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लम्बर पंक्चर (C.S.F.) क्या हैं एवं कैसे होती हैं जाँच ?


सेरिब्रो स्पाईनल फ्लूड (सी.एस.एफ.) जांच
कमर की रीढ़ की हड्डी में से सुई द्वारा पानी निकालना

अनेक न्यूरोलॉजिकल बीमारियों के निदान(डायग्नोसिस) हेतु डॉक्टर द्वारा मरीज़ की रीढ़ की हड्डी में से पानी की जांच करवाने को कहा जाता हैं|
मरीज़ और घरवाले प्रायः शुरू में डर जाते हैं| शंका करते हैं –

खूब दर्द होता होगा, ऐसा लगता हैं|

कहीं कोई खतरा तो नहीं हैं?

क्या यह जांच टाली नहीं जा सकती?

डरने की बात नहीं हैं| दर्द थोड़ा सा होता हैं, अधिक नहीं|

विषय सूचि


केवल एक इन्जेक्शन लगने जितना दर्द होता है । इस जांच में खतरा नहीं होता । बहुत बिरले ही कभी कबार कोई समस्‍या या काम्प्लीकेशन हो सकते हैं । मस्तिष्क मेरू द्रव (सेरीब्रोस्पाईनल फ्लूड)(सी.एस.एफ.) यह पानी सब लोगों के दिमाग और रीढ़ की हड्डी के भीतर सामान्य रूप से रहता है । लगातार नया बनता है, बहता है, और निकलता रहता है | प्रति 24 घण्टे में लगभग 1.5 लिटर द्रव का बहाव रहता है । लेकिन किसी भी एक समय यदि पूरा पानी निकाल लें तो कुल मिला कर सिर्फ 150 मि.ली. मिलेगा। यह द्रव (सी.एस.एफ.) दिमाग के बाहर भी रहता है और अन्दर भी |
खोपड़ी के अन्दर लेकिन, मस्तिष्क के बाहर, उसे ढंकने वाली झिल्लियों की तीन परत होती है, जिन्हें मेनिन्‍जीस कहते हैं | प्याज के छिलके या बन्द गोभी के पत्तों के समान ये परतें ब्रेन (दिमाग) के चारों तरफ से ढंक कर उसे सुरक्षा प्रदान करती हैं। तीन परतों में सबसे बाहर वाली थोड़ी मोटी, सख्त और मजबूत होती है। इसे ‘ड्यूरामेटर’ कहते हैं । यह खोपड़ी और रीढ़ की हड्डी के अन्दर स्थित लम्बी पोली नली (स्पाईनल केनाल) की अन्दरूनी सतह से चिपकी रहती हैं । इसके भीतर की दो झिल्लीयाँ बहुत महीन, बारीक व कमजोर होती हैं। बीच वाली का नाम है ‘एरेक्नाईड मेटर” क्‍योंकि यह मकड़ी के जाले जैसी लगती है। सबसे अंदर है ‘पायामेटर’ जो मस्तिष्क और स्पाईनल कार्ड की सतह पर चिपकी रहती है | अन्दर वाली बारीक झिल्लियों की दो परतों के बीच मस्तिष्क – मेरू द्रव (सेरीब्रोस्पाईनल फ्लूड) भरा रहता है, बहता है, निकलता है। यही द्रव ब्रेन की गहराई में स्थित नलिकाओं (वेन्द्रीकल्स) में भी रहता है|
दरअसल सी.एस.एफ,. का निर्माण या स्त्रवण (सीक्रिशन) वेन्ट्रीकल्स में स्थित खून की बारीक नलिकाओं के कुछ खास गुच्छों से होता है। जिन्हें कोरोइड प्लेक्सस कहते हैं | वेन्ट्रिकल रूपी गुहाओं और नलिकाओं में बहते हुए सी.एस.एफ (मेरू द्रव) खोपड़ी के पिछले भाग में स्थित चौथे नम्बर के वेन्ट्रिकल के दो बारीक छिद्रों से बाहर निकल कर दिमाग के बाहर एरेक्‍्नाइड मेटर और पाया मेटर नामक झिल्ली नुमा परतों के बीच पहुंच जाता है ।
कहने का मतलब यह कि मस्तिष्क की गहराईयों में स्थित वेन्ट्रिकल का सी.एस.एफ. तथा मस्तिष्क के बाहर मेनिन्‍जीस की नरम बारीक झिल्लीयों के बीच स्थित सी.एस.एफ. और रीढ़ की पूरी हड्डी के भीतर स्थित स्पाइनल कार्ड (मेरू तंत्रिका) के चारो और स्थित स्पाइनल नलिका (स्पाईनल केनाल) में मौजूद सी.एस.एफ. तीनो एक ही हैं। प्रवाहमान होकर एक दूसरे से मिश्रित हैं ।
सी.एस.एफ. का निकलने का स्थान है दिमाग से अशुद्ध रक्त हृदय तक लौटाने वाली सेरीब्रल वेन्स ।

