गूगल अनुवाद करे (विशेष नोट) :-
Skip to main content
 

अच्छे डॉक्टर कैसे बने – MBBS प्रथम वर्ष छात्रो के लिए उद्बोधन


एम.बी.बी.एस. प्रथम वर्ष प्रथम दिवस : स्वागत

बच्चो नमस्कार! आप लोगों को बहुत-बहुत बधाई। एक कठिन प्रतियोगिता के बाद आप यहाँ आते हैं। मैं कई बार छात्रों से पूछता हूँ, और अपने आप से भी पूछता हूँ, डॉक्टरों से पूछता हूँ, कि हम मेडिकल प्रोफेशन में क्यों आते हैं? बहुतायत से एक उत्तर मिलता है लाईफ सेटिस्फेक्शन। जीवन का संतोष। हालांकि कुछ लोगों को नहीं मिलता है।

 ये असंतुष्ट रहते हैं कि हम डॉक्टर क्यों बन गए। एक छोटा प्रतिशत हर प्रोफेशन में रहेगा। लगभग 10-15 प्रतिशत लोग असंतुष्ट रहेंगे। ज्यादातर लोग कहेंगे की हाँ। मैं अपने लिए कह सकता हूँ कि इस प्रोफेशन में हमें जीवन का संतोष मिलता है।
लाइफ सेटिसफेक्शन के बहुत सारे पहलू है। एक पहलू है ‘पैसा’ । पैसे को भी मैं तीन तरह की श्रेणियों में रखूँगा। एक तो वो जो सोचते हैं कि हमको इस प्रोफेशन में इसलिए आना है हम बहुत अमीर होना चाहते हैं। ऐसे कितने लोग हैं जो बहुत रिच होने के लिए आए हैं? शरमाओ मत। हाथ उठाना मैं किसी को बताऊँगा नहीं। Nobody will remember उठा सकते हो हाथ कि हम रिच होने के लिए आए हैं। ओके, शरमा रहे हैं लोग।
दूसरा ग्रुप होता है उन लोगों का जो इतना पैसा कमाना चाहते हैं कि एक अच्छी डिसेन्ट जिन्दगी जी सकें। यह उद्देश्य कितने लोगों का है? हाँ होना चाहिए। सभी का होना चाहिए। एक अच्छी इज्जत की जिंदगी जी सकें। इतना पैसा तो कमाना चाहेंगे ही सही।
और तीसरा होता है, ऐसे कितने लोग हैं जिनके लिए पैसा अत्यन्त गौण है। जो संत जैसी सेवा भावना जैसा काम करना चाहते हैं। जिसे कहते हैं Ascetic लाइफ। हमें नहीं कमाना और बिल्कुल जो न्यूनतम आवश्यकताएँ होती हैं जीवन की, हमको बस उतनी चाहिए। We don’t want decent life ऐसे कुछ डॉक्टर हैं समाज के अन्दर। उदाहरण के लिए गॉड चिरोली, महाराष्ट्र में अभय बंग और रानी बंग हैं। उनको मेक्साय साय अवार्ड मिला है। ऐसी कई कहानियाँ आप डॉक्टरों की पढ़ेंगे, जो घनघोर प्रेक्टिस छोड़कर ग्रामीण व आदिवासी क्षेत्रों में चले गए। आप में से तने ऐसे जो सोचते हैं? ठीक है अच्छी बात है। अगर कुछ छात्र हैं तो, आप सब प्रेरणा के स्त्रोत बन सकते हैं आगे चलकर।


