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वर्तमान पीढ़ी का “ओल्ड बॉयज” के प्रति


स्वागत है आप सबका। इस महान संस्था के सौ साल पूरे होने के समारोह में आये, आप सबों का स्वागत है। हम, इस महाविद्यालय के वर्तमान छात्र आपका अभिनन्दन करते हैं और शुभकामनाएं व्यक्त करते हैं कि इस अवसर पर आप यहाँ आत्मीय वातावरण पायें व संतष्ट हों।

लेकिन सबसे पहला ही प्रश्न जो उठता है, उसका उत्तर ढुंढना कठिन है। हम आपको क्‍या कह कर सम्बोधित करें? आपको क्‍या कह कर पुकारें? आपके व हमारे मध्य रिश्ते को परिभाषित कैसे करें? आप कुल मिलाकर एक बहुत ही हेटेराजिनियस ग्रुप हैं। आप किसी एक पीढ़ी का प्रतिनिधित्व नहीं करते। इस संस्था से आपके सम्बन्धों के इतिहास को एक शताब्दी के विस्तृत पटल पर चित्रित करना होगा। आप काल के सतत्‌ प्रवाह की अनन्त रेखा के असंख्य बिन्दु हैं। और हम आज उस रेखा के उद्गम बिन्दु पर खड़े हैं। आप भूतकाल का प्रतिनिधित्व करते हैं और हम वर्तमान का। यहाँ आकर इस केम्पस में आपकी आँखें कुछ उन चीजों को ढुंढने की कोशिश करेंगी जो अतीत की निधि हो चुकी हैं। हम तो सिर्फ आपकी स्मृति जन्य भावनाओं के उद्गारों से कभी किन्हीं कालों में जिये गये विभिन्‍न क्षणों का अनुमान मष लगा पायेंगे। आपका और हमारा रिश्ता क्या है? हम आपकों क्या कह कर सम्बोधित करें?

“ओल्ड बॉयस्‌” तो हमें कभी भी अच्छा सम्बोधन नहीं लगा। इससे कुछ ऐसा आभास होता है मानों आप सच किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा पढ़ा गया महसूस होता है जो पुरुष-प्रधान समाज व्यवस्था में विश्वास रखता होगा। न जानें क्‍यों इस सम्बोधन में आत्मीयता की कमी महसूस होती है। जनरेशन गेप (पीढ़ियों के अन्तर) की अनचाही भावना को पाटने में इस शब्द से कोई मदद नहीं मिलती।

आपमें से अनेक ने इस संस्था को जुम्मा-जुम्मा एक दो साल पहले ही छोड़ा है। इस वर्ग को तो हम अपना मित्र तक कह कर सम्बोधित कर सकते हैं।और एक वर्ग है जिन्हें हम जानते रहें हैं अपने वरिष्ठ साथियों के रुप में। रैगिंग की विवादास्पद परन्तु उपयोगी परम्परा ने चिकित्सा महाविद्यालय की इतनी पीढ़ियों को आपस में गुंथ रखा था जितना किसी अन्य संस्था में सम्भव नहीं रहता। आपको हम अपना बड़ा भाई या अग्रज कहकर सम्बोधित कर सकते हैं।परन्तु इस के पश्चात्‌ विस्मृति के गर्त में गहरे उतरना पड़ता है। आज भी अनेक प्रतिनिधि हैं उस काल के। इस संस्था के सौभाग्य से आज आप विभिन्‍न टीचिंग पदों पर मौजूद हैं। गुरु और शिष्य का जीवन्त रिश्ता इन पीढ़ियों के साथ बना हुआ हैं।

परन्तु सबसे बड़ा वर्ग है उन अनाम, अनजान, हस्तियों का जिन्हें समय के झोंकों ने विभिन्‍न दूरियों पर जा पटका हैं। इस वर्ग में से भी अनेक प्रतिनिधि आज यहाँ मौजूद हैं। आपको हम कया कह कर पुकारें? पीछे मुड़कर देखने के क्रम को यदि जारी रखा जावे तो ऐसा वर्ग भी नजर आता है जो अपने जीवन के महत्वपूर्ण सक्रि सोपानों को पूरा कर चुका है। संध्या की इस वेला में उनका पुनः नन्‍्हा मन, गुरुदेव टैगोर के शब्दों में बुदबुदा उठता होगा-

“मैं रात में उस सड़क के भांति हूँ,
जो सन्नाटे में उसकी पूर्व स्मृतियों की पदचाप सुन रही हैं।”

लेकिन इस संस्था के इतिहास ने अपनी गहराई में उन जीवनियों को भी समाहित कर रखा है जो आज अवसर पर अप्रत्यक्ष रुप से भी अपनी खुशी जाहिर करने के लिये मौजूद नहीं है। इन सबों को हम क्या कह कर सम्बोधित करें? उत्तर नहीं रहा।

