

ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतरये:
अमृतकलशहस्ताय सर्वभयविनाशाय सर्वरोगनिवारणाय।
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप।
श्री धनवंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः।।
आज मैं पण्डित रामानारायण शास्त्री जी को स्मरण करता हूँ। वर्ष 1973 में MBBS के तीसरे वर्ष के छात्र के रूप में मुझे एक वादविवाद प्रतियोगिता में भाग लेना था।
विषय था:– “आधुनिक चिकित्सा पद्धति भारत की सामाजिक पम्पराओं के विरुद्ध है और उनमे अवांछनीय परिवर्तन कर रही है”
मुझे प्रस्ताव में पक्ष में बोलना था। बिना कोई एपाइंटमेंट के मैं शास्त्री जी के न्यूपलासिया स्थित निवास पर पंहुच गया। अत्यंत व्यस्त होते हुए भी उन्होंने एक छात्र को आधे घंटे का समय दिया। बताते रहे, सुनते रहे, समझाते रहे। तब से मैं इस विषय के विविध पहलुओं पर सोचता रहा हूँ। उसी विमर्श को मैं दो मित्रों के बीच एक अर्धकाल्पनिक सौहार्द्रपूर्ण सम्वाद के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ।
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अपूर्व- आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का डॉक्टर
जगदीश- आयुवैदिक चिकित्सक
अपूर्व: प्रिय मित्र जगदीश, मुझे एलोपैथी शब्द से आपत्ति है। मैं उसे अनेक पद्धतियों में से एक नहीं मानता। मेरे अनुसार चिकित्सा विज्ञान उचित शब्द है। आधुनिक याModern Medical Science.
एलोपैथी शब्द जर्मन नागरिक सेम्युल हाइनमेन ने गढ़ा था जो होम्योपैथी का जनक था। “एलो” का अर्थ है “दूसरी” और “पेथी” का मतलब “रोग अवस्था उपचार”। यह शब्द एक बुरे अर्थ में काम में लाया जाता रहा है। मानों जिसके ढेर सरे साइड इफ़ेक्ट होते हैं। जो रोग की जड़ पर असर नहीं डालता। केवल उपरी उपरी लाक्षणिक इलाज करता है। Symptomatic Treatment करता है।
जगदीश: एलोपैथी एक उपयोगी और प्रचलित शब्द है। इससे हमें मदद मिलती है चिकित्सा की अन्य पद्धतियों से भेद करने की। मैं एलोपैथी को सकारात्मक रूप से भी देखता हूँ। उसमें अनेक गुण हैं। सफलताओं के झंडे गाड़े हैं उसने।
अपूर्व: एलोपैथी मत कहो। सिर्फ चिकित्सा विज्ञान कहो। विज्ञान सार्वकालिक, नित-नूतन, सार्वभौमिक, और सार्वजनिक होता है।
क्या फिजिक्स भारत का अलग है और चीन का अलग? क्या पानी का फार्मूला H2O पूरी दुनिया पर लागू नहीं होता? क्या डार्विन की बायोलॉजी में विकास या Evolution धरती के चप्पे-चप्पे पर नहीं देखा जाता? क्या आइन्सटाइन की समीकरण E=mc2 पूरे ब्रह्माण्ड पर लागू नहीं होती? तो फिर चिकित्सा विज्ञान को अलग-अलग खांचों में क्यों बांटो?
जगदीश: चिकित्सा पद्धति किसी भी मानव सभ्यता का एक अभिन्न अंग है। किसी संस्कृति के जीवन दर्शन का एक हिस्सा है। गलती पर हैं वो लोग जो समझते हैं कि यह एक शुद्ध विज्ञान है, और हर राष्ट्र पर समान रूप से लागू होगा। मेडिसिन की परिभाषा में ही हम कहते हैं It is an art & science of और यदि साइन्स नहीं तो, कम से कम कला तो किसी सभ्यता की परम्पराओं से अभिन्न नहीं होती है।
एलोपैथी हमारे जीवन से घुली मिली नहीं है, उसके साथ समरस नहीं है। इस पद्धति ने देश की सांस्कृतिक परम्पराओं का अपने समावेश नहीं कर रखा है। जैसा कि इसी शस्य श्यामला मिट्टी में जन्मी और फलीफूली आयुर्वेद की पद्धति ने कर रखा है।
अपूर्व: मैं मानता हूँ कि चिकित्सा में विज्ञान और कला-संस्कृति का मेलजोल होना चाहिये। मैं स्वयं इस दिशा में कार्यरत हूँ। अनेक दूसरे डॉक्टर्स और संस्थाएं भी इस पहलू के महत्व को स्वीकार करते हैं।
जगदीश: हमारे आयुर्वेद में कहते हैं
मंत्रो देवे तीर्थो भेषजं च ।
याहशी भावना सिद्धि: भवति तादृशी ॥
मंत्र, देवता, तीर्थ तथा दवा, (चिकित्सा या वैद्य) पर जैसी भावना या विश्वास होता है वैसी ही सफलता की सिद्धि होती है।
अपूर्व: मैंने कब मना किया। विज्ञान के साथ व्यवहार और भावना जरूरी है। मुझे दुःख होता है यह देख कर कि बहुत से डॉक्टर्स केवल सैद्धांतिक ज्ञान में डूबे रहते हैं। मानवीय पहलुओं को नजर अंदाज करते हैं। लेकिन क्या ऐसा व्यवहार आयुर्वेदाचार्यों में भी नहीं देखा जाता?
