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डॉक्टर मरीज़ संवाद


एक प्रसिद्ध चिकित्सक पिछली शताब्दी में फ्रांस में हुए थे। कई लोगों ने उनका नाम सुना हो,गा श्री लुइ पाश्चर। उनका एक कथन उद्धृत करना चाहूंगा – “मैं यह नहीं पूछता कि तुम्हारी जाति क्या है, तुम्हारा धर्म क्या है, नस्ल क्या है, विचारधारा क्या है, राष्ट्रीयता क्या है? मैं तो डॉक्टर के रूप में केवल यही पूछता हूँ कि तुम्हारी तकलीफ क्या है।”

एक डॉक्टर हमेशा अपने मरीज की पीड़ा, उसकी तकलीफों, उसकी बीमारियों और उसके दुखों के बारे में जानना चाहता है यही मरीज भी चाहता है। उसके घर वाले भी चाहते हैं कि वे अपना किस्सा, अपनी कहानी, अपनी कथा अच्छे से बयान कर पाए ताकि डॉक्टर उसे अच्छे से सुनकर, समझ कर उसका सही निदान कर पाए यह जो कला है, मरीज का इतिहास पूछने की, बीमारी का इतिहास पूछने की, इसे सीखने में डॉक्टरों को अनेक वर्ष लग जाते हैं। यह विज्ञान कम और कला अधिक है। बड़े अनुभव के साथ बहुत से मरीजों से बात करने के बाद कई मरीजों को सुनने के बाद ही डॉक्टर अच्छी तरह से अपने मरीज की हिस्ट्री ले पाता है।

जब एक मरीज किसी चिकित्सक के पास पहुंचता है तब वह प्रायः तनाव में होता है, दुखी होता है, टेंशन में होता है, और डरा हुआ भी रहता है। उसके मन में तरह-तरह की शंकाएँ व आशंकाएँ रहती है। पता नहीं मुझे क्या बीमारी निकलेगी, और मुझे क्या चीज बताई जाएगी। वह बहुत हड़बड़ी में रहता है। बहुत सारी बातें एक साथ कहना चाहता है। उसे पता नहीं रहता कि डॉक्टर मुझे कितना समय देंगे, कहीं चले तो नहीं जाएंगे। उसके पास बहुत सारी कहानी थी, बहुत सारे लक्षण थे, बहुत सारे सिंमटम्स थे। उसने बहुत सारे डॉक्टरों को दिखाया था। कई प्रकार के इलाज करवाए थे। उसकी कहानी में बड़े ही उतार-चढ़ाव आए थे। कभी बीमारी घटी थी, कभी बीमारी बड़ी थी। इन सब को सिलसिलेवार तरीके से धैर्य के साथ क्रमबद्ध तरीके से, विस्तार से सुनने के बजाय, मरीज इस चीजों को मिक्स कर देते हैं, मिश्रित कर देते हैं, जल्दी-जल्दी में बोलने लगते हैं, उल्टे उल्टे क्रम में मिला देते हैं।

कई बार चिकित्सक इस तरह की परिस्थितियों में परेशान हो जाता है। डॉक्टर मरीज को रोकता है, उन्हें समझाता है और यह उम्मीद करता है कि मरीज अपनी कहानी को सिलसिलेवार एवं क्रमबद्ध तरीके से बताएंगे। कई बार ऐसा होता है कि मरीज किसी एक नई बीमारी या किसी खास बीमारी के लिए डॉक्टर के पास आता है, जिसको मेडिकल की भाषा में प्रेसेंटिंग सिम्पटम्स कहते हैं। कई बार मरीज हड़बड़ी में रहते हैं और वह अपने Presenting Symptoms अर्थात जिस लक्षण या जिस तात्कालिक बीमारी के कारण या तकलीफ के कारण वह डॉक्टर के पास आए हैं, उसे ठीक से कह नहीं पाते हैं। कई बार वे पुरानी बीमारी या पुराना इतिहास बताना शुरू कर देते हैं। पुरानी बीमारी और नई बीमारी के बीच जो विभाजन रेखा है, उसे समझ नहीं पाते, उन्हें मिला देते हैं, मर्ज कर देते हैं। कई बार पुरानी अवस्थाएँ, पुरानी बीमारियाँ, पुराने कारण वर्तमान संदर्भ में Relevant होते हैं, उनका अर्थ होता है, उनका महत्व होता है और कई बार उनका महत्व नहीं होता ।

