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नींद के विकासवादी और दार्शनिक पहलू (EVOLUTIONARY AND PHILOSOPHICAL ASPECTS OF SLEEP)


नींद के Evolutionary और Philosophical पहलुओं पर चर्चा की शुरुआत में मैं श्री हरि, भगवान विष्णु को प्रणाम करता हूँ। विष्णु सहस्त्रनाम में उनका एक नाम “निद्रालु” भी है। विष्णु क्षीर सागर में सो रहे हैं। सागर जो ब्रह्माण्ड का प्रतीक है। विष्णु शेष नाग की शैया पर सो रहे हैं। नाग जो समय या काल का घोतक है। समय जो अनन्त व चक्रीय है — बार बार आता है और जाता है।

विष्णु की नाभि से निकले कमल पर ब्रह्मा विराजमान है, जो विष्णु को जागने को प्रेरित करते हैं। विष्णु की जागृति से ब्रह्मा द्वारा ब्रह्माण्ड का निर्माण आरम्भ होता है। विष्णु की निद्रा रहस्यमयी है। शायद Meditation है। इस अवधि में वे समय से परे होते हैं।

हमारे देवता नियमित रूप से सोते हैं। चातुर्मास या चौमासा में सोते हैं। देव शयनि एकादशी (जून-जुलाई) से देव प्रबोधिनी एकादशी (प्रायः नवम्बर) के बीच सोते हैं। चौमासा अर्थात् एक वर्ष का एक तिहाई। कितना साम्य है! मनुष्य 24 घण्टे में से आठ घन्टे सोता है या सोना चाहिये। अर्थात् एक दिन का एक तिहाई।

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          नींद और जागने की कहानी Big-Bang [महाविस्फोट] से शुरू होती है। लगभग 14 अरब वर्ष पूर्व। उसके पहले क्या था। कोई नहीं जानता। ऋगवेद का नासदीय सूक्त कहता है;

नासदासीन्नो सदासात्तदानीं नासीद्रजो नोव्योमा परोयत्।
किमावरीवः कुहकस्य शर्मन्नंभः किमासीद् गहनंगभीरम् ॥१॥

          अर्थ- उस समय अर्थात् सृष्टि की उत्पत्ति से पहले प्रलय दशा में असत् अर्थात् अभावात्मक तत्त्व नहीं था। सत्= भाव तत्त्व भी नहीं था, रजः = स्वर्गलोक मृत्युलोक और पाताल लोक नहीं थे, अन्तरिक्ष नहीं था और उससे परे जो कुछ है वह भी नहीं था, वह आवरण करने वाला तत्त्व कहाँ था और किसके संरक्षण में था। उस समय गहन= कठिनाई से प्रवेश करने योग्य गहरा क्या था, अर्थात् वे सब नहीं थे।

न मृत्युरासीदमृतं न तर्हि न रात्र्या अह्न आसीत्प्रकेतः।
अनीद वातं स्वधया तदेकं तस्मादधान्यन्न पर किं च नास ॥२॥

          अर्थ उस प्रलय कालिक समय में मृत्यु नहीं थी और अमृत = मृत्यु का अभाव भी नहीं था। रात्री और दिन का ज्ञान भी नहीं था उस समय वह ब्रह्म तत्व ही केवल प्राण युक्त, क्रिया से शून्य और माया के साथ जुड़ा हुआ एक रूप में विद्यमान था, उस माया सहित ब्रह्म से कुछ भी नहीं था और उस से परे भी कुछ नहीं था। या शायद Multiverse की धारणा के अनुसार अनेक ब्रह‌माण्ड बनते और मिटते रहे हैं।

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            पांच अरब वर्ष पहले तारों का जन्म हुआ। हमारा अपना सूर्य बना। सौर मण्डल में हमारी अपनी धरती सहित ग्रह बनो। गुरुत्वाकर्षण के नियमों से बंधकर पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। दिन और रात बने। आधा समय प्रकाश, ऊष्मा, ऊर्जा। आधा समय अंधकार, कम ऊष्मा, कम ऊर्जा। सोने और जागने की शुरुआत तभी से हो चुकी थी। Circadian Rhythm, [दिवारात्रि लय] स्थापित हो चुकी थी। धरती पर जीवन बहुत बाद में आया। पृथ्वी बनने के लगभग दो अरब वर्ष बाद।

