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मरीज के संवाद साथी


संवाद साथी कौन होते हैं ?

वाचाघात से प्रभावित रोगी के संपर्क में आने वाले तमाम लोग जिन्हें, कम या ज्यादा बातचीत करने की जरुरत पड़ती हो या मौका मिलता हो |

  • अस्पताल में नर्स, वार्डबाय, सफाई कर्मचारी, डॉक्टर्स, पर्ची बनाने वाला क्लर्क, दवाई देने वाला फार्मासिस्ट |
  • घर पर पति,पत्नी, माता-पिता, बेटा, बहु, बेटी-दामाद और अन्य |
  • पास पड़ौस व समाज में रिश्तेदार, मित्र, सहकर्मी |

चूँकि अफेज़िया वाले व्यक्ति की संवाद क्षमता घट गई हैं, इसलिये बातचीत को सुचारू रूप से चलाने की जिम्मेदारी पार्टनर पर अधिक हो जाती हैं |

संवाद-साथियों के लिये अनेक सुझाव यहाँ दिये जा रहे हैं |

उद्देश्य है कि घर में, अस्पताल में या कही भी, रोगी की देखभाल बेहतर रूप से हो सके और मरीज़ अपनी भाषा-सम्प्रेषण कौशल तथा काम कर पाने की क्षमता में सुधार ला सके |

संवाद साथी अपनी जिम्मेदारी बेहतर ढंग से निभा पायें, इस हेतु उनकी ट्रेंनिंग के एक कोर्स तैयार किया गया हैं | इच्छुक संवाद-साथी कृपया सम्पर्क करें |

विषय सूचि

आरंभिक तैयारी

  • वाचाघात और लकवे के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी प्राप्त करें |
  • रोगी की शारीरिक असमर्थताऔर बोलने तथा समझने की सीमाओं को समझें |
  • फलिज़ के बाद यथाशीघ्र एलोपैथिक डॉक्टर या स्नायुरोग विशेषज्ञ से मिलें | अगर घर के पास कोई एलोपैथिक डॉक्टर न हो तो सिविल अस्पताल में जाएं | जहाँ तक और जितनी जल्दी संभव हो रोगी को स्नायुरोग के डॉक्टर को दिखाएं |
  • फालिज़ के बाद यथाशीघ्र चिकित्सकीय, शारीरिक, व्यावसायिक एवं वाक्-चिकित्सक की सलाह लें |

रोगी से नमस्कार का शिष्टाचार

बातचीत की शुरुआत में अच्छे से “नमस्कार”, “गुडमॉर्निंग”,”How do you do”,”आप कैसे हैं”, “आज आप अच्छे दिख रहे हैं”, “मेरा नाम (अ.ब.स.) हैं”, “आप से मिलकर ख़ुशी हुई”, “मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ”, “आप कुछ परेशान तो नहीं हैं”, “आप ठीक हो रहे हैं”, “आप बेहतर हो जायेंगे” |

रोगी को बोलने का पूरा अवसर दे, प्रोत्साहित करें:

उसे समय अधिक लगेगा | अटकेगा | गलत सलत बोलेगा | धेर्य रखें | अपनी तरफ से चिढ़ या झुनझुनाहट न हो | उसे प्रोत्साहित करें | उसे बीच में न टोके | उसे डांटे नहीं | उसकी हंसी न उड़ाए | हां.हां……”आप ठीक कह रहे हैं”, फिर से कोशिश करिये”, “आप को पता हैं”, “आप बोल पायेंगे”, मैं सुन रहा हूँ”, मैं समझ रहा हूँ”, “शाबास” |
उसके बात का अर्थ न निकल रहा हो तो भी उसे ऐसा न दर्शाएं |

मरीज़ की बात ध्यानपूर्वक सुनें | यदि आप समझ न पा रहे हों, विनम्रतापूर्वक पुनः दुहराने को कहें | सुनने वाले एक के साथ एक दो और हों, अच्छा क्योकिं कुछ समझ पाने की संभावना बढ़ जाती हैं |

