गूगल अनुवाद करे (विशेष नोट) :-
Skip to main content
 

स्टेम सेल – फसल पकने से पहले सपनों का व्यापार
Stem Cell – Selling Dreams Before Actualization


हल्ला ज्यादा,भला कितना – कौन जाने ?


स्टेम सेल इलाज के बहुत चर्चे हैं | बहुत तेजी से बात फैल रही है। बडी उम्मीदें हैं। सपने जाग उठे हैं। भारी उत्सुकता है। कुछ चिकित्सकों ने दावे शुरू कर दिये हैं। बहती गंगा में हाथा धो रहे हैं। हवा के घोड़े पर सवार हो गये हैं। बड़े नामी अस्पताल और इज्जतदार विशेषज्ञ, गम्भीर चेहरा बना कर प्रेस कान्फ्रेंस में, गर्व से खबर फैलाते हैं कि हमारे डिपार्टमेंट में प्रोजेक्ट शुरू हुआ है। कुछ मरीज के ठीक होने की अपुष्ट खबरें ऐसे फैलाते हैं मानो सच हो। यह सब सदा से होता आया है। आगे भी होता रहेगा।
इन्सान की मजबूरी है और मनोवैज्ञानिक कमजोरी भी। चमत्कार की आशा किसे न होगी? अन्धा क्या माँगे ? लंगडा क्या माँगे ? डूबते को सहारा चाहिये। सच्चाई कड़वी होती है। सबको शार्टकट पसन्द है। मेहनत और फिजियोथेरापी का रास्ता लम्बा, उबाऊ, थका देने वाला है | रिजल्ट भी सदा अच्छा नहीं होता।


स्टेम सेल का विचार निःसन्देह महत्वपूर्ण है। उसमें सम्भावनाएँ हैं। सैद्धान्तिक स्तर पर स्टेम सेल (स्तम्भ कोशिका) द्वारा बहुत कुछ कर पाना सम्भव है। शोध अभी आरम्भिक स्तर पर है। कितना समय लगेगा, अनिश्चित है। सफल होगा या नहीं, कह नहीं सकते। कोई नुकसान तो न करेगा ? मालूम नहीं। सफलता के वर्तमान दावे अपुष्ट और अतिरंजित है। अप्रमाणित हैं।
स्तम्भ कोशिका (स्टेम सेल) का अर्थ समझने के पहले पाठकों को कुछ बातों का ज्ञान होना चाहिये। हमारा शरीर करोडों अरबों कोशिकाओं (सेल) से बना है। कोशिका शरीर की रचनात्मक व कार्यात्मक इकाई है। आकार में बहुत छोटी । नंगी आँख से नहीं दिखती। सूक्ष्मदर्शी यंत्र (माईक्रोस्कोप) से देखना पड़ता है। अलग-अलग अंगों में कोशिका का स्वरूप व कार्य भिन्‍न होते हैं। हृदय कोशिकाओं और मस्तिष्क की कोशिकाओं में जमीन आसमान का अंतर है।


माँ के गर्भ में जब बच्चे का बीज बनता है, बढ़ना शुरू होता है, उस समय, शुरू में एक कोशिका से दो, फिर चार, आठ, सोलह, बत्तीस होती जाती है। प्रत्येक कोशिका दो में बँटती जाती है। आरम्भिक अवस्था में ये सब एक जैसी दिखती हैं, एक जैसा काम करती हैं। तब नहीं मालूम पड़ता कि कहाँ लिवर है, कहाँ किडनी और कहाँ स्पाईनल कार्ड। नन्‍हें से एम्ब्रियो (डिम्ब) में अंग बनना कैसे शुरू होते हैं ? भिन्‍नीकरण द्वारा। डिफरेन्शिएशन द्वारा। सरसों के बारीक दाने के आकार के, कुछ दिनों की उम्र वाले इस शिशु में धीरे-धीरे, कोशिकाएँ आपने आपको अलग अलग रूप में परिवर्तित करने लगती है, भिन्‍न बनाती है, डिफरेन्ट होने लगती है। अलग-अलग समूहों की नियति सुनिश्चित होने लगती है। कोशिकाओं का फलां समूह मांसपेशियाँ बनायेगा, और यह दूसरा समूह हड्डियों में विकसित होगा।