            उसके पहले से अजीवित पदार्थ पर भी 24 घण्टे वाले चक्र के अनेक प्रभाव पड़ते होंगे। लेकिन वे हमारी चर्चा का विषय फिलहाल नहीं है। जीवन के शुरुआत में से आज तक एक कोशीय जीवों में भी Circadian rhythm का प्रभाव देखा जाता है। लघु बेक्टीरिया शायद हम जैसे न सोते हों लेकिन उनकी गतिविधियां, केमिस्ट्री, metabolism में अन्तर पड़ता है।

            जीवन के आविर्भाव की प्रथम पायदानों में देखते ही देखते ऐसी जीन्‌स बनती है जो खास प्रोटीन बनाती है, जो Circadian rhythm अर्थात् प्रकाश और अंधकार की अवस्थाओं से संचालित होती हैं।

            प्राणियों के शरीर की प्रत्येक कोशिका में एक Circadian clock मौजूद रहती है। दिनमान घड़ी। यह बहुत सटीक होती है। अनेक विशिष्ट Molecules का समूह होती है। जो प्रोटीन होते है। जिन्हें बनाने वाली खास जीन्स होती हैं। ये प्रोटीन अनेक दूसरी जीनस की क्रियाशीलता को नियंत्रित करते हैं। ये प्रोटीन संकुल प्रति बारह घण्टे की अवधि में अपनी संरचना और संघठन बदलते है। नींद का नियंत्रण भी इन्ही के हाथ में रहता है।

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          डार्विनियन विकास की दृष्टि से देखा जाये तो नींद एक रहस्यमयी विरोधाभासी अवस्था है जो न जाने क्यों और कैसे विकसित हुई? नींद में आप किसी काम के नहीं होते। न भोजन ढूंढना, न यौन क्रिया, उल्टे आसान शिकार बन जाना। लेकिन कुछ तो फायदे होते होंगे। वरना “न सोने वाली” स्पीशीस क्यों नहीं बनी?

यदि नींद जरूरी नहीं होती तो ऐसे प्राणी जरूर पाये जाते जो

(a)  बिल्कुल भी नहीं सोते

(b)  जिन्हें लम्बे समय तक जगाकर रखा जावे तो वे ज्यादा गहरी व लम्बी नींद लेकर उसकी पूर्ति न करते हो

(c)  जिनमें लम्बी अनिद्रा के कारण स्वास्थय  पर कोई सुरा असर न पड़‌ता हो।

            शून्य नींद वाले प्राणी नहीं पाये जाते। केवल उन्हें छोड़कर जिनके पास मस्तिष्क या Brain नहीं होता। शायद उनमें भी पायी जाती हो।

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          नींद की शुरुआत तो कीड़ों में, Insets में, हो चुकी थी। मधुमक्खी सोती है तो उसके Antenna शिथिल हो जाते हैं, काकरोच अपने आप में सिमट जाता है।

*प्राणी जगत में Jellyfish को हम पहला उदाहरण मान सकते है जिसमें एक प्रकार की नींद पाई जाती है।

            प्रयोगों में फ्रूट फ्लाय को जब नींद से वंचित रखा गया तो भोजन ढूंढता सीखने का उनका हुनर कमजोर पाया गया।

            Arthropods (Insects) की जीन-एक्प्रेशन शोध से पता चला है कि कीड़ों और स्तनपायी प्राणियों में नींद को नियंत्रित करने वाली जीन्स में समानताएं है।

            निष्कर्ष यह कि प्राणियों के Evolution में नींद का आविर्भाव बहुत शुरू में हो चुका था और उसे संचारित तथा संधारित करने वाली प्रणालियां विकसित होने लगी थी। वे प्रणालियां लुप्त नहीं हुई। बनी रही। बदलती रहीं। बेहतर होती रहीं। इसे कहते है Evolutionary Conservation बायोलाजिकल विकास में संरक्षण।

            *मछलियों में नींद का अवलोकन मुश्किल पाया गया है। उन्हें Gills में पानी का बहाव बनाये रखना जरूरी है- आक्सीजन के लिये । अतः तैरते रहना भी जरूरी है।

            मछलियां या तो छुद्र, लघु निद्रा लेती है, [micro sleep] या दो में एक hemisphere (गोलार्ध) को बारी बारी से सुलाती है।

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            *यह जानना मुश्किल है कि पक्षियों और स्तनपायी प्राणियों (mammals) में दो प्रकार नींद – NREM और REM कैसे, कब और क्यों विकसित हुई।