  • जब तक रोगी न कहे या जब तक जरूरी न हो तब तक उसकी तरफ से या उसके लिये न बोलें।
  • रोगी यदि आपकी बात का तुरंत जवाब न दे पाए तो उसके लिये तुरंत शब्द चयन न करें। रोगी की बोलने में तभी सहायता करें जब वह या तो सहायता मांगे या बहुत परेशानी महसूस करे।
  • रोगी पर इस बात का दबाव न डालें कि वह सही शब्द या वाक्य ही बोले.
  • रोगी को कभी हतोत्साहित न करें, चाहे वह कैसे भी बोल रहा हो और किसी भी तरह (लिखकर, इशारों से या बोलकर) अपने विचारों को व्यक्त करना चाहता हो।
  • रोगी को बताएं कि वह चाहे कितना भी गलत-सही बोले, उसे बोलने का प्रयत्न करना चाहिये।
  • रोगी को प्रत्येक अपेक्षित अवसर पर बिना किसी डर या झिझक के बोलने के लिये प्रोत्साहित करें।
  • जिन रोगियों का उच्चारण साफ न हो उनसे धीरे-धीरे बोलने को कहें। उन्हें कभी भी एक मिनट में २०-२५ से अधिक शब्द नहीं बोलने चाहिये।
  • अगर रोगी बिना किसी कारण के रोने या हंसने लगे तो उसकी तरफ ध्यान न दें तथा बातचीत के क्रम को बदल दें।
  • रोगी को रोने से न रोंकें। रोना तो अभिव्यक्ति की एक स्वाभाविक क्रिया है। रोने से रोगी का दिल हल्का हो सकता है।
  • छोटे छोटे पुरस्कार(प्रोत्साहन) का उपयोग कर सकते हैं |
  • आज आपने अच्छा किया – चलो आपको यह मिठाई या नमकीन मिलता हैं- या – वहां घूमने चलते हैं |
  • फालिज के रोगी अक्सर गालियों का प्रयोग करते हैं। गालियों का प्रयोग उनके लिये एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है और इस पर उनका वश नहीं होता है। मित्रों और परिवार के लोगों को गालियों का बुरा नहीं मानना चाहिये और न ही उनकी हंसी उड़ानी चाहिये ।

यदि मरीज़ समझ न पा रहा हो तो संवाद साथी कैसे बोले:

  • सामान्यतया रोगी तब बेहतर ढंग से समझ सकते हैं जब उनसे धीरे-धीरे बोला जाए और सरल बातें की जाए।
  • वाचाघात के रोगी एक समय में एक ही व्यक्ति से यदि बात करें तो वे सामने वाले की बात अच्छी तरह समझ सकते हैं और अपनी बात समझा सकते हैं | यदि आसपास बहुत लोग हों या फिर पीछे कहीं बहुत शोर शराबा हो तो वे परेशान हो जाते हैं।
  • यह जरुरी हैं कि मरीज़ की क्लास न ले, टीचर जैसा बर्ताव न करें, आदेश-निर्देश न दे, बल्कि सहज स्वाभाविक बातचीत में प्रवृत्त करे | एक ऐसी बातचीत जिसमें एक पक्ष कमजोर हैं, अपनी भूमिका ठीक से नहीं निभा पा रहा हैं, दूसरा पक्ष समझदार हैं, ज्ञानी हैं, अतिरिक्त मदद करने को तत्पर हैं, परन्तु मरीज़ को कभी अहसास नहीं होने देना कि दो पक्षो में से एक सिखने वाला हैं तथा दूसरा सिखाने वाला |
  • शाबासी, प्रोत्साहन , हौसला अफजाई, मदद, इशारा, हिंट, अंदाज़, बार-बार कोशिश, बदल-बदल कर शब्दों व वाक्यों का उपयोग, वस्तुओं-चित्रों आदि का उपयोग, जैसे उपायों द्वारा संवाद साथी प्रतिदिन किसी एक विषय पर, पहले से सोची गई, पटकथा को आधार बनाकर, मरीज़ को गपशप में, बातचीत में, कथोपकथन में भागीदारी करवाता हैं |
  • संवाद में मरीज़ की बारी आने पर, संवाद साथी, उसे पूरा मौक़ा देता हैं, प्रतीक्षा करता हैं, हड़बड़ी में पुनः खुद नहीं बोलने लग जाता हैं, मरीज़ की मदद करता हैं, अधूरे उत्तर को पूरा करवाने की कोशिश करता हैं, गलत उत्तर को सही दिशा में ले जाने का प्रयास करता हैं, मरीज़ ने जो बोला उसका न कोई सिर हो या पैर तो भी अनुमान लगाता हैं कि मरीज़ शायद क्या कहना चाहता हैं | संवाद पटल का उपयोग करवाता हैं |
  • संवाद साथी ने जो बोला उसे मरीज़ ठीक से समझ पाया या नहीं यह सुनिश्चित करता हैं | बार-बार मरीज़ से पूछ कर पक्का करता हैं कि मरीज़ ने क्या समझा | बातचीत को रुचिकर, मनोरंजक बनाये रखता हैं |
  • किसी भी विषय पर बातचीत शुरू करने से पहले उसकी भूमिका बतायें | मरीज़ को बार-बार आगाह करें, याद दिलाते रहें कि किस बारे में चर्चा हो रही हैं |
  • अब मैं आप से कुछ पूछने जा रहा हूँ,
  • अब मैं आप से कुछ करने को कहूँगा |
  • हां तो हम आने वाले आम चुनावों की चर्चा कर रहे थे |
  • प्रधानमन्त्री कौन बनेगा |
  • किसी भी कथन में यदि कोई जानकारी हो तो उसे वाक्य के अंत में रखे या वाक्य कि समाप्ति पर दोहराए |
  • आज सुबह माँ ने साबूदाने की खीर बनाई थी न? साबू दाने की खीर |
  • संवाद को आगे तभी बढायें जब यह स्पष्ट हो कि मरीज़ ने अभी तक की बातें ठीक से समझकर, सही उत्तर दिये हैं | कथन स्पष्ट हो | बात को घुमाफिरा कर न कहें | सीधे-सीधे बात करें | छोटे वाक्य हों| बार-बार दोहरायें |
  • यूं न पूछें – ‘कल आपने क्या करा?’
  • बल्कि यूं पूछो – ‘क्या कल आप बाहर गये थे?’
  • निश्चय ही आपको पता होना चाहिये कि मरीज़ ने कल क्या किया था |
  • भाषा के साथ-साथ संदेशो के आदान प्रदान हेतु दुसरे तमाम तरीकों को खूब उपयोग करें – चेहरे के हाव भाव, नक़ल, अभिनय, आवाज़ में उतार चढाव, इशारे, मुद्राएं, हरकतें, नाटक|
  • मरीज़ से सवाल पूछते समय हो सकता हैं कि आपको उसका उत्तर मालूम हो फिर भी केवल अभ्यास की खातिर उस प्रकार प्रश्न बार-बार पूछने में आ सकते हैं | ऐसे समय जहाँ तक संभव हो मरीज़ को इस बात का एहसास न होने दें कि आपको उत्तर मालुम हैं वरना उसे अजीब लगेगा और वह भ्रमित हो सकता हैं | आप ऐसे बर्ताव  करो मानों कि आपको उस प्रश्न का जवाब नहीं मालूम और आप सीरिअसली वह सवाल पूछ रहे हैं |
  • अफेज़िक मरीजों के अनेक उत्तर गलत हो सकते हैं | संवाद साथी द्वारा गलत उत्तर की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिये, उसे ताल नहीं देना चाहिये | सामान्य स्वस्थ व्यक्तियों के मध्य यदि कोई सा उत्तर गलत निकलता हैं तो हम चौकन्ने हो जाते हैं, बोले वाले से पुनः पूछते हैं, उसने क्या कहा, क्यों कहा? इसी प्रकार का प्रयास अफेज़िया मरीज़ के साथ भी जारी रखा जाना चाहिये | यदि मरीज़ द्वारा दो भिन्न समय पर बोले गए दो उत्तरों में विसंगति हो तो विनम्रतापूर्वक उसका ध्यान आकर्षित करें –
  • ‘तुमने पहले कहा कि तुम्हारे दो बेटे हैं – याद हैं न | और अब तुम कह रहे हो कि तुम्हारी कोई संतान नहीं | फिर सोचो | ठीक से बताओ – तुम्हारे कितने बच्चे हैं’
  • अफेज़िया के मरीज़ के साथ एक बैठक में 8 से 10 संदेशो का आदान प्रदान भी हो जावे तो उसे अच्छा समझना चाहिये | यदि मरीज़ आपकी कही बात समझ नहीं पा रहा हो तो आपको वाक्य या सन्देश का मुख्य शब्द, एक कागज़ पर लिख कर उसका चित्र बनाकर या, संभव हो तो उस वास्तु को दिखाकर पुनः अपनी बात कहें |
  • किसी व्यक्ति का लिखित नाम, या उसका फोटोग्राफ बताया जा सकता हैं | वाचाघात मरीजों को बातचीत के दौरान संख्याएं, तारीखें और समय संबंधी जानकारी समझना, याद रखना, और जरुरत पड़ने पर बोलना प्रायः मुश्किल होता हैं | अतः इन जानकारियों को बोलते समय उसका लिखित रूप भी दिखायें |