श्रम विभाजन के पहले प्रत्येक कोशिका में समस्त प्रकार की कोशिकाओं में से किसी भी प्रकार में विकसित हो पाने की सम्भावना मौजूद थीं। इन्हीं कोशिकाओं को स्टेमसेल या स्तम्भ कोशिकाएँ कहते हैं | जन्म के समय बच्चों में सारी संभावनाएँ समान रहती हैं। वह न हिन्दु हैं न मुसल्रमान। न हिन्दी भाषी न तमिल्र। वह वकील भी बन सकता है या वैज्ञानिक भी। सब शिशुओं के चेहरे मोहरे भी मिलते-जुलते प्रतीत होते हैं। बड़ा होते-होते उसकी पहचान भिन्‍न होने लगती है। उनके रास्ते बदलने लगते हैं। एक दिशा में बहुत आगे चल पड़ने के बाद, प्रायः मार्ग व पहचान बदलना सम्भव नहीं होता। ठीक इसी प्रकार गर्भस्थ शिशु की कोशिकाओं के साथ होता है। एक बार धन्धा तय हो जाने के बाद उसे बदल नहीं सकते । जो कोशिकाएँ स्पाइनल कार्ड बनाएगी वे आगे चलकर आँख नहीं बना सकती है। मनु क़ी वर्ण व्यवस्था से भी ज्यादा सख्त नियम है। काम के आधार पर एक बार जो जाति तय हो गई वह हमेशा रहेगी, पीढ़ी दर पीढ़ी वही रहेगी। स्टेम सेल पर जाति का ठप्पा नहीं लगा होता है। लगने वाला है। सब पर लगेगा। जब तक नहीं लगा तब तक स्टेम सेल। जब लग गया तो लिवर या किडनी या ब्रेन या हड्डी ।

अनेक महिलाओं में गर्भपात होता है (एबार्शन)। दो या चार माह का डिम्ब गर्भ में टिक नहीं पाता। गिर पडता है | बाहर आ चुके इस छोटे से मांस के लोंदे में अभी भी कुछ कोशिकाएँ बची होती हैं जो स्टेम सेल होती हैं। वे अभी भिन्नित नहीं हुई हैं। डिफरेंट नहीं बनी हैं | उन कोशिकाओं में अभी भी क्षमता है किसी भी अन्य अंग के रूप में विकसित होने की । उन्होंने अभी तक कोई धर्म अंगीकार नहीं किया है।


स्टेम सेल प्राप्त करने का प्रमुख स्रोत है गर्भपात। यह आदर्श स्रोत नहीं है। गर्भपात प्रायः देर से होता है। अनेक सप्ताह गुजर चुके होते हैं। अंग बन चुके होते हैं। कोशिकाएँ भिन्न चोला पहन चुकी होती हैं। बहुत शुरू के दिनों का गर्भपात चाहिये। उसमें स्टेम सेल अधिक होते हैं । इन्हें प्राप्त करने का नया साधन निकल आया है। टेस्ट ट्यूब बेबी या आई.वी.एफ. द्वारा निःसन्तान दम्पत्तियों को बच्चा पैदा करवाने वाले क्लिनिक इसमें काम आते हैं। स्त्री के अण्डकोष में से एक से अधिक ओवम (अण्डा) प्राप्त करके टेस्ट ट्यूब (परखनली) में एक से अधिक एम्ब्रियों (डिम्ब) पैदा किये जाते हैं। जब वे विभाजित होकर थोड़ा आकार ग्रहण कर लेते हैं तब उनमें से एक को माता के गर्भ में स्थापित कर देते हैं | बाकी जो बच गये, उन्हें फेंक देते हैं, वाशबेसिन में बहा देते हैं। लेकिन अब नहीं। उन्हें सहेज कर रखते हैं। क्योंकि उनसे प्राप्त होते हैं स्टेम सेल।

