पी.ई.टी. का आविष्कार लगभग 20 से 30 वर्ष पहले हुआ था, लेकिन यह उतनी अधिक लोकप्रिय और उपयोगी नहीं हो सकी। पी.ई.टी. जाँच के अंतर्गत हमारे शरीर के परमाणुओं से निकलने वाले पॉजिट्रान को कंप्यूटर के द्वारा कैच किया जाता है। परमाणु का एक नाभिक होता है, और नाभिक में न्यूट्रॉन और प्रोटॉन होते हैं और उस नाभि के चारो तरफ चक्कर लगाने वाले इलेक्ट्रॉन होते हैं। उन्हीं के साथ पॉजिट्रान नाम के कण भी होते हैं, बारीक पार्टिकल होते हैं।
पॉजिट्रान ईमिशन टोमोग्राफी, पेट स्कैन जांच में मरीज को कुछ प्रकार के रासायनिक पदार्थों का इंट्रावीनस इंजेक्शन दिया जाता है। इस इंजेक्शन में जो रासायनिक पदार्थ होते हैं, वे रेडियो एक्टिव पदार्थ होते हैं। ऐसे पदार्थ, जिसमें से रेडिएशन निकलती है। जब यह इंजेक्शन लगाते हैं तो यह पदार्थ रक्त में खुलकर पूरे शरीर में पहुंचता है, और उसमें भी पहुंचता है, जहां आपको बीमारी का पता लगाना है। रेडिएशन वाला पदार्थ मस्तिष्क में पहुंचकर किस प्रकार की रेडियो सक्रियता निकालेगा, कितने पोजिटान निकालेगा, उसे हम उस मशीन के द्वारा कैप्चर करते हैं । बड़े रंगीन चित्र इससे हमें प्राप्त होते हैं, उनसे हमें यह मालूम पड़ता है कि हमारे मस्तिष्क के रचना के साथ-साथ उनकी कार्यप्रणाली में क्या अंतर है। यह जितनी भी बिम्ब या इमेजिंग जांचे होती है, उनको हम दो भागों में बांट सकते हैं एक तो रचनात्मक या स्ट्रक्चरल और दूसरा कार्यात्मक या फंक्शनल। सिटी स्कैन मुख्यतः रचनात्मक जांच है। शरीर के अंगों की रचना की जानकारी देता है। जब सादा एक्सरे लेते हैं, वो रचनात्मक होता है, स्ट्रक्चरल जांच है। शरीर की रचना की जानकारी देता है और फंक्शनल जांच क्या होती है, जिसमें हमें रचना के साथ साथ कार्यप्रणाली की भी जानकारी मिलती है उसका भी बिम्ब प्राप्त होता है। आजकल m.r.i. के अंदर भी फंक्शनल जांच होने लग गई है। पेट स्कैन के द्वारा भी हमें मस्तिष्क के विभिन्न भागों की कार्यप्रणाली के बारे में जानकारी मिलती है। सारे कार्य प्रणाली एक साथ नहीं, कोई एक समय में एक प्रकार की कार्यप्रणाली, उदाहरण के लिए कमा जब हम दिमाग का चित्र ले रहे होते हैं और फंक्शनल न्यूरोइमेजिंग कर रहे होते हैं तो कार्यात्मक जांच में एक जानकारी मिल सकती है दिमाग के किस हिस्से में ऑक्सीजन का उपयोग कितना हो रहा है। इस जगह ऑक्सीजन अधिक खर्च हो रही है या ग्लूकोस का उपयोग कितना हो रहा है, कितना मेटाबॉलिज्म है, कितना चयापचय हो रहा है| ब्रेन का कौन सा हिस्सा अधिक सक्रिय है, कौन सा ठंडा है और कौन सा गर्म। ठंडा और गर्म सक्रियता की दृष्टि से, रसायनिक सक्रियता की दृष्टि से। कितने हिस्से में रक्त संचार कितना हो रहा है, इस हिस्से में खूब रक्त पहुंच रहा है, इस हिस्से में कम रखता पहुंच रहा है। खून का दौरा, ऑक्सीजन का उपयोग, ग्लूकोस का उपयोग, अन्य रासायनिक पदार्थों का टर्नओवर, कितना टर्नओवर हो रहा है, कहां, किस चीज का। जैसे अर्थशास्त्री बोलते हैं ना कि कोयले का टर्नओवर अधिक हो रहा है या ईंधन का टर्नओवर कम हो रहा है तो उसी प्रकार दिमाग में जो विभिन्न प्रकार के रसायनिक पदार्थ है, उनका टर्नओवर उनका फंक्शन इन चित्रों के द्वारा प्राप्त करते हैं, जिनको फंक्शनल न्यूरोइमेजिंग कहते हैं।
पेट स्कैन बहुत महंगा है, उसकी मशीन बहुत महंगी है। उसकी जांच में हमें रेडियो सक्रिय रासायनिक पदार्थों का इंजेक्शन लगाना पड़ता है। उसके अपने दुष्प्रभाव होते हैं और कुल मिलाकर पेट स्कैन की क्लीनिकल उपयोगिता सीमित है। रिसर्च में, शोध में, उसकी उपयोगिता अधिक है लेकिन हमारी दैनिक क्लिनिकल प्रैक्टिस में जब एक मरीज डॉक्टर के सामने बैठता है तो एक डॉक्टर को निर्णय लेना होता है कि मुझे इसका क्या इलाज करना है, वहां पेट स्कैन की उपयोगिता, तुलनात्मक रूप से कम है।
ऑंन्कोलॉजी में, कैंसर विज्ञान में, पेट स्केन की उपयोगिता अधिक है। हमारे साथी लोग, जो कैंसर रोग विशेषज्ञ है, वो शरीर के विभिन्न भागों में और दिमाग के अंदर भी जगह-जगह देखना चाहते हैं कि ट्यूमर कैंसर की गांठ कहां कहां है। कहां पर सक्रीय है, प्रायमरी ट्युमर कहां है, सेकंडरी ट्युमर कहां है, कहां कहां फैल गया है। उन जाँचों के अंदर भी पेट स्केन की उपयोगिता होती है।