व्यस्त रखना – जीवन में भागीदारी [Life Participation Approach in Aphasia(LPAA)]:

  • रोगी को अपने परिवार और मित्रों से दूर न रखें।
  • रोगी को परिवार में हो रही सब गतिविधियों के बारे में बताते रहना चाहिये और सब निर्णयों में उसकी राय लेते रहना चाहिये।
  • जितना सम्भव हो सके रोगी को भाषा सम्प्रेषण के लिये प्रोत्साहन दें। खाली बैठने से अच्छा है कि रोगी रेडियो सुने या टेलिविज़न देखे।
  • जहाँ तक सम्भव हो रोगी से वास्तविक जीवन की घटनाओं/अनुभवों के बारे में बात करें जिससे कि परिवारजन और रोगी संकेतों, चेहरे के भावों तथा अभिनय के द्वारा भाषा सम्प्रेषण कर सकें।
  • अकेले या लोगों के साथ-साथ गाने से भी रोगी को बोलने में मदद मिलती है |
  • दैनिक जीवन के बोल-व्यवहार का अभ्यास करवाने की कोशिश करते हैं | एक दिन में एक विषय चुना जाता हैं | जैसे चौके में भोजन बनाना, डाइनिंग टेबल पर भोजन करना, मोहल्ले पड़ोस में घुमने जाना, मंडी या दूकान से सब्जी, फल, किराना वस्तुएं खरीदना, ताश या केरम खेलना, किसी टी.वी. सीरिअल या क्रिकेट मैच की चर्चा करना, ऑफिस की बातें छेड़ना, परिवार के बारे में पूछना, मौसम का हाल जानना, मेहमान का स्वागत करना, शादी की तैयारियों का मुआयना करना, स्वास्थ्यकी चिंता करना, बच्चों की पढ़ाई और भविष्य की योजनाएं बनाना, रामायण की कहानी दुहराना |
  • शुरू में आसान विषय चुनें जिससे सम्बंधित वस्तुओं, व्यक्तियों, स्थानों आदि को सामने रखा जा सके जैसे कि किचन, बर्तन, टेबल, औजार, बाथरूम, एल्बम आदि या उन स्थानों पर मरीज़ को ले जाया जा सके |