उदाहरण के लिए एक मरीज ने कहा मुझे 10 साल पहले दुर्घटना बस कमर में चोट लगी थी, और तब से मुझे कमर में दर्द रहता है। जबकि जाँच करने पर यह मालूम पड़ता है कि 10 साल पहले जो चोट लगी थी वह तो मामूलीसी थी, और यह जो कमर दर्द आज की तारीख में हो रहा है, यह केवल पिछले 6 महीने से हो रहा है। बीच के साढ़े 9 साल वह मरीज बिल्कुल अच्छा था। आज जो दर्द हो रहा है, शायद उसका पुरानी चोट से कोई संबंध नहीं हो, परंतु मरीज और घरवालों का स्वभाव होता है कि वह दोनों चीजों को जोड़कर देखते हैं। और जहाँ संबंध नहीं होता है, वहां भी संबंध की कल्पना करने लगते हैं। संबंध के बारे में सोचने लगते हैं और हिस्ट्री इस तरह से देते हैं कि डॉक्टर को भी सुनकर ऐसा लगता है कि अच्छा जो दर्द है, वह चोट लगने के बाद ही शुरू हुआ होगा। मरीज यह नहीं बताते हैं कि दोनों मामलों के बीच साढ़े 9 साल का गैप था।

कई बार मरीज इलाज को लेकर सोचते हैं कि, मुझे फला-फला डॉक्टर ने यह दवाई दी थी, यह इलाज किया था, उसके बाद से मुझे यह तकलीफ हुई थी या मैंने फलाना ऑपरेशन करवाया था। उदाहरण के लिए कई महिलाएँ आती है और कहती है कि उन्होंने परिवार नियोजन का ऑपरेशन करवाया था, उसके बाद से उन्हें यह तकलीफ रहने लगी। जबकि दोनों का आपस में संबंध होना कतई जरूरी नहीं है।

मरीज जब अपने लक्षणों की बात करता है उसे यह कोशिश करना चाहिए कि डॉक्टर के पास जाने से पहले वह लिख ले कि वह क्या कहना चाहता है| उसके जितने भी लक्षण ,है उसकी एक सूची बनाने और यह सूची क्रमबद्ध होना चाहिए, समय के साथ होना चाहिए, जो लक्षण पहले आया था वह पहले और जो बाद में आया था वह बाद में। उसको मेडिकल की भाषा में Timeline or Chronological order कहते हैं।

मैं सलाह देना चाहूँगा कि उन्हें तकनीकी शब्दों से बचना चाहिए| जैसे एक मरीज ने कहा कि मुझे एक माह पहले टाइफाइड बुखार था। किसने कहा किस आधार पर निष्कर्ष निकाला कि टाइफाइड बुखार हुआ था मैं इस शब्द को स्वीकार नहीं करता। एक डॉक्टर के रूप में मैं मरीज से कहता हूँ कि तुम बीमारी का वर्णन करो, टाइफाइड मैं तुम्हें बुखार था, कितने दिन था, कितना तेज बुखार था, ठंड लगकर आता था, या बिना ठंड लगकर आता था, उतर जाता था या लगातार बना रहता था। बुखार के साथ और क्या-क्या होता था तुम मुझे विस्तार से बताओ तब मैं फैसला करूँगा की टाइफाइड बुखार था या नहीं| मुझे तुम टेक्निकल शब्द मत बताओ।