            रेप्टाइल (सरीसृप) जैसे कि छिपकली, सांप आदि में नींद देखी जाती है। शायद REM और NREM के आरम्भिक लक्षण भी मिलते हैं। दिन में दो तरह के व्यवहार देखे जाते है। “सक्रिय” जिसमें शिकार किया जाता है। यह REM अवस्था का पूर्वज है। “निष्क्रिय” जिसमें आराम। यह NERM का पूर्वज है।

          Birds (पक्षी) में REM और NREM दोनों प्रकार की नींद मिलती है। पक्षियों और कुल जलचर स्तनधारियों में देखा गया है कि एक समय में मस्तिष्क का एक गोलार्ध सोता है, दूसरा Hemisphere जागता रहता है। बारी बारी से अपनी ड्यूटी निभाते है। हज़ारों मील, बिना रुके उड़ने वाले पक्षी ऐसा करते हैं। या अधिक से अधिक कुछ सेकण्ड की Microsleep लेते है जिसके दौरान उनका सिर थोड़ा सा नीचे झुक जाता है लेकिन पंख चलायमान रहते हैं।

            स्तनपायी (Mammals) में विकास की आरम्भिक अवस्थाओं में छोटी छोटी अवधि की नींदे बार बार ली जाती थी। अधिक विकसित प्राणियों में एक या दो लम्बी नींद ली जाती है। कम वजन के छोटे आकार के, ऊँची BMR (Basal Metabolic Rate) वाले प्राणियों में Polyphasic Sleep, अधिक बड़े आकर वाले, कम BMR वाले  Mammals की Monophasic Sleep की तुलना में कम सक्षम होती है। घोड़ा और जिराफ प्राय: खड़े खड़े सोते हैं। केवल REM नींद के कुछ मिनिटों को छोड़कर, क्योंकि उस अवधि में मांसपेशियां शिथिल हो जाती है, अपना Tone या तन्यता खो देती है। ऊंट बैठकर सोते है लेकिन किस करवट बैठेंगे ये नहीं बताया जा सकता। चमगादड़ उल्टे लटके लटके सो जाते हैं।

          निशाचर प्राणियों का होना अपने आप में एक आश्चर्य है। इनकी Metabolism और हार्मोन की लय उल्टी चलती है। हायपोथेलेमस, पीनियल ग्रंधि और मिलेटोनिक वाला सिस्टम दोनों प्रकार के प्राणियों में एक जैसा होता है।

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          नींद की अवधि की तालिका यहाँ दी जा रही है।

DURATION OF SLEEP IN MAMMALS
Horses 2 hoursHouse mice – 12.5 hours
Elephants – 3+ hoursCats – 12.5 hours
Cows – 4.0 hoursLions – 13.5 hours
Giraffes – 4.5 hoursPlatypuses – 14 hours
Humans – 8.0 hoursChipmunks – 15 hours
Rabbits – 8.4 hoursTigers – 15.8 hours
Chimpanzees – 9.7 hoursGiant armadillos – 18.1 hours
Red foxes – 9.8 hoursLeopards – 18 hours
Dogs – 10.1 hoursLittle brown bats – 19.9 hours

            मांसाहारी प्राणी सबसे अधिक समय सोते है। शाकाहारी प्राणी सबसे कम। सर्वभक्षी (Omnivorous) जैसे कि मनुष्यों में नींद की अवधि, बीच की होती है। अनेक मवेशी (गाय, भैंस) गहरी नींद सोने के बजाय उंघते रहते हैं।

          Hibernation /शीत निष्क्रियता

            धरती के उन भूभागों में जहां शीत ऋतु बहुत अधिक ठण्डी होती है, वहां के प्राणी ठण्ड के मौसम में शीत निष्क्रियता में चले जाते है। अनेक सप्ताह, अनेक महीनों तक पड़े रहते है। वास्तविक नींद नहीं आती। उल्टे सचमुच में सोने लिये उन्हें पहले शीत निष्क्रियता से बाहर आना पड़ता है। शरीर की चर्बी के रूप में जो भोजन सहेज कर रखा गया था वह इन्हीं दिनों में खर्च होता है।

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          पौधों में नींद

            हमें बचपन में माताओं द्वारा सिखाया जाता है कि शाम पड़े  धुंधलका होना बाद पोधों को न छेड़ो, फूल-पत्ती न तोड़ो, क्योंकि वे भी जीवित प्राणी हैं, जो हमारे समान सोते और जागते है। महान वैज्ञानिक श्री जगदीश चन्द्र बसु ने पौधों में जीवन, नींद-जागृति और चेतना पर महत्वपूर्ण शोध की थी।