आराम मिलना | थकान दूर होना | मूड अच्छा होना | नियमित  दिन चर्या

  • जहाँ तक सम्भव हो, रोगी को व्यस्त रखें, लेकिन ध्यान रखें कि उसे थकवाट न हो।
  • रोगी की दिनचर्या नियमित रखें। नियमित दिनचर्या में रोगी स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है और इससे उसका आत्मविश्वास बढ़ता है रोगी की दिनचर्या में उसे आराम के लिये अवसर दें। आराम के बाद रोगी की सीखने और समझने की क्षमता और सहनशीलता बढ़ जाती है। आराम करने के बाद परिवारीजन उसे बात करने तथा समझने की क्रियाओं के लिये प्रेरित कर सकते हैं।
  • रोगी से ऐसा करम करने को न कहें जिसे वह कर न पाए।
  • रोगी को भाषा सम्प्रेषण संबंधी अभ्यासों से तभी लाभ होता है जबकि कोई व्यक्ति रोगी के पास बैठकर नियमित रूप से उसे भाषज्ञ सम्प्रेषण का अभ्यास कराए। अभ्यास के लिये नियमित समय का पालन करने से रोगी का आत्मविश्वास बढ़ता है और वह सुरक्षित महसूस करता है।
  • रोगी की भाषा सम्प्रेषण संबंधी कठिनाइयाँ दिन-प्रतिदिन घटती-बढ़ती रहती हैं। इन कठिनाईयों का घटना बढ़ना एक सामान्य बात है। वाचाघात के रोगी बहुत जल्दी थक भी जाते हैं।
  • ये रोगी सोने के बाद या आराम करने के बाद प्रसन्नवदन तथा ज्यादा चौकस होते हैं। तब वे ज्यादा सीख सकते हैं और अच्छी तरह से बोल भी सकते हैं। ऐसे रोगियों को, जो बोलते नहीं है, इशारों में बात करने तथा सरल शब्दों के उच्चारण के लिये,प्रोत्साहित करें।
  • यदि मरीज़ थक जावे तो उसे आराम करने दें | थोड़ा सुस्ताने दें | विषय बदल दें | किसी ऐसे काम में लगा दें जिसमें बोलचाल की जरुरत न पड़ती हो | यदि उसका बिल्कुल भी मन न हो तो वाणी चिकित्सा सत्र को स्थगित कर दें | अगले दिन खुशमिजाज़ व  तरोताज़ा हालत में पुनः शुरू कर दें |

आत्मनिर्भरता | Dignity | आत्मसम्मान

  • रोगी को आत्मनिर्भर बनाने में पूरी सहायता करें।
  • याद रखें कि रोगी एक वयस्क व्यक्ति है। उसके साथ बड़ों जैसा ही व्यवहार करें। पहले की तरह ही उसे परिवार का एक अनिवार्य एवं महत्वपूर्ण सदस्य समझें। किसी भी निर्णय की प्रक्रिया में उसे पहले की तरह महत्व दें और शामिल करें |
  • रोगी की भावनाओं और इच्छाओं का पूरा आदर करें। बातचीत एवं समझने की अक्षमता से परेशान रोगी अक्सर लोगों से नहीं मिलना चाहता हैं।
  • रोगी के प्रति दया की भावना या सहानुभूति न दिखाएं क्योंकि इससे उसके आत्मविश्वास पर गलत प्रभाव पड़ता है।
  • अन्य लोगों से बात करते समय रोगी की उपेक्षा न करें।
  • रोगी की भाषा सम्प्रेषण संबंधी गलतियों तथा कठिनाईयों को छुपाएं नहीं। सब लोगों को इस कठिनाई के बारे में बता देने से वे एक परिवार के लोग, रोगी से धैर्यपूर्वक और धीरे-धीरे बातचीत करने का प्रयास करेंगे।
  • वाचाघात संबंधी समस्याएं लम्बे समय तक बनी रह सकती हैं। इसलिये वाचाघात के रोगी को कभी भी मन्दबुद्धि न समझ जाए।
  • संवाद साथी मरीज़ की भावनाओं का ध्यान रखता हैं | यदि मरीज़ को सहज  रूप से रोना आ जावे या हंसी छूटे या गुस्सा आवे तो कोई बुरी बात नहीं | भावनाओं को दबाना नहीं | उन्हें अभिव्यक्त होने दो | भावनाओं के साथ जो पाठ सीखे जाते हैं वे अच्छे तरह से याद रहते हैं |
  • अच्छा संवाद साथी मरीज़ को कभी डांटता नहीं, हंसी नहीं उड़ाता, व्यंग्य या कटाक्ष नहीं करता | यूं नहीं कहता कि तुम्हे इतना भी नहीं आता, अभी तो बताया था फिर भूल गये, कितनी बार सिखाया, फिर भी नहीं सीखते |