दूसरा पहलू होता है जीवन संतोष का कि समाज में ‘शोहरत’ चाहिए. प्रसिद्धि चाहिए। स्टेटस चाहिए जो कुछ हद तक पैसे से आता है। बिना पैसे के भी प्रसिद्धि, शोहरत और सम्मान मिलता है। क्या इसको खास पहलू मानते हैं? प्रसिद्धि कौन नहीं चाहता? शोहरत कौन नहीं चाहता? हालांकि कई लोग हैं जो ऐसा नहीं चाहते और वो कहते हैं कि हम तो गुमनाम रहकर सेवा करना चाहते हैं। वे भी अपनी जगह अच्छे हैं, वे भी अपनी जगह सही है। प्रसिद्धि तो बाद में आती रहेगी प्रसिद्धि मुख्य उद्देश्य नहीं है। हम तो हमारा काम करेंगे। ऐसा सोचने वाले लोग भी हैं।
एक और होता है, सेवा करने का संतोष। यानि हम समाज के काम आ रहे हैं। ये तो बहुत बड़ा फेक्टर लगता है कि आप एक ऐसे प्रोफेशन में आ रहे हैं जहाँ आप समाज के लिए उपयोगी हैं।
आप सब के अन्दर ये भावना है। और होनी भी चाहिए। कि आप लोगों की मदद कर रहे हैं। भले आप उसके अंदर पैसा कमा रहे हैं, उसमें आप शोहरत कमा रहे हैं, उसमें कुछ गलत नहीं है।
लेकिन ये एक ऐसा प्रोफेशन है जिसमें You get a satisfaction of helping other people. यह एक बड़ा विशेष कारण है लाइफ सेटिसफेक्शन का।
 
हमारा प्रोफेशन एक और तरीके से जीवन संतोष देता है। वो है बौद्धिकता (Intellectualism) जैसे कोई एडवोकेट बनता, वह बोलता है कि वकालत It is Intellectually challenging मेडिकल डॉक्टर बनना भी Intellectually challenging है। आप अगर मेडिकल में आगे बढ़ना चाहते हो तो आप जिस किसी भी ब्रान्च में जाएँगे बहुत पढ़ना पड़ेगा।

आप में से कुछ लोग रिसर्च में जा सकते हैं। कुछ लोग जो रिसर्च के लिए हाथ उठाएँगे? कई हाथ हैं। शोध अनुसंधान में जाना मतलब बौद्धिक चुनौति का काम हो गया।

कितनी तरह की भावनाएँ हमारे मन में आती है, जिनको लेकर हम सोचते हैं कि हम क्यों डॉक्टर बनें और आने वाले वर्षों में हम क्या करने वाले हैं, जिससे कि हमको लाइफ सेटिसफेक्शन मिलेगा। अभी पहला दिन है। बहुत लम्बी यात्रा है। जीवनभर की अनंत यात्रा है। इस यात्रा में अनेक दौर आएँगे, अनेक पड़ाव आएँगे। प्रत्येक दौर पहले वाले दौर से अलग होगा। प्रथम प्रोफेशन के बाद जब आप द्वितीय प्रोफेशन में पैरामेडिकल विषयों में आएँगे और क्लिनिक्स में आना चालू करेंगे तो आपकी लाइफ एकदम बदल जाएगी। उसके बाद जब आप फाइनल प्रोफेशन में आ जाएँगे और फाइनल एम.बी.बी.एस. की तैयारी में रहेंगे और आपको ढेर सारी क्लिनिकल पोस्टिंग करना पड़ेगी, और ढेर सारे मरीज देखना पड़ेंगे आपकी लाइफ बदल जाएगी। इन्टर्नशिप में भी और ज्यादा। उसके बाद किसी एक मान्य में पोस्ट ग्रेजुएशन करेंगे या सुपर पोस्टग्रेजुएशन करेंगे। इस सारी यात्रा के अन्दर आपकी जो रैंक है, अलग-अलग स्टेज पर वह बहुत मायने नहीं रखती। आपकी नीट में क्या रैंक थी। ठीक है आप खुश हो लो। आपकी फर्स्ट प्रोफेशन में क्या रैंक आई? खुश हो लो, फिर भूल जाओ उसको आगे। उसको अपने एप्रन पर लेपल पिन लगाकर चिपका कर मत रखना कि ये मेरा बिल्ला है। यह बिल्ला लगाकर चलने का मौका नहीं मिलेगा आपको यहाँ। बहुत आगे पीछे होंगे। ऐसे कई डॉक्टरों के उदाहरण हैं, जो आज की तारीख में नगर में बड़े सम्मानित हैं, अच्छे काम के लिए सम्मानित हैं, अच्छी प्रेक्टिस के लिए सम्मानित हैं। खूब पैसा कमाने के लिए सम्मानित हैं। उनकी बैच वालों से पूछें तो बताएंगे अरे यार! ये। ये तो हमारी बैच का बहुत ही साधारण-सा लड़का था, इसमें कोई स्पार्क नहीं थी, कोई चमक नहीं थी, कभी इसके अच्छे नम्बर नहीं आए। धक्के खाकर पास हुआ और आज इतना आगे निकल गया |


