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मारीशस – 2001 (परदेश में रात के ठिए की तलाश)


मारीशस में पहली शाम

रामनवमी का दिन था। 2 अप्रैल 2001 शाम 7 बजे अंधेरा हो चुका था। मारीशस के दक्षिणी आकाश में टिमटिमा उठे थे। चांदनी छिटकी थी।रास्ता सुनसान था। हम चार (पति, पत्नी, पुत्र, पुत्री) अकेले मंदिर जा रहे थे। मार्ग के एक और उजाड़ कच्ची जमीन व जंगली पौथे थे। दूसरी ओर तारांकित होटल (बीच-रिसाई) के दूर तक फैले परिसर थे। भाई बहन के बीच चुहुल और नोंक-झोंक जारी थी। अध बीच में तीन-चार टेक्सी वाले अपने वाहनों के साथ अड्डा जमाए थे। धुंधलके में उनकी आकृतियां दिखी। उन्होंने शायद हम पर कुछ टिप्पणियां की, फिर पूछा टेक्सी… चाहिये क्या … (फ्रांसीसी क्रिओल में)। हम आगे बढ़ जाये।

आधे घण्टे बाद मंदिर से लौटे तो चालक दल मौजूद था। इस बार उन्होंने हमारी हिन्दी में बातचीत को चिन्ह लिया। उत्साह से पुकारा अरे भारत भाई, शिवाला गये थे क्या? दर्शन करने के लिए? आज रामनवमी है ना। उनका स्वर खुशी से गदगद था। बहुत अच्छा-बहुत अच्छा। फिर कुछ छुटपुट बाते आत्मीयता व मित्रता से भरी हुई। मारीशस की यात्रा ऐसे ही खुशनुमा अनुभवों से सराबोर रही।

छोटा भारत – मारीशस

मारीशस को छोटा भारत कहना कुछ हद तक सही हो सकता है। परन्तु ऐसा करने में दोनों के साथ अन्याय है। भारत में भूगोल व ऐतिहासिकता का फलक बहुत अधिक व्यापक है। मारीशस वाकई में बहुत छोटा सा देश है। नन्हा सा। फिर भी अपने लघु संसार में भारत की विविधता को प्रतिबिम्बित करने के प्रयास में रत। मारीशस के इन्द्रधनुष में कुछ खास रंग है जो भारत के पास नहीं। इन रंगो का अवलोकल आसान है। कदम कदम पर सतरंगी संस्कृति के दर्शन होते हैं। दूर नही जाना पड़ता। प्रयत्न नही करता पड़ता। ढूँढना नही पड़ता। मारीशस के दक्षिण में स्थित शामारेल नामक पठारी पहाड़ जंगल में स्थित सतरंगी भूमि मिट्टी के समान, सब लोग शामारेल जरूर जाते है। उसे मारीशस का प्रतीक चिन्ह मान सकते है। ज्वालामुखी के दग्ध उदर से जब इस द्वीप ने समुद्र की गहराई से अपना जन्म लिया था उस समय की रासायनिक क्रियाओं ने अनेक रंगों वाली मिट्टी पैदा की थी। मारीशस का चौरंगा राष्ट्रीय ध्वज भी कुछ ऐसा ही लगता है।

मारीशस का लघु भारत आज भी अपनी पितृभूमि और पुण्यभूमि से जुड़ा हुआ है। भाषा धर्म और संस्कृति की अम्बिलिकल नाल अभी तो जीवित है। आगे क्या होगा? बहुत भरोसे के साथ नही कहा जा सकता। वक्त के थपेड़े हिन्द महासागर की लहरों के थपेड़ों से ज्यादा बलवान हो सकते हैं। आधुनिक युग में तक्नालाजी, विकास, व्यापार, सार्वभौमिकरण आदि के जोर पर चलती विसंस्कृतिकरण की प्रक्रिया का अंजाम क्या होगा कहना मुश्किल है।