stem cell
pc:Pink Sphere Splashed by Green Liquid


गर्भपात या टेस्ट ट्यूब बेबी क्लिनिक से प्राप्त स्टेम सेल के अलावा वयस्क मनुष्यों में भी कुछ स्टेम सेल बचे रहते हैं। खास करके अस्थि मज्जा (बोन मेरो) में। रक्त की कोशिकाएँ यहीं बनती हैं। स्टेम सेल (स्तम्भ कोशिका) को प्रयोगशाल्रा परखनलियों और मर्तबानों या कांच की बर्नियों में जिन्दा रखना, उनका उत्पादन बढ़ाना, उनकी गुणवत्ता बनाये रखना आदि तकनीकों पर पिछले दो दशकों में बहुत काम हुआ है। भारत इस क्षेत्र में अग्रणी देशों में से एक है। नाना प्रकार की बीमारियों में स्टेम सेल के लाभ की कल्पनाएँ की जा रही हैं। अनेक मरीजों का इलाज हो सकने की संभावनाएँ जाग्रत हुई हैं | जहॉ-जहाँ किसी अंग की कोशिकाएँ नष्ट हो चुकी हैं या आगे नष्ट होते रहने की आशंका हैं, वहाँ स्तम्भकोशिकाओं द्वारा उसकी भरपाई की उम्मीद करते है। बुढापे के एल्जीमर्स रोग में डिमेन्शिया होता है। स्मृति व बुद्धि कम होती जाती है। मस्तिष्क के अनेक हिस्सो में हजारों कोशिकाओं के क्षय होने से ऐसा होता है। वैज्ञानिकों ने सोचा-काश स्टेम सेल ब्रेन में पहुंच कर नया चोला पहनने का जादू चला दे, उन कोशिकाओं में बदल जाएं जो नष्ट हो गई हैं। कितना आसान ! नहीं, गलत। बहुत कठिन है यह डगर। दूर के ढोल सुहाने | न सूत, न कपास, जुलाहों में लट्ठम लट्ठा ।


ठीक ऐसा ही सोचा गया स्पाईनल कार्ड (मेरू तंत्रिका) की चोट व अन्य बीमारियों के कारण पेराप्लीजिया और क्वाड्रीप्लीजिया(अधोलकवा) के मरीजों और उनका इलाज करने वालों .ने। स्पाइनल कार्ड की न्यूरान कोशिकाएँ नष्ट हो चुकी हैं। शेष बची कोशिकाओं में विभाजन कंरके नई कोशिकाएँ बनाकर घाव को भरने की क्षमता रहीं नहीं। स्टेम सेल ही अलादीन का वह चिराग है जो अपने आका के आदेश पर चाहे जिस प्रकार की कोशिका में परिवर्तित हो जाएगा, विभाजन करेगा, नई कोशिकाएँ बनाएगा। एक-एक ईंट जोड कर ढह गई दीवार फिर खड़ी कर देगा। कितना आसान ! नहीं, फिर गलत।


काश यह इतना आसान होता। शायद भविष्य में आसान हो जाए। सम्भावना अच्छी है। पर अभी कुछ नहीं कह सकते । बहुत सारे किन्तु, परन्तु, लेकिन मार्ग में खडे हैं।प्रयोगशाला में उगाये गये स्टेम सेल कितने प्रमाणिक हैं ? कितने स्वस्थ हैं ? कितने दीर्घजीवी हैं ? कितने विभाजन के बाद उनकी गुणवत्ता बदल जायेगी ? उन्हें प्रयोगशाला में लम्बे समय तक स्वस्थ रखने के ल्रिये श्रेष्ठ तकनीकें क्‍या हैं ? काँच के मर्तबान में जो घोल भरा है उसका रासायनिक मिश्रण कैसा होना चाहिये ? किस तापमान पर रखना चाहिये ? स्टेम सेल को मरीज के शरीर में घुसाने का मार्ग कौन सा ? मुँह से खिला कर, कभी नहीं। क्या इन्जेक्शन द्वारा ? या फिर आपरेशन करके खराब अंग को खोलो और वहां स्टेम सेल का घोल या पाऊडर छिड़क दो यां उसका गूदा चिपका दो ?


शरीर में घुसा देने के बाद इस बात की क्या ग्यारण्टी की ये स्टेम सेल जिन्दा रहेंगे ? हमारा इम्यून तंत्र, समस्त अपरिचित घुसपैठियों को मार गिराने की फिराक में रहता है। उसी के बूते पर हम नाना प्रकार के बेक्टीरिया, वायरस के खिलाफ जिन्दा रह पाते हैं। अब इम्यून सिस्टम को कैसे समझाएँ कि ये स्तम्भ कोशिकाएँ अपनी दोस्त हैं। और सचमुच हो सकता है कि ये स्तम्भ कोशिकाएँ दुश्मन जैसा काम करने लगे।