लाइफ में कौन कहाँ, कितना आगे निकलेगा कोई नहीं जानता। अगर आपकी रैंक अच्छी नहीं आ रही है या यहाँ तक कि आपको अटेम्प्ट भी लग गया किसी विषय में (भगवान करे ना लगे किसी को) लेकिन अगर अटेम्प्ट भी लग गया तो भी ये जीवन मरा नहीं करता। वह नीरज जी की कविता थी ना। अभी थोडे दिन पहले उनका निधन हुआ। उसकी एक लाईन कुछ ऐसी ही थी, कि ‘किसी फूल के कुम्हला जाने से चमन नहीं उजड़ा करता’। कोई एक छोटी-मोटी असफलताओं से किसी का जीवन खत्म नहीं होता। कौन कब आगे बढ़ेगा कोई नहीं जानता। आगे की लाइफ, प्रेक्टिकल लाइफ बहुत अलग है। डॉक्टरी आने के बाद दस साल बाद आप इस बिन्दु पर आ सकते हो। शुरु की प्रेक्टिस आपकी अच्छी ना चलेगी। इसके लिए एक मुहावरा है ‘लम्बी रेस का घोड़ा’ कुछ लोग होते हैं जो लम्बी रेस के घोड़े होते हैं। वो आगे चलकर निकलते हैं।
एक और भूमिका है जो आपको लाइफ सेटिसफेक्शन देता है या देगा, वह हैं टीचिंग| आप में से कई
लोग आगे चलकर मेडिकल टीचर बन सकते हैं। मैं अपने आपको बड़ा सौभाग्यशाली मानता हूँ कि मैं मेडिकल टीचर भी बना और एक क्लिनिशियन भी बना, डॉक्टर भी बना। मैं इसके लिए एक मुहावरा, एक शब्द छोटासा वाक्य बोलता हूँ। ‘I am doubly blessed’  मुझको डबल आशीर्वाद मिले है। यानि मरीजों से मुझे प्यार मिलता है। मरीजों से मुझे सम्मान मिलता है। मुझे मेरे छात्रों से प्यार मिलता है और उनसे मुझे सम्मान मिलता है। डबल ब्लेसिग है। Teaching is a great thing | जरूरी नहीं कि सब डॉक्टर टीचर बनें। अगर आप मेडिकल कॉलेज में टीचर नहीं भी बने और आप बाहर प्रेक्टिस में चले गए या रिसर्च में चले गए तो भी Doctor will always be teacher, He is a teacher in many roles | आप अगर एक जनरल प्रेक्टीशनर हैं या आप बाहर प्रेक्टिस करते हैं You are a teacher of patient, you are a teacher of family group of patient | आपका प्रत्येक एनकाउंटर जो मरीज के साथ होता है एक कंसल्टेशन जो होता है, चाहे ओ.पी.डी. में हो, चाहे वार्ड में हो, वो एक प्रकार का टीचिंग है। आप केवल उसकी डायग्नोसिस बनाकर इलाज नहीं करते हो। आप उसकी काउंसलिंग करते हो। आप उसको पढ़ाते हो, ज्ञान बढ़ाते हो, उसका मेडिकल के बारे में। वह शिक्षण, टीचिंग का काम मौखिक परामर्श के रूप में करते हो।
 
