यथू होस्टल की मेरी सदस्यता सक्रिय तो नहीं कही जा सकती । सच तो यह है कि प्रस्तावित विदेश यात्रा में सुविधा की दृष्टि से मैंने आजीवन सदस्यता लेने का निर्णय लिया था। यूथ होस्टल आन्दोलन के उद्देश्यों और कार्यकलापों से थोडा परिचय था, इन्दौर शाखा पदाधिकारियों को एक बैठक में सुना था । कुल मिलाकर मन में संस्था की अच्छी छवि थी ।
1996 सितम्बर माह में चीन जाते समय दो दिन हांगकांग रूकने की योजना बनाई । जैसे तैसे पहचान या सम्फ ढूंढ कर किन्हीं भारतीय परिवार में मान न मान मैं तेरा मेहमान के प्रयत्न सफल न हो पाये । सोचा यूथ होस्टल में किस्मत आजमाएंगे । होटल का खर्चा करने की मानसिकता न थी । दक्षिण चीन सागर में ऊपर से गुजरते समय जब मुख्य भूमि आने वाली होती है तब अनेक उबड-खाबड द्वीप उभरने लगते हैं, छोटे-बडे चट्टानी पहाडी, हरे भरे, पानी में छितरे हुए और फिर चीन की दक्षिणी मुख्य भूमि, गझोले पहाड, कटा फटा किनारा, अनेक खाडयां व नदियां के गुहाने, उन्हीं में से एक कोने में जगमगाता हुए नगीना है, हांगकांग ।
हवाई अड्डे पर आगन्तुक यात्रियों के लिये नगर में कहीं भी स्थानीय फोन मुफ्त करने की सुविधा थी । मुस्कान युक्त विनम्र व दक्ष कर्मचारी उपस्थित थे । पर्यटन सूचना केन्द्र व आवास व्यवस्था मदद केन्द्र, ढेर सारी मुद्रित पुस्तिकाएं, नक्शे, ब्रोशर्स या तो मुफ्त या अत्यंत अल्प दामों पर उपलब्ध थे । धैर्यपूवक मेरे बचकाने या झुंझला देने वाले प्रश्नों का उत्तर देते रहे, कितने होस्टल हैं ? कौन सा अच्छा है ? कितनी दूर है ? आवगमन के क्या साधन हैं ? घूमने फिरने वालों के लिये कौन सा अच्छा है ? शापिग के लिये कौन सा अच्छा है ? टेक्सी का कितना किराया होगा ?
कुछ तो भी सोच समझ का तय किया कि माउण्ट डेबिस यूथ होस्टल में ठहरूंगा । फोन लगाया तो उस छोर से एक स्त्री ने बताया कि स्थान खाली है और मैं टेक्सी में आ सकता हूं । सार्वजनिक परिवाहन लम्बा व दूभर पडता क्योंकि मेरे पास सामान था । टेक्सी वाले ने काफी भटकाया । मीटर में किराया बढता गया । यूथ होस्टल कभी प्रसिद्ध नहीं होते । प्रायः लीक से हटकर दूरस्थ स्थानों पर बसे होते हैं । चीनी टेक्सी चालक अंग्रेजी नहीं जानता था या शायद ऐसा दर्शाता था । लोगों से रास्ता पूछने का रिवाज नहीं, भाषा भी मुश्किल, जिनसे पूछ वे अनभिज्ञ, जैसे तैसे मार्ग मिला, पहाडी मार्ग पर छोटा सा बोर्ड लगा था यूथ होस्टल के चिन्ह का, बाद में समझ आया कि यूथ होस्टल सुविधा सम्पन्न सैलानियों या व्यापारियों के लिये नहीं होते । जिन्हें जाना होता है वे अपनी पीठ पर बैग बांधे पैदल चल कर खुद नक्शा देख कर अपनी राह स्वयं ढूंढना जानते हैं ।
यूं तो पांच सितारा होटल की लोकेशन प्रायः सोच समझ कर तय की जाती है जहां से अच्छा दृश्य व्यू देखने को मिले । लेकिन यूथ होस्टल की लोकेशन की बात ही निराली है जिसमें घूमने का व ट्रेकिंग का माद्दा हो वे ही वहां पहुंचने की तोहमत खुशी-खुशी उठाते हैं, और बदले में मिलता है सस्ता, साफ, सुन्दर, मित्रवत परिसर जो धुमन्तु की भूख जगाता भी है और उसे शांत करने के उपाय भी जुटाता है ।