जगदीश: हाँ सब तरह के लोग सब पैथी में होते हैं। फिर भी मुझे लगता है कि एलोपैथी के बजाय आयुर्वेद में जीवन और आयु को अधिक समग्र दृष्टि से देखा जाता है। आहार-व्यवहार-योग-पथ्य, प्राकृतिक चिकित्सा, संस्कार आदि समग्र आयुर्वेद के अभिन्न अंग हैं।
अपूर्व: आधुनिक चिकित्सा विज्ञान प्रमाण पर काम करता है। Evidence Based Medicine. बड़ी कठिन कसौटियां हैं उसकी। Randomised Controlled Trials, उस सबके पीछे Anatomy Physiology Pathology Pharmacology का आधार होता है। केवल Prima facie केस होना जरुरी नहीं होता। Proof of Pudding is in Eating.
जगदीश: आयुर्वेद के ग्रन्थ भी अनेक ऋषियों के अनेक वर्षों के अनुभव आधारित प्रमाणों से बने हैं।
अपूर्व: मेरे अनुसार उनका सिर्फ ऐतिहासिक महत्व है। मुझे उस पर गर्व है। लेकिन मैं उसे आधुनिक विज्ञान की कसौटियों पर कसे जाने की अनिवार्यता महसूस करता हूँ।
जगदीश: सैकड़ों वर्षों से लाखों-करोड़ों मरीज लाभान्वित हो रहे हैं, क्या यह Evidence नहीं है?
अपूर्व: पर्याप्त नहीं है। इसे Anecdotal कहते हैं। एक समय में एक व्यक्ति या लम्बे समय में अनेक व्यक्तियों के अनुभव को प्रमाणों की श्रेष्ठता की पायदानों में निचले स्तर पर रखा जाता है। भले ही मैं उसे पूरी तरह खारिज न करूँ।
जगदीश: आप Anecdotal को इतनी नीची नजर से क्यों देखते हैं?
अपूर्व: क्योंकि इसमें उन लोगों के अनुभवों की गणना नहीं होती जिन्हें उपचार से कोई लाभ नहीं हुआ। बहुत से लोग अपने आप भी ठीक होते हैं। इसीलिये हम लोग शोध में एक Control ग्रुप रखते हैं और आधे लोगों को सक्रिय औषधि और आधों को निष्क्रिय पदार्थ ‘प्लेसीबो’ देकर निष्पक्ष भाव से तुलनात्मक आकलन करते हैं?
जगदीश: मैं मानता हूँ कि आयुर्वेद में भी ऐसी शोध होनी चाहिए। हुई भी है। आपने पढ़ी है।
अपूर्व: हाँ मैंने पढ़ी है। बहुत कम है। गुणवत्ता में सुधार की बहुत गुंजाइश है।
जगदीश: हमें बजट नहीं मिलता। Grant नहीं मिलती। प्रशिक्षण नहीं मिलता।
अपूर्व: वर्तमान शासन आयुर्वेद को प्रोत्साहन देती है। आप लोगों पर जिम्मेदारी बनती है।
जगदीश: क्यों न हम दोनों पक्ष मिल कर शोध करें?
अपूर्व: कर सकते हैं। करना चाहिये। लेकिन रुचि जाग्रत करने के लिये Prima facie केस होना चाहिये। वरना लोग क्यों अपना समय और ऊर्जा लगायें।
जगदीश: ऐसा कहोगे तो बात आगे ही नहीं बढ़ेगी। कुछ तो भरोसा करना पड़ेगा। पता है आपको, चीनी डाक्टर तू यू यू की कहानी?
