मैं अनपढ़ तो न था, काला अक्षर भैंस बराबर
मालवा केसरी के प्रधान सम्पादक नृपेन्द्र कोहली गजब के पढ़ाकू हैं। उनकी लाइब्रेरी में हिन्दी, पंजाबी और अंग्रेजी की लगभग 10000 किताबें हैं। दसियों अखबार और पत्रिकाएँ रोज पढ़ते हैं । सम्पादकीय व अन्य लेख लिखते हैं। पांच पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। पढ़ने की गति इतनी तेज कि मानों एक एक पंक्ति बायें से दायें न पढ़ते हुए पूरा पेज व एक नजर में ऊपर से नीचे पढ़ जाते हैं। वर्टिकल रीडिंग। प्रत्येक पृष्ठ एक चेहरे के समान। हजारों पृष्ठ, हजारों चेहरों के समान स्मृति में भरे हुए। कहां किस पेज पर कौन से पेराग्राफ के किस कोने में क्या लिखा है, सब याद रहता है।
सुबह पांच बजे उठकर घर के लॉन में अखबारों के बण्डल रोज की तरह आज भी उठा कर लाये और अध्ययन कक्ष की टेबल पर लेम्प की जगमग रोशनी में फैला दिया।
अरे यह क्या? ये अखबार कौन सी भाषा में है । अखबारों के नाम पहचान में आ रहे हैं। फोटोग्राफ्स में पोलिटीशिन्स के चेहरे समझ आ रहे हैं। लेकिन लिखा क्या है ? ;
आंखें मसली। चश्मा साफ किया। प्रकाश बढ़ाया। पत्रिकाएँ भी पढ़ने में नहीं आ रही। आगे पीछे पन्ने पलटे । उल्टा सीधा घुमाया। मानों चीनी या अरबी लिपि में छपा हुआ हो या कम्प्यूटर के वर्ड प्रोसेसर में वायरस लग गई हो या उस फान्ट को सपोर्ट करने वाला साफ्टवेयर डलने से रह गया हो।
उठ कर खिड़की से बाहर नज़र फैलाई। उषा की लालिमा पूरब में उभर रही थी। चिड़ियाऐं फुदक रही थीं, चहचहाने लगी थी, टेसू का वृक्ष उनके आंगन में चैत्र की बहार पर था। दुनिया हसीन है पर कागज की दुनिया पर छपे काले अक्षरों को क्या हो गया – भैंस बराबर हो गये । कीड़े मकोड़े बन गये।
सम्पादक महोदय शहर के वी.आई.पी. होते हैं। आज की समस्या गहन गम्भीर दिख पड़ रही है। उनके लिये पढ़ना तो सांस लेने के समान है। नेत्र विशेषज्ञ ने पहले जांच करी। आंखें 100% सलामत हैं। कहीं से कहीं तक कोई खराबी नहीं। आंख के पर्दे पर जो चित्र पल पल बनते रहते हैं वे आंख के पीछे के भाग में स्थित दोनों आस्सीपिटल खण्ड में पहुंचते हैं। देखने! का असली काम आंखों में नहीं, दिमाग में होता है। आंखें सेवक हैं। मालिक ब्रेन है। कोहली जी बोले मेरा दिमाग बाकी सब चीजे भली भांति देख रहा है लेकिन लिपि क्यों नहीं ? न देवनागरी, न रोमन, न गुरूमुखी । उन्हें तीनों भाषाओं पर पूरा अधिकार था।
न्यूरोलॉजिस्ट ने अनुमान लगा लिया कि पिछली रात उन्हें गुपचुप ब्रेन अटैक आया होगा । सी.टी. व एम.आर. आई. के लिये तुरन्त भेजा । शारीरिक न्यूरोलॉजिकल व प्रयोगशाला जांचों में और कोई खराबी न थी । दृष्टक्षेत्र (विज़्युअल फील्ड) में थोड़ी सी कमी थी। एक एक करके, दूसरी खुली आंख के सामने अंगुली दिखाकर पूछते कि दिख रही है क्या, और फिर उस अंगुली को ऊपर नीचे दायें बायें चारों कोनों में ले जाकर फिर पूछते दोनों आंखों से बायीं ओर की दिशा में कम दिख रहा था। जो जल्दी ही ठीक हो गया।
नृपेन्द्र जी की स्मृति व अन्य बौद्धिक क्षमताएँ अक्षुण्ण थीं। ‘स’ आकार पहचान रहे थे, मिलान कर रहे थे। भाषा प्रवाह, शब्दावली, व्याकरण तीनों भाषाओं में उत्तम रूप था। गुनगुनाने व गाने का स्वर अच्छा था। किसी धुन का राग तुरन्त पहचान लेते थे। एक लम्बा जटिल पेराग्राफ पढ़कर सुनाया तो उसे सर-सर एक वाक्य में बोल दिया।
