‘बहुत शोर सुनते थे पहलू में दिल के, चीरा तो कतरा–ए–खून मिला।‘
शायर की इस कल्पना को अमेरिकी डॉक्टरों ने साकार कर दिया है। नकली हाथ पैर की तरह ‘नकली दिल’ भी पैदा कर लिया गया है। इस नकली दिल के सहारे दिल का एक मरीज (मरीज असली है) जिन्दा है और डॉक्टरों को उम्मीद है कि वह चार साल तो इस “नकली दिल’ के सहारे खींच ही लेगा। यदि यह प्रयोग सफल रहता है तो ‘हार्ट अटैक’ के हमलों से शायद इंसान बच जाए।
अमेरिका के सीएटल नगर के रहवासी डॉ. बारनी क्लार्क की उम्र इकसठ वर्ष हो चुकी थी। वह अपने पिता का इकलौता पुत्र था। दन्त चिकित्सा की पढ़ाई उसने मुश्किलों में पूरी की। लम्बे संघर्ष के बाद जीवन में उसे तीन सन्तानें हुईं। बुढ़ापे में भी क्लार्क और उसकी पत्नी सामंजस्य पूर्ण जीवन बिता रहे थे। पर पिछले छ: वषों से डॉ. क्लार्क का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहा। शायद किसी वायरस इंफेक्शन की वजह से, उनके हृदय की माँसपेशियाँ कमजोर पड़ने लगी।
दक्षिण अफ्रीका के डॉ. क्रिश्चियन बर्नार्ड द्वारा हृदय प्रत्यारोपण के प्रथम ऑपरेशन के लगभग 45 वर्ष होने आए थे। परन्तु क्लार्क की उम्र और सामान्य अवस्था प्रत्यारोपण के काबिल नहीं थी। किसी अन्य प्रकार की शल्य प्रक्रिया के लिए भी कोई स्थान नहीं था। अमेरिका में हृदय रोग, मौत का सर्वाधिक कारण है। इस बन्द रास्ते में पहली बार कुछ नया कर दिखाने का सनसनीखेज समाचार पिछले दिनों सारे विश्व………………………………. बारनी क्लार्क का नाम मानव जाति के इतिहास में उस प्रथम पुरुष के रूप में लिखा जाएगा, जो कृत्रिम हृदय पर जिन्दा रखा जा सका। अन्तिम समाचार मिलने तक क्लार्क ने आपरेशन के बाद के आरंभिक दिनों की समस्याओं का सामना किया है। उसे अनेक फिटनुमा दौरे आए, पर अब ठीक है। नवम्बर 982 के अन्तिम सप्ताह में क्लार्क की हालत तेजी से बिगड़ने लगी थी। उसे कृत्रिम हृदय की प्रयोगात्मक सम्भावनाओं का पता था। चिकित्सा विज्ञान को वह कुछ देना चाहता था। 27 नवम्बर को जब उसने अपने आप पर यह प्रयोग किए जाने के ग्यारह पैजी अनुज्ञा-पत्र पर हस्ताक्षर किए तो उसने मंजूर किया कि “ऑपरेशन दर्दनाक हो सकता है, सम्भव है कि कृत्रिम हृदय से जीने की उम्मीदें न बढ़ पाएँ, और जिन्दा रहने पर भी उसका जीवन व्यर्थ किस्म का होकर रह जाए।”
बारनी क्लार्क पर इस तरह का ऑपरेशन किया जा सकता है या नहीं, इस बात की विवेचना करने वाली समिति ने अन्ततः अनुमति दे दी। नियत दिनांक से दो दिन पहले ही ऑपरेशन की नौबत आ पड़ी। ऑपरेशन के पहले क्लार्क ने पत्नी का हाथ थाम कर कहा “यदि मैं तुम्हें फिर देख न पाउँ, तो कह लेना चाहता हूं कि तुम बेहद प्रिय और अच्छी पत्नी रही हो |”
आज के जटिल वैज्ञानिक जगत में नए अविष्कार या खोज बिरले ही किसी अकेले व्यक्ति के प्रयत्नों के परिणाम होते हैं। इस ऑपरेशन व उसके बाद भी क्लार्क को जिन्दा रखने का श्रेय प्रमुख सर्जन सहित एक बड़ी टीम को जाता है। उटाह विश्वविद्यालय के मेडिकल केन्द्र के डॉ. विलियम डी ब्रीज, डॉ कोल्फ और डॉ. राबर्ट जार्विक | यह तिकड़ी, इस सफल कहानी के प्रमुख सूत्रधार माने जा सकते हैं। डॉ. विलियम डी ब्रीज, प्रमुख सर्जन ने छः घण्टे चलने वाले ऑपरेशन के बाद कहा- “हमने एक लेबोरेटरीज…………. उस रात उस ऑपरेशन थिऐटर में मौजूद तमाम काम करने वालों के लिए एक नया, अजीब आध्यात्मिक अनुभव था।“