माउण्ट डेबिस हांगकांग का सबसे ऊंचा स्थल है – शिखर से थोडा ही नीचे हांगकांग हार्बर व भूमि की दिशा में ढलान पर यूथ होस्टल की छोटी शुभ इमारतें हैं स्वागत कक्ष में फेदिना ने अभिवादन किया, वही युवती जिससे फोन पर बात की थी । गौर वर्ण, छरहरी, ब्रिटिश मूल की फेदीना ने झटपट फार्म भरवाया नियम कायदे बताए । गुनगुनी धूप थी, ठण्डी नम हवा बह रही थी । पुरुषों व स्त्रियों की डार्मिटरी या शयनकक्ष अलग-अलग आमने सामने थे । बीच में खुला पक्का बैठने का स्थान व आगे लान। अनेक कुर्सियां व टेबलें लगी हुई थी । 10 वर्ष से 70 वर्ष की उम्र तक के यात्रियों की चहल पहल से कैम्पस भरा हुआ था । आगन्तुक कक्ष में फोन था, अखबार थे, नक्शे लगे थे, जानकारियों का सबसे बडा खजाना था । यूथा होस्टल के कर्ताधर्ता स्वयंसेवक किस्म के कर्मचारी । फेदिना के अलावा दो और थे । तीनों मिलकर पूरा लावजमा भली-भांति सम्हाल लेते थे । खूब बातें करते, अच्छे आईडिया बताते, आम यात्रियों की लीक से हटकर पूछने वालें भी अलग किस्म के, उनकी जरूरतें पांच सितारा होटल के टुरिस्ट गाईड पूरी न कर पाते ।
हांगकांग के उत्तरी क्षेत्रों में समुद्री बीच कहां है ? क्या किन्हीं द्वीपों पर फलां-फलां चिडयाएं इस मौसम में देखी जा सकती हैं ? किसी विशिष्ट जाति के पौधे के फूलने का मौसम आ गया है, उसे कहां ढूंढा जा सकता है ? तीन दिन की पैदल ट्रकिंग में कौन सा दुर्गम भाग घूमा जा सकता है ? यूथ होस्टल के केयर टेकर के अलावा सहयोगियों से जब दोस्ती विकसित होने लगती है तो जानकारियों का पिटारा खुलता जाता है – मालूम पडा कि कनाडा के एक महाशय दस दिन से पडाव डाले हुए हैं और चप्पा-चप्पा घूम चुके हैं ।
आरम्भ में माहौल देखकर थोडा ठिठका था, अनेक पुरुषों के बाल बढे हुए थे या चोटी गुंथी थी कान में एक या दोनों तरफ बालियां पहनी हुई थी । शरीर पर जगह-जगह रंग बिरंगे गोदने गुदे हुए थे, कुछ लोग बाहर खुले में धुम्रपान कर रहे थे । हालांकि अंदर आना मना है, मदिरा पान पर पूर्ण पाबंदी है । धीरे-धीरे समझ आया कि लोग भले हैं, हम अपने मन में पूर्व धारणाएं लोगो के बारे में एक जैसा सोचने लगते हैं । चेहरा झूठा, दिल सच्चा वाली बात अधिक मौजूद है ।
यूथ होस्टल के सदस्यों की पर्यटन के प्रति दीवानगी की बानगियां देखने को मिलीं । कहां कहां से न आये थे । एक अधेड स्पेनिश महिला टूटी-फूटी अंग्रेजी में उत्तेजित होकर कहने लगी मैं आज तक किसी भारतीय से नहीं मिली । सदस्यों के पास मोटी-मोटी टुरिस्ट गाईड बुक थी, एटलस थे, कुछ लोग रोज रात नियम से डायरी लिखते थे । अनेक सदस्य फोटोग्राफी में निपुण थे, उच्च कोटी के जटिल कैमरे साथ लिये घूमते थे । गपशप के अनेक मौके मिलते थे बहुत से सैलानी साधन सम्पन्न थे पर यूथ होस्टल के माहौल की खातिर यहां ठहरना पसन्द करते थे । परिवार कक्ष दो-तीन ही थे जो पहले से आरक्षित रहते । प्रायः पति-पत्नी या स्त्री-पुरुष मित्रों को रात्री में अलग-अलग शयनकक्ष में सोना पडता । अन्दर आना मना था । अनुशासन का स्वैच्छिक पालन कडाई से होता ।