तीनों लिपियों का एक भी अक्षर नहीं पहचाना, शब्द और वाक्य की बात दूर थी। उन अक्षरों के रूप का वर्णन अटक अटक कर करा। दो खड़ी डंण्डियाँ हैं, उन्हें बीच में एक छोटी आड़ी डण्डी जोड़ रही है।’ परन्तु यह कहते न बना कि अंग्रेजी का ‘एच’ अक्षर है।
मैंने उन्हें अनेक शब्द अनुशब्द युग्म बोल कर सुनाये और पूछा कि दोनों एक है या मामूली अंतर है – घर-घर, प्यार-व्यार, चाय-जाय, कोला-कोला। ध्वनियों के थोड़े से फर्क की पहचान ठीक थी। इसी प्रकार इसे जोड़े कागज़ पर छपे थे, जिन्हें बोल कर पढना नहीं था, उन्हें देखकर सिर्फ यह बताना था कि दोनों आक़ृतियों में कोई भेद है या नहीं। रोज-रोंन, चूक-चूक, थन–यन। अक्षर व् शब्दों/अन शब्दों को बोलकर पढ़ नहीं पाए। लेकिन बता दिया की कौन सा जोड़ा हुबहू एक है तथा कौन से में बारीक सा अंतर है । प्रथम पायदान सलामत थी। अगली पेडिया – अक्षर – चित्रों से ध्वनियाँ और फिर उनके अर्थ तक पहुचना-अवरुद्ध था।
इस तरह के मरीजों में अपने आप सुधार होता है। किसी में जल्दी, किसी में देर से । किसी में थोड़ा सा, किसी में ढेर सारा। रोग विकृति इलाके में सूजन (इडिमा) 2 सप्ताह में उतर जाता है। आसपास सोई पड़ी छोटी छोटी धमनियाँ और केपीलरिज़ सहायक रक्त प्रवाह (कोलेटरल सर्वयुलेशन) के रूप में खुल जाती हैं। खून सप्लाय यकायक रुकने से हजारों न्यूरॉन कोशिकाएँ जो मरी नहीं थीं, परन्तु सन्न रह गई थीं, शॉक या सदमे में थीं, फिर काम करना शुरू कर देती हैं ।
मरता क्या न करता
प्रथम माह में इन्हीं विधियों के चलते नृपेन्द्रजी के न केवल आक़ृतियों को पहचान (त्रिभुज, चतुभुर्ज, घन, सर्पिल, आवी) बल्कि तीनों लिपियों की पृथक पहचान बनी, कुछ अक्षरों की ध्वनियों का सम्बन्ध पुनर्स्थापित हुआ। ‘म’ अक्षर को ऐसे बोलते हैं, किसी ने ‘स’ ध्वनि बोली तो उसका अक्षर – ये लो, यहाँ रहा। अक्षरों से शब्द और शब्द में वाक्य, वाक्य से पेराग्राफ, पेराग्राफ से कहानी। बहुत लम्बी यात्रा है। बचपन में प्राथमिक शाला में पढ़े पाठ पुनः दोहराये गये। उतना ही समय, उतनी ही मेहनत फिर लगती है। निरक्षर से साक्षर, साक्षर से ड्रुतगामी पाठक की यात्रा में नृपेन्द्रजी का साथ दिया अतुलाजी, उनकी पत्नी ने। अतुला सान्याल कोहली, अंग्रेजी साहित्य में प्रोफेसर तथा उपन्यास लेखिका हैं। लिखने और पढ़ने की क्षमता को विज्ञान सम्मत और सबूत आधारित अभ्यासों की सघन श्रृंखला के समय बद्ध कोर्स द्वारा पुनः सुधारने का काम वाणी भाषा चिकित्सक (स्पीच लेंग्वेज पेथालॉजिस्ट – एस.एल.पी.) करते हैं। यामिनी रोज दो घण्टा प्रेक्टीस करवाती। अतुला के रूप में यामिनी को एक बड़ी दीदी और अंग्रेजी भाषा की कोच मिल गई। यामिनी की सगाई हो चुकी थी। फियांसी अमेरिका में था। बीसा में एक वर्ष की प्रतीक्षा थी। अंग्रेजी परीक्षा पास करने में वहां जॉब मिल जायेगा।
आश्चर्यजनक रूप से नृपेन्द्र कोहली तीनों भाषाओं में बिना गलती के पहले जैसे लिख लेते थे। किसी ने कुछ बोला तो श्रुतलेख सही था। मन में विचार कौंधे तो कागज पर अवतरित हो गये। लाईन ऊपर नीचे हो जाती थी। अभी का लिखा अभी पढ़ने को दो तो कुछ नहीं पढ़ पायेंगे आप लिखें खुदा बाचें । अक्षर मोती जैसे लेकिन सब भैंस बराबर ।