            पादप कोशिकाओं में भी प्राणियों के समान Circadian Clock [दिनमान घड़ी] पाई जाती है जो अनेक बायोलाजिकल प्रक्रियाओं को संचालित करती है जैसे कि नींद, Metabolism [चयापचय] और हार्मोन्स की मात्रा। वातावरण में प्रकाश और तापमान में होने वाले परिवर्तनों का वनस्पति जगत पर असर पड़ता है। अनेक पौधो की पत्तियां और फूल रात से समय शिथिल हो जाते है, लटक जाते है, बन्द हो जाते हैं।

            मैं नहीं जानता कि पोधों में इन्सानों जैसी चेतना होती है या नहीं, या कि वे पीड़ा का अनुभव करते हैं या नहीं। हालांकि भारतीय दर्शन के अनुसार यह सब सम्भव है।

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          डार्विनियन सिद्धान्त में नींद का स्थान

            नींद के प्रकार, उसका वर्गीकरण, उसकी अवधि, उसकी परिस्थितियां, उसका दिनमान— कितनी विविधता? किसी स्पीशीज की सफलता कोई एक राज नहीं होता, एक फार्मूला नहीं होता। सबके अपने अपने ढंग, अपने अपने उपाय। सब के सब सफल।

            प्रत्येक उदाहरण की विशिष्टता, कौशल और सुन्दरता को देख कर मन से ‘वाह’ निकलती है। लोग कहते है “भगवान ने क्या System बनाया है? भगवान कुछ नहीं करता। उसे फुरसत नहीं है। यह सब अपने आप होता जाता है। कोई कर्ता नहीं है, कोई Agent नहीं है।

            प्रत्येक स्पीशीज की प्रत्येक पीढ़ी के तमाम सदस्यों के जीनोम में लघु लघु म्यूटेशन स्वतः होते रहते है। इनमें से कुछ नुकसानदायक होते हैं। वे प्राणी मर जाते हैं, संतान पैदा नहीं करते।

            कुछ mutation लाभकारी होते हैं। या बदली बदली परिस्थिति में by chance लाभकारी होते है। उनकी लाटरी चल निकलती है। Natural variation [प्राकृतिक भिन्नता] और Natural Selection [प्राकृतिक चयन], देश और काल के अनुरूप अपने आप होता रहता है।

            Survival of fittest का लोग गलत अर्थ लगते है। “श्रेष्ठ जन ही जीता है, यह पश्चिम की उक्ति है”

            ऐसा लिखा जयशंकर प्रसाद ने कामायनी में।

            जबकि यह उक्ति पूरब पश्चिम सब जगह लागू होती है। इसकी तुलना “जिसकी लाठी उसकी भैंस” से मत करिये। नींद के नाना स्वरुप भिन्न भिन्न परिस्थितियों में भिन्न भिन्न स्पीशीज की सफलता के वाहक बने, यह एक अद्भुत कहानी है। इसके बारे में कुछ जानिये, अचरच कीजिये, समझिये, कुछ सोचिये। बन सके तो शोध कीजिये। यह कह कर न बैठ जाइ‌ये कि “ईश्वर की लीला अपरम्पार है”।

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          [माण्डूक्योपनिषद] भारतीय वेदान्त में चेतना के चार स्वरूपों का वर्णन है।

1.    जागृत अवस्था (Conscious State) तब होती है जब चेतना पिंड या शरीर में प्रकट होती है। इसी के समान्तर ‘चेतना’ ब्रहमाण्ड में, प्रकृति में, इस संसार में भी प्रकट होती है।

2.   स्वप्नावस्था (Subconscious state) चेतना आंशिक रूप से शान्त्र हो जाती है। स्थूल देह काम नहीं कर रहा होता। सूक्ष्म देह जो आत्मा से जुड़ी होती है, इन्द्रियों से कुछ कुछ सम्पर्क में रहती है। इस अवस्था में Cosmic चेतना की तुलना हम रात्रि से कर सकते हैं।

3.   सुषप्तावस्था (Unconscious State) सूक्ष्म शरीर भी चेतना से विलग हो जाता है। चेतना का मूल स्वरूप जो आनन्दमय है, इसी अवस्था में प्राप्त होता है। प्रात: उठते समय हमें जो ताजगी की अनुभूति होती है वह चेतना के इसी आनन्दमय रूप की परछाई होती है।

       [सुखमहं आस्वासम नादर्शम, नाश्रीषम]