मैं नहीं जानता कि ये परिवर्तन अच्छें है या बुरे। यदि अच्छे हैं तो कितने अच्छे। यदि बुरे है तो कितने बुरे। मैं नही जानता की ये परिवर्तन कालचक्र, नियतिचक्र के साथ अपने आप हो रहे है या किसी साजिश योजना षडयंत्र आदि का परिणाम है। मैं नही जानता कि विसंस्कृतिकरण की चाल को रोकना संभव है या नहीं या कि रोकने का कोई प्रयत्न किया भी जाना चाहिये या नहीं।

मारीशस में सड़क यात्रा  

कार किराये पर लेकर घूमना सस्ता सुंदर तरीका सिद्ध हुआ। मैंने और नीरू ने बारी बारी गाड़ी चलाई। मारुति का जाना पहचाना माडल, बायें हाथ की ओर चलाने का नियम। अच्छी पक्की समतल सपाट चिकनी चौड़ी सड़कें, व्यवस्थित ट्राफिक, भीड भाड़ कम, थोड़े से वाहन, तेज सरपट गति का आनंद, खुशनुमा मौसम। मनभावन हरा भरा परिदृश्य, रास्ता पूछने के लिए पर्याप्त लोग मौजूद। वरना अमेरिका जैसे देश में सड़कों पर लोगों के दर्शन को तरस आओ। हिन्दी या अंग्रेजी में बातचीत की सुविधा। नक्शा खुला पढ़ा रहता था। पर बहुत विस्तृत व सम्पूर्ण नही था। स्थालों के फ्रांसीसी नाम की नामपट्टीकाओं से उसका मिलान। कई बार हड़बड़ी हो जाती। कभी आगे निकल जाते। बाकी सदस्य चीखते चिल्लाते कोसते टोकते। कार यकायक तो रूक नही सकती। ब्रेक लगाते लगाते भी समय लगता। हर कही यू टर्न नहीं कर सकते, हर कहीं रोक नहीं सकते। बिना इन्डीकेटर लाइट इंगित प्रकाश के लेन नही बदल सकते। भारत जैसा नही है कि जब जो जी में आये वह करो। फ्री फार आल। वहीं नियम कायदे हैं। लोग उनका पालन करते हैं। मान लीजिए किसी सुनसान चौराहे पर लाल बत्ती नही लगी है परूतु स्टाप का चिन्ह लगा है। सभी वाहन कम से कम एक सेकण्ड के लिए जरूर रूकेंगे चाहे कोई ट्राफिक न हो। कोई भी चालक अपनी गति बढ़ाएगा नही। जो वाहन पहले रूका था वही वाहन चौराहा पहले पार करेगा। इसी प्रकार गोलाकार ट्राफिक सर्कल पर जो गाड़ी से सर्कल में घूम रही है उसे प्राथमिकता मिलेगी, जो गाड़ी सर्कल में घुसने वाली है वह प्रतिक्षा करेगी। यातायात के इन आसान मूलभूत शिष्टाचार और नियमों का अपने देश में प्रचार प्रसार नही हुआ है। जो विशेषज्ञ अपने आप को ट्राफिक का जानकार मानते है और जिनके ऊपर ट्राफिक व्यवस्था की जिम्मेदारी है वे भी इन कायदों से अनभिज्ञ है या उनका पालन करवाने में कोताही बरतते हैं।

एक पंचराहे पर हम सस्ता चुनने में चुक कर रहे थे। गलती का अहसास होने पर गाड़ी रोकी, बगल में पुलिस थाना था व एक सिपाही बाहर गेट पर खड़ा था। थोड़ा डर लगा, सोचा कि डांट पड़ेगी। गंतव्य स्थल बताने उसने हमें मुड़ने की सलाह दी। हमारी मदद के लिए उसने सड़क पर आकर दोनों ओर का ट्रैफिक रोक दिया। पूरे विस्तार से आगे का मार्ग अत्यंत विनम्र तरीके से समझाया। हमने इत्मीनान से गाड़ी पलटाई। पेट्रोल के दाम भारत के समकक्ष हैं। दूरियां अधिक नही है। पूरे द्वीप आकार ही कितना है? उत्तर से दक्षिण 60 कि.मी., पूर्व से पश्चिम 40 कि.मी. पूरा मुल्क बहुत तफसील से, बहुत करीब से देखा। जहां दिल किया गाड़ी रोककर नजारा देखा। या विश्राम किया। नाश्ता पानी किया।

