गूगल अनुवाद करे (विशेष नोट) :-
Skip to main content
 

अफेज़िया क्या हैं


Aphasia – अफेज़िया रोग एक नाम अनेक – नाम एक रोग अनेक

बोली का लकवा, अवाग्मिता, वाचाघात, Paralysis of Speech

बोलना, बातचीत, संवाद, कथोपकथन, सुनना, सुनकर समझना, बातों को याद रखना, बारी बारी से बोलना, टोकना, सोचना फिर कहना – ये सारी क्रियाएं हम इतनी आसानी से करते हैं कि उनकी खासियत, विविधता, अद्वितीयता, जटिलता आदि पर हमारा ध्यान उस समय तक नहीं जाता जब तक किसी बीमारी के कारण हम उन्हें खो न बैठें हों । अफेजिया या बोली का लकवा एक ऐसी ही आम बीमारी है। लकवा या पक्षाघात (पेरेलिसिस) के लाखों मरीजों में लगभग एक चौथाई को वाचाधात (अफेजिया) भी होता है।

बड़ी दुःखदाई अवस्था है। जीना दूभर हो जाता है । व्यक्ति सयाना है, समझदार है, बुद्धिमान है । उसे सब याद है | वह पागल नहीं है, बुद्धू नहीं है । पर लोग ऐसा समझते हैं क्योंकि वह ठीक से बोल नहीं पाता, समझ नहीं पाता । उसे पढ़ने, लिखने, हिसाब करने में दिक्कतें आती हैं ।

अवाग्मिता (अफेजिया) में व्यक्ति, जो अच्छा भला बोलता सुनता-लिखता-पढ़ता था, अपनी भाषागत क्षमता पूरी तरह या आंशिक रूप से खो बैठता है ।

विषय सूचि

यह अफेज़िया हैं पर पहचान में नहीं आता

वाचाघात (अफेज़िया) से पीड़ित कुछ मरीजों में बीमारी के लक्षण अलग अलग तरह के होते हैं, दूसरी अन्य बीमारियों का शक होता हैं। अफेज़िया होते हुए भी निदान नहीं हो पाता।

मरीज बहरा हो गया हैं, ऊँचा सुनता हैं

अफेज़िया के कुछ मरीज बोल तो ठीक-ठाक लेते हैं परन्तु कानों द्वारा सुनी गई बातचीत को दिमाग समझ नहीं पाता। सेंसरी या रिसेप्टिव अफेज़िया। संवेदी वाचाघात। कान अच्छे हैं। कान से दिमाग को जोड़ने वाली नाड़ियाँ अच्छी हैं। परन्तु मस्तिष्क के टेम्पोरल खंड में वर्निकि नामक क्षेत्र क्षतिग्रस्त होने के कारण, सुनी हुई ध्वनियों की कूट भाषा का अर्थ निकालना सम्भव नहीं होता | घर वाले गलती से समझ लेते हैं कि कान खराब हो गये। मरीज बहरा हो गया है।

मरीज की याद्दाश्त कम हो गई है –

वाचाघात के मरीजों को शब्द चुनने और बोलने में परेशानी रहती है | उन्हें मालूम है कि क्या कहना है पर वह लफ्ज़ जुबां पर नहीं आता | कोई और व्यक्ति मदद करे, उत्तर सुझावे तो झट बता देंगे कि यह नहीं, वह शब्द कहना चाह रहा था । स्मृति सामान्य रहती है ।

मरीज पागल हो गया है

बहकी-बहकी बातें करता है। पता नहीं क्या बकता है जो समझ नहीं आता। चिड़चिड़ापन व गुस्सा बढ़ गया है। अफेज़िया के कुछ मरीज धारा प्रवाह रूप में बोलते हैं, बिना अटके, स्वरों के उतार चढ़ाव व सही उच्चारण के साथ बोलते हैं। ऐसा दूर से प्रतीत होता है। पास में, ध्यान से सुनने पर मालुम पड़ता है जो कहा जा रहा है वह गड्ड मड्ड है, समझना मुश्किल है, बेतरतीब है | ये मरीज पागल नहीं है। अफेज़िया के कारण उनकी भाषा बदल गई है।

मरीज बेहोश है।

आँखें तो खुली है पर कुछ ध्यान नहीं । न सुनते हैं, न बोलते हैं। पक्षाघात (स्ट्रोक) में जब गहरा वाचाघात (अफेज़िया) होता है तो बोलना और सुन कर समझना, दोनों खत्म हो जाते हैं| ग्लोबल अफेज़िया | सम्पूर्ण वाचाघात। ये मरीज बेहोश नहीं हैं परन्तु, ऐसा गलती से लगता है।

अफेज़िया के बारे में क्यों जानना चाहियें?

