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इन्टरनल मेडिसिन में एम.डी. या न्यूरोलाजी में डी.एम. के तीन वर्षीय पाठ्यक्रम शुरू करने वाले प्रथमवर्ष के रेसिडेन्ट्स के लिये कुछ सलाहें व मार्गदर्शन


प्रस्तावना:

प्रतिवर्ष मई-जून में नई बेच का नया सत्र आरम्भ होता है। युवा जुनियर डाक्टर्स अपनी जिन्दगी और करियर के एक नये दौर में प्रवेश करते हैं। गृहराज्य के अलावा देश के कोने-कोने से आये प्रत्याशी अनेकता में एकता को चरितार्थ करते हैं। रेसीडेन्ट्स व मेडिकल टीचर्स, दोनों पक्षों को एक दूसरे से उम्मीदें व प्रत्याशाएं होती हैं। यहाँ दी गई सलाहें यूं तो इन्टर्नल मेडिसिन के रेसीडेन्ट्स के लिये हैं। लेकिन थोडे से संशोधन के साथ न्यूरोलाजी व अन्य विभागों पर लागू हो सकती है। बेहतर होगा कि विभागाध्यक्ष या कोई वरिष्ठ अध्यापक नये रेसीडेन्ट्स के साथ इन मुद्दों पर चर्चा करें। तो ये रही कुछ हिदायतें – सलाहें, जिन्हें लेकर कोई कहना चाहें तो कह लें कि हमें पहले से नालूम थी, परन्तु मेरा सोचना कि इन पर बार-बार जोर देने की जरूरत है।

1. उत्तम पहनावा –

साफ सुन्दर वेशभूषा हो। सफेद कोट (एप्रन) सदैव पहनो। लम्बा एप्रन हो जिसमें गहरी जेबें हों 3 बाहर – 2 अंदर । ढेर सारी चीजें धारण करना पड़ती हैं डायरी, पेन, कागज, स्टेथोस्कोप, टार्च, इन्जेक्शन, सुईयाँ, नलियाँ, केथेटर, ड्रिप सेट, आदि-आदि। चार एप्रन सिलवाओ ताकि प्रतिदिन धुलने में डाल सको। नेमप्लेट लगाकर रखो लोग । आपका नाम जानना चाहते हैं और जताने में आपकी शेखी भी है।

2. अस्त्र-शरखों से सुसज्जित रहो –

काम आने वाले सामान का पिटारा सदैव भरा होना चाहिये, साथ रहना चाहिये। लिटमेन स्टेथसेस्कोप खरीदो। दो टार्च, ढेर सारी बैटरियाँ, आफ्थेल्मोस्कोप, टेन्डन हैमर (हथौड़ी), टंग डिप्रेसर (जिव्हादाबक), ट्यूनिंग फॉर्क (स्वरित्र) वजन लेने की मशीन, ऊंचाई नापने हेतु दीवार पर चिन्ह, सूक्ष्मदर्शी लेन्स आदि संसाधनों से भरी हुई ट्रे सब जगह तैयार मिलनी चाहिये ओ.पी.डी. में, वार्ड में। यदि आप के पास कोई आईटम हो तो उसके उपयोग में आने की संभावना बढ़ जाती है।

3. खुद की सुरक्षा का ध्यान रखो –

सार्वकालिक सावधानियाँ (यूनिवर्सल प्रिकाशन्स) अच्छे से यादाखो और अमल में लाओ। मानकर चलो कि प्रत्येक मरीज गम्भीर रूप से संक्रामक हो सकता है। दस्ताने (ग्लोब्स), मास्क, एप्रन, एन्टीसेप्टिक घोल, तथा बार-बार हाथ धोने की आदत का प्रचुरता से उपयोग करें। समस्त टीके लगवालें, हिपेटाईटिस बी, टायफाईड आदि। शक हो तो कीमो प्रोफीलेक्सिस के बारे में पूछें। खानपान का ध्यान रखें। सुबह नाश्ता अच्छा करें, दूध लेवें। सुई चुभने तथा टी.बी. के ओपन केस के साथ सावधानी रखें।