गन्ने के खेत और गिरमिटिया

मूलरूप से मिट्टी का रंग लाल नारंगी है। कहीं कहीं गहरा कत्थाई या काला, हरी भरी वनस्पतियों और खेतों के साथ लाल भूमि का रंग संयोजन मनोहारी लगता है। हरियाली के ढेर सारे रूप। अनेक शेड। सबसे ज्यादा है गन्ना। मीलों तक फैले इतने घने इतने ऊंचे ईख के खेत पहले नही देखे, गन्ना ही गन्ना आंखे संतृप्त हुई। मुझे इस संतृप्ति (सेचुरेशन) का सौंदर्य भाया, ऐसा ही आनंद मैंने केरल में नारियल व केले के संदर्भ में महसूस किया था। गन्ने के खेतों के मध्य कच्चे सर्पीले रास्ते। मशीनी फव्वारों से सिंचाई होती, इस गन्ने की फसल को हालैण्ड वासी डच लोग लाये थे।

समुद्री तूफानों झांझावतों (साइक्लोन) से जहाँ अन्य फसलें नष्ट हो जाती हैं, गन्ना खड़ा रहता है। जिसकी खेती के लिये 19 वीं शताब्दी में अंग्रेजी राज में उत्तरप्रदेश बिहार से भोजपुरी लोग मजदूरी के लिये लाये गये थे। कम्पनी के साथ उनका करार था ‘एग्रीमेंट’, उनका अपभ्रंश बना ‘गिरमिटिया’। इन भरतवंशियों ने अपने खून पसीने से इस द्वीप की उजाड़ भूमि को उपजाऊ बनाया। उसका जीवन विकट और कठिन था। घोर यातनाओं से भरा हुआ। रूस के इस साइबेरिया में स्थित ‘गूलग’ या हिटलर के यूरोप में यहूदीओं के यातना शिविरों के समान। दुर्भाग्य है, कि उस पीड़ा भरी जिजीविषा को अंतरराष्ट्रीय पहचान नही मिली। उसे बयान जरूर किया है। मारीशस वासी हिन्दी साहित्यकार श्री अभिमन्यु अनत ने उन पीढ़ियों के बलिदान श्रम व आस्था को अपनी रचनाओं में अमर कर दिया है।

ग्रि ग्रि – प्रकृति का भव्य रूप

मारीशस द्वीप का दक्षिणी किनारा है, ‘ग्रि ग्रि’। ऊंचे कगारों वाली चट्टाने और टकराती पछाड़ खाती लहरें। सुहानी शाम थी। आकाश के रंग पल पल बदलते थे। बारिश धूप और इन्द्रधनुश की आँखमिचोली थी। किनारा खतरनाक था। तैरने की मनाही करते सूचना पट लगे थे। कुछ देर तक बैठे रहे। लहरों का और फरफराती हवा का मिलाजुला संगीत सुनते रहे। उस वक्त पर्यटक इक्का-दुक्का ही थे। प्रकृति का दुर्दान्त परन्तु भव्य व सुंदर स्वरूप इस वीरानी के कारण अधिक उभर कर महसूस हो रहा था।

रात का ठिकाना

फिर जल्दी ही लौटना पड़ा। रात रुकने के लिये अगली होटल ढूंढना थी। नक्शा देखकर जो क्षेत्र तय किया था कुछ दूर था। मार्ग में कोई बड़ा गाँव या क़स्बा या होटल अंकित नहीं थे। मानचित्र यूं तो बेहद उपयोगी होते है परन्तु कभी कभी धोखा दे आते हैं। टमरिण्ड जाने के लिये एक छोटा दिखनेवाला मार्ग चुना। थोड़ी चढाई मिलने लगी। रास्ता ऊबड़खाबड़ हो चला। मध्यप्रदेश की सड़कों जैसा, गले के खेत और बीच में जंगल। एक दिन पहले हमारी गाड़ी का इंजिन दॉ मैं दयू शाउसर नामक खूब गरम हो गया था। जलने की दुर्गन्ध आयी थी। घबराकर हम लोग बीच में राम राम जपते लौटते पड़े थे। अन्ततः खैरियत रही। आज फिर पहाड़ी रास्ता पाकर शंकाओं ने घेर लिया। बड़ी देर बाद कुछ आदम जात लोग दिखें। सरकारी बस के चालक-सहचालक थे। पूछने पर उन्होंने कुछ असमंजसता के साथ हामी भरी कि हाँ यह दिशा सही है।…. और सड़क? …. हाँ वह भी ठीक ही है। मारे डर के नजारों की सुन्दरता को भोगना दुर्भर था। केवल अन्विता मुक्त भाव से यह काम कर पा रही थी। और कुछ हद मैं थी। नीरू और निपुण पूरे समय पेशानी से पैरों तक की मांसपेशियों को ताने बैठे रहे होंगे।