  1. यह एक आम बिमारी हैं जो बहुतायत से पाई जाती हैं | भारत भर में लगभग 50 लाख व्यक्ति Speech and Communication (बातचीत और संवाद) से सम्बंधित किसी न किसी समस्या से पीड़ित होंगे |
    ब्रेन अटैक/लकवा/पेरेलिसिस के बाद, धीरे धीरे ठीक होने वाले मरीजों में से लगभग एक चौथाई(25%) में अफेज़िया रहता हैं |
  2. वाचाघात लम्बे समय तक रहने वाली दुखदायी अवस्था हैं जिसके कारण व्यक्ति और उसके घर वालों की जिन्दगी कठिन हो जाती हैं |
  3. दुर्भाग्य से अपने देश में वाचाघात के बारे में जागरूकता और ज्ञान का अभाव हैं | सही निदान(Diagnosis) और उपचार की सुविधाएं मुश्किल से पांच-दस प्रतिशत लोगों को मिल पाती हैं जबकि वैज्ञानिक सबूतों के  आधार पर सफल उपचार संभव हैं |
  4. वाचाघात से पीड़ित मरीज़ आंशिक सुधार के बाद भले ही पहले जैसे काम न कर पायें लेकिन उनमें से अनेक का पुनर्वास(Rehabilitation) संभव हैं |

परिभाषा

  • अफेज़िया/वाचाघात एक न्यूरोलॉजिकल रोग हैं जो मस्तिष्क/ब्रेन में पेथालाजी के कारण होता हैं |
  • यह अवस्था जन्मजात या बचपन से नहीं होती |
  • अनेक वर्षो तक व्यक्ति की बोली-भाषा-संवाद आदि सामान्य रहे होते हैं | बाद की उम्र में यह रोग होता हैं |
  • वाचाघात/अफेज़िया भाषागत संवाद के एक या अधिक पहलुओं को प्रभावित करता हैं |

वाचाघात का निदान:

सर्वप्रथम हैं हिस्ट्री-इतिवृत्त | मरीज़ व उसके परिजनों से सुनते हैं और पूछते हैं कि यह अवस्था कब से हैं, कैसे शुरू हुई, किन परिस्थितियों में हुई, पहले से कोई पुरानी व्याधि तो नहीं थी | अफेज़िया के लक्षणों पर गौर करते हैं | फिर विस्तृत परिक्षण द्वारा –वाणी-भाषा-संवाद के विभिन्न पहलुओं का आकलन करते हैं | प्रयोगशाला जांचों द्वारा मरीज़ के सामान्य स्वास्थ्य तथा सम्बद्ध रोगों की पड़ताल की जाती हैं | ब्रेन के चित्र, एम.आर.आई. या सी.टी. स्कैन द्वारा प्राप्त करते हैं | शोध की दृष्टी से ई.ई.जी. का ब्रेन मेपिंग, इवेंट रिलेटेड और इवोक्ड पोटेंशियल तथा फंक्शनल न्यूरोइमेजिंग (FMRI तथा PET स्कैन) आदि की भूमिका हैं |

अफेज़िया/वाचाघात के लक्षण

इसकी शुरूआत प्रायः अचानक होती है और शरीर के आधे भाग (दायें हाथ तथा दायें पैर) के लकवे के साथ होती है।

वाकपटुता मे कमी

बोली अटकती है | शब्द याद नहीं आते। धाराप्रवाह वाणी नहीं रह जाती है। तीव्र अवस्था में मरीज लगभग गूंगा या मूक हो जाता है। आ-आ, ओ-ओ, जैसे स्वर-मात्र निकल पाते हैं । मुंडी हिलाकर या हाथ के इशारे से समझाने की, कहने की कोशिश करता है | अर्थवान या निरर्थक इक्का दुक्का शब्द या ध्वनि संकुल के सहारे अपनी बात बताने का प्रयास करता है । उदाहरण के लिये एक मरीज पैसा… पैसा… तथा दूसरा एओ… एओ… शब्द या ध्वनि में उतार -चढ़ाव के द्वारा समझाने की कोशिश करते थे | सामान्य व्यक्ति भी कभी-कभी कहता है- शब्द मेरी जुबान पर आकर अटक गया – टिप ऑफ टंग प्रसंग। अफेजिया में ऐसा हमेशा होता है। सही अलफाज न मिल पाने पर कुछ मरीज घुमा फिरा कर अपनी बात कहते हैं | उदाहरण के लिये तौलिया मांगते समय कहना कि अरे वो…वो… क्या कहते हैं… उसे वह.. कपड़ा.. बदन… पोंछना..।