4.   तुरीय अवस्था में चेतना (Transcendal State) Meditation, ध्यान, समाधि आदि द्वारा, गहन अभ्यास से पिण्ड की चेतना अपने को असीम विशाल ब्र‌ह्माण्ड चेतना के सम्पर्क में पाकर अपूर्व आनन्द में डूब जाती है। चेतना जो सदैव जागरूक रहती है, वह शरीर के बन्धनों को लांधकर जब जागृत अवस्था (Consciousness) स्वप्नावस्था (Subconscious), सुषुप्त अवस्था (Unconscious) को परे छोड़कर, शरीर के बन्धनों से छूटकर “तुरीय अवस्था” (Supra-conscious) में पहुंच जाती है, तब चेतना अपने यथार्थ स्वरूप में आ जाती है। इसे पा लेना ही भारतीय शास्त्रों का लक्ष्य है।

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संक्रमण अवस्थाएं
Transitional states

दुनिया में द्वैत हावी है या इन्द्रधनुष?

द्वैत अर्थात Binary. दो अवस्थाएं।

या तो यह या वह। काला और सफेद। झूठ और सच। स्त्री-पुरुष। दिन और रात।

इससे अलग हटकर इन्द्रधनुष अर्थात एक निरन्तरता।

50 Shades of Grey

Many faces of truth

Many genders.

            जैसे दिन और रात के बीच में संध्या और ऊषा आती है। वैसे ही जागृति और निद्रा के बीच में अनेक संक्रमण /Transitional अवस्थाएं आती है। कुछ फिजियोलाजिकल कुछ पेथालाजिकल। इनके बीच की सीमा रेखाओं को परिभाषित करना कई बार मुश्किल होता है। ऐसी ही कुछ Transitional States का संक्षिप्त उल्लेख यहां करना चाहूँगा।

     जागृति से नींद की दिशा में

1.   Drowsyness [उनींदापन]

2.   Hypnagogic Hallucination [नींद में जाते समय के विभ्रम]

       अनेक लोगो से हो सकते हैं। चिन्ता का कारण नहीं होते। एक ऐसी संवेदना या Sensory Perception जो बिना बाह्य उद्दीपन के अन्दर से अपने आप होती है। कोई है नहीं, लेकिन दिख रहा है, कोई बोला नही लेकिन सुनाई पड़ रहा है।

3.   Nocturnal Startle /Myoclonus

       सोते समय चौंक पड़ना, चमकना। अचानक से एक-दो सेकण्ड के लिये हाथपांव उचक जाते है। जब हम कच्ची नींद में होते है तो प्रकृति में कुछ ऐसा प्रबन्ध विकसित हो गया है कि जरा सी आहट या स्पर्श से व्यक्ति यकायक कुछ क्षणों के लिये चौंक कर उठता है, फिर सो जाता है। नींद की फिजियोलाजी में इसे Arousal Response कहते हैं जो ई.ई.जी. में भी देखे जाते हैं।

4.   नार्कोलेप्सी

       कभी कभी एक संक्रमण /Transition ऐसा भी होता है जिसमें व्यक्ति सीधे-सीधे जागृत अवस्था से REM Sleep [सपनों वाली नींद] में चला जाता है। वरना सामान्य तौर पर NREM नींदें पहले आती है। Narcolepsy में दिन में अनेक अवसरों पर न रोकी जा सकने वाली नींद आती है, आधा-एक घन्टा रहती है।

5.   कैटाप्लेक्सी

       कैटाप्लेक्सी नार्कोलेप्सी से सम्बन्धित है। इसमें यकायक व्यक्ति निढाल हो कर गिर पड़‌ता है। जागृत रहता है। याद करिये कब आप एक दिन आप हंसते हंसते दोहरे हो गये थे हाथ पांव की ताकत कुछ क्षणों के लिये जाती रही थी। जागृत अवस्था से सीधे REM अवस्था की दिशा में जाते समय कुछ ऐसा होता है कि मन जागृत रहता है लेकिन मांसपेशियों का Tone [तन्यता] जाता रहता है। सपनों वाली नींद [REM Sleep] में Evolution द्वारा यह सुनिश्चित करा गया है कि हम उन्हे अभिनीत न करने लग जायें, इसलिये मांसपेशियां शिथिल कर दी जाती है।

       डॉ. आर्थर कानन डायल की एक कहानी में एक अपराधी को पकड़‌ने के लिये शर्लाक होम्स अचानक से एक फूलदान फोड़ कर जोर की आवाज करते हैं, Cataplexy से पीड़ित शिकार धड़ाम से गिरता है और धरा जाता है।

