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साहित्य का न्यूरोविज्ञान (Neurology of Literature)


शेक्सपीयर और शारको उन्नीसवीं सदी के महान फ्रांसिसी न्यूरालॉजिस्ट शारको पेरिस के मुख्य अस्पताल सालपेत्रीर में कार्यरत थे। उनको मंगलवार व शुक्रवार के कक्षा-व्याख्यान पेरिस के चिकित्साजगत व अन्य भद्र लोक द्वारा अत्यन्त सम्मान के साथ सुने जाते थे। शारको के व्याख्यानों में शेक्सपीयर के अनेक उदाहरण मिलते हैं।

नींद में चलने की बीमारी

नींद में चलने की बीमारी के सन्दर्भ में मेकबेथ का उल्लेख है कि किस तरह डाक्टर ने लेडी-मेकबेथ की अचानक नींद से उठकर चलते देखा। वह मंच पर अन्य पात्रों के मध्य आकर खड़ी हो जाती है।

दूसरे पात्र चिल्ला उठते हैं- ‘देखो, देखो उसकी आँखें खुली हैं।’ शारको के अनुसार शेक्सपीयर की अवलोकन क्षमता गजब की थी लगभग क्लीनिशियन (चिकित्सक) के समान। तभी तो उनके वर्णन इतने सटीक और पैने होते हैं। हिस्टीरिया रोग का अध्ययन शारको को प्रिय था, विशेषज्ञकर वे मरीज जो तरह-तरह की बेमतलब अजीबोगरीब हरकतें करते हैं, पागल शायद नहीं हैं पर अपने आपको रोक नहीं पाते। शेक्सपीयरका उद्धरण है हेमलेट से ‘उनके पागलपन में भी एक सलीका है’

शारको को शेक्सपीयरक्यों प्रिय थे क्योंकि उनकी रचनाओं में मनुष्य मात्र की भावनाओं और मोह को समझने का खाका मिलता है। शारको ने पाया कि शेक्सपीयरमें मानवजाति को करीब से देखने की वही महारत मौजूद थी जिसका उपयोग वे स्वयं चिकित्सा में करते थे। अपनी एक प्रमुख पुस्तक काअन्त शारको ने शेक्सपीयरके इस उद्दरण से किया था- ‘इस धरती और स्वर्ग में जितनी चीजें हैं वे तुम्हारे दर्शन-शास्त्र के तमाम सपनों से भी अधिक हैं।’ शेक्सपीयरकी रचनाओं में भूत, चुडैल, प्रेतात्मा आदि का संसार है जो यथार्थ और मिथ्या का अजब मिश्रण गढ़ता है। शारको की न्यूरालॉजी की दुनिया भी ऐसे ही मरीजों से भरी पड़ी थी। हिस्टीरिया के मरीजों के अनूठे व्यवहारों की समीक्षा करने में न्यूरालाजिस्ट का काफी समय व्यतीत होता है।

पार्किन्सन

शेक्सपीयरसाहित्य में न्यूरालॉजी पार्किन्सन रोग = बढ़ती उम्र में इस बीमारी में अंगों की चाल धीमी हो जाती है व हाथ-पैरों में कम्पन होने लगता है। नाटक हेनरी-द्वितीय, खण्ड 4 में लार्ड से का वर्णन है –

कसाई –अरे आदमी, तुम काँपते क्यों हो?

लार्ड से – भय नहीं, पक्षाघात (लकवा) मुझसे यह करवाता है।

जैक – तुम यूं मुँह हिलाते हो मानों हाँ कहना हो । क्या कभी तुम्हारा सिर खम्बे-सा स्थिर हो सकता है ?