हममें से कई डॉक्टर बाद मे उसी काम को लिखना चालू करते हैं। हिन्दी के अन्दर, भारतीय भाषाओं में, अंग्रेजी में, सरल अंग्रेजी में, मरीज की भाषा में। मरीजों के लिए साहित्य का निर्माण करते हैं। हम चाहेंगे कि आगे आने वाले वर्षों में जब आप डॉक्टर बने तो आप में लिखने की प्रतिभा है, सरल भाषा के अन्दर विज्ञान को सम्प्रेषित करने की क्षमता है, तो आप उस क्षमता को जरुर मॉझिएगा, तराशिएगा कि मरीज के साथ उसको कैसे समझाना है।
 
विज्ञान को कैसे पढ़ाना है। आप लेख लिखिएगा अखबार के अंदर। रेडियो पर बोलिएगा। आने वाले वर्षों में आपकी शिक्षक की भूमिका आपको बहुत संतोष देगी। जरूरी नहीं की आप मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर बने। 
You can be a teacher for paramedical people नर्सेस के लिए, आँगनवाड़ी वर्कर्स के लिए। आपके लिए इतने मौके हैं एक नहीं। जरूरी नहीं कि आप मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर बने। You can be a teacher for paramedical people नर्सेस के लिए, आँगनवाड़ी वर्कर्स के लिए। आपके लिए इतने मौके हैं एक डॉक्टर के रूप में टीचर बन के जो कि आपको बहुत बड़ा संतोष, जीवन के अन्दर देंगे। अभी से आप सोचिए। आपका चिकित्सा शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी है, जो कि हिन्दी में और भारतीय भाषा में हो सकता था। वो एक अलग विषय है। लेकिन आप कम से कम अपनी हिन्दी की सम्प्रेषणशीलता को जिन्दा रखिए। आने वाले सालों अंदर। जो आप एनाटॉमी, फिजियोलॉजी, फार्मेकोलॉजी पड़ रहे हैं सोचिए इसको हम हिन्दी में कैसे कह सकते हैं। ये प्रतिभा सब में नहीं होती। कोई बात नहीं। किसी में नहीं है तो कोई बात नहीं। उसको हम वेल्यू जजमेंट नहीं करेंगे।

अब मैं बताना चाहूँगा की हमारा अध्ययन या मेडिकल स्टडीज कैसी होना चाहिए। आपके सीनियर्स ने बहुत सारी बातें बताई आपको। There is no shortcut आपको घंटों पे घंटों पे घंटों देना पड़ेंगे। कुछ लोगों का दिमाग शार्प होता है। वो एक बार में पढ़कर याद कर लेते हैं। वो लोग ज्यादा तेज पढ़ते हैं। उसके लिए एक मुहावरा है ना ‘वर्टिकल रीडिंग’। यानि उनके सामने किताब का पेज खुलेगा और वे एक नजर में तेजी से पढ़ लेंगे। कुछ लोगों की विजुअल मेमोरी होती है। उनको याद रहता है इस टेक्सट बुक के फलां पेज में बाएं साईड के पेज में ऊपर के पैराग्राफ में ये फेक्ट लिखा था। ऐसी मेमोरी कई बच्चों की होती है। आप में से कई बच्चों की होगी इस तरह की मेमोरी।

आप सब इंटेलिजेंट हैं। उनके लिए शार्टकट हो सकता है। मगर फिर भी नहीं।
मेडिकल प्रोफेशन में इंटेलिजेंस से ज्यादा महत्वपूर्ण चीज हैं डिलीजेंस। डिलीजेंस मतलब मेहनत। मैं तो कहूँगा गदहा हम्माली। आपको गदहा हम्माली करना है मेडिकल प्रोफेशन में। ठीक है आपका आई क्यू. बहुत अच्छा है, आप खूब सारे तथ्य रट लेते हैं, याद कर लेते हैं, पढ़ लेते हैं, रैंक आ जाती है लेकिन आपने गदहा हम्माली नहीं की तो आप सफल नहीं होंगे इस प्रोफेशन के अन्दर।
 