मस्तिष्क मेरु द्रव (C.S.F.) क्या होता हैं ?

मस्तिष्क मेरू द्रव (म.मे.द्र) सी.एस.एफ. साफ पानी जैसा पारदर्शी होता है। चखने में थोड़ा नमकीन, थोड़ा मीठा। सी.एस.एफ. की रासायनिक संरचना रक्त प्लाज़्मा से मिलती जुलती है। एक स्वस्थ व्यक्ति के सामान्य सी.एस.एफ. को जब प्रयोगशाला में जांच के लिये भेजते हैं तो उसकी रिपोर्ट का नमूना कुछ यूं होता है |
रंग – साफ, पारदर्शी ॥
पेन्डीज प्रतिक्रिया – अनुपस्थित ।
प्रोटीन – 20 से 40 मि.ग्रा. प्रति 100 मि.ली.|
कोशिकाऐं – 0.5, सफेद रक्तकण लिम्फोसाईट
शर्करा (ग्लूकोज) – 40 से 60मि.ग्रा. प्रति ।00 मि.ली.
बेक्टीरिया या वायरस – अनुपस्थित

सी.एस.एफ. के कार्य

सी.एस.एफ. मस्तिष्क के अनेक काम आता है। दिन भर की दौड़ धूप के दौरान यह दिमाग के पिये शॉक एब्सॉर्बर (धक्के सहन करने की व्यवस्था) का काम करता है। मस्तिष्क के लिये पोशक पदार्थ पहुंचाने और उसमें से निकलने वाले वेस्ट मटेरियल (त्यज्य रसायन), जिन्हें बाहर करता है, उन्हें बाहर निकलवाने में मदद करता है।

सी.एस.एफ. की जांच कब और क्‍यों करवाते हैं ?

ब्रेन फीवर (दिमागी बुखार) मस्तिष्क ज्वर – सबसे प्रमुख अवस्थोऐँ हैं। मस्तिष्क या खोपड़ी के अंदर इन्फेक्शन (संक्रमण) तथा इन्फ्लेमेशन (प्रदाह) इंफेक्शन (संक्रमण) का अर्थ है बेक्टीरिया, वायरस, फंगस आदि जीवाणु का भीतर प्रवेश करने से बीमारी |
(इन्फ्लेमेशन प्रदाह) का मतलब है किसी अंग या टिशु में सूजन/दर्द/ गरम होना लाल होना/काम खराब होना | इन्फ्लेमेशन के अनेक कारण हैं जिनमें से इंफेक्शन एक है।