दिल पर सितम
हृदय रोग चिकित्सा के इतिहास में आधुनिक तकनीकी के उपयोग का यह नया चमकीला उदाहरण है। आज की चिकित्सा कितनी जटिल, महँगी, अबूझ मौलिक और चमत्कृत करने वाली हो सकती है, इसका अनुमान हृदय रोग चिकित्सा में प्रयुक्त गहन इकाइयों व उपकरणों की लम्बी सूची में लगाया जा सकता है। प्रकृति के बनाए इस शानदार पम्प के हर पुर्जे की हर खराबी का इन्सान ने जवाब ढूंढने की कोशिश की है। वाल्व खराब हो जाएँ तो उन्हें बदलने के ऑपरेशन तीस वर्षों से किए जा रहे है। “हार्टलंग मशीन” नामक यंत्र कुछ घण्टों के लिए हृदय और फेफड़ों का काम, यानि खून को ऑक्सीजन से शुद्ध करना और शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुँचाना, बखूबी कर लेता है। इस दौरान हृदय पर कठिन से कठिन ऑपरेशन किए जा सकते हैं। परन्तु इस मशीन के सहारे चल रहे व्यक्ति को हम सही मायनों में जिन्दा नहीं कह पाएँगे। पिछले दस वर्षों से दिल को खून पहुँचाने वाली “कोरोनरी’ नामक घमनियों पर भी खूब ऑपरेशन किये जा रहे हैं और हृदय को रक्त की नयी सप्लॉय……………………….. द्वारा जाता हैं …………………………………… बेहतर निदान आज सम्भव है। हृदय में और कोरोनरी धमनियों में विशेष केथेटर द्वारा इंजेक्शन डाल कर उनके एक्स-रे चित्र लिए जा सकते हैं। पेस-मेकर याने विद्युत सक्रियता द्वारा हृदय की गति बनाए रखने वाले बैटरीनुमा यंत्र आज हजारों की संख्या में प्रयुक्त है। नई मौलिक दवाओं की खोज जारी है। किसी अन्य इंसान का जीवित धड़कता हुआ दिल लगा देने वाला ऑपरेशन, जो डॉ. क्रिश्चियन बर्नार्ड ने शुरु किया था, वह अधिकांश मरीज एक साल में मर जाते हैं। पाने वाला शरीर नए अंग को अस्वीकृत कर देता है। कृत्रिम हृदय के साथ ऐसी कोई समस्या नहीं।
कैसे बना नकली दिल
असली दिल ने ठाना बना लिया नकली दिल
सर्जन डॉ. विलियम डी ब्रीज ने जो नकली हृदय बारनी क्लार्क की छाती में लगाया उसका बनाने वाला डॉ. जार्विक है। इन दोनों का प्रेरणास्त्रोत है- एक डच…………… नाजी जनता का……………………………….. मशीन या डायलिसिस मशीन की अपनी कल्पना को साकार किया था। इन तीनों ने एल्यूमीनियम और प्लास्टिक के लोटे से नकली दिल गढ़ा। डॉ. जार्विक एक चिकित्सक से पहले एक बायो मेकिनिकल इंजीनियर है। उसने जब पाया कि कृत्रिम अंग बीमार अंग से बेहतर काम कर सकते हैं तो विश्वास करने लगा कि यदि मनुष्य हृदय लेकर पैदा हो सकता है तो उसे बना भी सकता है। जार्विक के पिता ही हृदय रोग से मृत्यु ने उसके निश्चय को पक्का कर दिया था।