हमारे दिमाग का सिस्टम सच में जटिल है। जैसे जैसे पन्ने खुलते हैं, गजब का संतोष और आनन्द मिलता है। जैसे जैसे पज़ल का एक एक टुकड़ा अपनी अपनी जगह फिट होता जाता है, यूरेका के अनेक क्षण प्राप्त होते हैं। पढ़ने का केन्द्र और लिखने का केन्द्र दूर-दूर है। हालांकि आपस में जुड़े हुए हैं। किसी बबूला या बवण्डर के लिये सम्भव है कि उसके मार्ग में आने वाली एक झोंपड़ी उड़ जावे और पड़ौस के खेत वाली जगह बच जावे । इस जंगी मशीन का फलां स्क्रू गिर गया इसलिये वह वाला काम बंद हो गया और फलां गीयर गिस गया इसलिये यह फंक्शन चला गया। हम न्यूरोविज्ञानियों की भाषा मेकेनिकों जैसी होती है। प्रयोगशाला में बन्दर व अन्य प्राणियों के दिमाग में कंटाई छंटाई करके उनकी बदली बदली सी हरकतों का अवलोकन करते हैं। मनुष्यों में कुदरत ये क्रूर प्रयोग करती है।
श्री नृपेन्द्र कोहली ने प्रेस से एक माह की छुट्टी ली। उसे तीन महीने तक बढ़ाया। पत्रकार जगत अचम्भित था। क्या हो गया है ? ऊपर से ठीक दिखते हैं। पार्टी आदि में आते हैं। अतुला सान्याल का पूरा कण्ट्रोल था इनर सर्कल पर। इन्टरव्यू, भाषण, समूहचर्चा सब जारी रहे। एक छाया की तरह साथ रहती, जहां कोई कागज का पुर्जा या फाईल किसी ने बढ़ाई, उसे अपने हाथ में ले लेती। या कहलवा देती – धन्यवाद, सर इसे बाद में देख लेंगे।
तीनों लिपियों के अक्षरों की बार-बार नकल करवाई जाती है। शब्दों की स्पेलिंग मुंह से दोहराते हैं। कुछ ही दिनों में कोहली साहब अक्षरों की आकृतियां, कागज पर लिखने के अलावा हवा में ऊंगलियाँ फेर कर बनाने लगे। धुन के पक्के प्रोफेशनल करियर दांव पर लगा था। मरता क्या न करता। |
अगले महीनों से लिप्यान्तरण के अभ्यास शुरू हुए। तीन भाषाएँ । तीन लिपियाँ । घोड़ा शब्द हिन्दी में कैसे लिखेंगे। घ में ओ की मात्रा। ड के नीचे बिन्दु और आ की मात्रा। इसी को रोमन लिपी में – जी.एच. यानि ‘घ’ , फिर ओ, डी, आ। इसे अंग्रेजी में क्या कहते है – हार्स। देवनागरी में ह में आ की मात्रा, आधा र, जो कि बाद वाले अक्षर स के ऊपर लगाया जावेगा। सुधार की गति अच्छी थी। लिपि के रूपान्तरण के साथ, अनुवाद भी जारी था। अक्षरों और ध्वनि के अन्तरसम्बन्ध का टू- वेमार्ग पुख्ता हो रहा था। मनुष्य के डार्विनियन विकास की यात्रा में भाषा का अविर्भाग स्वतः स्फर्त रुप से दूनिया के कोने-कोने में स्वतंत्र रुप से प्रस्फुटीत हुआ। लिखित रुप बाद का विकास है।
अंग्रेजी भाषा के अनेक शब्दों की स्पेलिंग उल्टी-पुल्टी होती है। नियम आधारित नहीं होती। कितने चुटकुले चलते हैं। बी.यू.टी. बट है फिर पी .यु.टी. पुट क्यों ? कठिन हिज्जे वाले अनेक अंग्रेजी शब्द, अक्षर चित्र और उसकी ध्वनि सम्बन्धी नियमों का हवाला देकर नहीं पढ़े जा सकते हैं। ऐसे शब्दों को अक्षरों के समूह के बिम्ब के रूप में याद रखना पड़ता है। बहुभाषी और बहुलिपि निपुण होने का फायदा नृपेन्द्रजी को मिल रहा था।
एक के बाद एक मोटे रजिस्टर व नोट बुक्स भरते चले गये । प्रत्येक पृष्ठ पर तारीखें अंकित रहती।
अतुला सान्याल धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। प्रत्येक कापी के प्रथम पेज पर शुभंकर के रूप में ‘श्री’ लिखती और एक मंत्र – वागर्थो स्प्रक्तौ उमा महेश्वरो: (कालीदास के रघुवंश से) वाणी और अर्थ आपस में उसी प्रकार जुड़े हुए हैं कि उमा (पार्वती) और महेश्वर (शिव)।
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