छः बजे गोधूलि के समय (गो कि मारीशस कहीं भी खुले में गायें नहीं दिखी) पहाड़ी क्षेत्र की पूरी ऊंचाई पर स्थित अचानक शामरेल आ पहुँचे। यहां हमें आना था परन्तु शाम पांच बजे बन्द हो जाता था। अब सड़क अच्छी मिली, कुछ ट्रेफिक था। दूर कुछ घरों में सांझ की दिया बत्ती दिखने लगी थी। हम नीचे उतर रहे थे। एक बार फिर समुद्र अवतरित हुआ। कितनी बार कितने रूपों में समुद्र के दर्शन, हर बार भला लगता। इतने में यकायक साइकिलों का एक छोटा समूह मिला। कुछ देर बाद और साइकल चालक, बीच में उनके साथ एक बड़ी वेन थी। धीमी गति से उनका साथ रखे हुए, साइकिल सवार युवा थे। चटख गाढ़े रंगों की स्पोर्टस ड्रेस पहने थे शायद लम्बी दूरी की प्रतियोगिता थी। पहाड़ी पर और लगाते हांफते पसीना बहाते खिलाड़ी देखकर रोमांच हुआ। क्रास कंट्री रेस होगी शायद। ‘टूर द फ्रांस’ नामक साइकिल स्पर्धा विश्वविख्यात है। यह ‘दुर द मारीशस’ हुई।

पहाड़ से ऊतरने पर एक गाँव मिला, कोई होटल नही। आगे बढ़े, कम आाबादी का क्षेत्र था। पूछते पूछते एक होटल के लिये मुख्य मार्ग से हट कर एक अंधेरी बंद संकरी स्ट्रीट में घुसते चले गये, गली के छौर पर शोर किया, हार्न बजाया द्वार घण्टी बजाई। भवन अंधेरे में डूबा था। बड़ी देर में धीरे धीरे एक बन्दा आया। बोला कमरा तो है पर बिजली नही है। ‘ऐसा क्यों?’ ‘पता नही’।

फिर मुख्य मार्ग पर आकर एक अन्य दिशा में दूसरी होटल की राह पकड़ी। यह महंगी निकली, एक रात का एक व्यक्ति का किराया 4500/- हमें अगली सुबह वहां रूकना न था। आगे बढ़ना था। फिर एक चीनी रेस्तरां पहुंचे। रिसेप्शन की युवती सह‌योगात्मक निकली। दो दूसरी होटलों के नम्बर ढूंढकर फोन मिलवाया, एक में कमरा खाली न था। दूसरी रखरखाव व मरम्मत हेतु बन्द थी। रात बढ़ती जा रही थी। भूख लग आई थी। दिन भर की थकान थी। नींद का प्रभाव आने लगा था। निप्पू कहने लगा अब बहुत हो गया उसी महंगी होटल में चलो। गुस्से में चिढ़ कर मुंह से निकल गया ‘महंगी जगह है न इसलिए बस वहीं का मन बना लिया है तूने’ निप्पू ने उदास होकर आह भरी ‘अब यही सुनना बाकी रह गया था’। बेमन वापस मुड़े। रास्ते में एक पुलिस स्टेशन दिखा। बस यू ही ख्याल आया कि क्यों न यहां भी पूछ लें।

