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राष्ट्रीयता संवाद


अपूर्व: प्रिय मित्र, स्वतंत्रता दिवस की बधाई। आओं ‘हर घर तिरंगा’ मुहिम में शरीक हों।

मित्र: नमस्ते, डाक्टर साहब। यह सब ढकोसला है। चोंचले हैं। मैं क्यों अपने घर पर झण्डा फहराउँ? स्कूलों व सरकारी दफ्तरों पर अधिकारियों व छात्रों की मजबूरी है। मेरे ऊपर जबरजस्ती क्यों?

अपूर्व: यह जबरजस्ती नहीं है। एक आव्हान है। ऐच्छिक है। लेकिन अच्छा आव्हान है। इसमें बुरा क्या है?

मित्र: इस नाटकबाजी से क्या होता है?

अपूर्व: राष्ट्रीयता की भावना पनपती है। देशभक्ति का जज्बा मजबूत होता है।

मित्र: जो इस पाखण्ड में शरीक नहीं होते वे देश द्रोही है क्या?

अपूर्व: ऐसा तो मैंने नहीं कहा, नहीं सोचा।

मित्र: प्रचार तो ऐसे ही होता है। कोई बन्दा राष्ट्रगान के समय खड़ा नहीं हो पाया तो उस पर ढेर सारी लानत मलामतें थोप दी जाती हैं।

अपूर्व: प्रश्न नियत का है। राष्ट्रगान या झण्डे के प्रति हिकारात का भाव रखने वाले की तो मैं भी निन्दा करूंगा

मित्र: क्या यही कसौटी है आपकी देशभक्ति की?

अपूर्व: अनेक कसौटियों में से एक छोटी सी प्रतीकात्म‌कता है। मैं जानता हूँ कि राष्ट्र‌प्रेम के और भी पैमाने है।

मित्र: शो-आफ करने वाले अपने असली जीवन में क्या क्या करते है, यह कभी देखा है आपने? झूठ फरेब, बेईमानी, भ्रष्टाचार, शोषण, लेटलतीफी, काहिली करते हुए भारत माता की जय चिल्लाने से क्या सात खून माफ कर देना चाहिये?

अपूर्व: कतई नहीं।

मित्र: तो फिर असली देश भक्ति क्या हुई? यही न कि आप अपनी नागरिक ड्यूटी पूरी ईमानदारी से निभाओ। आप जहां भी जिस जगह हों, अपना कर्तव्य पूरा करो। इससे अधिक कुछ नहीं चाहिये। न झण्डा, न नारे, न जोशीले गीत।

अपूर्व: मैं मानता हूँ कि एक Honest Citizen होना Patriotism की पहली अनिवार्य आवश्यकता हैं। लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। इसके आगे भी कुछ चाहिये।

मित्र: इसके आगे कुछ नहीं चाहिये। जो कुछ है Superfluous है, अनावश्यक है, एक झूठा आवरण है खुद की नाकामियों और बेईमातियों का छुपाने का।

अपूर्व: ऐसे करोड़ो भारतवासी हैं जो अच्छे नागरिक हैं लेकिन जिन्हें राष्ट्र‌वाद और देशभक्ति की भावनाएं उत्साहित करती है। वन्देमातरम और जनगणमन सुनते सुनते, तिरंगा फहराता देखते हुए, जोशीले भाषण सुनते हुए, क्रांतिवीरों की कहानियां पढ़ते हुए, मेरे और उनके रौंगटे खड़े हो जाते है।

मित्र: राष्ट्र के इन प्रतीकों की ये अवधारणाएं मुझे बनावटी लगती है। अब भला भारत-माता भी कोई देवी हुई? कहाँ से आगई? भारत जमीन का टुकड़ा कैसे पूज्य हो गया? हाँ नागरिक जरूर हो सकते है। नागरिक जो गरीबी, लाचारी शोषण का शिकार है, जिन्हें 2047 और अमृतकाल का झुनझुना दिखाया जा रहा है।

अपूर्व: जीवन में प्रतीकों का बहुत महत्व है। आत्मविश्वास और गर्व का संचार होता है। प्रेरणा मिलती है। भारत सिर्फ 1947 में नहीं बना। यह हजारो सालों से एक संस्कृतिजीवी सनातन राष्ट्र के रूप में रहा है और रहेगा। राजनैतिक सीमाएं और चिन्ह बदल सकते है। प्रत्येक महान राष्ट्र का अपना एक Grand Narrative होता है। महा-आख्यान होता है। गुलामी के चलते उस Narrative को हम मूल गये।

मित्र: कैसे करूं झूठा गर्व? दुनिया में 200 देशों में हम किस स्थान पर आते हैं भुखमरी, गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा, डेमोक्रेसी इन्डेक्स, प्रेस-फ्रीडम इन्डेक, Transparency Index । मुझे तो हमेशा गुरुदत्त द्वारा गाया गाना याद आता है ___

“कहां है, कहां है, जिन्हें हिन्द पर नाज है — कहां है”?

अपूर्व: देश पर गर्व करने का यह अर्थ नहीं कि हम अपनी कमियों के बारे में न जाने। एक सकारात्मक सन्तुलन होना चाहिये। हमारी उपलब्धियां भी कम नहीं है। गिलास खाली नही है। आधा भरा है पानी से, शेष आधा भरा है प्राण वायु से।

मित्र: राष्ट्रवाद के नाम पर लेग घृणा फैलाते है। यह दुश्मन है। वह दुश्मन है। इसे मारो, उसे मारो। उसे नीचा दिखाओं।

अपूर्व: बिरले ही कोई व्यक्ति या राष्ट्र अजात शत्रु होता है। मैं आम तौर पर Conspiracy Theories में विश्वास नही करता। हर जगह, हर समय षड्यंत्र, और चालबाजी, भीतरघात से डरा नहीं रहता। काश ये दुनिया और बेहतर होती। लेकिन है नहीं। “दुश्मन” के अस्तित्व को नकारना, शुतुरमुर्ग जैसे रेत में सिर गड़ाना है। राष्ट्र के शत्रुओं के बारे में चिन्ता करना, उनके विरुद्ध बातें करना, केवल शासन व सेना की जिम्मेदारी नहीं है। प्रत्येक नागरिक को इस विमर्श में शरीक रहना चाहिये।

मित्र: धन्यवाद। हम सौहाद्रपूर्वक विदा लेते है While agreeing to disagree on some issues

अपूर्वः आपको मन में बैठी अन्तराष्ट्रीयतावाद तथा “कोई दुश्मन नही है” वाली उम्मीदें साकार हों ऐसी “वसुधैव कुटु‌म्बकम” वाली भावनाएं मैं भी रखता हूँ — उसमें और “जयहिन्द” में कोई विरोधाभास नहीं है।

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