कोई मरीज आकर बोलता है कि मुझे बीपी की बीमारी है, ब्लड प्रेशर की बीमारी है| किसने नापा? नापा तो नहीं था पर मुझे लगता है, मेरा सिर भारी हो जाता है, मुझे घबराहट होने लगती है, मैं समझता हूँ कि मेरा बीपी बढ़ा हुआ है| मैंने नपवाया तो नहीं था। तो इस तरह से मरीज जब कोई तकनीकी शब्द बोलता है टाइफाइड, ब्लड प्रेशर, शुगर तो उसके पास वर्णन होना चाहिए।

कोई भी डॉक्टर उस तकनीकी शब्द को मरीज के कहे अनुसार, सीधे-सीधे बिना किसी सबूत या प्रमाण के स्वीकार नहीं करेगा और इसलिए डॉक्टर मरीज से यह आशा करता है कि वह अपनी हिंदी भाषा में सामान्य भाषा में, आम बोलचाल में बात करें।।
मरीज जब आते हैं तो उनके मन में बहुत सारी भावननाएँ, बहुत सारा डर, बहुत सारी चिंताएँ रहती हैं, बड़ी पीड़ा में रहते हैं। निसंदेह पीड़ा व भावनाएं जरूर आना चाहिए, लेकिन मरीजों को चाहिए कि वह अपनी भावनाओं को बढ़ाचढ़ा कर पेश ना करें और ना ही कम पेश करें क्योंकि इस सब से भी इलाज में फर्क पड़ सकता है।

कई बार मरीज कुछ ऐसे शब्दों का उपयोग करते हैं, जिनके एक से अधिक अर्थ होते हैं और मरीज यह मानकर चलता है कि डॉक्टर को तो पता ही होगा। न्यूरोलॉजी में बहुत से मरीज एक कॉमन शब्द लेकर आते हैं – चक्कर। मुझे चक्कर की बीमारी है, लेकिन चक्कर के बहुत सारे अर्थ होते हैं, मुझे मरीज से पूछना पड़ता है कि चक्कर से आप के मायने क्या है? मुझे यहाँ पर Alice in Wonderland, जो कि एक प्रसिद्ध अंग्रेजी साहित्य की रचना है, उसमें एलिस नाम की लड़की का एक कथन याद आता है वह कहती है कि when ever I use a word I mean exactly what I want to mean यानी “मैं जब भी कोई शब्द का उपयोग करती हूँ तो उस शब्द का मतलब उतना ही सटीक होता है या मैं जो सोचती हूँ वही उसका अर्थ होता है”। अब एलिस के दिमाग में किसने घुस कर देखा कि उस शब्द का क्या मतलब था ? यही काम अनेक मरीज अपने शब्दों के साथ करते हैं। जब एक मरीज ‘चक्कर’ बोलता है तो ऐसी स्थिति में डॉक्टर को उनसे पूछना पड़ता है कि आपका क्या मतलब है?

मैं आपको एक उदाहरण दूँगा कि अलग-अलग बीमारियों को भी एक ही शब्द बोलते हैं ‘चक्कर’।

उदाहरण 1 – एक मरीज आया उसने कहा मैं पुलिस कर्मचारी हूँ। जब मैं मैदान में पुलिस के परेड ग्राउंड में खड़ा था, बहुत धूप थी। कंधे पर राइफल थी, परेड ग्राउंड था, सुबह से नाश्ता नहीं किया था, पानी भी नहीं पिया था और अचानक से मुझे चक्कर आने लगे, आँखों के आगे अंधेरा छाने लगा और मैं धड़ाम से गिर गया| 5 मिनट बाद मुझे होश| आया मुझे चक्कर आ गया था। इसे मेडिकल की भाषा में Syncope यानि मूर्च्छा कहते हैं। कुछ देर के लिए खून दिमाग तक कम पहुंचता है, रक्तचाप कम हो जाता है।