नींद से जागृति की दिशा में Transitional अवस्थाएं

(अ) नींद में बोलना और चलना

       REM नींद में कुछ व्यक्तियों मन सोया रहता है लेकिन शरीर आंशिक रूप से जाग उठता है। सपनों का अभिनय होने लगता है। व्यक्ति कुछ कुछ बड़बड़ाता है। कभी सार्थक, कभी निरर्थक, हाथ पांव चलाता है। चल पड़ता है।

(ब) स्लीप पेरेलिसिस

      शायद अनेक श्रोताओं या पाठकों ने इसे महसूस किया होगा। व्यक्ति का मन /चेतना जाग चुके होते हैं। लेकिन शरीर के जागने में एक-दो मिनिट की देरी हो जाती है। इस अवधि में हमें पता होता है कि हम कहां है, क्या हो रहा है, आवाजें पहचानी जाती है, हम उठना चाहते है पर उठ नहीं पाते, घबरा जाते है, हाथ पांव-शरीर को क्या हो गया है, किसी ने दबाया है, जकड़ दिया है, चिल्लाना चाहते है लेकिन आवाज नहीं निकलती। शुक्र है कि कुछ ही देर में अपने आप या किसी के हौले से स्पर्श से, या ध्वनि-प्रकाश से अंगों में करंट चालू हो जाता है। हम उठ बैठते हैं। दिल की धड़कने कम होती है। राहत की सांस लेते है। इस विषय पर देखिये मेरे यूट्‌यूब वीडियो की लिंक

(स) सपने

      मेरे दिवंगत बड़े भाई श्री प्रभु जोशी ने 1987 में नईदुनिया अखबार के लिये किसी विज्ञान विषय पर मेरा पहला ललित निबन्ध ‘सपनों’ पर लिखवाया था।

       उसकी लिंक है https://neurogyan.com/ander-koi-hai-kya

       यह एक बहुत बड़ा विषय है, जिसकी चर्चा फिलहाल सम्भव नहीं।

*अनेक वैज्ञानिक और Psychologists सपनों को, नींद का महज एक By Product या Epiphenomenon मानते हैं जिसकी कोई उपयोगिता नहीं है।     

*आर्टीफिशियल इंटेलिजेस के क्षेत्र में काम करने वाले वैज्ञानिक Deep Neural Networks पर शोध करते हैं। उन्होंने पाया कि किसी DNN को ढेर सारे Data के एक लाट पर ट्रेनिंग देते देते वह अपने आप को जरूरत से ज्यादा फिट करने लगता है, समायोजित करने लगता है और नये Data Set के साथ सामंजस्य नहीं बैठा पाता। शायद सपने इस Generalization के काम में मदद करते है।

*एक अन्य परिकल्पना के अनुसार सपनों द्वारा ब्रेन की Hard Disk की Editing करी जाती है, सफाई या House keeping होती है।

*स्टेनफर्ड के डेविड ईगलमेन के अनुसार नींद में हमारे ब्रेन का पिछला हिस्सा Occipital Cortex जो देखने के काम से सम्बन्धित होता है, उसे कोई Input नहीं मिलता। उसकी पूर्ति करने के लिये सपनों का विकास हुआ।

*कुछ अन्य वैज्ञानिकों के अनुसार सपनों के दौरान बहुत सारी Short Term Memory को Long Term Memory में परिवर्तित किया जाता है।

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Functions of sleep नींद के कार्य (उपयोगिता)

            एक वाक्य में कहें तो नींद, प्राणी के जिन्दा रहने के लिये अनिवार्य है।

            ऐसा अनेक कार्यों द्वारा सम्पन्न होता है — शरीर व मन को आराम मिले, ऊर्जा बचे, उर्जा संग्रहित ऐसा तो सभी मानते हैं।

(1)   Neuro-development

         गर्भस्थ शिशु और नवजात शिशु के मस्तिष्क के विकास नींद की में भूमिका रहती है। शायद नयी न्यूरान कोशिकाओं के निर्माण में मदद मिलती है।

(2)    Synaptic Plasticity

         न्यूरान के मध्य सन्धि स्थलों पर विद्युतीय और रासायनिक संदेशों के संचार को नियंत्रित करके मस्तिष्क की रचना और कार्य प्रणाली को ढालने में नींद का योगदान है।

