न्यूरो क्विज़ (Neuro Quiz) फ़ोटो एल्बम
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एक कहानी के अनुसार आयरलेण्ड की राजधानी डबलिन में रंगमंस के एक व्यवसायी रिचर्ड डेली ने किसी से शर्त बद ली कि एक नये बिना अर्थ वाले शब्द को यह पूरे शहर में एक दिन में चलन में ला देगा और लोग उसे अर्थ भी प्रदान कर देंगे। एक शाम नाटक के बाद उसने अपने थिएटर के कर्मचारियों को बहुत से कार्ड बाटे, जिन पर क्विज़ लिखा हुआ था और कहा कि शहर की दीवारों पर यह शब्द पेन्ट कर डालो। अनेक दिन लोगों में इस की चर्चा थी और देखते ही देखते यह अज्ञात शब्द चलन में आ गया। क्विज नाम का एक खिलौना भी हुआ करता था ।
अंततः इस अंग्रेजी शब्द (क्चिज) का बहुतायात से उपयोग 19 वीं शताब्दी के मध्य में संभवताः अमेरिका में हुआ । किसी अपराध की जांच में इक्यूजीटिव शब्द का उपयोग पहले शुरू हुआ था।
लेटिन भाषा के शब्द क्विज (तुम कौन हो?) से भी इसकी उत्पत्ति मानी जाती है। सामान्य से हट कर व्यवहार करने वाले व्यक्ति को विचजिकल कहते हैं।
छात्रों के ज्ञान का आकलन करने हेतु प्रश्नावली व उत्तरों की सूची को क्विज़ कहते हैं। पहेलियाँ बूझना अपने व दूसरे देशों की लोक संस्कृति का हिस्सा रहा है। क्विज़ का मनोरंजक पहलू भी होता है। न केवल पूछने वाले व जवाब देने वाले बल्कि इसे पढ़ने या सुनने वाले भी आनन्दित और लाभान्वित होते हैं। कौन बनेगा करोड़पति जैसे कार्यक्रम ने सिद्ध किया था कि क्चिज या प्रश्नमंच भी आम जनता में लोकप्रिय हो सकते हैं। इससे पहले भी सिद्धार्थ बसु और डेरिक ओ ब्रायन जैसे क्विज मास्टर अनेक गम्भीर परन्तु रूचिकर प्रस्तुतियों लेकर हाजिर होते रहे हैं।
किसी विषय के ज्ञान की परख हेतु कोई भी एक विधि अपने आप में सम्पूर्ण नहीं हो सकती। क्विज, अनेक उपायों में से एक है। उसकी अपनी खूबियों, अनेक उपायों में से एक है। उसकी अपनी खूबियों, फायदे और प्रामाणिकताएं है। साथ ही साथ उसमं कमियाँ है। शायद रटने पर जो ज्यादा रहता है या फिर महज तथ्यों को जानने पर ढेर सारी जानकारी में से सार-सार निकालना, विश्लेषण करना, गहरा अर्थ ढूंढना, अन्तसंबन्ध बनाना, आगे की सोचना जैसी बौद्धिक प्रवृत्तियों के आकलन व प्रोत्साहन में क्विज कितना योगदान देती है? शायद कम। यह इस बात पर भी निर्भर करता है क्विज़ के प्रश्न बनाने वालों का ज्ञान य समझ कैसी है? वे छात्रों में किन गुणों को बढ़ावा देना चाहते हैं?
वर्तमान न्यूरोक्विज़ को तैयार करते समय इन बार्ता पर पर्याप्त रूप से गौर किया गया है।
इन्दौर न्यूरोक्विज़ का इतिहास
महात्मा गांधी स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय और महाराजा यशवन्तराव चिकित्सालय के वरिष्ठ न्यूरोफिजिशियन डॉ. अपूर्व पौराणिक सदैव न्यूरालॉजी विषय में बेहतर शिक्षण हेतु प्रयत्नशील रहे हैं। उन्होंने हमेशा महसूस किया कि चिकित्सा छात्रों में न्यूरालॉजी विषय को लेकर एक भय मिश्रित काम्प्लेक्स बना रहता है। एम.बी.बी.एस. के प्रथम वर्ष से ही न्यूरोएनाटॉमी व न्यूरोफिजियोलाजी के बारे में धारणा व्याप्त कर दी जाती है कि ये कठिन हैं। अन्तिम वर्ष में मेडिसिन की प्रायोगिक परीक्षा में यदि न्यूरालॉजिकल बीमारी से ग्रस्त मरीज लांग केस के रूप में मिल जायें तो छात्र घबरा उठता है।
चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में न्यूरोलॉजी एवं न्यूरोसर्जरी विषय शुरु से ही नीरस माने जाते रहे हैं। आखिर ऐसा क्यों? कुछ कारण हो सकते हैं, जैसे कि न्यूरोलॉजी में अधिकतर बिमारियाँ व इलाज लम्बे समय तक चलते हैं। विकलांगता लम्बे समय तक या जिन्दगीभर बनी रहती है। कुछ ही बिमारियों का कारगर इलाज उपलब्ध है या अन्य विषयों के मुकाबले कम शोधकार्य उपलब्ध हैं।