तू यूयू एक चीनी चिकित्सक और वैज्ञानिक हैं जिन्होंने मलेरिया की दवा आर्टेमिसिनिन की खोज की और 2015 में चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार जीता।
तू यूयू का जन्म 1930 में चीन में हुआ था। उन्होंने चीन के बीजिंग में पेकिंग यूनिवर्सिटी से फार्माकोलॉजी में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने चीन अकादमी ऑफ ट्रेडिशनल चीनी मेडिसिन में काम करना शुरू किया।
1960 के दशक में, मलेरिया एक बड़ी समस्या बन गई थी, खासकर वियतनाम युद्ध के दौरान। वियतनाम में अमेरिकी सेना के खिलाफ लड़ने वाले सैनिकों को मलेरिया से बचाने के लिए एक प्रभावी दवा की आवश्यकता थी।
तू यूयू ने पारंपरिक चीनी चिकित्सा के आधार पर मलेरिया की दवा खोजने के लिए एक परियोजना पर काम करना शुरू किया। उन्होंने और उनके सहयोगियों ने 2,000 से अधिक पारंपरिक चीनी औषधीय पौधों का अध्ययन किया और आर्टेमिसिया एनुआ पौधे से आर्टेमिसिनिन को अलग करने में सफलता प्राप्त की।
2015 में, तू यूयू को विलियम सी. कैंपबेल और सातोशी ओमुरा के साथ चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें यह पुरस्कार मलेरिया के इलाज में आर्टेमिसिनिन की खोज के लिए दिया गया था।
आर्टेमिसिनिन ने मलेरिया के इलाज में क्रांति ला दी है। यह दवा मलेरिया के परजीवी को नष्ट करने में बहुत प्रभावी है और इसके दुष्प्रभाव भी कम हैं। आर्टेमिसिनिन के उपयोग से मलेरिया से होने वाली मौतों की संख्या में काफी कमी आई है।
अपूर्व: मैं स्वीकार करता हूँ। तू यूयू की कहानी एक प्रेरणा है कि कैसे पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के संयोजन से नई खोजें की जा सकती हैं और मानवता की सेवा की जा सकती है।
जगदीश: क्या आप नहीं मानते कि एलोपैथी इलाज में साइड इफ़ेक्ट ज्यादा है। WHO के आंकड़ों के अनुसार प्रतिवर्ष 1,42,000 लोग इलाजों से दुष्प्रभाव के मारे जाते हैं?
अपूर्व: मैं जानता हूँ। यह एक चिंताजनक अवस्था है। मेडिकल जगत इसके प्रति सजग है। इसे कम करने के प्रयास सतत जारी रहते हैं।
But side effects are inevitable. आयुर्वेद में भी होते है।
मेरे गुरु डॉ सिपाहा साहब कहा करते थे – “If a medicine has some beneficial effect, it will have some side effect“.
यदि किसी औषधि का कोई Side effect नहीं है तो मान लो कि उसका कोई effect भी नहीं होगा।
जगदीश: आपका साइंस बड़ा कन्फ्यूजिंग है। कभी कुछ कहते हैं। कभी कुछ करते हो। बदलते रहते हो।
अपूर्व: यही तो विज्ञान की श्रेष्ठता है। वह सदैव परिवर्तनशील है। नया ज्ञान पुराने को संशोधित करता है। हमारे यहां इस बात का कोई महत्व नहीं कि कौनसा ग्रन्थ किस विद्वान ने कितने हजार साल पहले लिखा था। नित नूतन पद्धति है।
जगदीश: आप लोगों का इलाज बहुत महंगा है। ढेर सारी अनावश्यक जांचें करवाते हो। देश की अधिकांश गरीब जनता के लिये आप लोग पहुँच से परे हो। ऐसे में यदि हम लोग सस्ता इलाज लेकर सेवा करें तो IMA वाले चिढ़ते क्यों हैं?
अपूर्व: इलाज का महंगा होना एक कड़वी सच्चाई है। डॉक्टर्स व Industry के मध्य आर्थिक प्रलोभनों का व्यापार इसका एक प्रमुख कारण है। इसे टालना कठिन है लेकिन कम किया जा सकता है। इसके विस्तार में मैं अभी नहीं जाऊंगा।
ऐसे में यदि आयुष डॉक्टर्स हमारी टीम का सदस्य बनते हैं तो मैं उसका स्वागत करूँगा।
IMA का विरोध इस बात से है कि आयुष वाले डॉक्टर Allopathic दवाइयां क्यों लिखें। They feel cheated. हम तो इतनी कठिन परीक्षा PMT-NEET आदि आदि से पास हो कर आये। फिर यह Backdoor Entry क्यों?
जगदीश: क्या यह सही नहीं है कि अनेक डिग्रीधारी डॉक्टर्स के Prescriptions भी गलत-सलत Unscientific होते हैं। क्या ज्ञान पर किसी की बपौती है?
अपूर्व: मैं मानता हूँ कि अनेक आयुष डॉक्टर्स Intelligent और Honest होते हैं। खूब अच्छा सीखते हैं। मेरे साथ Assistant के रूप में काम करने वालों के हुनर को मैंने देखा हूँ।
जगदीश और अपूर्व: हम दोनों इस बात पर सहमत हैं कि समाज में चिकित्सा सेवा एक टीम वर्क है। इसमें Hierarchy या ऊंच-नीच की भावना न्यूनतम होनी चाहिये।
आयुर्वेद में शोध को बढ़ावा मिलना चाहिये। आधुनिक चिकित्सा पद्धति को देश-काल की परम्पराओं के साथ सामंजस्य बिठाकर चलना चाहिये।
विद्या विवादाय धनं मदाय, शक्ति: परेषाम् पीडनाय।
खलस्य साधो: र्विपरीतं एतत, ज्ञानाय दानाय रक्षणाय॥
दुष्ट व्यक्ति की विद्या विवाद या बहस के लिए, धन संपत्ति घमंड करने के लिए तथा शक्ति दूसरों को पीड़ा देने सताने के लिए होती है। जबकि सज्जनों के लिये ज्ञान दान और रक्षा के लिये होती है।
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