![](https://arth-dhwani.com/myprojectneuro/wp-content/uploads/2022/06/Untitled5-1.webp)
ई.एम.जी. – इलेक्ट्रोमायोग्राफी तथा एन.सी.वी. नर्व कंडक्शन। यह जांचे हमारे हाथ और पांव की नाड़ियों में, नर्व्स में और मांसपेशियों में जो बीमारियां होती है, न्यूरोपैथी और मायोपैथी के निदान में सहायक होती है। न्यूरोपैथी यानी नाड़ियों की खराबी और मायोपैथी यानी मांस पेशियों की बीमारी। उन बीमारियों के निदान में ई.एम.जी. इलेक्ट्रोमायोग्राफी यानी विद्युत मांसपेशी अभिलेख तथा नर्व के अंदर, नाडी के अंदर जो संवहन की गति है, उसको नापना, नर्व कंडक्शन वेलोसिटी। इस जांच में कई प्रकार के इलेक्ट्रोड हैं जो हाथ में और पांव में जगह-जगह लगाते हैं। करंट लगाते हैं और देखते हैं कि उसको बिंदु ‘अ’ से बिंदु ‘ब’ तक जाने में कितने मिली सेकंड लगे। बिंदु ‘स’ से बिंदु ‘द’ तक जाने में कितने मिली सेकंड लगे। इतने मिली सेकंड में कितने सेंटीमीटर यात्रा की तो वेलोसिटी कितनी हुई, उसकी गति कितनी हुई।
तमाम मांसपेशियों में हम बारिक-बारिक सुइया गडा कर उन मांस पेशियों के अंदर बनने वाली जो भी विद्युत गतिविधि है, ई.एमजी. जी. – इलेक्ट्रोमायोग्राफी को नापते हैं। एक स्वस्थ मांस पेशी की विद्युत गतिविधि अलग प्रकार की होती है और एक बीमार मांसपेशी अलग-अलग किस्म की खराबी आ उसकी इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी के अंदर हम को मिलती है। इलेक्ट्रोमायोग्राफी से हमें मदद मिलती है कि यह बीमारी न्यूरोपैथी की है, नाडीयो की है, और नर्व्स की है, या मायोपैथी की है, मांस पेशियों की है, कौन से प्रकार की है। यह भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस जांच में जब करंट लगाते हैं तो मरीज को हल्का सा दर्द हो सकता है और जब मांस पेशियों में सुई गडाते है, तब भी हल्का सा दर्द हो सकता है, लेकिन और कोई नुकसान है खतरा नहीं होता।
चुंकि टेक्नोलॉजी में बहुत विकास हुआ है, कुछ विशेष जांचे आजकल निकल आई है। खून की और बायोकेमेस्ट्री की अनेक जांचे, जिनमे बडे़ दुर्लभ किस्म के रासायनिक पदार्थों की मात्रा नापी जाती है जो रूटीन जांच में नहीं होती। न्यूरोलॉजिकल बीमारियों में बहुत सारी बीमारियां ऐसी है जिसमें हमारे शरीर के रासायनिक परिवर्तन होते हैं और कोई एक बहुत ही रेयर पदार्थ, दुर्लभ पदार्थ, जिसके बारे में हम जानते भी नहीं, जिसको नापना भी हमें अभी तक नहीं आता था, अब हमें मालूम पड़ा है कि फला फला बीमारी में फला फलाअ पदार्थ की मात्रा कम ज्यादा हो जाती है, यहा दुर्लभ बीमारियों और इसमें हम जींस को भी शामिल करेंगे। आजकल अनेक न्यूरोलॉजिकल बीमारियों के पीछे जेनेटिक खराबीयो की पहचान हुई है। इन जेनेटिक बीमारियों की जांच भी खून का सैंपल लेकर करते हैं कि हमारे शरीर में विद्यमान लगभग तीस हजार जीन्स से कौन से जींस की रचना में, कौन सी किस्म की खराबी आ गई है? क्या म्यूटेशन आ गया है? अनेक बीमारियों के निदान में जेनेटिक टेस्ट खून के द्वारा किया जाता है।