इस प्रकार का कृत्रिम हृदय बनाने के पीछे दस से अधिक वर्षों की अथक मेहनत है। सैकड़ों पशुओं में सैकड़ों प्रयोगों के बाद आज की स्थिति पर पहुँचा जा सका है। अभी सिर्फ शुरुआत है। दिक्कतों का पहाड़ आगे है। इस नकली दिल की अपनी सीमाएँहैं वह कितने दिन चलेगा, किसने देखा। इसके सहारे जिन्दा इन्सान की…………………………….. के कम्प्रेसर नामक यंत्रों से जोड़ा रखा जाता है। इस यंत्र द्वारा जब हवा प्रेशर यानी दबाव के साथ छाती के अन्दर भेजी जाती है तो नकली दिल का एक वाल्वनुमा पर्दा या डायफ्राम फूल उठता है और खून को आगे मरीज की धमनियों में धकेल देता है। जब ये पर्दा सिकुड़ता है (दबाव न होने से) तब दिल के उस हिस्से में फिर नया खून भर आता है जिसे अगले सैकण्ड पुनः पम्प किया जाना है। यह क्रिया लगातार चलती है। तभी जीवन है। हृदय में दायें और बांयें दो पम्प होते हैं। इसलिए दो ट्यूब की जरूरत पड़ती है। कम्प्रेसर यंत्र को सदा एक चलती-फिरती ट्राली पर ढोए घूमना पड़ता है। निहायत की परावलम्बी जीवन।
बाजू में घड़कने वाला दिल अब भी आपकी बगल में ही धड़केगा, लेकिन वह रखा होगा एक ट्राली में। दिल की बातें अब दुनिया भर के लोग जान सकेंगे। किसका दिल कैसा है, यह विवाद भी अब समाप्त हो जाएगा, क्योंकि उस हार्ट के स्थान पर ‘नकली दिल’ लगा दिया करेंगे। तब शायद आशिकों को यह शिकायत भी नहीं रहेगी कि उनका दिल प्रेमिका के पास है। तब यह भी हो सकेगा कि यदि कोई प्रेमिका ‘दिल’ मांगेगी तो आशिक उसे सचमुच (नकली) दिल दे सकेगा। लेकिन इन सब बातों में अभी तो समय लगेगा क्योंकि अभी तो एकमात्र ‘नकली दिल’ बना है और उसकी विश्वसनीयता की जांच हो रही है।
दिल का वजन ज्यादा है
हर नयी तकनीक शुरू में जटिल होती है, महँगी होती है। धीरे-धीरे उसमे सुधार किए जाते हैं। तब वह सस्ती और सरल होती जाती है। उम्मीद………………………………….. ‘सम्प्रेषक (एयर कम्प्रेसर) यंत्र हल्के-फुल्के बन पाएँ, जिन्हें ढो कर चलना व्यक्ति के लिए अधिक आसान हो। अभी तो इसका आकार एक टी.वी. जितना है। कल्पना की जाती है कि आगे चल कर ये इतने छोटे हो जाएंगे कि इन्हें पीठ या जेब में रखा जा सकेगा। अभी इनके लिए बिजली की सतत् पावर सप्लाय की जरूरत है। आगे चलकर शायद इतनी ताकतवर पर छोटी बैटरियाँ बन पाएँ जो साथ में रखी जा सकें।
इस कृत्रिम हृदय ने बारनी क्लार्क के दिल के दो वेण्ट्रीकल (निलय) नामक हिस्सों का काम सम्हाला है। वेण्ट्रीकल सशक्त माँसपेशियों की बनी दो थैलियाँ होती हैं, जो शरीर के विभिन्न भागों तथा फेफड़ों से खून प्राप्त कर उन्हें वाल्व के सहारे एकांगी दिशा में आगे की ओर पम्प कर देते है। दिल के अन्य भाग जैसे एट्रियम खून की वे बड़ी और मोटी नलियाँ जो दिल तक खून लाती ले जाती हैं, नहीं बदली गयी हैं। मरीज के अपने प्राकृतिक अंग से बाहरी नकली यंत्र को महीन मजबूत टांकों द्वारा सी कर जोड़ा जाता है। ये जोड़ कभी भी रिसना शुरू हो सकते हैं।
लेकिन इस हृदय के निर्माता डॉ. जार्विक को उम्मीद है कि यह कम ये कम एक साल तक तो काम कर देगा, हो सकता है चार साल तक चल जाए। बछड़ों और अन्य पशुओं में इन्हें लंबे समय तक सफलतापूर्वक प्रयोगात्मक रूप से चलाया जा चुका है।… …………………………………किसी प्रकार का नकली दिल का उपयोग इस उद्देश्य से कर चुके थे कि उन मरीजों को कियी अन्य इन्सान का दिल मिलने तक जिन्दा रखा जा सके। पर समस्याएं बहुत उठीं। बाद में डॉ. कूली की इस बात के लिए आलोचना भी हुई कि उन्होंने अमेरिकी औषधि नियंत्रण विभाग से इन प्रयोगों की पूर्व अनुमति नहीं ली थी। इस विभाग ने अब सिर्फ उटाह राज्य के साल्ट लेकनगर स्थित इस टीम को ही अधिकृत किया है कि वे इस तरह के ऑपरेशन करें।