मस्तिष्क (ब्रेन) के चारों ओर स्थित झिल्लियों की तीन परतों तथा उनके बीच स्थित मस्तिष्क द्रव में इन्फेक्शन पैदा करने वाले अनेक सूक्ष्म जीवाणु होते हैं जैसे कि मेनिन्‍्गोकाकस, न्यूमो काकस, हीमोफिलस इन्फ्लेयेन्जी, ट्यूबर क्यूलोसिस,क्रिप्टोकाक्स फंगस आदि। किन्‍्हीं किन्हीं परिस्थितियों में जब इनमें से कोई जीवाणु हजारों की संख्या में दिमाग के भीतर प्रवेश कर जाते हैं तो ‘मेनिन्‍्जाईटिस रोग होता है। यही इन्फेक्शन जब झिल्लियों के बजाय दिमाग के भीतरी टिशु पदार्थ में घुसता है तो ‘एन्सेफेलाईटिस’ रोग होता है।
आम बोलचाल की भाषा में लोगो को समझाने के लिये डॉक्टर्स प्रायः निम्न शब्दों का उपयोग करते हैं: – दिमागी बुखार या मस्तिष्क ज्वर या ब्रेनफीवर। डॉक्टर्स जानते हैं कि ब्रेन फीवर किसी एक रोग का नाम नहीं है। अलग अलग प्रकार के जीवाणु मस्तिष्क के अलग-अलग भागों में भिन्न प्रकार के रोग पैदा करते हैं। उन सबके लिये मिला जुला नाम है ब्रेन फीवर ।
यदि किसी मरीज में मेनिन्‍जाईटिस नामक दिमागी बुखार होने का अंदेशा हो तो रीढ़ की हड्डी में से पानी निकाल कर उसकी जांच तत्काल, इमरजेन्सी में करवाना अनिवार्य होती है, चाहे आधी रात का समय क्यों न हो | टेस्ट ट्यूब में भरे हुए सी.एस.एफ. को तत्काल लेबोरेटरी पहुंचाते हैं जहां उसकी जांच आधे घण्टे में शुरू हो जानी चाहिये |

मेनिन्जाईटिस

मेनिन्‍जाईटिस से पीड़ित मरीज का सी.एस.एफ. मटमैला हो सकता है, उसमें प्रोटीन और सफेद रक्तकर्णो की संख्या बढ़ जाती है। शर्करा कम हो जाती है। सूक्ष्मदर्शी यंत्र (माईक्रोस्कोप) से बेक्टीरिया दिख सकते हैं या उन्हें उगाने वाले घोल या प्लेट पर कल्चर नामक जांच द्वारा पहचाने जा सकते हैं तथा यह भी पता लगाया जा सकता है कि वे बेक्टिरिया कौन कौन सी एन्टीबायोटिक औषधि से मारे जा सकेंगे तथा कौन सी से नहीं ।

सब एरेकक्‍नाईड हेमरेज (एस.ए.एच.)

अन्दरूनी दो झिल्लियों के मध्य स्थित सी.एस.एफ. में रक्तस्त्राव जो खून की किसी धमनी (आर्टरी) पर आये छोटे से गुब्बारे (एन्यूरिज़्म) के फटने से होता है।
यह ब्रेन अटैक का एक खतरनाक स्वरूप है जिसके लक्षण हैं – बहुत जोर से अचानक सिर फटने वाला दर्द जैसा पहले कभी न हुआ हो, चक्कर, अंधेरी, उल्टियाँ, सुस्तीपन, विभ्रम, सन्निपात, बेहोशी, मिर्गी नुमा दौरे |

सब एरेक्‍नाईड हेमरेज (एस.ए.एच.) का निदान तत्काल जरूरी है क्योंकि समय रहते मेडिकल और सर्जिकल उपचार द्वारा जान बचाई जा सकती है तथा दीर्घकालिक निःशक्तता जैसे काम्प्लीकेशन को टाला जा सकता है।
सब एरेक्‍नाईड हेमरेज (एस.ए.एच.) की डायग्नोसिस में सी.एस.एफ. की जांच बहुत उपयोगी है। सामान्य स्वस्थ व्यक्ति में से निकलने वाला कांच जैसा साफ सी.एस.एफ., यहां खून से मिश्रित लाल रंग का मिलता है । हालांकि आजकल अधिकांश जगहों पर सी.टी. स्केन उपलब्ध होने से सी.एस.एफ. जांच की जरूरत कम पड़ती है।