हिन्दू होने के नाते व रैगिंग प्रथा से प्राप्त संस्कारों ने मुझे एक रुपक सुझाया। मैं गम्भीरतापूर्वक सोचता हूँ कि सबकुछ एक सतत्‌ प्रवाहमान नदी के समान हैं। मैं नदी के मध्य खड़ा हूँ। और प्रवाह की दिशा में अपने पूर्वजों से संवाद कर रहा हूँ। न मैं स्वयं आदि हूँ और न अन्य कोई अनादि। नदी के विभिन्‍न बिन्दुओं के बीच दूरी जरुर हो सकती है परन्तु फिर भी उनमें एकता है, एक ही धारा में पिराये हुए हैं सब। अनेकता में एकता है। एक अनन्त श्रृंखला के बिन्दु हैं। दूरी कहाँ है? गेप कहाँ है? सब तो एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।

इसके बाद सम्बोधन ढूंढने की आवश्यकता नहीं रह जाती। जिसे जो निष्कर्ष निकालना हो निकाल ले। मैं तो बगैर सम्बोधन के संवाद करने की स्थिति पाता हूँ। जब सम्बोधन ही नहीं रहा तो रिश्तों का बन्धन कैसा? क्यों न खुलकर बात की जावे?

कैसा लग रहा है यहाँ आकर आपको? बड़ी मुद्दत के बाद आना हुआ है। सब कुछ तो बदल गया है। कैंपस नया है। इमारतें नयी हैं। शहर भी तो वह नहीं रहा जो पहले था। और सबसे बड़ी बात चेहरे बदल गये हैं। अजनबी सा लगता है। अपने ही घर में मेहमान बन कर आयेंहँ | इससे अधिक दुःख दायी भावना भला क्या हो सकती हैं?

लेकिन घबराइये नहीं हम आपकी मदद के लिये तैयार है। इस कॉलेज की वर्तमान पीढ़ी के सदस्य आपको अपने ही कूचे में बेगानापन महसूस नहीं होने देंगे। एक बार हाथ बढ़ाइये। एक बार मुस्कूराइये। थोड़ी देर ढूंढने की कोशिश कीजिये अपने गुजरे हुए जमाने को। और फिर सब कुछ बहुत आसान हो जावेगा।
कॉलेज की वर्तमान पीढ़ी को नजरअंदाज करके आप इस समारोह का आनन्द नहीं उठा सकते। यह हो ही नहं सकता कि इस केम्पस से वर्तमान का को निष्कासित संस्था का उत्सव है। इसकी लम्बी और महान परम्परा के 400 वर्षों के पूरा होने का उत्सव है। और वर्तमान पीढ़ी इस संस्था का प्रतिनिधित्व करती है। आज यह कॉलेज जैसा भी है, अच्छा या बुरा, हमारे द्वारा है, हमारे लिये है, हमारा है।

लेकिन साथ ही साथ हम आपके ऋणों को कभी नहीं भूल सकते। शिखर को सदैव आभास रहता है कि वह कितने विस्तृत आधार पर टिका हुआ है। हम सदैव आपके आकारों से बोझ से दबे रहेंगे। इस संस्था के सदस्य होने के नाते हमें जो गर्व होता है वो आपके अस्तित्व के बर्गर सम्भव नहीं।

हम आपसे आशीर्वादों व शुभकामनाओं के प्रार्थी है कि हम आपके द्वारा स्थापित परम्पराओं को और भी उज्जवल रुप से जारी रख पायें। हमें उम्मीद है कि हमारे बारे में आपकी राय अच्छी हैं। हम यह मान कर चलते हैं कि आप उन बुजुर्गों के समान नहीं हैं जो सदैव नयी पीढ़ी को भला बुरा कहते हैं।

प्रश्न विश्वास और आस्था का है| हमें तो आप में है, परन्तु क्या आप में हमारे प्रति उतना ही आस्था और विश्वास है। कहीं आपको भी तो वह गम नहीं सताता जो आज से 2300 साल पुराने यूनानी दार्शनिक अफलातून को बुढ़ापे में सताया करता था कि “हमारे नौजवानों को क्‍या हो गया है? वे बड़ों की इज्जत नहीं करते, वे माता-पिता की अवज्ञा करते हैं, वे कानून को कुछ नहीं समझते | वहशी विचारों को लिये हुए ये नौजवान, गलियों, सड़कों पर दंगे करते हैं इनका नैतिक पतन हो गया है।” दुनिया भर में. हर जगह, हर सदी, हर बरस बूढ़ों को इस तरह के गम में सताया करते हैं। यदि आप भी इन लोगों में से हैं तब तो आपसे संवाद करने में जरा कठिनाई होगी।

हमारा मत तो यह है मनुष्य के मूल चरित्र में कभी कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हआ करता। कम से कम इतना बड़ा तो नहीं कि एक इन्सान अपनी जिन्दगी जैसे छोटे से वक्‍त में उस बदलाव को पकड़ सके । हाँ परिस्थितियों में तथा देखने के नजरिये में जरुर फर्क आता है।

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