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मेफिस्टो – Mephisto 


विचारधारात्मक इंद्र की अद्भुत कथा

जर्मन फिल्म ‘मेफिस्टो’ देखना अपने आप में अभूतपूर्व अनुभव था। जर्मन महाकवि ‘गेटे’ के महाकाव्य फाउस्ट का खलपात्र मेफिस्टो शैतान का प्रतीक है तेज, बुद्धिमान, चालाक, वाक्चतुर, बहकावे में डालने वाला फाउस्ट को मंच पर खेला जाना एक चुनौती है।

कथा केंद्रित है, एक अभिनेता हेनरिक हापगेन पर। फिल्म एक उपन्यास पर आधारित है जिसके, लेखक हैं क्लास मान जो प्रसिद्ध जर्मन स्वतंत्र विचारक टामन मान के पुत्र हैं। लेखक क्लासमान ने उपन्यास का नायक बनाया है। अपने बहनोई अभिनेता को जिसका असली नाम था, गुन्डेज़ और जिसने अपने विचारों व सिद्धांतों व पारिवारिक (ससुराल) परंपराओं को ताक में रख कर अपने केरियर संवारने के लिये, नाजी सरकार के साथ समझौता कर लिया। जब 1930 में हिटलर की नाजी पार्टी चुनावों के जरिये सत्ता में आई तो देश का माहौल बदल गया। हर स्वतंत्रचेता, उदार विचार, स्वाभिमानी बुद्धिजीवी, कलाकार जर्मनी छोड़कर जाने लगा। यहाँ तक कि टॉमस मान परिवार भी चला गया। परंतु अभिनेत नहीं। उसके देख छोड़कर न जाने के अपने तर्क थे। बहनोई पर आधारित गढ़ा गया चरित्र अध्ययन के काबिल है। वह प्रतिभा संपन्न है। अभिनय खूब अच्छा करता है। वाणी पर अधिकार है। परंतु स्वयं की प्रशंसा में लीन। अहंवादी परंतु अंदर से कायर (नासीसिस्टिक)। नार्सिसस गीक पुराण कथाओं में एक पात्र था, जिसने जल में अपनी छवि देखी तो उसी पर मोहित हो गया। नतीजन आगे किसी अन्य से प्रेम नहीं कर सका। इस तरह के लोग प्रायः अपने अलावा किसी और के बारे में नहीं सोचते हैं। नायक ने अपनी पत्नी को कभी ठीक से प्यार नहीं किया। एक रात कहता है मैं तुम्हें प्यार करता हूँ। तुम्हारे बड़े पिता के कारण नहीं। वैसे ही प्यार करता हूँ। मैं- हेनरीक हरपगेन।

आरंभ में हेनरिक एक प्रांतीय नगर हेम्बर्ग की रंगसंस्था में काम करता है। धीरे-धीरे प्रसिद्धि फैलती है। यह चाहता है, राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति पाना। उसकी विचारधारा प्रगतिशील है। यह मजदूरों और गरीबों का पक्ष अपने नाटकों में खूबी से पेश करता है। क्रांतिकारी रंगमंच बनाता है। वामपंथियों (कम्युनिस्टों) से सहानुभूति रखता है। नाजी लोगों से घृणा करता है।

चुनाव परिणामों की रात घबराई हुई पत्नी उसे जगाती है व देश से बाहर चलने को कहती है। इस समय तक उसे राजधानी बर्लिन में अपनी प्रतिभा का सिक्का जमाने का आरंम्भिक अवसर मिल चुका था। वह सोचता है बाहर मेरा क्या होगा ? जर्मनी में मेरा भविष्य है। वह स्वयं को धोखा देने की एक परंपरा में अपने आपको डाल देता है। मेरा पह?? प्यार थियेटर है- जर्मनी का थियेटर में मूल रूप से एक कलाकार नाजी पार्टी वालों में बुरा क्या है, वे कोई विदेशी थोड़े ही हैं। पत्नी उसे छोड़ जाती है। हर आदमी अपने कर्मों के औचित्य के लिये फिलासफी गढ़ लेता है। हेनरिक बड़ी तेजी से चोगे बदलता जाता है। वह सिर्फ सफल होना चाहता है। सफलता किसी भी किमत पर।

सरकारी व्यवस्था का वह खूब उपयोग करता है। साथियों की चुगली करता है यदि वे विरोधी बातें करते हैं। अपने आपको देश भक्त सिद्ध करता है। बदले में सरकार भी उसका खूब उपयोग करती है। दुनिया को यह जतलाने के लिये कि जर्मनी में अब असली सास्कृतिक विकास हो रहा है, हेनरिक को प्रवक्ता बना दिया जाता है।

मेफिस्टो के पात्र को अपनी असली जिंदगी में निभाते हुए कलाकार यह रोल भी खूबी से अदा करता है। वह सफलता के शिखर पर है। उसकी अंतरात्मा खोखली हो चुकी है। पत्नी के अलावा उसकी प्रेमिका भी उसकी नितांत भाव शून्य आंखों से अब घबराने लगती है। क्या हम सबमें मेफिस्टो और हेनरिक का कुछ अंश नहीं है? परिस्थितियों से कौन कितना समझौता करता है। इसकी सीमा क्या है? सफलता की कीमत क्या है? और फिर असली सफलता क्या है? मूल्य और नैतिकता नाम की चीजें अंततः क्यों हैं?

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