माइग्रेन की बीमारी का निदान मरीज से हिस्ट्री सुनकर होता है। शारीरिक जांच जिसमें की हम मरीज को आँखों को देखते हैं, जीभ देखते हैं, नाड़ी देखते हैं, ब्लड प्रेशर नापते हैं, आँख का पर्दा फंडस से देखते हैं, शरीर में टेंडन हेमर से ठोक बजाकर देखते हैं वो जांच करते जरुर है, लेकिन उस जांच को करने से यह फैसला लेने में कोई मदद नहीं मिलती कि माइग्रेन है या नहीं। वो जांच तो इसलिये की जाती है कि कहीं कोई अन्य खराबी तो नहीं है। तो माइग्रेन का निदान केवल हिस्ट्री सुनकर होता है।
शरीर को ठोंक बजाकर देखने से निदान नहीं होता। और जाँच वगैरह कराने की सी.टी. स्केन, एम.आर.आई., ब्लड टेस्ट की भी कोई आवश्यकता नहीं होती। एक बार जब माइग्रेन का निदान हो गया, डायग्नोसिस हो गई। डॉक्टर ने फैसला कर लिया की इस व्यक्ति को माइग्रेन है तब सवाल उठता है उसके इलाज का, उपचार का। इस उपचार में हम दो बातों की चर्चा करते हैं। और एक तो होता है तात्कालिक उपचार, एक्युट उपचार, लघु अवधि का उपचार जिस समय तेज सिरदर्द हो रहा है उस समय मरीज को जल्दी से जल्दी हेडएक से आराम मिले ये वाला उपचार। और एक होता है। दीर्घकालिक उपचार, लंबी अवधि का उपचार जो इस बात के लिये दिया जाता है कि मरीज को बार-बार सिरदर्द माइग्रेन का अटैक आने की प्रवृत्ति है उस पर रोक लगे, उस पर ब्रेक लगे, वो कम हो जाए। तो दो तरह के इलाज हुए। जो तात्कालिक उपचार होता है जब मरीज आया पीड़ा में तड़पता हुआ और उसको आराम चाहिये। उस तरह के उपचार में हम अनेक प्रकार की दवाईयां देते हैं। उसमें से कुछ दवाईयां मुँह से दी जा सकती है। कुछ दवाई इन्जैक्शन के रुप में दे सकते है। कुछ दवाई नाक से सूंघ कर दे सकते हैं। कोई गोली मुंह में चूसने की होती है। अनेक प्रकार की औषधियां होती है। जिसमें पैरासिटामॉल है, नॉन-स्टेराईडल एन्टी इन्फ्लेमेटरी ड्रग्स हैं। एन्सेड जैसे कि डिक्लोफिनेक, आइबुप्रोफेन या किटोरेलेक, या फिर अर्बुटामिन जाति की दवाईयां हैं, या फिर ट्रिप्टान जाति की दवाईयां है। ये सब सिरदर्द को तात्कालिक रूप से कंट्रोल करने में काम आती हैं।
मेटकोप्रोमॉइड नाम की औषधि है जो उल्टी रोकने में और सिरदर्द को कम करने में मदद करती है। अरगुटामिन है। इनको कभी एक बार देना पड़ता है। कभी कुछ घंटों बाद दोबारा देना पड़ता है। दो या तीन डोज देना पड़ते हैं। और जो हेडएक का अटैक आया है जो कुछ घंटों तक चलने वाला है उसको इन औषधियों के द्वारा कंट्रोल किया जा सकता है। ये तो हुआ हेडएक जो कि डॉक्टर के पास इमरजेंसी में मरीज को भागना पड़ता है। क्योंकि जैसा कि मैंने कहा माइग्रेन का दर्द असहनीय होता है। |