उदाहरण 2 – एक पिता अपने बच्चे को लेकर आया और बोला – ‘मेरे बेटे को चक्कर आने की बीमारी है।‘ क्या होता है चक्कर के अंदर? यह गिर पड़ता है बेहोश हो जाता है हाथ पाँव कड़क हो जाते हैं, आँखें उल्टी हो जाती है, दाँत चिपक जाते हैं, मुँह से झाग आने लगता है। मैंने निष्कर्ष निकाला कि इस बच्चे को मिर्गी की बीमारी है । बच्चे के पिता ने क्या बोला? चक्कर आने की बीमारी है।

उदाहरण 3 – एक मरीज ने कहा कि मुझे चक्कर आते हैं, मैं गिर जाता हूँ। कब आते हैं चक्कर? जब मैं चलता हूँ। जब बैठे रहो तो कुछ नहीं होता, परंतु जब जब मैंने खड़े होकर चलना चालू किया तो मेरे पाँव डगमगाने लगे, मुझे सहारा लेना पड़ता, है गिरने जैसा लगता है, मैं गिर भी सकता हूँ। मेरी चाल गड़बड़ा गई है। इसे मेडिकल की भाषा में क्या कहते है? Ataxia या असंतुलन, संयोजन । मरीज ने क्या शब्द बोला चक्कर, शब्द एक अर्थ अनेक।

उदाहरण 4 – एक मरीज ने कहा मुझे चक्कर आते हैं, जब मैं बैठा हूँ, और अचानक लेट जाऊँ, या लेटे-लेटे करवट लूँ या लेट कर उठूँ तो ऐसा लगता है कि सारा कमरा गोल-गोल घूम रहा है या जमीन घूम रही है और मैं गिर जाऊँगा और मुझे किसी चीज को पकड़ना पड़ता है। इसको मेडिकल की भाषा में क्या कहते हैं? Vertigo मरीज ने क्या बोला चक्कर।

उदाहरण 5 – एक महिला आई और कहा – मुझे चक्कर आते हैं। क्या होता है चक्कर में उसने कहा – अचानक घबराहट होने लगती है, सिर घूमने लगता है? ऐसा लगता है कि अब मैं नहीं बचूंगी, धड़कन तेज होने लगती है और बेचैनी सी होने लगती है। इसको मेडिकल की भाषा में क्या कहते हैं? Panic Attack, Anxiety Neurosis व्यग्रता | यह एक प्रकार की साइकोलॉजिकल अवस्था है।

यह 5 अर्थ हो गए चक्कर के, ऐसे ही चिकित्सा विज्ञान में बहुत सारे उदाहरण और ऐसी स्थिति में डॉक्टर जब मरीज से पूछे, यह जो तकलीफ बता रहे हैं उसका अर्थ क्या है? आप संभवतः क्या महसूस करते हैं? मरीज आकर बोलते हैं कि BP Low हो जाता है। आपको क्या होता है, आप क्या महसूस करते हैं उसका वर्णन कीजिए।

कई बार मरीज अपने साथ ढेर सारी फाइलों की थप्पी ले कर आता है। पुरानी जाँचें, पुराने इलाज के पर्चे। इससे पहले कि डॉक्टर मरीज से कुछ बात करें, वह अपनी फाइलों की थप्पी टेबल पर रख देते हैं और डॉक्टर से उम्मीद करते हैं कि वह उन कागजों को पढ़ना चालू कर दे। एक डॉक्टर के रूप में मैं विनम्रता पूर्वक मरीज से अनुरोध करता हूँ कि आप इसे एक तरफ रख दें। पहले अपनी तकलीफ अपने मुँह से कहें मैं इन कागजों को देखूँगा, मगर मैं पहले आपसे बात करना चाहूँगा। आपकी तकलीफ की हिस्ट्री लेना चाहता हूँ, आप को सुनना चाहता हूँ, इतिवृत्त जानना चाहता हूँ। मरीज को कई बार बड़ा बुरा लगता है कि डॉक्टर हमारी फाइल क्यों नहीं देख रहे हैं? हमारा यह एक्सरे क्यों नहीं देख रहे हैं? हमने इतना महँगा सीटी स्कैन करवाया, उसे क्यों नहीं देख रहे हैं? उसे देखने में नुकसान है। यदि डॉक्टर ने पहले ही सारे कागज देख लिए और किसी अन्य डॉक्टर ने जो भी डायग्नोसिस किया है या उस रिपोर्ट में जिस किसी भी बीमारी के बारे में लिखा है, तो यह सब पहले से देखने के कारण चिकित्सक के मन में पूर्वाग्रह बन जाएगा। हो सकता है कि डॉक्टर भी वही सोचने लगे जो दूसरे डॉक्टर ने सोचा था। हो सकता है कि पहला डॉक्टर सही ना हो। यदि मुझे स्वतंत्र रूप से अपना सही डायग्नोसिस बनाना है तो मुझे पूर्वाग्रह ग्रस्त नहीं होना है इसलिए मैं पहले पेपर्स नहीं देखूँगा । मैं अपना मत स्वयं बनाऊंगा और उसके बाद मरीज के पेपर देखूँगा ।