थाने में चार पांच पुलिसकर्मी थे। साफ सुथरा व्यवस्थित परिसर व आफीस। अनेक शिक्षाप्रद पोस्टर थे। कुछ अपराधियों के चित्र लगे थे। मैंने जाकर परिचय दिया ‘हम लोग भारत से आये सैलानी है’ क्या एक रात के लिये होटल या ठहरने की जगह मिल सकती है।

‘आप आइलैण्ड स्पोटर्स क्लब क्यों नही चले जाते’

वह बहुत महंगी है

तो फिर टमरिंड चले जाइये

वहां फोन किया था। बन्द पड़ी है

वे लोग सोचते रहे। आपस में परामर्श किया, फिर उन्हें याद आया ‘अरे हां मुख्य मार्ग पर सान्तना रेसीडेन्स है’।

वहां फोन लगवा दीजिये न

फोन नही है वहां

सान्तना रेसीडेन्स

रात्रि के साढ़े नौ बजे सान्तना रेसीडेन्स पहुंचे। इस दुमंजिला भवन के एक कमरे से मद्धिम प्रकाश आ रहा था। आगे के बगीचे में अंधेरा था। सबको सड़क किनारे कार में छोड़कर मैं अंदर घुसा। बगीचे का बड़ा गेट चरड᳝ चूं की आवाज में साथ खुला। घांस ऊंची व बेतरतीब थी, डर लग रहा था कि कहीं कोई कुत्ता न हो। अन्दर खुले से प्रांगण में ट्यूब लाइट जल रही थी। पास कमरा खटखटाने पर एक मोटा गोरा युवक बाहर आया उसके लम्बे बालों की पोनी टेल बनी हुई थी। सिगरेट का धुंआ फूंकते उसने बताया कि कमरे खाली है पर मैनेजर बाहर गया है और देर रात लौटेगा। पुनः पूछने पर उसने बताया कि शायद नौकर पीछे रहते हों। कम्पाउण्ड के पिछवाड़े कुछ क्वाटर्स बने थे। बहुत पुकारने पर दो दुबले पतले निग्रो बाहर आये। एक अधेड़ उम्र का और एक किशोर। शुरू में उन्होंने मना किया। मेनेजर की प्रतिक्षा करने को कहा। परन्तु बच्चों और फेमिली की दुहाई देने पर चाबी लेकर वापस आये। इतनी देर कार का हार्न बजा बनाकर मुझे बुलाया जा रहा था। कमरे सादे सरल थे। चार सौ रुपए प्रति कक्ष किराया था। कार अन्दर लाये सामान उतारा। भोजन के लिए दो कि.मी. दूर एक रेस्टोरेंट गये। वापस लौटते समय महसूस किया कि एक कार हमारा पीछा कर रही है। सान्ताना रेसीडेंस के अहाते में हमारे प्रवेश करने पर वह रूक गई। उसमें से चार छायाएं उतरी और भारी बूटों की आवाज करते हमारी ओर चली आई। पास से देखा तो हमारी जान में जान आई। पुलिस वाले थे। यह पुख्ता करने आये थे कि हम लोग ठीक जगह पहुंच गये हैं या नहीं। भरोसा दिलाते हुए उन्होंने पूछा ‘सब ठीक है न’? किराया ज्यादा तो नही हैं? कमरा मिला या नही? आप निश्चिंत रहिये। यहां कोई गड़बड़ नही होगी। हम इधर पास ही है। ये अच्छे लोग है। अब हमारी नींद का प्रबंध हो गया था। दोनों अश्वेत कर्मचारियों ने दौड़कर काम करा। दो स्टैंडिंग पंखे लगाये वरना मच्छर व गर्मी बहुत थे।