प्रयोगशाला में कुछ हजार स्टेम सेल उगा पाने से यह ग्यारण्टी नहीं मिल्नती कि उनके व्यवहार के बारे में आपको सब मालूम हो तथा उसे सदैव अपने नियंत्रण में रख पाएंगें।
मान लो ये स्टेम सेल, शरीर में प्रवेश के बाद किसी तरह जिन्दा रह गये। पर इसका मतलब यह तो नहीं कि वे उसी कोशिका के रूप में अवतार लेंगे जिसकी आपको जरूरत थी। मारना था रावण को, चले आये कृष्ण। बनाने थे स्पाईनल कार्ड के न्यूरान, बन गये बालों के गुच्छे।
चलो यह भी मान लिया कि स्तम्भ कोशिकाएँ, चोट खाई स्पाइनल कार्ड में घुसने के बाद, जिन्दा रह गई, नई न्यूरान कोशिकाएँ बनाने लगी। पर इसका मतलब यह तो नहीं कि वे पुरानी, जिन्दा बचीं कोशिकाओं के समूह का सदस्य बन जाएँगी, उनमें आत्मसात हो जाएँगी, उनके काम में हाथ बंटाने लगेंगी।


चूंकि स्टेम सेल में बार-बार विभाजन करके नई कोशिकाएँ बनाने की क्षमता अधिक होती हैं, इसलिये उनके उपयोग से केंसर होने का अंदेशा बढ जाता है। केंसर में भी यही होता है। कोशिकाओं का बेहिसाब, बिना कंट्रोल विभाजन और बढते जाना।
इतने सारे प्रश्नों की बाधा दौड़ में वैज्ञानिक दौड़ रहे हैं। उनकी लगन और मेहनत की तारीफ करना होगी। पर जल्दबाजी मत कीजिये। उतावले मत बनिये। धैर्य रखिये। देर लगेगी। प्रतीक्षा करना पड़ेगी। सफलता मिल्र भी सकती है, ना भी मिले।


अंग्रेजी कहावत है केक की खूबी दिखने में नहीं, खाने में है। पुख्ता वैज्ञानिक सबूत चाहिये। सांख्यकीय दृष्टि में प्रमाणित होना चाहिये। प्लेसिबो प्रभाव को अलग हटाना होगा। मरीज कितना ठीक हुआ इसका आकलन करने में निष्पक्षता बरती होगी। जिसने इलाज किया और जिसका इलाज हुआ दोनों की आँख पर पट्टी बांध कर उन्हें अन्धा किया जाता है । उन्हें नहीं बताते कि किन आधे मरीजों (पचास प्रतिशत) में सचमुच की दवा दी है तथा किन आधे मरीजों में झूठ-मूठ की । अनेक सप्ताहों व महीनों तक मरीज की प्रगति पर नजर रखने का काम थर्ड पार्टी के निष्पक्ष प्रेक्षक करते हैं। उन्हें भी पता नहीं कि किस मरीज को सक्रिय’ दवा मिली है तथा किस को निष्क्रिय’ | इस सूची को एक सील बन्द लिफाफे में रखते हैं जो साल-दो-साल बाद प्रयोग के अन्त में खोलते हैं। ये सब तामझाम न करें तो चिकित्सक व मरीज दोनों पूर्वाग्रह के शिकार हो जाते हैं। मानसिकता बदल जाती है। यदि आप सोचते हैं कि स्टेमसेल से फायदा होगा, तो सचमुच आपको फायदा नजर आने लगता है। बहुत से मरीज अपने आप ठीक होते हैं। किस मरीज में इलाज; को श्रेय दें तथा किस में नहीं ? इसलिये आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में डबल ब्लाइण्ड रेण्डम कन्ट्रोल ट्रायल के बिना किसी सबूत को पर्याप्त नहीं मानते हैं। डबल ब्लाइन्ड का मतलब है न मरीज को और न चिकित्सक को पता है कि दी गई औषधि सक्रिय है या निष्क्रिय प्लेसिबो। रेण्डम का अर्थ है कि किस मरीज को ‘अ’ औषधि देंगे तथा किसे ‘ब’ यह फैसला कम्प्यूटर जनित रेण्डम अंक सूचि से करेंगे, उसमें न मरीज की चलेगी न डाक्टर की। कन्ट्रोल का मतलब है कि मरीजों के दोनों समूह (आधे-आधे) अधिकांश रूप से एक जैसा होंगे। वह समूह जिसे सक्रिय औषधि मिली तथा वह समूह जिसे निष्क्रिय प्लेसिबो औषधि मिली दोनों में समानता होना चाहिये। औसत उम्र, स्त्री पुरुष अनुपात, बीमारी का स्वरूप व तीव्रता, हर इष्टि से समानता। कहीं ऐसा न हो कि एक ग्रुप में तुलनात्मक रूप से स्वस्थ मरीज थे तथा दूसरे में ज्यादा बीमार। फिर किसी भी इलाज की तुलना बेमानी हो जायेगी।