प्रलाप (उलझी भाषा) संबंधी वाचाघात

उलझी भाषा वाले वाचाघात में रागी लम्बे-लम्बे वाक्‍्यों को बोलता है लेकिन इन वाक्यों में बहुत में बहुत कुछ सार्थक नहीं होता है । रोगी को शब्द-चयन में काफी मुश्किल होती है और वे बिना जाने-समझे स्वयं ऐसे नए शब्दों का निर्माण करते हैं जो उनकी भाषा में विद्यमान नहीं होते हैं | कुछ मरीज एक शब्द के स्थान पर दूसरे शब्द का उपयोग कर बैठते हैं । (परा-शब्द/पेराफेजिया) कहना चाहते थे – मुझे चाय चाहिये – मुंह से निकलता है मेरे .. मेरे… को .. वह… वह… दूध.. नहीं… दूध…।

प्राय: यह पराशब्द, इच्छित शब्द की श्रेणी का होता है। कभी-कभी असम्बद्ध शब्द या अनशब्द (नानवर्ड) भी हो सकता है |,

शब्द चयन में कठिनाई

शब्द चयन के वाचाघात में रोगी अक्सर वस्तुओं के तथा लोगों के नाम भी भूल जाते हैं शब्दों की खोज करते समय कुछ रोगी चुप हो जाते हैं, जबकि कुछ दूसरे या गलत शब्दों का प्रयोग करते हैं । इन अनुपयुक्त शब्दों में कुछ शब्द तो मिले जुले होते हैं | जैसे हाथी की जगह बिल्ली, और कुछ गलत जैसे मेज की जगह मोटर और कुछ अनर्गल जैसे घर की जगह गेमरी । जिन रोगियों को सही शब्द पता है और उन्हें कह नहीं पाते वे शब्द के पहले अक्षर पर ही अटक जाते हैं | कुछ रोगी सही शब्द के अभाव में वस्तु के रूप या इसके उपयोग का वर्णन करके बताते हैं कि वे क्या कहना चाहते हैं। अपनी बोलने संबंधी मुश्किलों को छुपाने के लिये, बातचीत के दौरान ऐसे मरीज अक्सर हंसकर या सिर हिलाकर जता देते हैं कि सब ठीक है और वे सब समझ गए हैं | लेकिन वास्तिवकता में वे कुछ नहीं या थोड़ा सा ही समझते हैं | कुछ रोगी मौन रहकर सिर्फ इशारों में या मुख मुद्राओं में विचार व्यक्त करते हैं | जबकि कुछ रोगी एक या दो शब्दों वाले वाक्य बोलते हैं ।

सुनकर समझने में कमी

ऐसा लगता है कि मानों मरीज ऊंचा सुनने लगा हो | बहरा हो गया हो, लेकिन ऐसा होता नहीं | कान अच्छे हैं, पर दिमाग समझ नही पाता | आप बोलते रहें, समझाते रहें, मरीज अपनी तरफ भाव शून्य सा टुकुर टुकुर ताकता रहता है| या फिर क्या-क्या, या हाँ हाँ कहता है पर समझता कुछ नहीं | रोगियों को अपने आसपास बोली जा रही बातें समझ में नहीं आती। उन्हें लगता है कि लोग सिर्फ आवाज निकाल रहे हैं।

अन्य वाक्‌ विकार

उपर्युक्त के अलावा अन्य विकारों में हैं – लिखने व पढ़ने की मुश्किलें और संख्याओं को जोड़ने-घटाने में कठिनाई। रोगी अक्षरों की वर्तनी को भूल जाते हैं तथा लिखे हुए अक्षरों को उनकी उच्चारण ध्वनि से नहीं जोड़ पाते हैं । इसीलिये रोगी न तो शब्दों व वाक्यों को पढ़- लिख पाते हैं और न ही लिखे वाक्यों का मतलब समझ पात हैं। संख्याएँ समझने और पढ़ने में मुश्किल के कारण ये रोगी छोटे-छोटे जोड़ घटाव भी नहीं कर पाते हैं ।

पढ़कर समझने में कमी

भाषा के चिन्ह चाहे ध्वनियों के रूप में कान से दिमाग में प्रवेश करें या आंखों के रास्ते अक्षरों के रूप में, अन्दर पहुंचने के बाद उनकी व्याख्या करने का स्पीच-सेंटर एक ही होता है। अत: वाचाघात के कुछ मरीजों में आंखों की ज्योति अच्छी होने के बावजूद पढ़ने की क्षमता मे कमी आ जाती है।