कई मरीज आते हैं और इलाज के बारे में विस्तार से बताने लगते हैं कि मुझे यह तकलीफ हुई, फिर मैं जब डॉक्टर के पास गया तो उन्होंने यह एक्स-रे करवाया, फिर उन्होंने मुझे यह दवा लिखी परंतु मुझे फायदा नहीं हुआ। फिर मेरे अंकल ने कहा कि चलो दूसरे अस्पताल चलते हैं और वहाँ के डॉक्टर ने तीसरी जाँच करवाई और चौथी दवा लिखी। उससे मुझे यह साइड इफेक्ट हुए। उस समय में अपना धैर्य खो बैठता हूं। मुझे नहीं खोना चाहिए लेकिन मैं मरीज को रोकता हूँ मुझे ट्रीटमेंट हिस्ट्री का रिकॉर्ड बाद में चाहिए, यह मेरे लिए तुलनात्मक रूप से इतना महत्वपूर्ण नहीं है। उपचार का इतिहास महत्वपूर्ण तो है लेकिन कम महत्वपूर्ण। पहले मुझे लक्षणों का वर्णन चाहिए, आपकी पीड़ा का वर्णन चाहिए। आप कहां गए थे, किन डॉक्टर ने क्या कहा, कौन सी दवाई लिखी, क्या रिएक्शन हुआ यह सब बातें सुनेंगे लेकिन बाद में।

कई बार मरीज कोई भी पेपर लेकर नहीं आते, कोई भी रिकॉर्ड नहीं लाते, यहाँ यह बात उल्टी हो जाती है| हम उनसे जानना चाहते हैं कि आपने क्या इलाज करवाया? उनके पास कोई पेपर नहीं होते| सभी मरीजों को चाहिए कि वे अपने साथ पुराने पेपर जरूर रखें, अगर मरीज पढ़े-लिखे हैं तो यह पेपर को संक्षेप में यह सारा रिकॉर्ड बनाकर रख लें| क्रमबद्ध तरीके से या दिनांक के हिसाब से जमा कर रख लें और कई बार जब मरीज कोई पेपर लेकर नहीं आते तो मैं उनसे कहता हूँ कि कम से कम दवाई का नाम याद रखिए या डॉक्टर ने जब आपको देखा था तो बीमारी का नाम बताया था कि नहीं? कोई डायग्नोसिस बताया था की नहीं? केवल यह कह देने से काम नहीं चलता कि सफेद रंग की गोली थी या पीले रंग की गोली थी| मैं उसे देखकर पहचान तो नहीं पाउँगा, जब तक कि उसका रेपर या शीशी आप लेकर नहीं आओगे । अब तो लोग पढ़े-लिखे रहते हैं तो वह ब्रांड नाम के साथ-साथ उसका जेनेरिक नाम भी याद कर के आते हैं और उनके कंपोजिशन के बारे में भी उन्हें पता होता है| अगर ऐसे मरीज है तो डॉक्टर को बीमारी के बारे में इलाज के बारे में पतालगाने में बहुत मदद मिलती है।