कुछ अन्य अवस्थाऐँ जिनमें सी .एस .एफ. की जांच उपयोगी हो सकती हैं।

1. इडियोपेथिक इन्‍्ट्राक्रेनियल हायपरटेंशन (॥H)- सी.एस.एफ. के निकलने के रास्ते अवरूद्ध या चोक होने से उस पानी का दबाव बढ़ने की बीमारी | आंख के पर्दे पर सूजन दिखाई पड़ती है। कमर में सुई गड़ा कर पानी निकालते समय उसका प्रेशर या दबाव नापते हैं जो बढ़ा हुआ मिलता है, जबकि सी.एस.एफ. की अन्य प्रयोगशाला जांच में खराबी नहीं होती |

2. मल्टीपल स्क्‍्लीरोसिस (ADEM) – मस्तिष्क के सफेद पदार्थ में प्रदाह (सूजन)
3. एस.एस.पी.ई. (5876) – मीसल्स वायरस द्वारा मस्तिष्क का दीर्घकालिक धीमा इन्फेक्शन |
4. एल.जी.बी. सिन्ड्रोम (| 58) तथा सी.आई.डी.पी. (0।07)- ये न्यूरोपेथिक रोग हैं जिनमें हाथ पैर और पूरे शरीर की नाड़ियों में इन्फलेमेशन (प्रदाह वाली सूजन) होने से मांसपेशियों की शक्ति व त्वचा की संवेदना कम हो जाती है |

लम्बर पंक्चर का उपचारात्मक उपयोग

1. स्पाईनल एनेस्थीसिया – सुन्न करना या निश्चेतना | रीढ़ की हड्डी के अन्दर स्थित पानी में जब सुन्न करने वाली दवा का इंजेक्शन भर देते हैं तो स्पाईनल कार्ड (मेरू तंत्रिका) का निचला भाग काम करना बन्द कर देता है। दोनों पैर शिथिल हो जाते हैं, हिलाए नहीं जा सकते | कमर के नीचे का धड़ या पैर संवेदनहीन, सुन्न हो जाते हैं। उनके होने का अहसास खत्म हो जाता है | यह अवस्था एक-दो घण्टे रहती है जिसके दौरान सर्जन शरीर के निचले भाग में आपरेशन कर सकता है | मरीज को बेहोश करने की जरूरत नहीं पड़ती ।

2. रीढ़ की हड्डी के अंदर नलिका (स्पाइनल केनाल) में इन्जेक्शन द्वारा औषधि अन्दर भरना | (इन्ट्राथीकल मेडिसिन) स्पाईनल कार्ड (मेरू तंत्रिका) तथा उसके आसपास की कुछ गिनी चुनी बीमारियों में औषधि अन्दर डालने से बेहतर परिणाम मिल सकते हैं |
3. सीएसएफ. का दबाव कम करना – नामक रोग में ढेर सारा सी.एस.एफ. (50 मिली) बार बार निकालने से दबाव कुछ दिनों के लिये कम रखा जा सकता है।

