ज्यादा हरा, अलग परिदृश्य, खेत चौकोर नहीं Free hand design, The aesthetics /beauty of saturation.
Saturation of green
Saturation of Coconut plantation, of Rubber (not seen)
Saturation of Banana plantation of paddy (not as much)
Contract of green vegetation with red soil and blue sea
पश्चिमी घाट का वैभव। खूब पहाड़िया। अरबसागर का किनारा। महाराष्ट्र में सूखी पहाड़िया। Rugged sharp cliffs अनके किले। शिवाजी की कर्मभूमि, रणभूमि।
*त्रिवेन्द्रम
छोटा। कम भीड़। सफाई साधारण। ढलवा – उतार चढ़ाव। अलग स्थापत्य Not exactly colonial British but a peculiar blend – Dutch, Portuguese, Chinese, Muslim MG Road पर एक घण्टा शाम की।
*पद्मनाथ-स्वामी मन्दिर
भगवान विष्णु की शेषशायी मूर्ति। शाम का धंधलका और फिर रात। प्रागणों में मद्दिम प्रकाश। कपड़े बदले। धोती व अंगवस्त्र पहना। प्रशस्त्र गलियारे। ऊँचा विशाल गोपुरम। खूब सारा मूर्तिशिल्प। अनेक नयी मुद्राएं। व्यायाम, योग, खेलकुद विषाद, वृद्धावस्था, कृशकाय रोगी, नृत्य, पशु, स्त्रीसौन्दर्य। परन्तु मिथुन बहुत कम।
हर स्तम्भ पर दीप लिये मूर्तियां। तेल से गीले, काले व चिकने पत्थर। पीतल के बड़े-बड़े अनेकानेक सुंदर दीप-स्तम्म, समईयां, लटकते हुए दीपक। मण्डपम में और मूर्ति शिल्प।
Multi-sensory experience बहुइन्द्रिय अनुभूतिया
दृश्य: जो अभी कहे तथा और भी है।
श्रृव्य: घण्टे नगाड़े तुरही या पिपाड़ा जैसा वाध्य, कर्नाटक संगीत में नाद स्वरम्। आरती। बीच-बीच में भक्तों का उत्साह भरा जप घोष।
घ्राण: दीपों में जलते तेल की गंध। घने लम्बे खुले प्रायः घंघराले बालों वाली श्याम वर्ण मलयाली महिलाओं द्वारा इफरात से लगाया गया तेल और खूब सारी वेणियों (मोगरा, जूही) की गन्ध। भीड᳝ में ठूंसते व टकराते, उघडे᳝ बदन, पुरुषों के शरीर पर दमकते पसीने की गंध।
स्वाद: नगे पांव पत्थरों पर। बीच के चौगानों में सहसा मिली, धवल महीन कोमल रेत जिसमें पांच धंसते, सहलाये जाते, सूकून पाते। पूछने पर पता चला मूल रूप से यह मन्दिर सागर तट पर था। अब समुद्र 5 कि.मी. है। बीच में शहर है। परन्तु रेत वहीं है।
और दृश्य: विष्णु भगवान के दर्शन अत्यन्त संक्षिप्त हुए। तीर्थ – साबरीमाला जाने वाले श्रद्धालुओं को पवित्र मास जारी था। काले वस्त्र धारण करे हुए, मोटी मालाए गले में डाले, प्रायः हस्ट-पुष्ट युवाजन बड़े झुण्ड में आते। बहुत से दाढ़ी बढ़ाते। मन्दिर के गर्भगृह की बाहरी दीवारों पर भित्तिचित्र: Mural: अलग नयी शैली, पहली बार देखी। Crude features फिर भी सुन्दर।
बहुत देर तक घूमता रहा। कुछ देर रेत में बैठा। फिर बाहर निकल कर द्वार पर, सीढ़ियों पर। जैसा कि रिवाज है मन्दिर की देहलीज पर, पेढ़ी पर, जगत पर बैठने का।
आम धार्मिक स्थानों सा दृश्य। धार्मिक गीतों के कैसेट बेचने वालों की दुकाने जोर से गीत बजा रही है। कुछ धुने, कुछ ट्रेक अच्छी लगी। स्मृति चिन्हों की सस्ती दुकानों पर मोलभाव करते सैलानी थे। घटिया तेल में तले जाते भोजनों के रेस्तरा ले। रतलामी सेव की स्टेशन रोड वाली दुकानों की माफिक केले की चिप्स, चिवड़ा आदि के देखर देख तैयार किये जा रहे थे, पैक किये जा रहे थे। नारियल तेल था पर गन्ध उतनी बुरी न लगी जितनी आशंका थी।
प्रत्येक बड़े मन्दिर की भांति यहां भी एक छोटा सरोवर था जिसमें भक्त गण पारम्परिक रुप से स्नान करते होंगे।
कन्याकुमारी
यात्रा अपने लक्ष्यों को पूरी तरह नहीं पा सकी। न तो हमारा होटल किसी बीच (Beach) से लगा था। विवेकानन्द शिला स्मारक जाने की नावों का समय समाप्त हो चुका था। अगले दिन सुबह आठ बजे लौटना था और नावें उसके बाद शुरु होती। कन्याकुमारी में Sea-beach है ही नहीं। मेरे साथी निराश हुए। किनारा उबड़-खाबड़ पथरीला और अत्यन्त ढलया है। सबसे बुरी बात मानव-विष्ठा Open field defecation मारे दुर्गन्ध के बुरा हाल। बहुत शर्मनाक।
फिर भी मैं अकेला दूर तक गया। शाम की हवा अच्छी थी। सूरज, डूबने के पहले अपने स्वर्णिम सौन्दर्य की आभा बिखरते हुए, कुछ छित्तरे हुए महीन नरम बादलों के साथ लुकाछिपी खेल रहा था। सागर हमेशा की तरह धीर गम्भीर अनन्त मुद्रा में विस्तारित था। दूर जा कर एक साफ सुथरा किनारा मिला। लहरों में पांव गीले किया। भीगी हुई रेत में अनेक रंगों के मिश्रण से बने अज्यामितिय रुपाकारों को निहारता रहा। गहरा बैगनी, काला, Dark Brown अजीब से Metallic colors थे।
फिर जल्दी लौटना था। चारों मुस्लिम साथी कतई नहीं रुकना चाहते थे। अधेरा बढ़ रहा था। किनारे की सड़क व पर्यटन निवासों की बत्तियां जल उठी थी। तमिल आदि ऋषि थिरुवल्लुर की विशाल प्रतिमा जगमगा उठी थी। विवेकानन्द स्मारक के समीप एक अन्य चट्टान पर कहीं बड़ा व भव्य निर्माण किया गया है। तमिल उपराष्ट्रीयता की भावना ने राजनैतिक नजरिये से शायद होड़ लेने की कोशिश करी है। क्या विवेकानन्द सिर्फ उत्तरी या पर्वी भारत के थे?
कन्याकुमारी यह देखना, कल्पना करना या अहसास करना कि आप भारत के सबसे /धुर दक्षिणी बिन्दु पर खड़े होकर।
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