स्पाइनल कार्ड की व अन्य तमाम बीमारियों में स्टेम सेल उपचार को इस अग्रि परीक्षा से गुजरना है। दुनिया भर में अनेक केंद्रों पर अग्रिपरीक्षा जारी है। प्रक्रिया कठिन व लम्बी है। परिणाम अनिश्चित | असफलता का मतलब यह नहीं कि प्रयोग बन्द हो जाएंगे। नये तरीके से, नई विधियों से, सुधार व परिवर्तन करके पुनः जारी रहेंगे। विज्ञान ऐसे ही आगे बढ़ता है।


कुछ मरीजों को लगता है कि डबल ब्लाइन्ड रेंडम कन्ट्रोल ट्रायल का यह तामझाम एक जबरदस्ती का कर्मकाण्ड है। वे कहते हैं – भाड़ में जाये तुम्हारी वैज्ञानिक विधियाँ। हमें तो जल्दी ठीक होना है। कुछ डाक्टर्स भी इस बहकावे में आ जाते हैं। कुछ अज्ञानवश। कुछ जानबूझ कर। इक्का-दुक्का मरीजों में हुए सुधार को बढ़ा-चढ़ा कर हवा दी जाती है। पर सच तो सच है। अभी डगर लम्बी है और अनजान भी। सैद्धांतिक रूप से मामला ठीक है। प्रयोग जारी हैं और प्रार्थनाएँ भी। देखना है किस में असर ज्यादा है।

<< सम्बंधित लेख >>

Skyscrapers
Dr. Neerja Pauranik’s Visit to a meeting of La Leche League, Local BranchVictoria, BC, Canada

            I am sure most of us are aware of La Leche League International and its activities. Its vision is…

विस्तार में पढ़िए
Skyscrapers
पूर्ण सूर्य ग्रहण – नियाग्रा से (डॉ. अपूर्व पौराणिक की एक रिपोर्ट)

Watch YouTube Video: https://youtu.be/gs4W0oyqWNg [एक आर्टिस्ट की कल्पना]  अमेरिका और कनाडा के स्थानीय समयों के अनुसार पूर्ण सूर्यग्रहण का अद्‌भुत…

विस्तार में पढ़िए
Skyscrapers
यात्रा का वर्णन (Travelogues)

इस खंड के प्रमुख लेख एवं आगामी लेख निम्न हैं – यूथ होस्टल के बहाने हरा भरा रेगिस्तान मानसून में…

विस्तार में पढ़िए
Skyscrapers
मीडियावाला पर प्रेषित लेख

जनवरी 2023 से डॉ. अपूर्व पौराणिक ने ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल ‘मीडियावाला’ पर एक साप्ताहिक कॉलम लिखना शुरू किया है – …

विस्तार में पढ़िए


अतिथि लेखकों का स्वागत हैं Guest authors are welcome

न्यूरो ज्ञान वेबसाइट पर कलेवर की विविधता और सम्रद्धि को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अतिथि लेखकों का स्वागत हैं | कृपया इस वेबसाईट की प्रकृति और दायरे के अनुरूप अपने मौलिक एवं अप्रकाशित लेख लिख भेजिए, जो कि इन्टरनेट या अन्य स्त्रोतों से नक़ल न किये गए हो | अधिक जानकारी के लिये यहाँ क्लिक करें

Subscribe
Notify of
guest
0 टिप्पणीयां
Inline Feedbacks
सभी टिप्पणियां देखें
0
आपकी टिपण्णी/विचार जानकर हमें ख़ुशी होगी, कृपया कमेंट जरुर करें !x
()
x
न्यूरो ज्ञान

क्या आप न्यूरो ज्ञान को मोबाइल एप के रूप में इंस्टाल करना चाहते है?

क्या आप न्यूरो ज्ञान को डेस्कटॉप एप्लीकेशन के रूप में इनस्टॉल करना चाहते हैं?