सही सही पूर्वानुमान का उल्लेख | Realistic Prognostication:

  • ठीक होने की उम्मीद जगायें रखें | लेकिन रोगी को कभी भी पूरी तरह स्वस्थ होने की झूठी आशा न दिखाएं। वास्तविकता का अहसास जरुरी हैं |

Augmented and Assistive Communication Device (AAC),

संवाद सहायक विधियों का उपयोग:

  • अच्छा होगा यदि बड़े-बड़े शब्दों में लिखे हुए इस सन्देश को रोगी के बिस्तर के पास रख दें।
  • मुझे फालिज़ हो गया है। इस कारण से मुझे समझने, बोलने, पढ़ने तथा लिखने में मुश्किल होती है। मुझे समझने और बोलने में काफी समय लगता है। कृपया आप भी धीरे-धीरे बोलें और मुझसे बातचीत करते समय धैर्य रखें।
  • ऐसा करने से रोगी से मिलने आए लोगों को मदद मिलेगी। पर्स/जेब में यह कार्ड रखकर रोगी की समस्या दूसरे लोगों को आसानी से समझा सकते हैं।
  • एक बार यह पता लगने के बाद कि रोगी की भाषा सम्प्रेषण क्षमता में क्या समस्या है, विशेष अभ्यासों के द्वारा उसकी सहायता की जा सकती है। समझने, बोलने, पढ़ने तथा लिखने आदि से सम्बन्धित अभ्यासों के लिये वाचाघात अभ्यास पुस्तिका का प्रयोग करें या इस बारे में किसी चिकित्सक से मिल लें।
  • ऐसे रोगियों से जिन्हें कि शब्द-चयन में या वस्तुओं के नाम याद करने में कठिनाई होती है, शब्दों का उच्चारण करवाने में निम्नलिखित सूत्रों से मदद मिल सकती है-

-किसी वस्तु का नाम पूछने के लिये कहें – इसे क्या कहते हैं ?

– किसी वस्तु की उपयोगिता बताने के लिये कहें – इससे क्या काम करते हैं ?

– किसी वस्तु को कैसे प्रयोग में लाते हैं, यह पूछने के लिये कहें- बताओ इसे कैसे प्रयोग करते हैं?

– कभी-कभी परिवार के लिये किसी वस्तु का उपयोग बताकर उसका नाम पूछे – इससे लिखने का काम करते हैं । बताओ क्या ?