कसाई ! उड़ा दो यह सिर।

पक्षाघात (लकवा)

 नाटक : हेनरी-4

फाल्स्टाफ – मैंने सुना है कि महामहिम को फिर वह दौरा आया है। वे गहरी निद्रा में हैं।

राजा – (अन्य अवसर पर) वह देखो मेरी दृष्टि जा रही है। मेरा दिमाग चकरा रहा है। आओ, मेरे पास आओ । मैं बहुत बीमार हूँ।

वारविक – महाराज के दौरे आम बात हैं। कोई है? उनके पास खड़े हो जाओ, उन्हें खुली हवा आने दो। सब ठीक हो जाएगा।

ग्लाउस्टर – ऐसा कोई दौरा ही महाराज का अन्त कर देगा।

एक अन्य नाटक रिचर्ड में एक बूढ़ा पात्र यार्क है।

यार्क – मेरी यह भुजा तुम्हें शीघ्र ही दण्ड देती यदि वह लकवे की कैद में न होती।

अनिद्रा

अनिद्रा पर शेक्सपीयरका उद्दरण प्रसिद्ध है – हेनरी में

राजा – रात्रि के इस प्रहर में मेरी हजारों प्रजा सो रही है।

डूशेन उन्नीसवीं सदी के एक अन्य महान फ्रांसीसी न्यूरालॉजिस्ट हुए थे। मांसपेशियों की एक वंशानुगत जानलेवा बीमारी मायोपेथी के साथ उनका नाम जुड़कर चिकित्सा जगत में अमर हो चुका है। उन्हें फोटोग्राफी का शौक था और चेहरे की मांसपेशियों द्वारा भावप्रदर्शन पर उन्होंने एक छाया लेख लिखा था। एक अभिनेत्री को लेडी-मेकबेथ के कपड़े पहनाकर माडल बनाया गया था।

साहित्य और कलाओं के प्रति न्यूरालाजिस्ट की रुचि के अन्य उदाहरण ढूंढे जा सकते हैं।

सर हेनरी हेड (१८६१-१९४०)

15 अक्टूबर 1940 को लंदन के द टाईम्स में प्रकाशितश्रद्धांजलि में लिखा गया था वे एक प्रतिभाशाली कवि थे और यदि उन्होंने अपना कार्यक्षेत्र न्यूरालॉजी न चुना होता तो निश्चय ही साहित्य में भी उतना ही नाम कमाया होता। किसी भी शाम की चर्चाओं में उन्हें विविध विषयों पर साधिकार बोलते चुना जा सकता था -यथा गेटे और मोज़ार्ट पर तर्क का प्रभाव, गुआर्डी के चित्र, गोल्फ खिलाड़ी की मांसपेशियों का संयोजन और कला व विज्ञान का सम्बन्ध ।

एपिलेप्सी (मिर्गी)