(3)    मानसिक स्वास्थ्य

(4)   स्मृतियों का सुदृढ़ीकरण

         दिन भर में जो अच्छा और सफल किया उसका NREM नींद में बार बार Replay करना

(5)    Metabolic Functions रसायन और चयापचय तथा केंसर की रोकथाम

(6)   Immune System आंतों के भले बेक्टीरिया का स्वास्थ्य पर्याप्त नींद पर निर्भर करता है।

(7)    झाडू-पोंछा और गन्दगी की धुलाई

         ब्रेन का सेनेटरी व प्लबिंग सिस्टम नींद में ड्यूटी पर आता है। एनाटामी में पढ़ते थे कि मस्तिष्क ही एक अंग है जिसमें Lymphatic  नही होते। अब मालुम पड़‌ा‌ है कि ब्रेन में Glia नाम की कोशिकाएं मिल कर छोटी छोटी नलीकाएं बनाती है जिनमें CSF द्रव बहता है, ड्रेनेज होता है। अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालता है इन्हें Glymphatic कहते है। CSF के बहने की दिशा नींद में उलट जाती है। जागृति में ऊपर से नीचे तो नींद में नीचे से ऊपर। नींद की कमी से Amyloid Beta जैसे विषैले पदार्थ अधिक जमा होने लगते है, बौद्धिक क्षमता में कमी आती है, एल्जीमर्स डिमेन्शिया जैसे रोगों की आशंका बढ़ती है।

नींद, मिथक और साहित्य

         नींद और सपनों को लेकर दुनिया भर की Mythology में ढेर सारी कहानियां हैं। कुछ ही का उल्लेख कर रहा हूँ।

1.      भारतीय लोगों के लिये रामायण का पात्र कुम्भकर्ण एक जाना माना नाम है। रावण का छोटा भाई था। खूब सोता था । खूब खाता था।

         न्यूरोलाजी में एक दुर्लभ रोग वर्णित है। Kline Levin Syndrome उसके लक्षण कुम्भकर्ण से मिलते जुलते है। कौन जाने उसे भी यही रोग रहा हो। जो वाल्मीकि तक आते आते। Semi-fictionalize हो गया है। आधा सत्य, साधा गल्प।

2.     ग्रीक पुराण कथाकों में “आन्डीन” नाम की जलपरी या Nymph या Mermaid होती है। उसे धरतीवासी एक पुरुष से प्रेम हो गया। उसने मानवी रूप अंगीकार कर के विवाह किया, एक सन्तान हुई। एक दिन उसने पाया कि उसका पति किसी अन्य स्त्री से प्यार कर रहा है। गुस्से में श्राप दिया — “तुम तभी तक श्वास ले पाओगे जब तक जागृत हो। जहां नींद में गये तो सांस रुक जायेगी”।

         आजकल के Sleep physicians, कुछ अवस्थाओं के लिये ‘Ondine Curse’ लेबल का उल्लेख करते है। Central Hypoventilation Syndrome. Central Sleep Apnnea. इन रोगों में Medulla Oblongata में स्थित श्वसन केन्द्र की न्यूरान कोशिकाकों की उद्दीपनशीलाता कम होती है। जब तक जागृत व सजग है तब तक श्वसन ठीक चलता है, जहां उनींदे हुई अन्दर से Accelerator ढीला पड़ जाता है, रेस्पीरेशन कम होता जाता है, बन्द बन्द होने लगता है।

3.     एक पुरानी ग्रीक कहावत है कि नींद और मृत्यु जुड़वां बहने हैं और सपने, आत्मा की जिन्दा रहने की अभिलाषा की अभिव्यक्ति हैं।

4.     टालस्टाय की कालजयी रचना War and Peace में बड़ा सजीव वर्णन आता है कि कैसे रुसी सेना का जनरल अत्यन्त महत्वपूर्ण मीटिंग में ऊंधने लगता है। देश पर नेपोलियन का आक्रमण हो रहा है। सैन्य योजनाएं बनाती है लेकिन सेनापति सो जाता है।

5.     रुसी लेखक एंटन चेखव की एक कहानी में एक तेरह वर्षीय किशोरी का मार्मिक विवरण जो अपनी मालकिन के निर्दयी व्यवहार के करण सो नहीं पाती। हालांकि कहानी अन्त Morbid होने से मुझे पसन्द नही आयी।

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आधुनिक समाज में नींद का घाटा

            प्रसिद्ध कहावत है;

