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न्यूरोसेक्सिज़म NeuroSexism


स्त्री और पुरुष के मस्तिष्क में क्या भेद है?
क्या भेद कम है या ज्यादा है? तुच्छ है या महत्वपूर्ण है? उन भिन्नताओं का स्त्री और पुरुष के स्वभाव,  बुद्धि, योग्यता, क्षमता, व्यक्तित्व आदि पर कोई खास असर पड़ता है या नहीं?
पिछले 50-100 सालों से समाज विज्ञान में यह सोच और विचारधारा हावी रही है कि बायोलॉजिकल सेक्स के आधार पर भिन्नताओं को बढ़ा चढ़ा कर पेश करने वालों का विरोध करना चाहिए, और अगर कुछ अंतर दिखाई दे तो उन्हें कम करके आँकना चाहिए, उनकी उपेक्षा करनी चाहिए,  इस प्रकार के अध्ययनों में मौजूद खामियों को बढ़ा चढ़ा कर बताना चाहिए।
एक राजस्थानी कहावत है जिस “ठाणी जाना नहीं, उस गली रास्ता ही क्यों पूछना”।  सोशल साइंटिस्ट मानकर चलते हैं कि दोनों सेक्स समान है और दोनों जेंडर में फर्क गर दिखता है जो सिर्फ सांस्कृतिक कारणों से। सीमोन द बोआ कहा था –  “स्त्री पैदा नहीं होती, बाद में बनाई जाती है”। इसलिए वे कहते हैं कि सेक्स और मस्तिष्क (या सेक्स तथा अन्य कोई भी बायो लॉजिकल गुण) पर शोध होना ही नहीं चाहिए।
लेकिन तथ्य और उन पर आधारित निष्कर्षों को चाह कर भी छुपाया नहीं जा सकता। स्त्री और पुरुष के ब्रेन में अनेक अंतर है। रचना में, फिजियोलॉजी में, साइकोलॉजी में, कार्यप्रणाली में, नेटवर्क्स में। किन्ही मामलों में ये भिन्नताएँ कम हैं तो किन्ही में अधिक। किन्हीं गुणों या योग्यताओं में स्त्रियां आगे हैं तो किन्ही में पुरुष। किन्हीं-किन्हीं दुर्गुणों पर भी ऐसा ही देखा जाता है।
इन भिन्नताओं के सामाजिक व व्यवहारिक स्तर पर अनेक दूरगामी परिणाम होते हैं। इस विषय पर शोध करने से और उसके जो भी परिणाम आए उन्हें स्वीकार करने और उनके आधार पर सामाजिक सोच व नीति को बदलने की संभावनाओं से डरना क्यों? क्या केवल इस डर से कि कहीं इस शोध के कारण सोशल साइंस का हमारा स्टैंडर्ड मॉडल डगमगा ना जाए।
 
मॉडल जो मानता है कि मानव मस्तिष्क जन्म के समय एक कोरी पट्टी या स्लेट के समान होता है। उस पर जीवनभर जो लिखा जाता है जो गढ़ा जाता है उसके नियंता होते हैं  – आर्थिक विषमता, कुपोषण, गरीबी, बीमारियाँ,शोषण, गंदगी, अत्याचार, जातिभेद, दलितों के साथ छुआछूत, स्त्रियों का दमन, लांछन, दुत्कार या जो प्रिविलेज विशेषाधिकार प्राप्त हैं उनकी मौज मस्ती। इसी आधार में रेस या नस्ल के संभावित बायो लॉजिकल जेनेटिक प्रभावों का अध्ययन करना और उनकी चर्चा करना घोर अपराध माना जाता हैं ।

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