केदोर मिखाईलोविच दोस्तोएवस्की उन्नीसवीं शताब्दी में रूस के महानतम् लेखकों में से एक था। उन्हें एपिलेप्सी या मिर्गी का रोग संभवत: सात वर्ष की उम्र के आसपास आरम्भ हुआ होगा। उन दिनों परिवार में माता-पिता के मध्य कुछ अप्रिय तनावपूर्ण घटना घटी थी। 27 वर्ष की उम्र तक दौरे यदाकदा ही आते थे। तब लेखक को साईबेरिया में कारावास की सजा भुगतना पड़ी। लेखक के अनुसार उसी के पश्चात उनके रोग का प्रारम्भ हुआ। दोस्तोएवस्की के पत्रों व डायरियों में मय तारीख के इन दौरों का उल्लेख मिलता है। महीने में एक या दो फिट आ जाते थे। उनके फिट्स एक से अधिक प्रकार के थे। बड़े दौरे (ग्रां माल) और छोटे दौरे (साईको मोटर) । अधिक रुचि व महत्व की बात है दौरों के कुछ क्षण पूर्ण या साथ महसूस किये जाने वाली अनुभूतियाँ । इन्हें न्यूरालाजी में ऑरा कहते हैं । शाब्दिक अर्थ है – पूर्वाभास । दास्तोएवस्की की एक समकालीन महिला सोफिया अपनी यादों में बताती हैं – एक शाम लेखक अपने मित्र से बातचीत कर रहा था। ईस्टर की पूर्वसंध्या थी। देर रात तक चर्चा चलती रही। बड़े दिनों बाद मिलना हुआ था। सच्चे रूसियों की भाँति वे दोनों मित्र ईश्वर के बारे में बात कर रहे थे। अर्धरात्रि की प्रार्थना हेतु चर्च की घंटियाँ बज उठी। यकायक दोस्तोएवस्की चिल्ला उठे ईश्वर है, हाँ वह है और कहने लगे देखो हवा में कैसा शोर भर गया है । मैं हिलने की कोशिश कर रहा हूँ। स्वर्ग मानों धरती पर गिर आ रहा है और मुझे समाहित कर लिया है। मैंने ईश्वर को छू लिया है। वह मुझमें है। हाँ वह सचमुच में है। तुम, सबके सब स्वस्थ लोग कल्पना भी नहीं कर सकते कि हम मिर्गी के रोगी अपना दौरा आने से पहले के एक क्षण में किस खुशी को अनुभव करते हैं। मोहम्मद साहब ने कुरान में कहा है कि उन्होंने स्वर्ग देखा है और वे उसके भीतर गये हैं। तुम दुनिया भर के चतुर लेकिन मूर्ख लोग उन पर विश्वास नहीं करते हो। मोहम्मद साहब ने सच कहा है। उनको भी मेरे जैसी ही बिमारी थी। अपने एक से अधिक दौरों में उन्होंने स्वर्ग के दर्शन किये हैं। मैं नहीं जानता कि इस मानसिक अवस्था को अधिक समय खींचा जा सकता है या नहीं परन्तु इतना तय है कि जीवन के तमाम अन्य सुखों के बदले में भी मैं इस क्षणिक खुशी को न दूंगा।

एक अन्य अवसर पर दोस्तोएवस्की ने लिखा है – खुशी के इन क्षणों में मैं अपने व विश्व के मध्य पूरी लयबद्धता महसूस करता हूँ। इस मधुर और घनी अनुभूति पर जिन्दगी के तमाम सुख न्यौछावर किये जा सकते हैं।

कुछ पलों का यह हर्षातिरेक दोस्तोएवस्की की इच्छा से नहीं आता था। उसके तत्काल बाद लेखक को या तो मिर्गी का बड़ा दौरा पड़ता था, या वह गहन अवसाद, चिन्ता, रहस्यमयी उदासी, थकान में डूब जाता था।

लेखक ने अपने अनेक पात्रों में स्वयं की बीमारी के लक्षणों को आरोपित किया है।

महान कलाकारों की व्याधियाँ या कमियाँ भी महत्वपूर्ण हो उठती हैं जैसे कि मिल्टन का अन्धत्व या बायरन का विकृत लंगड़ा पैर । दोस्तोएवस्की की रचनाओं के पाठकों ने गौर किया होगा उनमें अनेक पात्र मिर्गी रोग से ग्रस्त हैं। उनकी महान रचना दि ईडियट (मूर्ख) का प्रमुख पात्र प्रिंस मिखिन उसी प्रकार के दौरों से ग्रस्त है जो लेखक को आते थे। एक उद्दरण देखिये अचानक मानों दिमाग में आग लग उठती हैं, जीवनी शक्ति में गजब की त्वरा या तेजी आ जाती है। तड़ित- विद्युत् की सी तीव्रता से जीवन और उसकी चैतन्यता का प्रभाव दस गुना बढ़ जाता है। आत्मा और दिल प्रकाशमान हो उठते हैं। सारी चिंता, कुण्ठा, शंका और भावुकता शान्त होकर एक अनंत शान्ति में बदल जाती है। और फिर दौरा आता है। एक अन्य अवसर पर प्रिंस मिखिन कहता है इस एक क्षण में मुझे समझ में आ जाता है कि बाईबिल के दसवें अध्याय में सेंट जान के उस वाक्य का क्या अर्थ रहा होगा कि और अब काल भी समाप्त हो गया है शायद ऐसे ही किसी एक क्षण में मोहम्मद साहब ने कहा होगा कि उन्होंने अल्लाह के रहने की तमाम जगहों को इतने थोड़े से समय में देख लिया कि उतनी देर में एक घड़ा पानी भी खाली नहीं किया जा सकता।