लम्बर पंक्चर करने की विधि

मरीज को करवट से लिटा कर गर्दन व घुटनों को मोड़ कर पेट से चिपकाते हैं।
कमर के निचले हिस्से में लम्बर वर्टीब्रा (कशेरू) क्रमांक 3 और 4 के मध्य स्थित खाली स्थान में लम्बी बारीक सुई धंसाते हैं। शुरू में उस हिस्से को स्प्रिट आदि से साफ करते हैं तथा एक छोटी सुई द्वारा स्थानीय असवेदन लोकल अनेस्थिसिया) पैदा करते हैं ताकि बड़ी सुई गाड़ते समय कम से कम दर्द हो।
जैसे ही सुई सी.एस.एफ. से भरे स्थान में प्रवेश करती हैं, अनुभवी डॉक्टर के हाथों को महसूस हो जाता हैं कि सही गहराई तक पहुँच गये हैं। निडल के अंदर से तार नुमा स्टीलेट बाहर निकालते हैं | कांच जैसा साफ पानी या तो बूंद बूंद करके या पतली ध्रार॒ के रूप में आता है। पांच पांच मिली लिटर सी.एस.एफ. दो-तीन अलग अलग परखनलियों में इकट्ठा कर के तुरन्त प्रयोगशाला भेज देते हैं | सुई को बाहर निकालने के बाद किसी रूई के फाहे या टिंचर की सील लगाने की जरूरत नहीं ड्रोत़ी.। जांच के बाद मरीज को लगभग एक घण्टा लेटे रहना चाहिये। कुछ मरीजों में एक-दो दिन स्थानीय दर्द रह सकता है | अनेक महीनों या वर्षों तक होने वाला दर्द, प्राय: लम्बर पंक्‍्चर के कारण नहीं होता, हालांकि कुछ मरीज गलती से ऐसा सोचते हैं । कारण शायद कुछ और भी होते होंगे लेकिन या मनोवैज्ञानिक रूप से ऐसी धारणा बन जाती है|

10-15% मरीजों में लम्बर पंक्चर की जांच के बाद सिरदर्द हो सकता है जो 4-5 दिना आराम करने या लेटे रहने से ठीक हो जाता है । पर बैठने या खड़ी अवस्था में अधिक होता है | कुछ अन्य काम्प्लीकेशन हैं – स्थानीय रक्तस्त्राव या इन्फेक्शन |

सीएसएफ यानी सेरीब्रो स्पाइनल फ्लूड की जांच में मरीज की रीड की हड्डी में कमर के निचले भाग में एक विशेष प्रकार की सुई घुसा कर पानी निकाला जाता है। इस पानी को सीएसएफ-सेरेब्रॉस्पाइनल फ्लुएड या मस्तिष्क मेरुतंत्रिका द्रव पदार्थ कहते हैं। सेरेब्रो अर्थात मस्तिष्क, स्पाइनल यानी मेरुतंत्रिका एवं फ्लूड अर्थात द्रव पदार्थ। इस पानी को निकालने की प्रक्रिया को ‘लंबर पंक्चर’ कहते हैं। यह जांच कैसे होती है? मरीज की रीड की हड्डी में कमर के निचले भाग में एक सुई घुसा कर पानी निकाला जाता है। जहां सुई लगाते हैं, शरीर का वह भाग सुणण कर दिया जाता है। इस जांच में मरीज को थोड़ा दर्द होता है। लम्बर वर्टिब्रा तीन और चार के बीच में सुई डालते हैं और जब यह अंदर जाती है तो जांच करने वाले अनुभवी डॉक्टर को महसूस हो जाता है कि सही जगह पहुंच गई है, जहां पर पानी भरा हुआ है। तब डॉक्टर उस विशेष प्रकार की सुई में मौजूद डंडी को निकाल लेता है, इससे द्रव के द्वारा बूंद-बूंद करके टपकने लगता है, जिसे परखनली में इकट्ठा कर लिया जाता है। यह साफ सुथरा, कांच के समान पारदर्शी पानी होता है। सेरेब्रॉ स्पाइनल फ्लुएड अर्थात इस पानी को प्रयोगशाला जांच के लिए भेजा जाता है। इस जांच को करने से मरीज को किसी भी प्रकार का नुकसान या कोई खतरा नहीं होता। केवल कुछ गिने-चुने अपवाद छोड़कर, जहां कि यह जांच करना उचित नहीं है। उदाहरण के लिए, यदि मस्तिष्क में प्रेशर बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ है और दिमाग का कुछ हिस्सा दबाव के कारण नीचे रखने का डर है, उस स्थिति में डॉक्टर यह जांच नहीं करवाएंगे। उसके लिए, वे पहले से कुछ सावधानियां बरतें। पहले दिमाग का सीटी स्कैन करवा कर देखेंगे, आंख के पर्दे को देखकर जांचेंगे कि कोई सूजन तो नही है?
फण्डस एग्जामिनेशन कर वे पता लगा सकते हैं। अगर उन्हें विश्वास हो जाए कि इस जांच को करवाने से दिमाग में जो प्रेशर बढ़ा हुआ है, जिससे दिमाग के नीचे खिसक जाने का डर था, वह नहीं है, तो यह जांच करवाई जाएगी।