और व्यक्ति को ऐसा लगता है। कि बस किसी तरह से मेरे को इलाज मिल जाये इस सिरदर्द से। और डॉक्टर को अनेक प्रकार की औषधियां उस समय तात्कालिक रुप से देना पड़ती है। लेकिन ऐसा आप कितनी बार करेंगे? आपको हर हफ्ते हेडएक होता है? हर तीन दिन में हेडएक होता है? हर तीन दिन में बार-बार, बार-बार ये ही दर्द मिटाने की गोलियां खाना तो कोई अच्छी बात नहीं है। सारी दवाईयों के साइड इफेक्ट होते हैं। दुष्प्रभाव होते हैं। धीरे-धीरे उनका असर कम होने लगता है। और माइग्रेन में तो खास तौर । यदि माइग्रेन के मरीज को जल्दी-जल्दी-जल्दी अटैक आ रहें हैं सिरदर्द के और वो हर बार, हर बार कोई न कोई दर्द मिटाने की तात्कालिक गोली खाता है तो देखना कुछ ही सप्ताहों के बाद उसका हेडएक और जल्दी-जल्दी होने लगेगा, और ज्यादा जोर से होने लगेगा। उसको और ज्यादा-ज्यादा हाईडोज देने लगेगा। और फिर एक स्थिति ऐसी आती है। उसको डेली हेडऐक हो सकता है। और वो रोज पेनकिलर खाता है। बड़ी खतरनाक स्थिति है। खतरनाक ऐसी तो नहीं कि जान का खतरा है। लेकिन इसलिये की व्यक्ति का जीवन खराब हो जाता है। प्रतिदिन पेनकिलर खा रहा है तो कई प्रकार के साइड इफेक्ट हो रहे हैं, पेट में एसीडिटी हो रही है। इस हालत से बचना चाहिये। अगर माइग्रेन का मरीज जिसे कई बरसों का पुराना माइग्रेन है, कई सालों से हो रहा था, आजकल जल्दी-जल्दी होने लग गया। और यदि वो देखता है उसके घर वाले देखते हैं अरे! पिछले कुछ महीने से मैं देख रहा हूँ, आपके द्वारा पेनकिलर ली जाने वाली गोलियों की मात्रा बढ़ती जा रही है। पहले तो हम दस गोली का एक पत्ता लाते थे छः महीने तक चलता था
आजकल तो तुम एक महीने में ही खत्म कर देते हो। पन्द्रह दिन में ही खत्म कर देते हो। इतनी सारी गोलियां खाते हो। ये खतरे की घंटी है। ऐसे मरीज को जरुर डॉक्टर के पास जाना चाहिये। और उसे ऐसा इलाज कि ये दर्द मिटाने वाली गोलियां रोकी जाएं और वो वाला उपचार किया जाए जो दर्द को बार-बार आने से रोकता है। दोनों इलाज अलग है। जिस समय दर्द हो रहा है, उस समय आराम पड़ जाए। वो अलग जात की गोलियां है। भविष्य में बार-बार दर्द न हो उसकी मात्रा कम हो जाए उसको रोकने की दवाईया अलग जात की हैं। ये जो रोकने वाली दवाईयां है इनको अगर आप तेज दर्द के टाइम लोगे तो कोई असर नहीं। क्योंकि वो दर्दनिवारक थोड़ी ना है। वो तो रोकथाम करने वाली है। तो मरीजों को हम ये सलाह देते हैं। कि आप दर्द मिटाने वाली गोली कम खाओ और रोकथाम वाली गोली ज्यादा खाओ। तो माइग्रेन के वे तमाम मरीज जिनको जल्दी-जल्दी हेडएक होने लग गया। हफ्ते में एक बार होने लग गया।
और हेडएक भी बड़ा जोर का होता है माइग्रेन कि उस दिन यो दिन उनका बरबाद हो जाता है, कुछ कर नहीं पाते हैं। ऐसे मरीजों को हम कहते हैं बस बहुत हो गया अब बार-बार पेनकिलर मत लेना। अब तो हम तुमको नया कोर्स चालू करेंगे। जो तीन महीना, चार महीना, पांच महीना, छः महीना, रोज खाना है। चाहे हेडएक हो रहा हो या नहीं हो रहा हो रोज खाना है। ताकि हम इस पर रोक लगा सके। और इस जो सेकंड जाति का इलाज है रोकथाम वाला इसमें भी अनेक प्रकार की औषधियां अलग है। कई नयी औषधियां विकसित हो रही है। इसके अंतर्गत प्रोप्रेनोलॉल आती हैं, ऐमीट्रिप्टोलिन आती है, टोपाइराभेट आती है, डायवेलग्रोएक्स सोडियम, वेरापामिल, बहुत सारी नाना प्रकार की दवाईयां हैं जिनको धीरे-धीरे डोज बढ़ाते हैं। और लंबी अवधि तक देते हैं और