द ईडियट नामक उपन्यास में प्रिंस मिखिन के अन्य प्रकार के दौरों का भी उल्लेख है। एक अध्याय में वर्णन आता है कि प्रिंस कई घण्टों तक सेंट पीटर्स बर्ग की सड़कों पर निरुद्देश्य भटकता रहा। उसे आसपास की दुनिया की कोई खबर न थी।

एक अन्य अवसर पर नायक को दमघोटू हवा लगती है और फिर वह महसूस करने लगता है कि उस पर अजीब पीड़ाजनकसंवेदनाएँ हावी हो रही हैं और एक विचार में परिवर्तित हो रही हैं। लेकिन इस विचार में परिभाषित हो रही है। लेकिन इस विचार को परिभाषित करने में वह असमर्थ है। एक अन्य उपन्यास द डेमान्स (दैत्य) में एक संवाद आता है

किरिलोव : कभी-कभी सिर्फ पांच-छ: सेकण्ड के लिये मुझे शाश्वत संगीत की अनुभूति होती है। सबकुछ निरपेक्ष और निर्विवाद लगता है। आप मानों तमाम सृष्टि को आलिंगन में भर सकते हो और कहते हो – हाँ, यह ऐसी है और सच है। यह भावुकता नहीं है। कुछ और है। एक प्रकार की सहज सुगमता है। यह मोह या प्यार भी नहीं है। उससे भी परे है। यह भयावह रूप से पारदर्शी है। यदि पाँच सेकण्ड से अधिक खिंच जाए तो शायद आत्मा उसे सहन पाए।

चेटोव : क्या, तुम्हें मिर्गी तो नहीं आती?

किरिलोव : नहीं

चेटोव : कहीं तुम गलती तो नहीं कर रहे । तुम्हें जरूर मिर्गी आती होगी। मैंने अन्य कुछ रोगियों से भी ऐसे ही वर्णन सुने हैं। इसी उपन्यास दि डेमोन्स में एक और पात्र निकालाई स्टाबोगीन एक दिन पार्टी में बड़ा अजीबोगरीब बचकाना व्यवहार करता है। निकोलाई ने अकारण ही वृद्ध गागानोव की नाक पकड़ ली और उन्हें खींच कर लोगों के मध्य ले आया। पागलपन-सा लग रहा था । लोग चिल्ला उठे। निकोलाई कुछ न बोला। लोगों की ओर भाव शून्य तरीके से दायें बायें नजरें फेरता रहा। कुछ पलों तक स्वप्नवत रहा। फिर धीरे से गागानोव के पास जाकर माफी मांगी, अपनी मूर्खता के लिये। साहित्यिक समालोचकों ने निकोलाई के इस व्यवहार की कोई नहीं समीक्षा नहीं की | इस दृश्य के माध्यम से दोस्तोएवस्की अपने दौरों की गतिविधियों के एक स्वरूप का ही वर्णन कर रहे थे।

लेखक की तमाम रचनाओं में से समस्त मिर्गी रोगियों का वर्णन किया जावे तो बहुत लम्बा व अनावश्यक होगा।

उपन्यास द डबल (दो रूपी) का एक और उद्दरण काबिले गौर है। वह एक प्रकार की समाधि में चला गया। लेकिन अपने विचारों को रोक नहीं पा रहा था। वे अपने आप आ रहे हैं। अत्यन्त तीव्र गति से । उसकी आँखों के आगे से गुजरने वाले हैं चित्रों में थे – पुरानी यादें, घटनाएं, चेहरे- कुछ साफ- कुछ धुंधले – कोई तारतम्य नहीं । उसकी उत्तेजना भी साथ-साथ बढ़ती गई।

