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बायोप्सी


बायोप्सी का मतलब होता है शरीर अंग का एक टुकड़ा निकालकर हिस्टोपैथोलॉजी के लिए माइक्रोस्कोप के अंदर रख कर देखना। आप लोगों ने ट्यूमर की बायोप्सी के बारे में सुना होगा कि कहीं गांठ हो गई, ब्रेस्ट में कैंसर हो गया, उसकी उसका गाँठ निकाल, जांच के लिए भेजी। गांठ कैंसर वाली है कि बिना कैंसर वाली है, इसको बायोप्सी बोलते हैं।

बायोप्सी में शरीर के उत्तक का, उस टिश्यु का एक हिस्सा निकाल​​कर उसके बारीक-बारीक सेक्शंस काटते हैं और उसको कांच की स्लाइड पर रखते हैं। उन बारीक-बारीक परतों को विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थों से रंगते हैं और फिर माइक्रोस्कोप में रखकर देखते हैं कि वह टिश्यु, उसकी कोशिकाएं माइक्रोस्कोप के अंदर कैसी दिख रही है, इसको बायोप्सी बोलते हैं। तो न्यूरोलॉजिकल बीमारियों की जांच में भी बायोप्सी की भूमिका होती है। यदि ब्रेन ट्यूमर है, सर्जन ने ट्युमर निकाला तो वह भी जांच के लिए भेजेगा। यदि नाडीयो में खराबी है, नर्व का एक टुकड़ा निकाल कर जांच के लिए भेज दिया, उसको माइक्रोस्कोप में रख कर देखेंगे। बारिक-बारिक सेक्शंस को काटकर कांच के ऊपर रखकर उस पर तरह-तरह के रासायनिक पदार्थ डालते हैं, रंगते है, उसके लिए अंग्रेजी में शब्द है ‘स्टेनिंग’। तो उस टिश्यु को स्टेन करते हैं। स्टेन करने के बाद उसमें जो खराबीया है या जो रचना है, वह बहुत विस्तार से दिखाई पड़ती है। मांस पेशी में बीमारी है, तो मांस पेशी का एक टुकड़ा बायोप्सी के लिए निकाल कर उसको जांच के लिए भेजते हैं। तो यह भी न्यूरोलॉजिकल जांच का एक हिस्सा है, जिसे हम बायोप्सी बोलते हैं। बायोप्सी नाड़ियों की हो सकती है, नर्व्स की हो सकती है, मांस पेशियों की हो सकती है, मसल्स की हो सकती है, या ब्रेन मे कोई ट्यूमर निकला या गांठ निकला है, रीड की हड्डी में कोई ट्यूमर निकला है, गांठ निकला है उसकी हो सकती है।
टेक्नोलॉजी के सतत विकास होते रहने से आने वाले वर्षों में और भी जाते होने लगेगी, कुछ जाचे शुरू में महंगी होगी, समय के साथ सस्ती होंगी। शुरू में उनका उपयोग कैसे करें, इस बारे में लोगों का ज्ञान कम होगा। शुरू में प्रतिरोध होगा, रजिस्टेंस होगा, बाद में एक्सेप्टेंस आएगा, लोक स्वीकार करते चले जाएंगे, यह एक अनवरत प्रक्रिया है, शश्वत प्रक्रिया है जो मानव जाति के साथ होती रहती है।

जब भी कोई विधा, नया विज्ञान आता है तो हमारे समाज का एक तबका है, जो उसको बहुत जल्दी स्वीकार करता है, और एक तबका है जो उसे देर से स्विकार करता है, यह मानव स्वभाव है। उसी तरह से आने वाले वर्षों में मैं कह सकता हूं कि और भी जांचे निकलेगी जो बेहतर होंगी, इलाज को बेहतर करेंगी। कुछ लोग प्रतिरोध करेंगे, बोलेंगे कि पहले तो यह जांचे होती ही नहीं थी, फिर भी इलाज होता था। क्यों इलाज इतना महंगा होता चला जा रहा है , लेकिन अंततः उससे मानव जाति का ही भला होगा। यही मेरी उम्मीद है।

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