लिखकर अभिव्यक्त करने में दिक्कत

उद्गारों की अभिव्यक्ति चाहे मुंह से ध्वनियों के रूप में फूटे या हाथ से चितर कर, उसका स्रोत मस्तिष्क में एक ही होता है । उस स्रोत में खराबी आने से वाचाघात/अफेजिया होता है । इसके मरीज ठीक से लिखना भूल जाते हैं। लिखावट बिगड़ जाती है। मात्राओं की तथा व्याकरण की गलतियाँ होती हैं । लिखने की चाल धीमी हो जाती है | पूरे-पूरे वाक्य नहीं बन पाते ।

कोई भी दो रोगी एक जैसे नहीं होते | इसीलिये उनकी भाषा संबंधी समस्याऐं भी एक जैसी नहीं होती हैं। कुछ को बोलने, समझने, पढ़ने तथा लिखने में थोड़ी बहुत समस्या होती है जबकि कुछ की समस्या बहुत गम्भीर होती है वाचाघात और बुद्धिहीनता में कोई सम्बन्ध नहीं है ।वाचाघात के रोगी भले ही बोल या समझ न सकें । किन्तु उनकी बुद्धिमत्ता में और सोचने की शक्ति में, कोई कमी नहीं होती है। रक्ताघात के बाद उन्हें इस बात की समझ नहीं होती कि उनके चारों ओर क्या हो रहा है, और कौन क्या कर रहा है? क्या उचित है और कया अनुचित ?

अफेज़िया/वाचाघात से सम्बंधित या मिलती जुलती अन्य अवस्थाएं जो भाषा-संवाद को प्रभावित करती हैं:

निम्न अवस्थाओं के क्लिनिकल परिक्षण और उपचार की विधियां एक सीमा तक अफेज़िया/वाचाघात से मिलती जुलती हैं लेकिन बहुत सारे महत्वपूर्ण अंतर भी हैं :–

  1. लेरिंक्स(वाकयन्त्र) रोग के कारण अफोनिया(ध्वनीरोग)
  2. उच्चारण के काम आने वाली मांसपेशियों के संचालन में खराबी के कारण डिसआर्थिया(मोटर न्यूरान रोग, पार्किन्सन, लकवा)
  3. हकलाना, तुतलाना
  4. गूंगापन – जन्मजात Deaf mutism. बाद का बहरापन भी, बोली व उच्चारण पर असर डालता हैं |
  5. मंदबुद्धि बच्चों में भाषा-संवाद की समस्याए
  6. डिस्लेक्सिया-अलेक्सिया-पढ़ने, पढ़कर समझने और लिखने की समस्याएं

अफेज़िया/वाचाघात के प्रमुख कारण तथा मस्तिष्क में पाई जाने वाली खराबियों के प्रकार

अधिकांश मरीजों में यह व्याधि लकवा (पक्षाघात, स्ट्रोक) के रूप से आती है। मस्तिष्क में खून पहुंचाने वाली नलिकाओं (प्राय: धमनियों) में खून जमजाने और रक्तप्रवाह अवरुद्ध होने से, उसका एक हिस्सा काम करना बन्द कर देता है और मर जाता है । कभी-कभी धमनी (आर्टरी) के फट पड़ने से रक्तस्त्राव होता है तथा मिलते जुलते लक्षण पैदा होते हैं ।

स्ट्रोक के अलावा वाचाघात के अन्य कारण हैं –
सिर की गम्भीर चोट, मस्तिष्क में ट्यूमर या गांठ मस्तिष्क में संक्रमण या इन्फेक्शन जैसे कि मेनिन्‍्जाईटिस या एन्सेफेलाईटिस, मस्तिष्क की क्षयकारी बीमारियाँ।

यह एक न्यूरोलॉजिकल अवस्था है जिसमें मस्तिष्क के गोलार्ध मे रोग विकृति के कारण भाषा और वाणी के द्वारा संवाद करने की योग्यता में कमी आती है| मस्तिष्क में आने वाली विकृति कुछ खास हिस्सों में अधिक पाई जाती है , हर कहीं या सब जगह नहीं होती । इसके लिये बायें गोलार्ध के फ्रान्टल खण्ड में ब्रोका-क्षेत्र और टेम्पोरल खण्ड में वर्निकी क्षेत्र अधिक जिम्मेदार होते हैं। इन्हें वाणी केन्द्र (स्पीच सेन्टर) कहा जाता है । इन इलाकों में किसी भी किस्म की व्याधि अफेजिया (वाचाघात) पैदा कर सकती है।

अफेज़िया/वाचाघात के मरीज़ ठीक कैसे होते हैं ?