सात सितम्बर 1880 के दिन दोस्तोएवस्की ने अपनी डायरी में यह अंकित किया | आज सुबह पौने नौ बजे मेरे विचारों पर अचानक रोक लग गई, मैं किन्हीं अन्य कालों में ले जाया गया, सब कुछ सपने के समान था। फिर अंत में वही अवसाद और अपराध भावना।

इस बात की वैज्ञानिक समझ कि ऐसी स्वत: आने वाली क्षणिक स्वप्नवत (सपने में होने जैसी) अवस्थाएं, मस्तिष्क के भीतर से उठती हैं और मिर्गी का एक स्वरूप होती हैं किसने की ? लगभग उन्हीं दिनों सन् 1860 में, हजारों मील दूर, इंगलैण्ड में महान न्यूरालॉजिस्ट हगलिंग जेक्सन ने पहली बार इस समझ को रेखांकित किया। आज न्यूरालॉजिस्ट उसके ऋणी हैं। लेकिन यह भी महत्वपूर्ण है दोस्तोएवस्की अपनी तीक्ष्ण बुद्धि के कारण इन घटनाओं का सटीक, बेबाक, वर्णन कर सका जो पहली नज़र में मूल्यों या आस्थाओं से परे लगता है। परन्तु क्या उन्नीसवीं सदी का वह रूपी लेखक सचमुच ही अपनी बीमारी से अप्रभावित रहा । क्या उसने महज तटस्थ दर्शक की भांति चित्र खींचा। शायद नहीं। यह उसके लिये सम्भव भी न था।

मिर्गी की इस बीमारी ने दोस्तोएवस्की के जीवन दर्शन, सोच, चिंतन, आदि पर गहरा असर डाला। इन दौरों में अनुभूत असीम आनंद ने उसे नया मनुष्य बना दिया। उसके लेखन तथा जीवन के प्रति रुख पर मिर्गी का स्पष्ट प्रभाव था। जीवन के आरम्भिक वर्षों में दोस्तोएवस्की एक यथार्थवादी लेखक थे। धीरे-धीरे रहस्यवादी आध्यात्मिक वृत्ति जोर पकड़ती गई।

लेखक ने अपने प्रमुख पात्र प्रिंस मिश्किन से कहलवाया है – मेरे ये क्षणिक दौरे भले ही असामान्य हों, रोगजन्य हों, मुझे सर्वथा भले व समझ में आने वाले लगते हैं। उनकी समाप्ति पर मैं एक अव्यक्त, अविश्वसनीय पूर्णता, शांति, आनंद महसूस करता हूँ।

अपने तीनों महान उपन्यास दि इडियट, द डेमान्स और करामाज़ोव बन्धु में लेखक का यह मत बार-बार प्रकट होता है कि सत्य तर्क से परे है और सिर्फ आस्था या अनुभूति द्वारा जाना जा सकता है। अपनी इन बाद की रचनाओं में दोस्तोएवस्की सदैव ईश्वर की समस्या या प्रश्न से जूझते रहे। एक पत्र में उन्होंने लिखा – मैं इस शताब्दी की सन्तान हूँ। मैं अनास्था और संदेह का बंदी हूँ और शायद मरने तक रहूँ। बीच-बीच में ईश्वर मुझे हर्षातिरेक के क्षणों से सराबोर करते रहते हैं। इन्हीं क्षणों की बदौलत मैं अपने आप में आस्था की एक पवित्र लौ को जलाए रख पाया हूँ।

इस समस्त उल्लेख का तात्पर्य यह नहीं कि दोस्तोएवस्की की तमाम लेखकीय प्रतिभा या जीनियस के मूल में मिर्गी का रोग था। लेकिन इस अनूठे अनुभव ने उसे एक विशिष्ट दृष्टि प्रदान की और लेखन को गहराई से प्रभावित किया। उसने एक उपन्यास शीर्षक का उपयोग करते हुए कह सकते हैं कि मिर्गी ने दोस्तोएवस्की के अंदर एक दोहरा-आदमी गढ़ डाला था। एक तार्किक और दूसरा रहस्यवादी! दूसरा पहलू उम्र के साथ-साथ अधिक हावी होता गया। यह कितनी अजीब बात है कि ऐसे भी लोग रहे हैं जिनकी मानस-यात्रा इसकी विपरीत दिशा में चली है। आंद्रे गीदे अपने जीवन के अंत में आध्यात्मिकता से परे हट कर नितान्त तर्कवादी बन गये थे। उन्होंने तब कहीं लिखा था मनुष्य के जीवन में तार्किकता और अतार्किकता का यह संघर्ष सदैव चलता रहता है।