You have to slog एक और अंग्रेजी में मुहावरा है, You will have to burn midnight oil ये एक अंग्रेजी मुहावरा था कि जो विद्वान लोग होते थे उनको पढ़ने के लिए रात-रात भर पढ़ना पड़ता था। उस जमाने में लाईटें तो थी नहीं। उस जमाने का मुहावरा है ये अंग्रेजी का to burn midnight oil वह सब करना पड़ेगा। हालांकि मैं यह कहूँगा कि फिजियोलॉजिकली आप रातभर पढ़ने की आदत मत डालना। बारह, एक बजे तक सो जाना, 6 से 7 घंटे की नींद जरूर लेना। कुछ बच्चों की आदत होती है कि रात को 4, 5 बजे तक पढ़ते हैं और फिर सुबह 11 बजे तक, 12 बजे तक सोते हैं। फिजियोलॉजिकली गलत है। वैसी आदत मत डालना।
 
Group reading is helpful आप मिलकर पढ़ोगे। दो का ग्रुप, तीन का ग्रुप, चार का ग्रुप, मिलकर पढ़ोगे और काम्पीटिशन की भावना से पढ़ोगे उससे आपको फायदा होगा। उससे आपको रिविजन करने का फायदा होगा। नोट्स बनाने की आदत जरूर रखना। ये सही है कि नोट्स बनाने में टाइम बहुत जाता है लेकिन जो नोट्स बनाते हो वे आप कभी नहीं भूलते हो। आपको अच्छे से याद रहते हैं। आप साइड नोट्स लिख सकते हैं, या स्टीकर चिपका सकते हैं।

कुछ लोगों की विजुअल मेमोरी अच्छी होती है, तो कुछ लोगों की ऑडियो मेमोरी अच्छी होती है। उसमें जैसे ग्रुप होते हैं या रूम पार्टनर है आपका, तो एक बंदा आँख बंद करके सुन रहा है और दूसरा बंदा पढ़कर सुना रहा है। जिन लोगों की ऑडियो मेमोरी अच्छी है उनको उससे फायदा हो जाता है। जिनकी विजुअल मेमोरी अच्छी है वे पेज का इमेज अपने मन में याद रख लेते हैं। ये आपको खुद खोजना पड़ेगा कि आपका ब्रेन कौन सी दिशा में ज्यादा काम करता है।

पढ़ाई के टाईम टेबल को लेकर और आप नियमित रूप से अनेक घंटों पढ़ें। दो घंटे प्रतिदिन, चार घंटे प्रतिदिन का एक एवरेज आपका बन जाता है धीरे-धीरे आपको समझ में आ जाएगा आपने एक हफ्ते का औसत निकाल लिया या महीनेभर का औसत निकाल लिया। मान लीजिए कि आपका औसत बना महीने भर का 4 घंटा प्रतिदिन। 24 घंटों में आप 4 घंटे पढ़ रहे हैं। इस चार घंटे को लेकर एक मेरा प्रेक्टीकल सुझाव है, कि आप 50, 50 प्रतिशत में बाँटना। दो घंटा + दो घंटा। कैसे और किन दो चीजों में बाँटोगे? एक तो आप बनाइये कवर टू कवर टाईम टेबल। आपकी एनाटॉमी की पाठ्य पुस्तक है, फिजियोलॉजी की बुक है, बायोकेमेस्ट्री की बुक है। जो भी आपने पुस्तक चुनी है। उसका आप टाईम टेबल बनाईये कि मुझे ये कवर करना है और मेरे पास इतने महीने या इतने सप्ताह हैं। इसमें प्रतिदिन मुझको इतने पेज इस किताब में से पढ़ना है और उसके नोट्स बनाना है। फिर चाहे आंधी तूफान कुछ भी आ जाए आपका वो टाईम टेबल चलेगा। उस किताब का कवर। और दूसरा दो घंटा या दूसरा 50 प्रतिशत आप देंगे उस दिन क्लास में क्या लेक्चर हुआ, उस दिन क्या सेशनल हुई, उस दिन क्या सेमिनार हुआ, उस दिन आपने क्लिनिक में जाकर कौन सा पेशेन्ट देखा। जो उस समय आ रहा है उसके लिए 50 प्रतिशत टाईम रखो। और 50 प्रतिशत आपका जो कवर टू कवर चल रहा है, जो आपका कुछ भी हो जाए ऐसा 50, 50 प्रतिशत बाँट लेना पढ़ाई के लिए। ये आपको मदद करेगा। अपने आपको मेनेज करने में।
 