नकली दिल के इस मॉडल की कीमत फिलहाल 30,000 डालर आँकी गई है। इसके रखरखाव का खर्चा भारी है। अमेरिका जैसा समृद्ध समाज में भी महँगी तकनीकी चिकित्सा का खर्च उठा पाना भारी है। उदाहरण के लिये कृत्रिम गुर्दा मशीन (डायलिसिस) की सुविधा पाना हर नागरिक का अधिकार नहीं माना जाता है। समाज और चिकित्सक मिलकर फैसला करते हैं कि किसे इस इलाज पर रखा जाए और किसे सामान्य मौत मरने दिया जाए। यही नीति नकली दिल की सुविधा पर लागू करना होगी। बारनी क्लार्क पर ऑपरेशन करने से महीनों पहले से अनेक नागरिकों को मालूम पड़ने पर कि उस चिकित्सा केन्द्र में नकली दिल लगाने की सम्भावनाओं पर काम चल रहा है। ढेरों मरीजों द्वारा दबाव डाला जाने लगा कि उन पर यह ऑपरेशन किया जाए। कुछ ने तो विरोध स्वरूप उस अस्पताल की सीढ़ियों पर जान देने की धमकियाँ दे डालीं। पर उनमें चयन किया गया क्लार्क का। चुनने की कसौटियाँ बड़ी सख्त थीं।
यह प्रश्न विकसित राष्ट्रों में प्रायः उठता रहता है कि नई तकनीकों का उपयोग बनने का हक हर नागरिक को है या नहीं। और यह भी कि क्या सामान्य मौत से मरने के दिन लग गए कृत्रिम अंगों के सहारे जीवन क्यों और कब तक खींचा जाए। मृत्यु अवश्यंभावी है। फिर इन प्रयत्नों की……………………………………………………….दार्शनिक समस्याएं विज्ञान खड़ी करता जा रहा है। नकली दिल इन समस्याओं को बढ़ावा देगा। मृत्यु की परिभाषा कठिन होती जा रही है।
नकली दिल के जन्मदाता जार्विक
‘नकली दिल’ का डिजाइन बनाया डॉ. राबर्ट जार्विक ने। काल्फ मेडिकल नामक संस्थान ने जार्विक की कल्पना को आकारदिया। डॉ. जार्विक, डॉक्टर ही नहीं बॉयोकेमिकल इन्जीनियर भी हैं। जब जार्विक हाईस्कूल में पड़ रहे थे तभी उन्होंने अपने पिता को ऑपरेशन करने देखा और डॉ. राबर्ट जार्विक के दिमाग में यह आया कि ऑपरेशन के बाद टांके लगाने का बेहतर तरीका भी हो सकता है। इसके बाद जार्विक ने सर्जिकल स्टेपल की खोज की। डॉ. जार्विक को उम्मीद है कि “नकली दिल असली जिन्दगी का मजा देगा।
लेकिन डॉ. डी. व्रीज का कहना है कि “कृत्रिम हृदय उनमें मरीजों के जीवन में गुणात्मक सुधार लाएगा। हम एक ऐसे मरीज को लेते हैं जो महीने पहले ही ही अधूरा अशक्त जीवन जी रहा हो और फिर उसे महसूस करा देते हैं कि वह सुपर स्टार है।” ।
फिर भी दूसरे अनेक शल्प चिकित्सकों का अनुमान है कि अभी कम से कम दस साल और लगेंगे। विशेषज्ञ सोचते हैं कि डॉ. क्रिश्चियन बर्नार्ड वाला इन्सानी दिल का प्रत्यारोपण ऑपरेशन ही अन्ततः बेहतर सिद्ध होगा।
चाहे जो हो, इस आंदोलन ने इतिहास जरुर…………………….. बना हुआ है कि क्लार्क की श्वांस नहीं फूलती। उसका रंग गुलाबी हो आया है। पेट से निकली दो दूयुब और पास में खड़े कम्प्रेसर यंत्र के बावजूद वह बेहद खुश है। पानी दूध पीता है। एक नर्स उसके दांत साफ कर रही थी। क्लार्क ने ब्रुश अपने हाथ में ले लिया और कहा “सिस्टर! आप गलत कर रही हैं। मैं एक डेण्टिस्ट हूँ, और दांत की सफाई बेहतर जानता हूँ। मुझे नकली दिल लगा है तो इससे क्या?