जब हम मरीज के वर्तमान बीमारी के वर्णन सुन लेते हैं तो हम मरीज के पुराने इतिहास के बारे में पूछते हैं| ठीक है, आज की तारीख में आपको यह सब बीमारी है। इसके अलावा पहले आपको कौन-कौन से अन्य रोग हुए, इसको मेडिकल की भाषा में ‘पास्ट हिस्ट्री (Past History)’ कहते हैं। हम उनसे सवाल पूछते हैं कि आपको कोई अन्य बीमारी या कोई पुरानी बीमारी तो नहीं थी? उदाहरण के तौर पर हाई या लो ब्लड प्रेशर तो नहीं था, डायबिटीज या ट्यूबरक्लोसिस तो नहीं था? कोई पुरानी चोट तो नहीं लगी थी या कोई और इलाज तो नहीं करवाया था?

इसके बाद हम उसके पारिवारिक इतिहास पर आते हैं, जिसको मेडिकल की भाषा में Family History बोलते हैं। हम सवाल पूछते हैं कि जैसी बीमारी आपको है या वैसी बीमारी या कोई अन्य रोग आपके परिवार में किसी और को तो नहीं है? क्योंकि बहुत सारी बीमारी अनुवांशिक होती हैं, खानदानी होती है। इस स्थिति में हम उनसे पूछते हैं कि आपके माता-पिता में, चाचा चाची में, या आपके भाई बहन में, आपके बच्चों में से तो किसी को यह बीमारी नहीं है? जब एक बहू अपना इतिहास बताती है तो हम उसके मायके की हिस्ट्री लेने में ज्यादा इच्छुक होते हैं क्योंकि जो जींस है, वह तो उसके माता-पिता से आए हैं ना कि ससुराल की तरफ से।

हम उससे व्यक्तिगत सवाल पूछते हैं कि यह जो व्यक्ति है, उसका स्वभाव कैसा है? उसका व्यक्तित्व कैसा है?उसकी आदतें कैसी हैं?वह खाना क्या खाता है?वेजिटेरियन है या नॉन वेजिटेरियन? प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, पौष्टिक आहार लेता है या नहीं? वह व्यायाम कितना करता है?वह सक्रिय है या नहीं, आलसी किस्म का इंसान तो नहीं है?उसे कोई नशे की आदत तो नहीं है? बीड़ी, तंबाकू, शराब यह सारी चीजें Personal History के अंतर्गत आते हैं।

सोशल हिस्ट्री के अंतर्गत उसकी आर्थिक स्थिति का जायजा लेते हैं। उसका वातावरण कैसा है? घर कैसा है? उसकी हाइजीन कैसी है?

यह सारी चीजें जानने के बाद डॉक्टर और मरीज के बीच में एक रिश्ता स्थापित होता है, जो बहुत ही पवित्र होता है, स्पेशल होता है और ऐसा रिश्ता कहीं नहीं होता। यह रिश्ता दीर्घ अवधि के लिए चलता है, लंबे समय तक चलता है, जीवन भर के लिए चलता है। इसके अंदर मित्रता विकसित होती है, भावनात्मक लगाव विकसित होता है, विश्वास का संबंध पैदा होता है। मरीज और डॉक्टर को एक-दूसरे को पर्याप्त समय देना होता है।

इस तमाम चर्चा में मरीज अपने मन की बात पूरी तरह रखता है, मगर डॉक्टर भी उतना ही हिस्सेदार होता है। उसके मन से भी वैसी ही भावना या संबंध स्थापित होता है। मित्रो! मैं यह कहना चाहूंगा कि आप जब कभी भी डॉक्टर के पास जाएँ तो थोड़ी-सी तैयारी करके जाएँ, थोड़ा-सा मन में सोच कर जाए कि आप कहना क्या चाहते हैं, क्या चीज महत्वपूर्ण है उसे सिलसिलेवार तरतीब से जमा कर ले जाएँ और डॉक्टर जो पूछे उसे ध्यान से सुन कर जवाब दें और इस रिश्ते की इज्जत करें।

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