विभिन्न सभ्यताओं में, अलग-अलग देश काल में ऐसे व्यक्ति हुए हैं जिन्हें उच्चआध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ। उनके अनुभवों और दोस्तोएवस्की के मिर्गी के दौरों की तुलना करना एक विवादास्पद विषय हो सकता है।

ब्लेज पास्कल ने कभी कहा था- बीमारी के भले उपयोग की प्रार्थना के बारे में। हम सोच सकते हैं कि दोस्तोएवस्की ने अपनी मिगी का एक अच्छा उपयोग पा लिया था।

बीमारी के भले उपयोग की चर्चा हम पहले भी कर चुके हैं। प्रकृति के क्रूर प्रयोग- बीमारी के कारण ही चिकित्सा विज्ञानिकों को यह बूझने का अवसर मिलता है कि मस्तिष्क या विभिन्न अंग क्या-क्या काम करते हैं।

ईसाई धर्म के इतिहास में सेन्ट पॉल का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। उनका जन्म ईसा के बाद की पहली शताब्दी में हुआ था। वे आरम्भ में यहूदी थे तथा ईसाइयों के कट्टर विरोधी। बाईबिल में प्राप्त अनेक उद्दरणों के आधार पर अनुमान लगाया जाता है कि उन्हें मिर्गी के दौरे यदाकदा आते थे। अपने एक पत्र में सेन्ट जॉन ने लिखा था कि उन्हें एक अजीब असामान्य से दौरे में आध्यात्मिक अनुभूतियाँ हुई थी। मैं नहीं जानता कि मैं शरीर के अन्दर था या बाहर । मुझे ईश्वर ने कुछ पवित्र रहस्य बताए, जिन्हें होंठ अब दुहरा नहीं सकते।

सेंट पाल के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी उनका धर्मान्तरण । लगभग 30 वर्ष की उम्र मे वे येरुशालम से दमिष्क पैदल जा रहे थे। उद्देश्य था दमिश्क के ईसाइयों को सजा देना। मार्ग में अजीब घटना घटी। एक तीव्र प्रकाश हुआ। वे जमीन पर गिर पड़े। उन्हें कुछ आवाजें सुनाई थीं जो ईसा के समान थी। वे उठे परन्तु अन्धे हो चुके थे। दमिश्क पहुंचने के तीन दिन बाद उन्हें रोशनी फिर मिली। अनेक न्यूरालाजिस्ट ने सेंटजान के जीवन पर उपलब्ध तमाम ईसाई साहित्य का गहराई से अध्ययन किया है तथा वे इस मत के हैं कि सेंट जान को एपिलेप्सी का दौरा आया होगा। उनके धर्मान्तरण ने मिनी का कुछ न कुछ प्रभाव जरूर था। अन्य चिकित्सकों ने ऐसे दूसरे मरीजों के उदाहरण दिये जिन्होंने मिर्गी- अनुभूत कारणों से धर्मान्तरण दिया।

On Deja Vu

Moreover, Something is or seems

that touches me with mystic gleams

like glimpies of forgotten dreams

cf something felt, likesomething here; of

something done, i know not where,

Such as no language may declare (Tennyson)

चार्ल्स डिकन्स ने डेविड कापरफील्ड में कहा है –

We have all some experience of a feeling which comes over us occasionally, of what we ar saying and doing having been said or done before, in a remote time – of our having been surrounded, dim ages ago, by the same faces, objects, circumstances – of our knowing perfectly what will be said next as if we suddenly remembered it.

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