“आप अपनी पहचान शरीर की छाया से नहीं करते न प्रतिबिम्ब से और न स्वप्न में देखे गये शरीर से इसी तरह आप को अपनी पहचान इस जीवित शरीर नहीं करना चाहिये |”
शंकराचार्य
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