आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में औषधियां (medicines , Drugs ) मुख्य भूमिका निभाती हैं। वैसे उनका इतिहास पुराण है। आदि काल से आयुर्वेद , हकीमी , यूनानी, चीनी, तिब्बती, जनजातीय चिकित्सा में अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियां, प्राणियों से प्राप्त पदार्थ और रसायन(केमिकल) का उपयोग होता आया है। इनमें से कुछ अधिक उन्नत थी तो कुछ कम।
अभी सौ साल पहले तक औषधियों की खोज कैसे होती थ। संयोग वश। अंदाज़ से। रोग के लक्षण और संभावित औषधि के काल्पनिक गुणों के बिच सतही साम्य या विरोध के आधार पर। देकर देखकर।कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता था। धीरे धीरे रोगों की (patho – physiology ) (रोग-कार्यविधि) की समझ बढ़ी। रसायन शास्त्र के विकास के साथ नए molecules (अणुओ) की Synthesis (संश्लेषण ) प्रयोगशाला में करना संभव हुआ। ऐसा भी अनेक बार पाया गया कि Pathophysiology के आधार पर जो Molecule काम करना चाहिए था वह कारगर सिद्ध न हुआ। अनेक ऐसे रसायन मिले जो खूब काम के पाए गए पर उसके पीछे कि केमिस्ट्री का कोई ओर छोर न मिला। साबुत पर आधारित चिकित्सा (Evidence Based Medicine ) की परिकल्पना और उसे फलीभूत करने तथा परखने की विधियां (Randomised Controlled Trials ) (अक्रमिक नियंत्रित परख ) (बेतरतीब ) (क्रम रहित) (सांयोगिक ) (संयत) और पिछले तीस वर्षों में परिष्कृत हुई और मानक बनी।
न्यूरोलॉजिकल रोगों के उपचार में बहुत सी औषधीय वे है जो अन्य अंग तंत्रो के रोगों के लिए भी काम आती हैं।उनकी चर्चा यहाँ नहीं करेंगे
जैसे की मधुमेह (Diabetes ), उच्चा रक्तचाप (Hypertension ), एंटीबायोटिक्स आदि। वे औषधीय जो बहुतायत से या शुद्ध एकमात्र रूप से न्यूरोलॉजी थेरेपी में उपयोग में आती है। उन्हें हम अनेक प्रकार से वर्गीकृत करके समझ सकते हैं।
आइयें जानते हैं कुछ प्रमुख औषधि उपचारों के बारे में
रक्त का थक्का बनने से रोकने वाली अथवा रक्त को पतला करने वाली औषधियाँ |
---|
लकवा/ स्ट्रोक की कुछ खास इमर्जेन्सी अवस्थाओं में जब दिमाग मे बार-बार थक्का बनने की या बन चुके थक््के का आकार बढ़ने का बहुत खतरा होता है तो हिपेरिन का इन्जेक्शन देते हैं। लक्ष्य होता है कि कन््ट्रोल (स्वस्थ) व्यक्ति की तुलना में मरीज के खून का एपीटीटी दो गुने से लेकर तीन गुना तक अधिक हो जावे | विस्तार में पढ़ने के लिये करें |