डार्मिटरी में एक के ऊपर एक दो बिस्तर होते, कम्बल तकिया चादर किराये पर मिलते । किचन सबके लिये सांझा था । चार-पांच गैस के चूल्हे थे, बर्तन थे, क्राकरी थी । पूर्व यात्रियों द्वारा छोडा गया सामान सार्वजनिक सम्पत्ति होता । फ्रिज में उसका स्थान अलग, होस्टल के स्वागत कक्ष में कुछ खाद्यपदार्थ खरीदे जा सकते थे । अधिक विविधता चाहिये तो पहाडी से उतर कर बाजार से लाना पडता । दूध, मक्खन, नूडल्स, सूप, ब्रेड, चांवल आदि पकाकर पेट भरा जाता, बरतन स्वयं साफ करके रखना होते । लोगों की भिन्न-भिन्न खाद्य आदतें देखने में मजा आता, परन्तु सबसे नायाब या अजूबे तो हम शाकाहारी हिन्दुस्तानी लगते हैं । बाकी दुनिया में हमारे जैसी आदतें आश्चर्यजनक प्रतीत होती हैं ।
पूरी परिसर की सफाई का जिम्मा रहवासियों में बांट दिया जाता । मेरी पहली सुबह वहां के प्रभारी ने अनुरोध किया ‘क्या आप पुरुषों के टायलेट तक जाने वाली सीढयों व बालकनी की सफाई कर देंगे’ यह अनुरोध एक आदेश ही था, मुझे अच्छा लगा। लम्बी झाडू पेकर लगभग आधे घण्टे तक सफाई करता रहा, सब लोग यही कर रहे थे । होस्टल को आर्थिक दृष्टि से स्वासलम्बी बनाने में मदद मिलती है । सदस्यों के मन में संस्था के प्रति कुछ करने का भाव जागता है, अपनत्व महसूस होता है, विनम्रता व वर्गविहीनता को बढावा मिलता है ।
एक सुबह उठ कर माउण्ट डेबिस का शिखर व शेष भाग को घूमने गया था, सुनसान था, जंगली घांस व झाडयां थी, कुछ पुराने खण्डर थे । ब्रिटिश सेना की पुरानी बैराक्स यहां थी, द्वितीय विश्वयुद्ध में यह एक महत्वपूर्ण सैनिक ठिकाना था । एक टावर था शायद दूर संचार से सम्बद्ध, एक निषिद्ध क्षेत्र था जहां नाभिकीय ऊर्जा विभाग के बोर्ड लगे थे । दो-तीन बूढे या अधेड चीनी मूल के लोग अकेले खडे या व्यायाम करते दिखे । घूरते रहे थोडा डर सा लगा, शिखर के दूसरी ओर हांगकांग के अन्य भाग अन्य द्वीप या खाडयां दिखे
होस्टल की एक शटल बस सर्विस थी जो ठीक समय से नीचे शहर मे मुख्य यातायात केन्द्र तक आती जाती थी । एक दिन देर शाम की अन्तिम वापसी शटल बस की प्रतिक्षा में शहर वाले स्टाप पर बैठा था । एक-एक करके अन्य होस्टल वासी जुडते गये , गपशप चल पडी, फेदिना बताने लगी कि हांगकांग के मुख्य चीन में मिलने के बाद भविष्य को लेकर वहां के नागरिक चिंतित जरूर हैं, परन्तु बहुत अधिक नहीं, खुद उसने चीनी भाषा सीखनी आरंभ कर दी थी । मैंने पूछा कि ‘क्या चीन में यूथ होस्टल की शाखाएं हैं ?’ जैसी की आशंका थी यूथ होस्टल जैसी पश्चिमी उद्गम वाली संस्था चीन के बांस पर्दा (बेस्बू कर्टन) के पार नही पहुंची थी । शायद बीजिग में पहला यूथ होस्टल खुलने वाला था ।
