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राष्ट्रवाद – स्वतंत्रता की स्वर्ण जयंती के दिन इंडियन मेडिकल असोसिएशन की बैठक में व्यक्तव्य

इन्डियन मेडिकल असोसिएशन की इस असाधारण व अभूतपूर्व बैठक में आप लोगों से मुखातिब होते हुए फक्र महसूस कर रहा हूँ। मेरा क्या वजूद है। इस अहम मौके पर मुझसे भी अधिक तजुर्बेकार वरिष्ठ सदस्य मौजूद हैं जिन्होंने गुलामी से आजादी मिलने के दौर को देखा है, भोगा है, शायद शिरकत भी की हो। उन्होंने ज्यादा दुनिया […]

एक को धारूँ या सबको (विशेषज्ञता के बहाने)

एक को धारूँ या सब को। कुछ खास बीमारियों का विशेषज्ञ रहूँ या सब की सुधि रखूँ? होऊँ या न होऊँ? एक शाश्वत प्रश्न है। पुरानी दुविधा है। हर युग में नए रूप धरकर आती है। विशेषज्ञ होने के नाते या यूँ कहूँ ज्ञान के एक सीमित क्षेत्र में अधिकाधिक सीखने की अंदरूनी ललक के कारण यह […]

डॉ. हरिवंशराय बच्चन : जीवन और कृतित्व

डॉ हरिवंश राय बच्चन एक हीरे के समान थे। हीरे के अनेक फलक होते हैं। अनेक मुख या चेहरे या सतहे होती है। प्रत्येक फलक की अपनी आभा होती है। बच्चन जी की प्रतिभा के बहुतेरे रूप थे। प्रत्येक पहलू श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर। वे सचमुच सरस्वती पुत्र थे। वैसे सांसारिक जीवन में उनकी मां का […]

पतंग और मांझा – पतंग को काटो पर ऊंगलियों को नहीं

पतंग दुनिया के बहुत से देशों में उडाई जाती है परन्तु लडाका पतंग (फाइटर काइट्स) केवल भारत और अपने उपमहादवीप के पडोसी देशों जैसे पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका में लोकप्रिय है। दो पतंगों के पेंच की लडाई में दूसरी पतंग की डोर को काट कर गिराने के खेल का आनन्द और रोमांच उसमें भाग लेने वाले ही […]

क्या आज के राजनेता देश की प्रगति में बाधक हैं ?

पुरानी संस्कृत कहावत है- यथा राजा, तथा प्रजा। जैसा राजा, वैसी जनता। जैसे नेतृत्व, वैसे लोग। गांधी तिलक और सुभाष जैसे नेता जब थे, तो देश उनके पीछे चल पड़ा था। मर मिटने की भावना थी। त्याग था। आदर्श थे। गुलामी से मुक्ति दिलाई थी। और आज के नेता- आया राम, गया राम। बोफार्स काण्ड। चारा काण्ड। यूरिया काण्ड। कैसे-कैसे […]

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