जर्मन पर्यटक

सोने के पहले गौरे रहवासी से गपशप की। वह जर्मनी से आया था और तीन सप्ताह से मारीशस घूम रहा था। कभी अकेला। कभी कहीं कहीं कुछ समय के लिये एक मारीशीयस गर्लफ्रेंड उसके साथ रहने आ जाती थी। सीपी शंख के एक बड़े खोल में वह अधजली सिगरेटों के टुकड़े ठूंस ठूंस कर भरता जा रहा था। पर आद‌मी अपनी जगह बुरा न था। ये कुछ पश्चिमी लोग अजीब होते हैं। आसानी से खुलते नहीं। अपनी खोल में बंद रहते है। निहायत व्यक्तिवादी, व्यक्ति की निजता, उसकी प्रायवेसी, बस यूं ही दिक न किये जाने के प्रति उनका आग्रह आदि गुणों पर गर्व करते हैं और उनके थोड़े से हनन से परेशान व नाराज हो जाते हैं।

मारीशस में सुबह का आनंद

सुबह चिड़ियों की मीठी चहचहाट से नींद खुली। मारीशस में खूब सारी चिड़ियाएं है। उनका मधुर शोर भरा संगीत कदम कदम पर मिलता है। अनेक जानी पहचानी जैसे गौरेया, कोयल, मैना, कबूतर, तोते और बयां। सुराहीनुमा उल्टे लटके घोंसलों में बया भारत में भी नीचे घुसती होगी। परूतु वहां काम से फुरसत कहां। मारीशस में शुद्ध अवकाश के क्षणों में बया का घोसले में से आना जाना ही बहुत देर तक देखते रहे। यहां एक सुर्ख नारंगी लाल चिड़िया नयी मिली। बहुत सुंदर। बहुत चपल।

रउफ जागू – बड़बोला टेक्सी ड्राइवर

अगले दिन शामरेल की सतरंगी भूमि और गंगातालाब ग्रां बेसीन देखने जाना था। पिछली शाम शामरेल से उतरते समय महसूस कर लिया था कि किराये की कार का इंजिन चढाई पर जवाब दे जायेगा। इसलिये बहुत देर भटक कर एक टेक्सी ढूंढी। ड्रायवर हिन्दी अच्छी बोलता था लेकिन बड़बोला था। नाम था रउफ जागू। फ्रांसीसी क्रियोल लहजे के कारण उसके मुंह से निकला उच्चारण समझ न आया था। अन्त में जाते समय जब उसने विजिटिंग कार्ड दिया तो समझ आया। मुस्लिम हिन्दू नामों का मिश्रण और भी अवसरों पर देखा, हमारी एक पहली होटल का मालिक था नदीम नन्दलाल। शायद पिछली एक या दो पीढ़ीयों में धर्म परिवर्तन हुआ हो। रउफ कहता रहा ‘मारीशस के लोग भले है। हिन्दु अच्छे है मुसलमान अच्छे है उनके बीच नों प्राबलम। पर क्रिश्चियन लोग गड़बड़ है’। रउफ ड्रायवर अपने काम में सफल सेल्समेन था। उसने हमें अतिरिक्त क्षेत्र घूमने के लिये राजी कर लिया।

ज्वालामुखी का गड्डा – त्रुक्स ओ सर्फ और क्यूपाइप शहर

क्यूरपाइप शहर व वहां स्थित त्रुक्स ओ सर्फ नामक विशालकाय ज्वालामुखी का गड्डा देखने की लालसा में हमने हां कर दी। उसका लालच था हमें राल्फलारेन व फ्लोरियल की दुकान पर ले जाना। जहां खरीदारी करने से उसे कमीशन मिलता था। और सचमुच हम लोगों ने थोड़ी बहुत खरीदारी कर ही डाली। किसी देश के स्मृति चिन्ह खरीदना चाहिए। ऐसी चीजे जो सिर्फ वहां मिलती हो या बनती हो या वहां की याद बनाये रखती हों। डो डो पक्षी को विलुप्त हुए 3 सौ वर्ष हो चुके। परन्तु वह आज मारीशस की खास पहचान बना हुआ है। एक बड़ा सा डो डो खरीदा, किसी राष्ट्र राज्य या नगर के रंगीन चित्रों वाली चिकने पन्नों वाली पिक्चर बुक खरीद‌ना मुझे सदा प्रिय रहा है। आने वाले वर्षों तक उसे कभी कभी पलट लेना ड्राइंग रूम के शेल्फ में सजाकर रखना, पढ़ लेना, मित्रों को दिखाना आदि शगल अच्छे लगते है। मारीशस की विशिष्टताओं से अंकित हास्यप्रद टी शर्ट भी खरीदे।