समय के साथ अधिकांश मरीज धीरे-धीरे अपने आप ठीक होते हैं | कोई कम तो कोई ज्यादा | यह इस बात पर निर्भर नहीं करता कि कौन से डॉक्टर का क्या इलाज लिया। बल्कि निम्न दो बातों पर निर्भर करता है जिनमें से एक-एक पर अपना कोई बस नहीं परन्तु दूसरी पर है-1. मस्तिष्क में नुकसान का आकार कितना बड़ा है। 2. सही स्पीच थेरेपी/वाणी चिकित्सा का अभ्यास कितनी मेहनत से कितने समय तक किया गया ।

दिमाग के वे हिस्से जो ब्रेन अटैक में मर गये हैं, पुनः जिन्दा नहीं होंगे | फिर भी लगभग सभी मरीजों में सुधार होता हैं | यह कैसे संभव हैं ? मस्तिष्क के अन्य खण्ड जहां नुकसान नहीं पहुंचा हैं, रोगग्रस्त अंश द्वारा कण्ट्रोल किये जाने वाले कामों की जिम्मेदारी धीरे धीरे अपने ऊपर ले लेते हैं | यह एक प्राकृतिक क्रिया हैं | इस कार्य को बढ़ावा देने में औषधियों की कोई भूमिका नहीं |

अफेज़िया/वाचाघात अटैक के आरंभिक 3 घंटों में यदि उसे पहचान लिया जावे तो इमरजेंसी उपचार संभव हैं  | ब्रेन अटैक/लकवा के चेतावनी चिन्हों में

  • अटकती बोली
  • बोलकर अपनी बात ठीक से न कह पाना
  • सुनकर समझने में दिक्कत
  • अचानक पढ़ न पाना(काला अक्षर भैस बराबर हो जाना)

आदि को जानना और पहचानना जरुरी हैं ताकि ब्रेन में क्लॉट को घोल देने वाला इंजेक्शन तुरंत लगाया जा सके (बशर्ते कि सिर के सी.टी. स्कैन पर गौर कर लिया गया हो

<< सम्बंधित लेख >>

Skyscrapers
Rehabilitation for Person with Aphasia (PWA)

CHALLENGES IN APHASIA REHABILITATION (1) TREATMENT GAP a)  Awareness and education b)  Lack of Conviction and patience for efficacy of…

विस्तार में पढ़िए
Skyscrapers
Aphasia (अफेज़िया, बोली का लकवा)

Introduction (Some text should be here) Important Contetns for Neurologists and Speech Language Therapist/Speech Language Pathologist 1. HASIT(Assessment) 2. HABIT(Assessment)…

विस्तार में पढ़िए
Skyscrapers
आधी दुनिया गायब

द्वारका प्रसाद जी को 73 वर्ष की उम्र में दिल का दौरा पड़ा था । एन्जियोप्लास्टी या बायपास की जरुरत…

विस्तार में पढ़िए
Skyscrapers
ब्रोशर्स

यहाँ विभिन्न बीमारियों से सम्बंधित ब्रोशर्स उपलब्ध कराए गए हैं | हमारा प्रयास हैं, न्यूरोलॉजिकल बिमारियों के बारे में ज्यादा…

विस्तार में पढ़िए


अतिथि लेखकों का स्वागत हैं Guest authors are welcome

न्यूरो ज्ञान वेबसाइट पर कलेवर की विविधता और सम्रद्धि को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अतिथि लेखकों का स्वागत हैं | कृपया इस वेबसाईट की प्रकृति और दायरे के अनुरूप अपने मौलिक एवं अप्रकाशित लेख लिख भेजिए, जो कि इन्टरनेट या अन्य स्त्रोतों से नक़ल न किये गए हो | अधिक जानकारी के लिये यहाँ क्लिक करें

Subscribe
Notify of
guest
0 टिप्पणीयां
Inline Feedbacks
सभी टिप्पणियां देखें
0
आपकी टिपण्णी/विचार जानकर हमें ख़ुशी होगी, कृपया कमेंट जरुर करें !x
()
x
न्यूरो ज्ञान

क्या आप न्यूरो ज्ञान को मोबाइल एप के रूप में इंस्टाल करना चाहते है?

क्या आप न्यूरो ज्ञान को डेस्कटॉप एप्लीकेशन के रूप में इनस्टॉल करना चाहते हैं?