            Early to bed, early to rise
            Makes a man, Healthy wealthy & wise

            पुराने जमाने में लोग इसका पालन करते थे। आधुनिक समाज की क्रत्रिम व्यवस्थाओं में सब गड़‌बड़ झाला है। क्या हम धामस अल्वा एडिसन को दोष दें कि उसने विद्युत बल्ब का अविष्कार क्यों किया। ईश्वर ने कहा ‘Let there be light’ और लो देखों सब जगह सब समय प्रकाश ही प्रकाश। रातें, रातें नहीं रही। प्रकाश प्रदूषण का बोलबाला है।

            कौन सा देश, रात में कितना जगमगाता है इसे विकास का एक पैमाना माना जाता है।

            देखिये एक नक्शे में तुलना करिये दक्षिण कोरिया और उत्तर कोरिया की। आज का समाज नींद वंचित है। Sleep Deprived है। हमारे ऊपर प्रतिदिन नींद का कर्ज चढ़ता है। We have ever accumulating sleep debt upon us.

            प्रगति, प्रगति, Progress, Program, विकास, विकास, Growth, Growth, उत्पादकता उत्पादकता Productivity Productivity.

            हम सब इन मंत्रों का जाप करते है। हम सब प्रतिदिन एक “जेट लेग” का शिकार होते जाते है। लम्बी हवाई यात्रा वाला जेट लेग नहीं वरन सामाजिक जेट लेग। Social Jet lag ।

            देर रात तक काम करना, पढ़ना, मनोरंजन करना, शिफ्ट ड्यूटी करना, ये समस्त गतिविधियां हमारी फिजियालाजिक दिनमान घड़ी Circadian clock को भ्रमित कर देती हैं, अनेक काम गड़बड़ा जाते हैं। शारीरिक और मानसिक स्वास्थय पर बुरे असर पड़‌ते है।

            बहुत से लोग कहते है Enough is enough. प्रकृति के साथ सांमजस्य बिठाकर जिओ, उसे जीतने की कोशीश मत करें।

            वे कहते हैं कि विकास के पहियों की घूमने की गति को धीमा कर दो, या रोक दो या पीछे घुमा दो। एक शब्द आता है De-growth

            क्या यह सम्भव है? क्या यह अनुशंसित है?

            मेरे अनुसार कतई नही। सर्वप्रथम तो, विकास करना इन्सान की तासीर है, उसकी प्रवृत्ति है, स्वाभाव है, उसका Nature है, उसकी चित्ती है। जिसे बदलना सम्भव नहीं। मानवजाति प्रगति की दिशा में उपक्रम करना या गुस्से में कहना चाहो तो खटकरम और खुराफातें करना जारी रखेगी। जैसे पानी का सैलाब रोके नहीं रुकता वैसे ही इन्सानी जहोजहद जारी रहेगी। दुनिया बेहतर होती रही है, होती रहेगी। समस्याएं आती रहीं है, आती रहेंगे। सर्वनाश के अंदेशे को लेकर रोने वाले रोते रहेंगे और गलत सिद्ध होते रहेंगे। मनुष्य नयी तक्नालाजी की मदद से हल निकालता रहेंगा।

            Sleep medicine की इस अन्तरराष्ट्रीय कान्फ्रेन्स में ऐसे ही अनेक उपचारों और जुगतों पर चर्चा होगी। तीन तरह के उपाय होते हैं:-

            (1) Mitigation        (2) Adaptation      (3) Acceptance

             अन्त में एक छोटा सा Low Technology उपाय

            फंक्शनल MRI से पता चलता है कि आँखों के सम्मुख प्रकाश अधिक हो तथा कम हो– इन दो परिस्थितियों में मस्तिष्क के सक्रिय इलाके के क्षेत्रफल में बहुत अन्तर आ जाता है। सक्रिय नेटवर्क के नक़्शे बदलते जाते है। नींद न सही, कुछ समय का अन्धकार भी मस्तिष्क को आराम देता है।

            हमारा परिवार तीन दशकों से इस प्रकार की आंख पट्टी। Blinder /Eye shadow का उपयोग करता रहा है, न केवल सोते समय वरन संगीत + Podcast सुनते समय या कार में यात्रा करते समय। नींद न आये तो न आये, आंख ओट, पहाड़ ओर होती है। सचमुच में सुकुन मिलता है, relaxation मिलता है।

            अगली मीटिंग में मेरा या किसी अन्य वक्ता का भाषण, ऐसे ही आँखों को ढंककर सुनने का प्रयोग करना।

            धन्यवाद

            Thanks for Kind attention.

*          *          *

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