी में योगदान की बात नहीं करते ।

मनोरोगों में मस्तिष्क के योगदान एवं मस्तिष्क रोगों में मन के योगदान को लेकर चिकित्सकों एवं जनसाधरण के बीच अधिकाधिक जागरुकता की आवश्यकता है । यह सब मस्तिष्क विज्ञान मनोविज्ञान एवं समाजशास्त्र के एक परेशान करने वाली एवं कम ज्ञात बात, मिर्गी रोगियों के साथ की जाने वाली हिंसा है । उन्होने बताया कि मिर्गी के रोगियों को उनके पारिवारिक सदस्यों द्वारा शारीरिक प्रताड़ना दी जाती है एवं महिला रोगियों के साथ बलात्कार की प्रायिकता भी अधिक होती है।

हमें नीतिशास्त्र एवं विज्ञान सम्मत सिद्वांतों के आधार पर लोगों ज दिलों दिमाग पर प्रभाव डालने की आवश्यकता महसूस होती है। अगर हम दानदाताओं को प्रभावित कर ऐसा कर पाते हैं तो हम दो क्रमिक हत्यारों – कम धन, कम देखभाल का सामना कर पाने में काफी हद तक आगे जा सकते है। मस्तिष्क विज्ञान को पुनः विन्यासित करने की अत्यंत आवश्यकता है ताकि हम विकासशील देशों में रहने वाले मरीजों की आवश्यकताओं को विश्व स्वास्थ्य संगठन के सामने रख सके एवं दिल जीत सके।

विश्व स्वास्थ्य संगठन को अब विश्वास में लेना होगा कि वह विकासशील देशों में उपेक्षित एवं छुपी हुई मस्तिष्क संबधी बीमारियों को गंभीरता से ले | अब समय आ गया है कि मस्तिष्क रोगों को मौलिक रुप से पुनः परिभाषित एवं विन्यासित किया जाये ताकि इन आम बीमारियों के सामाजिक एवं आर्थिक पक्ष को और जनसामान्य में इनकी स्वीकार्यता को वृहद्‌ रुप में समझा जा सके। ग्रचेन बरनेक एवं साथियों द्वारा किया गया शोध इस मुद्दे को अच्छी तरह से समझाता है। बरवेक के शोध का उद्देश्य जाम्बिया में मिर्गी रोग के आर्थिक एवं सामाजिक प्रभाव का अध्ययन करना था। सामाजिक लाछनों रहित अन्य दीर्घकालीन बीमारियों उदाः मधुमेह एवं उच्च रक्तचाप की तुलना में मिर्गी रोग से ग्रसित मरीजों का जीवन स्तर काफी निचला पाया गया। इन रोगियों में औपचारिक शिक्षा एवं विवाह की प्राथमिकता भी कम पाई गई। इनके घरों की गुणवत्ता भी निचले स्तर की थी एवं शुद्द पानी एवं अन्य मूलभूत आवश्यकताओं तक पहुँच भी कमतर आंकी गई हालांकि यह सारी बाते पहले से ही ज्ञात है।

आधुनिक ज्ञान पर आधारित होना चाहिएं इस तरह से तालमेल खासतौर पर (विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा नियोजित) इन बीमारियों के साथ जुड़े सामाजिक लाछनों एवं गलतफहमियों को मिटाने में काफी हद तक मददगार हो सकता है, जो कि वैश्विक स्तर पर बीमारियों के एक चौथाई हिस्से को इंगित करता है।

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