न्यूरोसर्जरी के सन्दर्भ में लोग सोचते हैं कि शल्यक्रिया के नतीजे अच्छे नहीं होते । अत्यंत जटिल आपरेशन होते हैं जो अधिक लम्बे समय तक चलते हैं। अधिकांश अस्पतालों में अन्य विषयों की तुलना में संसाधनों की कमी होने से इसे कम ग्लेमरस (या कम फेशनेबल) माना जाता है। आपरेशन के बाद भी लम्बे समय तक फिजियोथेरेपी एवं रिहेबिलीटेशन पर निर्भरता बनी रहती है।
डॉ. अपूर्व पौराणिक के अनुसार ऐसा कतई नहीं होना चाहिये । चिकित्सा विज्ञान की अन्य शाखाओं की तुलना में न्यूरालॉजी गणित जैसा है जिसमें बड़े सटीक और रोचक नियमों का बोलबाला है। मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों की एनाटामी व उनके द्वारा सम्पादित कार्यों की जानकारी यदि भलीभांति समझ ली गई है तो बाद में सब आसान प्रतीत होता है।
बीमारी निदान बनाना किसी पहेली को सुलझाने जैसा बौद्धिक आनन्द और सन्तोष प्रदान करता है। दवाईयों और आपरेशन द्वारा अब अच्छे परिणाम मिलने लगे हैं । इस विधा के आने से ब्रेन की संरचना एवं विभिन्न बीमारियों में होने वाले विकारों को एक्स-रे के माध्यम से देखा जाने लगा। इसके पूर्व ज्यादातर इलाज अनुमानों के आधार पर होता था । कालान्तर में एम.आर.आई ने तहलका मचा दिया । इन दो अविष्कारों ने न्यूरोरेडियोलॉजी विषय को अत्यंत लोकप्रिय बना दिया । समुचित जानकारी मिलने से इलाज एवं ऑपरेशन भी ज्यादा प्रभावी हो गये एवं इन विषयों की नीरसता भी कम होती चली गई।
न्यूरोक्विज जैसे कार्यक्रम विद्यार्थीयों में इस विषय के प्रति जागरूकता बढ़ाने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
आरम्भिक दो वर्षों में न्यूरोक्विज़ का आयोजन मध्यप्रदेश के पांच चिकित्सा महाविद्यालयों में किया गया। इस तीसरे वर्ष में इसका दायरा व्यापक बनाया गया है। उत्तरप्रदेश (बनारस, लखनऊ, कानपुर), राजस्थान (जयपुर, उदयपुर, अजमेर, बीकानेर, कोटा), गुजरात (सूरत, जामनगर, अहमदाबाद) महाराष्ट्र (मुम्बई के तीन व पुणे के दो) अर्थात् पांच राज्यों के कुल 20 मेडिकल कालेज के स्नातक व स्नातकोत्तर चिकित्सा छात्र इस में शामिल हो रहे हैं।
प्रथम दौर का आयोजन अक्टूबर माह में हुआ और दो हजार से अधिक छात्रों ने भाग लिया। इस लिखित परीक्षा के अन्त में प्रत्येक विद्यार्थी को प्रश्न पुस्तिका और उत्तर पुस्तिका के अलावा धन्यवाद स्वरूप एक छोटी रोचक भेंट दी गई जिसमें न्यूरालाजी विषय से सम्बन्धित चित्रों, उद्दरणों व कविताओं से सुसजित 10 बुकमार्क का एक सेट था। श्रेष्ठ अंक प्राप्त करने वालों को पुस्तकें और न्यूरालाजिकल परीक्षण में काम आने वाले साधन (जैसे हेमर) आदि पुरस्कार में दिये गये । सर्वोच्च स्थान पाने वालों को द्वितीय व व फायनल राउण्ड में भाग लेने हेतु इन्दौर आमंत्रित किया गया। प्रत्येक राज्य की एक द्विसदस्यीय टीम का चयन प्री-फायनल राउण्ड द्वारा होता है। अन्तिम दौर में पांच दल मंच पर बैठते हैं। एक के बाद एक भांति-भांति के दौर चलते हैं। स्कोर कम ज्यादा होता रहता है। उत्तेजना बढ़ती जाती है। बीच-बीच में दर्शकों से भी प्रश्न पूछे जाते हैं और तत्काल इनाम दिये जाते हैं। अन्त में रेपिड फायर राउण्ड (तेजगति प्रश्नावली) में फिर ऊंच नीच होती है। विजेताओं व प्रतियोगियों को नगद पुरस्कार के साथ अनेक पुरस्कारों व दूसरे उपहार मिलते हैं ।
इस गतिविधि के कारण अनेक छात्र न्यूरालाजी विषय की कुछ अतिरिक्त पढ़ाई कर लेते हैं और पाते हैं कि वह रोचक, आसान, उपयोगी व महत्वपूर्ण है। इन्हीं में से कुछ छात्र आगे चलकर न्यूरालॉजी में ही अपना करियर बनाने का निर्णय लेता है।
न्यूरोक्विज़ का अब छात्रों को प्रतिवर्ष इन्तजार रहता है तथा राष्ट्रीय स्तर पर उसकी पहचान बन रही है।
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