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पुनर्वास (Rehabilitation)


पुनर्वास से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण विषय निम्नवत हैं

1. पक्षाघात (stroke) के बाद दैनिक जीवन में क्या समस्याएँ आती हैं ?
एक सामान्य व्यक्ति के रूप में पक्षाघात के मरीज के रूप में जो देखभाल और उपचार हुआ उसे लिखने की प्रेरणा इस वाक्य से मिली कि “‘पूछो उनसे जो स्वयं भुक्तभोगी हों” । मैंने अपने अनुभवके द्वारा जो ज्ञान प्राप्त किया उसे बाटना चाहता हूँ ,….

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2. पक्षाघात के रोगी के सम्मुख घरेलु अवरोध एवं व्यवस्थाएँ
शारीरिक रूप से सीमाबद्ध पक्षाघात के रोगी के परिवार में रहते हुए सुरक्षा पर विशेष ध्यान देना पड़ता है। सुरक्षा के तौर पर बिखरी हुई कालीन या गलीचा और स्नानगृह की चटाई आदि को समेटना शामिल है। ये उन मरीजों के लिये जो कि चलने में कठिनाई महसूस करते हैं घातक सिद्ध हो सकती हैं,तब जब घर में आपात स्थिति आजाए और तुरंत सुरक्षित बाहर निकलना पड़े ।

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3. ग्रामीण क्षेत्रों में कम साधनों द्वारा गरीब मरीजों का पुनर्वास
शान्ता मेमोरियल पुनर्वास केंद्र, भुवनेश्वर, उड़ीसा की ओर से अशोक हंस की एक रिपोर्ट के अनुसार स्पाइनल इन्ज्युरी के मरीजों के पुनर्वास में संस्थागत तथा सामुदायिक, दोनों प्रकार के प्रयासों के समन्वय की जरुरत है। संस्थागत उपाय का अर्थ है, बड़ा अस्पताल, मेडिकल कालेज या सुपर स्पेश्यलिटी हास्पिटल जहाँ पूरी टीम व साधन हों।

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4. पार्किन्सोनिज्म दैनिक जीवन में कुछ छोटी मोटी समस्याएँ व उनका निराकरण
गले की भीतरी मांसपेशियों की गति कम पड़ने से भोजन, पानी, स्वयं की लार (थूक) आदि निगलने की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है । अतिरिक्त प्रयत्न करके खाना पड़ता है । मुँह व गले में भोजन रूकने लगता है। जल्दी खाने के प्रयत्न मे ठसका लगता है , खाँसी आती है , श्वास अवरूद्ध हो सकती है, भोजन के कण, भोजन नली में जा सकते हैं ।

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5. सफाई के साथ स्वयं नली डालकर मूत्र निकालना
(Clean Intermittent Self Catheterization)
अनेक न्यूरोलॉजिकल बीमारियों में या तो पेशाब रूक  जाता है या पूरी तरह खाली नहीं हो पाता और पेशाब की थैली में भरा रह जाता है , या लगातार टपकता ही रहता है | ऐसे मरीजों में बहुत दिनों तक केथेटर (पेशाब की नली) लगाये रखने के बजाय दिन में कई बार सफाई के साथ स्वयं नली डाल कर मूत्र निकालना सीख लेना चाहिये ।

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6. स्वयं सहायता समूह (Self Help Group)
किसी एक रोगी या मिलती -जुलती स्वास्थ्य समस्या से ग्रस्त कुछ व्यक्ति और उनके परिजनों तथा हितैषियों का समूह, जब एक दूसरे की तथा अपने जैसे अन्य मरीजों की बेहतरी और मदद के लिये मिलकर काम करने लगे तथा अपने अनुभवों का साझा करने लगे तो उस गतिविधि को सेल्फ हेल्प तथा सपोर्ट समूह कहा जाता है ।

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