रात के खाने के बाद खुले में पहाडी लान के किनारे कुर्सियों पर बैठ कर हांगकांग हार्बर को देर तक निहारता रहा । दूर तक जगमगाता हुआ हांगकांग तुलनात्मक रूप से शान्त था । प्रकाश था पर ध्वनि दूर थी अतः अप्राप्य शहर के शोर की जगह थी बहती गुनगुनी हवा । सरसराते पत्ते, झींगुरों का कलरव, कोई जहाज का मद्दिम इंजिन, कोई विमान का हल्का गुंजन । इस मनोहारी दृश्य में अनेक चीजें थी जिनके विस्तार में जाया जा सकता था । ढेर सारे बिन्दु, ढेर सारे लैण्डमार्क, समय गुजारना अत्यंत आसान। पानी पर स्थित ठहरे लंगर डाले जगमगाते जहाज और उनके प्रतिबिम्ब एक अनूठे सौन्दर्यलोक की सृष्टि कर रहे थे । यदाकदा कोई भोंपू बज उठता, बडी देर में कोई जहाज या नौका पता नहीं क्यों इतनी देर रात एकाकी पर में कहीं से कहीं की दिशा में आती या जाती दिख पड जाती । मन सोचने लगता – कौन है जो इस बेला में गहरे काले रंग के इस संसार में किस प्रयोजन से गतिमान है और ठहराव के उस सौन्दर्य को नहीं चखना चाह रहा जिसे मैं देर से पिये जा रहा हूँ । प्रायः रुक-रुक कर होने वाली बारिश से भीग चुकी घांस, वनस्पति और मिट्टी की सोंधी गन्ध हवा में व्याप्त थी । लम्बे अन्तराल से कभी कोई अकेला पक्षी चीख उठता था या कोई जोडा आपस में जुगल बन्दी नुमा संवाद करने लगता।
यूथ होस्टल के बाहर दो बडी वेन से ध्यान विचलित हुआ । जापानी पर्यटकों का एक समूह घूम कर लौटा था । युवक और युवतियों का चहलभरा विनोद मन को गुदगुदाता रहा, भाषा जानना जरूरी नहीं । हावभाव, गतियां मुद्राएं, स्वरों के उतार चढाव कितना कुछ कह जाते हैं । तमाम सांस्कृतिक, भाषाई, धार्मिक, राजनैतिक और नस्लीय भिन्नताओं के बावजूद मनुष्य की समानताएं मुझे अधिक आकर्षक, रोमांचक और मनोहारी लगती हैं । इस युवा समूह के पास जाकर मैंने परिचय बनाने की कोशिश की, वे लोग बाहर खुले में पहले से निर्मित बार्बे क्यू अंगीठीयों को सुलगा कर कबाब सेकना शुरु कर चुके थे, मुझे उनकी राष्ट्रीयता का ज्ञान न था, अपने लिये चीनी जापानी सब एक जैसे । मैंने पूछ ‘क्या आप चीनी हैं ?’ वे अजीब सी हंसी हंसे, फिर सफाई दी, बाद में कहीं पढते हुए जाना कि दोनों के मध्य गहन प्रतिद्वन्तिता और घृणा की भावना है । शायद अपने और पाकिस्तान के बीच पाई जाने वाली भावना से अधिक । उनके ग्रुप का फोटो खींचते समय एक स्टूल से मैं गिर गया । हल्की खरोंच लगी । कैमरे की फ्लेशगन को नुकसान पहुंचा, सब दौडे-दौडे आये । देर तक मुझे सहलाते रहे, कुशल क्षेम पूछते रहे ।
खाने पीने के बाद दो सदस्यों ने गिटार और वायलिन बजाना शुरु किया । बहुत देर हो चुकी थी, लगभग सभी लोग सोने चले गये थे, एक के बाद एक धुने बदलती रहीं, संगीत मीठा था, गीतों के स्वर मधुर थे । हवा और संगीत और स्वर बहते रहे, मुझे लगा कि मैं अन्तिम श्रोता हूँ । दोनों वादक और गायक स्वान्तः सुखाय गाते रहे, एक बहुत ही सुरीली और झुमा देने वाली कम्पोजीशन की समाप्ति पर ऊपर की खिडकी से किसी ने झांका व तालियां बजाकर सराहा तथा दाद दी । वह फेदीना थी , वे ध्वनियां, वे दृश्य, वे खुशबुएं मेरे जेहन में सदा के लिये बस गये हैं ।