रेगिग आपकी हो सकती है। नहीं होना चाहिए। फिर भी हो सकती है। रेगिंग को लेकर डरना मत । कॉलेज प्रशासन की ओर से सख्त निर्देश हैं कि रेगिंग नहीं होने दी जाएगी। फिर भी मैं थोड़ीसी बात कहूँगा कि थोड़ी बहुत रेगिंग के कुछ प्लस प्वाइंट हैं। उसको स्पोर्टिग्ली लेना। छोटी-मोटी बात की शिकायत मत करना, डीन को या एन्टी रेगिंग कमेटी को। सहन कर लेना। क्योंकि अपना जो प्रोफेशन है एक प्रकार का गिल्ड है। यानि एक ऐसा प्रोफेशनल ग्रुप है जो अन्दर से बड़ा कोहेजिव होना पड़ता है। उसमें एक प्रकार की बांडिंग लगती है। बांडिंग करने में कुछ हद तक रेगिंग का रोल है। यानि आपके सीनियर को आप जानेंगे, आपके सीनियर जूनियर को जानेंगे। एक जो पर्सनल टच आता है वो थोड़ी सी बुलिंग में या थोड़ी सी दादागिरी में, या थोड़ी सी हँसी मजाक में आ जाए तो कोई बुराई नहीं है। Of-course ragging should not involve mental torture, ragging should involve physical torture, यदि ऐसा है तो आप जरूर शिकायत कीजिए। लेकिन उसको लाईटली लीजिये। एक बार ये बांडिंग बन जाएगी तो यही सीनियर आपको पढ़ाई में मदद करने वाले हैं। आप उनको रिस्पेक्ट करना सीखिए। अगर विश करना है सीनियर को तो जरूर कीजिए। उसमें क्या गलत है। अगर उनकी उम्मीद है कि ये जूनियर हमको विश भी नहीं करता, डिरेस्पेक्ट करता है तो उसके मन में ऐसी भावना मत आने दीजिए। जरूर रिस्पेक्ट कीजिए अपने सीनियर्स का।
आप में से कितने लोग है नीट की परीक्षा के दौरान, बारहवीं के अन्दर या जब कभी भी पढ़ते रहे, जो भी विषय था फिजिक्स, बायोकेमेस्ट्री, बायोलॉजी उसके अलावा आप क्या पढ़ते थे। आपमें से कुछ लोग है जो लिटरेचर पढ़ते थे। साहित्य, हिन्दी या अंग्रेजी, नॉवेल, स्टोरीज, एनीबडी। हाथ उठाइये। हो। और उठना चाहिए ऊँचे। कितने लोग हैं जो पोलिटिक्स या करंट अफेयर्स पढ़ते हैं। अखबार मेग्जीन्स । यस। तो अच्छी बात है। यह जो बियोन्ड मेडिसिन पढ़ने की आदत है इसको मत छोड़ना। बल्कि इसको ज्यादा विकसित करना। मैं जानता हूँ कि मेडिकल के प्रोफेशन की पढ़ाई बहुत लम्बी है। बहुत भारी है, और दुर्भाग्य से हमारी जो परीक्षाएं है, खासतौर से जो प्री पी.जी. सिलेक्शन की परीक्षाएँ है वे रटने वाली मेमोरी पर आधारित हैं।
 