अधिकांश लोगों में इनके अच्छे परिणाम देखने को मिलते हैं। और धीरे-धीरे दर्द इनका कम हो जाता है। और बार-बार, बार-बार दर्द मिटाने की गोलियां खाने की जो उनकी आदत पड़ गई थी उससे छुटकारा मिल जाता है। ये एक सायधानी तमाम मरीजों को रखना चाहिये। इसके बाद भी कुछ मरीज होते हैं। जिनमें तमाम उपचार के बाद भी सिरदर्द ठीक नहीं होता। सौभाग्य से ऐसे मरीजों की संख्या बहुत कम होती है ५ या १० प्रतिशत। इन लोगों में कुछ नई चीजें निकली है। उदाहरण के लिये बोटुलिनियम टॉक्सिन नाम का एक इन्जेक्शन आता है, बोटोक्स। बादुलिनियम टॉक्सिन उसके इन्जेक्शन खोपड़ी के बाहर की मांसपेशियों में लगाते हैं। उससे कुछ लोगों को लाभ होता है। और भी कुछ नये उपचार कठिन रोगियों के लिये निकलें हैं और रिसर्च हो रही है। और शोच हो रही है। तो ये चर्चा हुई माइग्रेन पे। आज के इस अंक में अंत में मैं कुछ मिनिट बताना चाहूँगा। माइड्रोन से जुड़ी हुई उससे कुछ हद तक मिलती-जुलती एक और प्रकार का सिरदर्द जो कि क्रोनिक होता है, दीर्घ अवधि का होता है माइग्रेन के समान, और उसका नाम है टेंशन टाइप हेडएफ। टेंशन टाइप हेडएक भी माइग्रेन जैसा ही कॉमन है, बहुव्याप्त है, हजारों-लाखों लोगों में होता है। लेकिन माइग्रेन की तुलना में टेंशन टाइप हेडएक की तीव्रता कम होती है।
टेंशन टाइप हेडएक भी युवावस्था में और प्रौढावस्था में होता है। वही उम्र है जो माइग्रेन की उम्र है। टेंशन टाइप हेडएक में और माइग्रेन में क्या अंतर है? माइग्रेन की सिरदर्द प्रायः आचे भाग में ज्यादा होता है। टेंशन टाइप हेडएक एक जैसा दोनों तरफ होता है। माइग्रेन का सिरदर्द झपक-झपक, श्रोबिंग, पल्सेटिंग, टाइप का होता है। |
टेंशन टाइप हेडएक का सिरदर्द भारीपन, वजन, दबाव, प्रेशर, जैसे कुछ बांध रखा हो, भारी वजन रखा हो ऐसा लगता है। माइग्रेन की सिरदर्द में तेज रोशनी और शोरगुल से परेशानी होती है। टेंशन टाइप हेडएक में ऐसी परेशानी नहीं होती। माइग्रेन के सिरदद में प्रायः उल्टीयां होती है, जि मिचलाता है। टेंशन टाइप हेडएक में नहीं होता है। माइग्रेन के हेडएक ही तीव्रता बहुत-बहुत ज्यादा होती है।
टेंशन टाईप हेडएक की तीव्रता तुलनात्मक रूप से कम होती है। टेंशन टाईप हेडएक और माइग्रेन दोनों यमरी हेडएक हैं, प्राथमिक हेडएक है। दोनों में अन्य कोई कारण नहीं होता। ये भीतर से मस्तिष्क के अंदर से अपने आप पैदा होते हैं। और दोनों ही हेडएक माइग्रेन और टेंशन टाइप कुछ मरीजों में लंबी अवधि के प्रतिदिन होते हैं। और कुछ मरीजों में लंबी अवधि के रुक-रुक के होते हैं, ऐपिसोडिक होते हैं। तो टेंशन टाइप हेडएक का इलाज तुलनात्मक रूप से आसान है। इसमें तात्कालिक आराम के लिये हम कुछ दर्द निवारक गोलीयां देते हैं। और यदि बार-बार, बार-बार होने लगा हो लंबी अवधि तक तो उसके रोकथाम वाली कुछ दवाईयां देते हैं। जो कुछ दवाईयां कॉमन है माइग्रेन में भी और टेंशन टाईप हेडएक में भी। तो टेंशन टाईप हेडएक भी प्रायमरी हेडएक का, प्राथमिक प्रकार के सिरदर्द का एक प्रमुख उदाहरण है।