– कोई ध्वनिरूपी संकेत दें । परिवार के लोग किसी शब्द का पहला अक्षर बोलें-जैसे कि -घ-घड़ी के लिये।

– किसी शब्द का पहला शब्दांश बोर्ले जैसे कि किताब के लिये – कि।

– वाक्य पूरा करना। परिवारीजन वाक्य की शुरूआत के शब्द बोलें और उसकी पूर्ति रोगी द्वारा की जाए जैसे कि मैं (रोगी कहेगा) पढ़ता हूँ |

Self Help Group:

  • वाचाघात के रोगियों का आपस में  एक दूसरे से मेल कराने में लाभ हो सकता है। दुर्भाग्य से भारत में ऐसे रोगियों का कोई नेटवर्क नहीं है। इसलिये परिवारजन से पुरजोर अपील है कि वे अपने आसपास किसी अन्य वाचाघात रोगी को खोजें और सभी परिवार महीने में एक-दो बार आपस में मिलें। ऐसे मेलजोल से न केवल मरीजों को मदद मिलती है अपितु इन रोगियों के जीवन साथी को भी बाहरी मेल-मुलाकात का अवसर मिल जाता है। (विस्तार में जानने के लिये ‘Self Help Group’ ब्रोशर देखें)

बहुत कठिन व जटिल अफेज़िया

  • अफेज़िया के गंभीर या कठिन मरीजों की वाणी चिकित्सा करने के तरीके सीमित होते हैं | बीमारी की तीव्रता अधिक होती है। मस्तिष्क में नुकसान अधिक होता है। संवाद करने की क्षमता के समस्त पहलु  व्यापक रूप से प्रभावित होते हैं। सुनना, समझना मुश्किल होता है। सामने वाला क्या बोल रहा है, क्या पूछ रहा है, उसका क्या इरादा है या इच्छा है। क्या विषय था, किस बारे में बात चल रही है, क्या उद्देश्य है, क्या भावना या मूड है – ये सारे निहितार्थ मरीज की चेतना में फलीभूत नहीं हो पाते। बोलने की, कहने की, अभिव्यक्त करने की योग्यता बुरी तरह से घट जाती है। आवाज नहीं निकलती। बोल नहीं फूटते| अटक जाते हैं | शब्द नहीं याद आता | गलत ध्वनियाँ, गलत उत्तर निकलते हैं। वाक्य बनाते नहीं बनता। जी कहना चाहता है, वह मन में मालूम है पर जुबान पर नहीं आता। या गलत आता है। व्याकरण उलट-पुलट जाती है| वाक्य विन्यास बेतरतीब हो जाता है। बोलने की बारी आने पर चुप्पा लग जाता है। बातचीत, गपशप, बहस, चर्चा में भाग लेने वाले सभी पक्षों की अपनी-अपनी भूमिका, बारी-बारी से, अनेक बार, बहुत देर तक निभानी पड़ती है। अफेज़िया के तीव्र रूप से ग्रसित मरीज अपनी भूमिकाएं भूल जाते हैं या जानते हुए भी उन्हें निभा नहीं पाते। कब बोलना, कैसे बोलना, कैसे सुनना और समझना, मुंडी हिलाना, हाँ-ना कहना, इशारा करना, अपनी बारी की प्रतीक्षा करना, बीच में न बोल पड़ना,  बात कह चुकने के बाद सामने वाले को मौका देना, विषय से न भटकना, सही उत्तर देना, अपनी बारी आने पर पुनः बोलना शुरू करना, पूरी बात कहना, सही तरीके से कहना। यह सब बातचीत के कृत्य अफेज़िया मरीजों में बुरी तरह से प्रभावित हो जाते हैं।
  • तीव्र अफेज़िया मरीज उदास हो जाते हैं, निराश हो जाते हैं, थक जाते हैं, चिढ़ते हैं, झुंझलाते हैं, गुस्सा होते हैं, रोते हैं और फिर चुप रह जाते हैं, अकेले रह जाते हैं अपनी खोल में बंद हो जाते हैं, गतिविधियां कम कर देते हैं, आना-जाना, मिलना जुलना अच्छा नहीं लगता। वाणी चिकित्सा में सहयोग करने का उत्साह नहीं बचा रहता। ऐसे मरीजों की वाणी चिकित्सा कठिन होती है। धैर्य लगता है। असफलता और असहयोग के बाद भी प्रयास जारी रखना पड़ते हैं।।

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