यह जांच क्यों करवाते हैं? जब यह सीएसएफ निकालते हैं तो उसमें कई प्रकार की बीमारियों का पता चलता है, जैसे मेनिंजाईटिस। मेनिंजाईटिस का मतलब होता है – मस्तिष्क एवं मेरु तंत्रिका के चारों तरफ तथा रीड की हड्डी के अंदर स्थित झिल्लिया। दिमाग एवं मेरु तंत्रिका के चारों और झिल्लियों की तीन परत होती है। इन परतो के बीच में पानी भरा रहता है, जो मस्तिष्का एवं मेरुतंत्रिका की सुरक्षा करता है, जब किसी बैक्टीरिया की वजह से इन थैलियों से संक्रमण या इंफेक्शन हो जाता है, उसे मेनिंजाईटिस कहते हैं। उस अवस्था को जांचने हेतु यह पानी निकाला जाता है। इस पानी की जांच से कंफर्म होता है कि मेनिंजाईटिस, जो कि एक प्रकार का दिमागी बु​​खार होता है, तो नहीं है।


इंसेफलाइटिस इसमें झिल्ली के अंदर जो मुख्य मस्तिष्का है, उसके संक्रमण की जांच की जाती है, उसमें भी परीक्षण के लिए यह पानी निकाला जाता है। यह सभी मस्तिष्क ज्वर के, दिमागी बुखार के, ब्रेन फीवर के उदाहरण है। दिमाग में इंफेक्शन है, दिमाग के बाहर पानी में इंफेक्शन है, झिल्लियो में इंफेक्शन है। इस बीमारी के मरीजों में क्या लक्षण होते हैं? इन्हें बुखार आता है, सिर जोर से फटता है, उल्टियां होती है, कभी-कभी मरीज बेहोश भी हो जाता है। उनकी गर्दन अकड़ जाती है क​​भी-कभी दौरे भी आ सकते हैं यह एक्यूट अवस्थाएं होती हैं, अचानक आती है।
ये टी.बी. के इंफेक्शन में हो सकती है, वायरस इन्फेक्शन में हो सकती है, कई प्रकार के बैक्टीरिया होते हैं, जिनसे इंफेक्शन हो सकता है। मेनिंजाईटिस इंसेफलाइटिस, दिमागी बुखार आदि बीमारी का शक है तो डॉक्टर पीठ में सुई लगाकर पानी निकालने की जांच हेतु आग्रह करेगा।
इसके अलावा कुछ और भी अवस्थाएं होती है, जिनमें यह पानी जांच के लिए निकाला जाता है जैसे सबएरेक्नाईड हेमरेज। एक ऐसा हेमरेज, जिसमें दिमाग में रक्त नहीं फटने से खून निकल कर दिमाग के भीतर तो नहीं जाता लेकिन दिमाग के बाहर जो पानी भरा हुआ है, झिल्लियो के बीच में, उसमें इकट्ठा हो जाता है – सबएरेक्नाईड हेमरेज। ऐसी स्थिति में, जब पानी निकालते हैं तो वह लाल रंग का होता है, जिसमें खून मिला हुआ पानी परखनली में एकत्रित होता है। उसे जांच के लिए भेजकर कंफर्म कर लेते हैं। और भी कई बीमारियां, जो बहुतायत में देखी जाती है। उनके निदान में भी लंबर पंक्चर करके पानी निकालने की जांच करवाते है

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