4. अपने नोट्स अच्छी तरह से लिखें –

मरीजों की केस शीट्स भरना आपकी प्राथमिक जिम्मेदारी है। विस्तार से हिस्ट्री (इतिवृत्त) लिखें, शारीरिक जांच करें व लिखें। बीमारी का निदान, निदान भेद (डायग्नोसिस), प्रयोगशाला परिणाम आदि तारीखवार लिखें हों। महजखानापूर्ति न हो। मरीज की स्थिति, डायग्नोसिस, इलाज के बारे में दैनंदिन परिवर्तनों का सच्चा लेखा- जोखा होना चाहिये। समस्त केसशीट प्रत्येक सप्ताह मेडिकल रेकार्ड विभाग में जमा होना चाहिये।

5. तरह-तरह के हुनर / प्रोसीजर सीखो और अभ्यास करो –

रेसीडेन्सी के दौरान, फिजिशियन को थोड़ा बहुत सर्जन भी होना चाहिये। इन्द्रावीनस केनुला, रक्त सेम्पल निकालना, सेन्ट्रल लाइन डालना, एण्डोट्रेकियल ट्यूब डालना, घाव की सफाई व पट्टी करना, श्वास मार्ग से कफ निकालना, केथेटर डालना, रायल्स ट्यूब डालना, लम्बर पंक्चर, बायोप्सी करना, आदि हुनर की प्रेक्टिस करें। जिम्मेदारी से कतरायें नहीं, घबराएं नहीं। हर मौके पर सीखने का प्रयास करें। सर्जन मित्रों की मदद लें। आपके वार्ड में अच्छी ड्रेसिंग ट्राली हो।

6. मालामाल रहो –

मरीजों के काम आने वापे तमाम संसाधन जुटा कर रखो। हम सब जानते हैं कि हमें कितनी कमियों के बीच काम करना पड़ता है। बहाने बाजी नहीं चलेगी। चतुर बनो, सुजान बनो, मित्र बनो, सजग रहो। साधनों को प्राप्त करने की विधियाँ सीखो। भीख मांगो, उधार ले लो, चुपके से ले आओ (फिर लौटा देना)। मित्रों से काम निकलवाने की कला सीखो। तृतीय व चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों से अच्छे सम्बन्ध रखो। दुश्मनी मोल न लो। अमीर मरीजों से, बिना दबाव डाले, छोटे-मोटे डोनेशन ले सकते हो।

7. सच बोलो –

ईमानदारी श्रेष्ठ नीति है। एक झूठ को छिपाने के लिये बहुत सारे झूठ बोलना पडते हैं। अपनी गलतियों और भूलों को स्वीकार कर लो। अपने काम की खामियों को ढंकने की कोशिश न करो। यदि मरीज की कोई प्रयोगशाला जांच न हुई हो तो उसे झूठमूठ में न भरें।

8. आज्ञाकारी रहो –

प्रथम वर्ष के जूनियर रेसीडेन्ट, पैदल सेना की अग्रिम पंक्ति होते हैं। सारी लानतें – मलामतें यहीं आकर रुकती हैं। श्रंखला की ऊपरी कड़ियों से आने वाले समस्त आदेशों का पालन करना अनिवार्य है। बहस नहीं या सवाल नहीं कि ऐसा क्यों? स्पाइनल लेवल पर गधे के माफिक, काम करते जाओ।

9. सक्रिय रहो, जानने, पूछने व संवाद करने की ललक रखो –

आज्ञाकारी होने का यह मतलब नहीं कि एक साल के लिये आपका दिमाग बन्द रखो। देखो, सुनो, समझो, सोचो, याद रखो और मौका या जरूरत होने पर पूछो, बात करो। आदेशों का पालन करो परन्तु घटनाओं और परिणामों पर अपनी पैनी नज़र रखो। मरीज की बीमारी का डायग्नोसिस, निदान भेद, निकल्प भेद, उपचार के तुलनात्मक रास्ते, अनुगमन (फालोअप) और पूर्वानुमान (प्रोग्नोसिस) आदि सभी पहलुओं में अपनी रूचि बनाये रखो। सीनियर रेसीडेन्ट्स व विशेषज्ञों से संवाद बनाये रखो। मूर्ख या बुद्ध जैसे न दिखो। वार्ड में हो रही महत्वपूर्ण घटनाओं से चाहिये। टीचर्स को वाकिफ रखो। फोन जरूर करो किसी भी समय। कारण उचित होना चाहिये। खासतौर से मेडिकोलीगल, वी.आई.पी. और सचमुच में सीरियस मरीजों के बारे में बात करने से न झिझको।