क्यूपाइप शहर मारीशस के केन्द्रीय पठार पर स्थित है। तुलनात्मक रूप से कम गर्म। बेहतर रहवासी इलाका है अंचल सम्पति के दाम ऊंचे हैं। पुराने ठण्डे ज्वालामुखी के मुंह को देखा। गहरा विशालकाय कटोरा था। हरे जंगल से आच्छादित। दूर चारों और मारीशस के अन्य पर्वत थे। एक गाइड ने नाम सुनाए, हम लोग बार बार ‘क्या क्या’ करते वह दुहराता पर फ्रांसीसी उच्चारण समझने की आदत इतनी जल्दी संभव नहीं।

मारीशस के पहाड़ व जंगल के स्वादिष्ट फल

मारीशस के पहाड़ ज्यादा ऊंचे नहीं। ऊंचाई 3000 फीट होगी। परन्तु उनके रूप और आकार अनुठे है सुन्दर है, विविध है। एक का नाम ‘अम्गूठा पहाड’ है जो हाथ के अंगुठे सा दिखता है। थ्री मामेल, तीन स्तन, लायन माउन्टेन, मुछिया पहाड़ आदि सभी का अपना अलग सौंदर्य है। कुछ पहाड़ों में सुन्दर ट्रैकिंग पथ है। हम काली नदी (ब्लेकरीवर) के उद्दम का ट्रेकिंग क्षेत्र छू कर आये। रास्ते में पड़ रहा था। घनी झाड़ियां थी। ठंडक थी। सुर्ख लाल रंग के बेर के आकार के फल थे। बहुत मीठे और रसीले, जो थोड़े कच्चे थे वे खट्टे थे। स्वाद का वर्णन मुश्किल है। नामोच्चारण शायद ‘गुआवा’ या ऐसा ही कुछ था और स्वाद भी थोड़े अमरूद से मिलता था। बारीक कुरकुरे बीज थे। झाड़ियों से पककर जमीन पर पड़े फलों में से बीन बीन कर खाने में बहुत मजा आया, एक दिन पहले राजधानी पोर्टलुई में फुटपाथ पर फेरी लगाने वाले लड़के से पहली बार खरीदे थे। वह नमक मसाला डालकर बेच रहा था। यहां जंगल में डाल पक ताजे फलों की बात ही और थी। त्रुक्स ओ सर्फ ज्वालामुखी के पठार से मारीशस द्वीप के एक बड़े दक्षिणी और पश्चिमी भाग का सुन्दर विहंगम दृश्य दिखाई पड़ता है। दूर क्षितिज के पास आसमान और समुद्र की नीली आभाएं एक दूसरे में तिरोहित होकर अनंत सौंदर्य की अनूभूति कराती है।

गंगा तालाब – मारीशस का पवित्र तीर्थस्थल

ग्रां बेसीन (ग्रांड यानि बड़ा) भी एक ठण्डे ज्वालामुखी का विशाल मुंह है। जहां बारिश की पानी भर जाने से एक भव्य और सुन्दर तालाब बन गया है। हिन्दुओं ने इसका नाम रखा ‘गंगा तालाब’ और किनारे पर बनाया पवित्र तीर्थ स्थल और मारीशेश्वर नाम से शंकरजी का मंदिर, बाहर एक बोर्ड पर लिखा है ‘तेरह ज्योर्तिलिंग’। बारह भारत में है और यह तेरहवां मारीशस में। प्रत्येक शिवरात्री पर बड़ा मेला लगता है लाखों श्रद्धालु आते है। मार्ग चौड़ा व विकसित है। खुब बड़े चौड़े पार्किंग स्थल है। पैदल पथ भी है क्योंकि अनेक भक्तों के अनुसार इस तीर्थयात्रा का फल पैदल आने जाने से ही मिलता है। संपूर्ण मंदिर क्षेत्र व तालाब बहुत साफ व व्यवस्थित था। भारत के मंदिरों की गंद‌गी को याद करके मन उदास हुआ।

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