इस बात का प्रयास चल रहा है कि उनमें जो प्रश्न पूछे जाए वे ऐसे हों जो आपको दिमाग से सोचने पर मजबूर करें। जो आपके अनुभव पर आधारित हो कि आपने कितने पेशेन्ट्स देखे तो आप उन प्रश्नों का उत्तर दे पाओगे बजाय के रटने के। इस प्रकार से परीक्षा शैली में परिवर्तन आएगा आने वाले सालों में। अभी तो वह है रटने वाली एक्जाम है।
 उसके बावजूद मैं चाहूँगा कि आप लोग बियोन्ड मेडिसिन में अपनी पदाई, जो भी थोड़ी बहुत रुचि है यो जारी रखें। हम लोग कोशिश कर रहे हैं मेडिकल कॉलेज लाईब्रेरी के अन्दर एक ऐसा किताबों का खण्ड बनाने के लिए जहाँ साहित्य फिक्शन और नॉन फिक्शन दोनों तरह का हिन्दी और अंग्रेजी दोनों में अनेक किताबें रखी जाएंगी आने वाले वर्षों में। मैं आव्हान करूँगा छात्रों से वे कि उन किताबों को इश्यु कराएँगें, घर पर भी पढ़ेंगे। जो लोग एक्स्ट्रा कुरीकुलर एक्टीविटीज में हैं वो अपनी एक्स्ट्रा कुरीकुलर हॉबी को कभी नहीं छोड़ेंगे। चाहे वो भाषण हो, डिबेट हो, चित्रकला हो, नृत्य हो, संगीत हो, फाईन आर्ट हो, थिएटर हो। ये सारी चीजें हमें एक बेहतर इंसान बनाती है। इत्तेफाक से हमारा मेडिकल एजुकेशन हो गया है,  इतना काम्पीटिटिव, इतना स्पर्धात्मक कि हम लोग केवल किताबों के बोझ के तले दबे,  बुकवर्म बन कर रह जाते है। कोशिश कीजिएगा खोल से बाहर निकलने की। अपने आपको एक बेहतर इंसान बनाने की। अगर आप एक बेहतर इसान बनेंगे तो आप एक बेहतर डॉक्टर बनेगे। मेडिकल की रट्टामार पढ़ाई के बियोन्ड भी अपने लिए समय निकालकर रखना है, अपने आपको बचा कर रखना है। ठीक है।

<< सम्बंधित लेख >>

Skyscrapers
प्रति सेकण्ड दस बार – कम्पन

देवादित्य सक्सेना (69 वर्ष) को आज भी याद है, हाथों के कम्पन पर उनका ध्यान पहली बार हा गया कि | शायद दस…

विस्तार में पढ़िए
Skyscrapers
मरने के बाद भी परोपकार: अंग दान

मुर्दा नहीं बेकार, हैं बड़े काम कापुराने लोग कहते थे कि मरे हुए जानवर के चमड़े से तो जूते बन…

विस्तार में पढ़िए
Skyscrapers
न्यूरोसेक्सिज़म NeuroSexism

स्त्री और पुरुष के मस्तिष्क में क्या भेद है?क्या भेद कम है या ज्यादा है? तुच्छ है या महत्वपूर्ण है?…

विस्तार में पढ़िए
Skyscrapers
Genetics / आनुवंशिकता

कुलीन होने का वैज्ञानिक अर्थआनुवंशिकता का अर्थ है माता-पिता व अन्य पूर्वजों से सन्तानों को प्राप्त होने वाले गुण ।…

विस्तार में पढ़िए


अतिथि लेखकों का स्वागत हैं Guest authors are welcome

न्यूरो ज्ञान वेबसाइट पर कलेवर की विविधता और सम्रद्धि को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अतिथि लेखकों का स्वागत हैं | कृपया इस वेबसाईट की प्रकृति और दायरे के अनुरूप अपने मौलिक एवं अप्रकाशित लेख लिख भेजिए, जो कि इन्टरनेट या अन्य स्त्रोतों से नक़ल न किये गए हो | अधिक जानकारी के लिये यहाँ क्लिक करें

Subscribe
Notify of
guest
0 टिप्पणीयां
Inline Feedbacks
सभी टिप्पणियां देखें
0
आपकी टिपण्णी/विचार जानकर हमें ख़ुशी होगी, कृपया कमेंट जरुर करें !x
()
x
न्यूरो ज्ञान

क्या आप न्यूरो ज्ञान को मोबाइल एप के रूप में इंस्टाल करना चाहते है?

क्या आप न्यूरो ज्ञान को डेस्कटॉप एप्लीकेशन के रूप में इनस्टॉल करना चाहते हैं?