10. अपने अनुभवों और संसाधनों का साझा करो –

एक टीम के रूप में काम करो। एकला न चलो। अपने मरीजों की स्टोरी व अनुभव एक दूसरे को सुनाओ। खुद के खजाने पर कुंडली मार कर न बैठो बल्कि उदारतापूर्वक साथियों में बांटो। होगा। आपको सदैव अच्छा प्रतिफल मिलेगा।

11. पढ़ने के लिये कुछ समय चुराओ –

अपनी अलमारी में हेरीसन व कुछ मुख्य किताबें हमेशा रखो। एप्रन की जेब में या टेबल में, ड्राअर में किताबों के गुटके (हॅडबुक्स) हों। जैसा मरीज हो उस बारे में झट से थोड़ा थोड़ा पढ़ डालो। इन्टरनेट का

उपयोग मोबाईल स्मार्टफोन पर खूब करो। केस से सम्बन्धित पढ़ा गया हमेशा याद रहता है। हिस्ट्री व इक्जामिनेशन की विधियाँ अच्छे से याद हों। प्रमुख औषधियों की फार्माकोलॉजी व ब्राण्ड नामों के लिये एम.आई.एम.एस. जैसे प्रकाशन सदैव पास में हों। मुख्य शोध पत्रिकाओं (बी.एम.जे., लेन्सेंट, एन.ई.जे.एम.) के पन्ने पलटने, शीर्षक देखने तथा सार संक्षेप पढ़ने की आदत डालो।

12. तालिकाएं और चित्र बनवाकर प्रदर्शित रखो –

प्रमुख बीमारियों व आकस्मिक अवस्थाओं से सम्बन्धित वर्गीकरण, नैदानिक कसौटियों उपचार की गाइडलाइन, एनाटामी के खास तथ्य आदि पर बड़े रंगीन सुन्दर पोस्टर बनाकर ड्यूटी रूम या वार्ड स्टेशन या ओ.पी.डी. में लगाकर रखो। संक्षिप्त स्वरूपों को डायरी के रूप में एप्रन की जेब में रखो।

13. कम्प्यूटर निष्णात रहो –

आपकी पीढ़ी को माफ नहीं किया जा सकता यदि आप कम्प्यूटर, इन्टरनेट, गूगल, मल्टीमिडिया, दूरसंचार आदि में निपुण न हो। ये गजब के साधन हैं। इनका खूब उपयोग करो।

14. अपने थिसिस गाईड के पीछे पड़े रहो –

जल्दी से जल्दी अपना विषय चुनवाओ। तथा काम शुरू कर दो। लिट्रेचर, खोज, भमिका, लक्ष्य, करने की विधियाँ आदि प्रथम वर्ष में लिख ली जानी चाहिये तथा आरम्भिक डाटा संग्रहण शुरु में हो जाना

15. याद रहे कि मरीज हमेशा सही होता है –

हम और हमारे प्रोफेशन के अस्तित्व का एक मात्र उद्देश्य मरीजों की देखभाल और सेवा करना है। उनकी चाहतें, इच्छाएं, उम्मीदें, शिकायतें, गुस्सा, हर प्रतिक्रिया, हर कथन, सरआंखों पर, इज्जत के साथ सुनो और मानो और समझाओ या हल करो। अपना आपा न खोओ। मरीजों के साथ सहानुभूति रखो। बदले में आपको प्यार और कृतज्ञता मिलेगी। आपका प्रशिक्षण समृद्ध

16. चिकित्सा संसार के परे भी दुनिया है –

(बियांड मेडिसिन) अपनी हाबीज को मरने न हो। खेलकूद, साहित्य, राजनीति, अध्ययन, संगीत, कलाएं आदि से अपने जीवन को कतई वंचित न होने दो।

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