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पश्चिमी घाट को दुनिया के जैव विविधता के गिने चुने हॉट स्पाट्स में से एक माना जाता है। (सन्दर्भ नेशनल जियोग्राफिक) मानसून में बारिश खूब होती है। महाबलेश्वर, दुर्शित, कोलाड़, माथेरान, खण्डाला, लोनावला, कशेले आदि कुछ स्थानों पर मानसून में पश्चिमी घाट को थोड़ा बहुत घूमा और निहारा है। एक अनूठा सौंदर्य संसार है।
नेचर ट्रेवल्स कम्पनी के साथ हमारी बुकिंग थी। दुर्शित फारेस्ट लॉज (जिला रायगढ़, महाराष्ट्र) में हम ठहरे थे। मुम्बई के नानावटी स्कूल के लगभग पचास लड़के-लडकियाँ आये थे। उनकी उपस्थिति से हमारा प्रवास जीवन्त और रोचक हो गया।
हम शहरी लोग कितने कम अवसरों पर प्रकृति के पास आ पाते हैं। भीगने से बचने के उपक्रम को भूलकर ऐसा कब होता है कि बारिश जैसे पूरी धरती, वनस्पति व जन्तुओं को प्लावित कर रही है वैसे ही हमारे शरीर को भी करती रहे, अनवरत् – घन्टे दर घन्टे। कपड़ों का गीलापन, चमड़ी का गीलापन, बालों का गीलापन, हवा का गीलापन, सब एकाकार हो जाए, कोई भेद न रहे। ऐसा कब होता है कि कीचड़, कीचड़ न लगे, महज गीली नरम सोंधी, मुलायम मिट्टी लगे, जिसमें सनना, लिपटना एक नितान्त सहज प्राकृतिक क्रिया हो। काश, हम फुरसत के और ऐसे क्षण निकाल पाएँ। काश हमारे पास सौंदर्य को देखने की आँख और मन हो क्योंकि असली सौंदर्य की अनुभूति वहीं होती है।
बारिश .. बारिश… बारिश … । लगातार । रिमझिम । तरबतर । सब कुछ गीला-गीला, ठण्डा-ठण्डा, पानी ही पानी। सब कुछ हरा-भरा। चप्पा-चप्पा हरियाली से लबालब – घास, पौधे, झाडियाँ, लताएं, वृक्ष, खेत। पानी की अनगिनत धाराएं। जगह-जगह फूट पडते सोते, झरने। सारे पहाड बिन्दु-बिन्दु से टपक रहे, झर रहे।
और इस बारिश का संगीत। फुरसत हो तो सुनो। टपटप टपटप। झरझर-झरझर। छपाक-छपाक। गरजत-फरफर। अम्बा नदी के लाल पानी में चित्ते लेट कर बहते पानी का संगीत सुना। नदी गा रही थी। जलतरंग बज रहा था। नदी उफन रही थी। अपने किनारे की सीमाओं को उलांघने को उतावली। भरी-भरी, मांसल, पुष्ट, गदराई, मस्ताती हुई। लघु अवधि का यौवन। प्रियतम मेघ चले जाएँगे। फिर शान्त, क्षीण, गम्भीर, विनम्र हो जाएगी।
पत्तों के हरे रंग के अनगिनत शेड । चितकबरी ज्यामितीय डिजाईनें। लताओं के लहरदार सर्पीले पतले तने। महीन सुई जैसी लम्बी नुकीली पत्तियों के पोरों पर हीरे की छोटी कनियों के माफिक, पानी की बूंदें जगमगा रही थी। काले खुरदरे काई लगे सख्त तने पर चटक गुलाबी रंग के कांटे करीने से सजे हुए थे। मांड के वृक्ष का पुष्पगुच्छ किसी ऋषि की जटाओं जैसा या राजा के सिर पर डुलाए जाने वाले चंवर के समान लटक रहा था या अफ्रीकी स्त्री के केश विन्यास जैसा।
झरने जितनी बार देखो, जितनी संख्या में देखो, जितनी बार नहाओ, हमेशा अच्छे लगते हैं, नये लगते हैं। मन नहीं भरता। छोटे झरने, बडे झरने। पतली धारा, मोटी धारा। खूब ऊंचाई से गिरती धार या चट्टानों पर टूट-टूट कर बनते हुए झरनों के लघु खण्ड। पानी गिरने के स्थान पर छोटे कुण्ड। पानी प्रायः ठण्डा, ताजा, शुद्ध मीठा और मन को तरावट देने वाला। घाट के हरेक ओर पहाडों पर ढेर सारे झरने। मानों चमकीली चांदी की जरी वाली अनेक चुनरियाँ पहाड पर करीने से ओढा दी गई हों। या सफेद रिबन बिछा दी गई हों या किसी वृद्ध ऋषि के श्यामल शरीर पर श्वेत जटाएं बिखरी हों।
बादलों में चल कर देखा है ? भाप का नरम, मुलायम, धुआँ कभी गहराता है, कभी छितर जाता है। अभी मार्ग दिख रहा है, अभी नहीं । काला घुप्प अंधेरा तो सुना है, देखा है । सफेद धुंध, अंधियारा भी होता है। सब कुछ अदृश्य हो जाता है। रूपविहीन भाप चहुं ओर से ढंक लेती है। गहराते समय या छितरते समय उसमें बहाव दिखता है। कम और अधिक घनत्व की वाष्पीय लहरें एक दूसरे में डूबती उतरती हैं, गड्डमड्ड होती हैं। उनकी गति पलपल पर परिवर्तित होती हैं । हरी घांसके मैदान में खडे हुए वृक्षों के तनों के बीच में बादलों की कोमल सफेद धुंध भरी हुई है। जो ठोस है उसकी कुछ पहचान है, जो वायवीय है, छोटा है, दूर है वह अदृश्य है।